वह पद्धति जिसमें हम समय का मापन करते हैं, सौर दिवस (Solar day) की संकल्पना पर आधारित है। इसे उस औसत समयावधि के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जिसमें पृथ्वी पर कोई देशांतर दूसरी बार सूर्य के सामने से गुजरता है। यह अवधि 24 घंटे की होती है। इसे औसत सौर दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इसके विपरीत किसी असीम दूरी पर स्थित तारे का किसी मैरीडियन पर पुनः आने के मध्य के समय अथवा पृथ्वी को 360° घूमने के लिए आवश्यक समय को नक्षत्र दिवस (Sidreal day) कहा जाता है। यह अवधि औसत सौर दिवस से 4 मिनट कम होती है।
सौर दिवस और नक्षत्र दिवस के बीच अंतर उत्पन्न होने का कारण पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के कारण सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक स्थिति में परिवर्तन होना है। पृथ्वी की स्थिति में परिवर्तन के कारण पृथ्वी की सूर्य के संदर्भ में एक घूर्णन में 4 मिनट अधिक समय लगता है। परंतु अनंत दूरी पर स्थित नक्षत्रों के संदर्भ में पृथ्वी की स्थिति परिवर्तित नहीं होती है इसलिए नक्षत्र दिवस, वह समय है जो कि पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक बार 360° घूमने में लगता है। यह समयावधि सौर दिवस की अपेक्षा थोड़ी (लगभग 4 मिनट) कम होती है।
कैलेंडर-एक वर्ष
पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में लगने वाली समयावधि को एक वर्ष कहा जाता है। इसे अनेक प्रकार से मापा जा सकता है के लिए सौर वर्ष को सूर्य के मेष राशि में पुनः आने के लिए लगी के परिभाषित किया जाता है। नक्षत्र वर्ष का मापन पृथ्वी की अनंत दूरी पर स्थित किसी तारे के संदर्भ में सूर्य की परिक्रमा के आधार पर किया जाता है।
एक कैलेंडर वर्ष की सीप वर्ष के आधार पर नियमित की जाती है। यह अवधि एक सौर वर्ष के समान रखी जा सके इसलिए प्रत्येक चार वर्ष में फरवरी में दिन जोड़ा जाता है। इस एक दिन का प्रत्येक चौथे वर्ष से गहरा संबंध होता है।
सौर वर्ष की शुद्ध अवधि 365.2419 दिन होती है और सामान्यतया इसे 365.25 दिन माना जाता है। अतः प्रत्येक चौथे वर्ष एक दिन का जोड़ा जाना कुछ अशुद्ध है। इस अशुद्धि का निवारण लीप शताब्दी के आधार पर किया जाता है। इसलिए लोग शताब्दी की गणना करने के लिए उसे 400 से विभाजित किया जाता है 400 से पूर्णतया विभाजित होने पर ही शताब्दी वर्ष को लीप वर्ष माना जाता है। इस प्रकार वर्ष 2000 लीप वर्ष था किंतु 1900 नहीं वर्ष का विभाजन महीनों में किया जाता है।
सर्वप्रथम महीनों की गणना चंद्रमा की गति के अनुसार की जाती थी परंतु अब चंद्रमास 29.5 दिन का होता है जिसे थोड़ा से बड़ा कर दिया जाता है ताकि महीनों तथा ऋतुओं में सामञ्जस्य बना रह सके। महीनों को सप्ताहों में विभाजित किया जाता है परन्तु इस विभाजन का कोई तार्किक आधार नहीं है।
मिस, सुमेरिया तथा बेबीलोन के प्राचीन निवासी चन्द्रमास पर आधारित कैलेंडर का उपयोग करते थे। इन पद्धतियों को मिस्रवासियों द्वारा इस प्रकार व्यवस्थित किया गया था कि ऋतुएं महीनों के अनुरूप हो जाएं। इस प्रकार प्रत्येक साल में 12 महीने होते थे। प्रत्येक महीने में 30 दिन होते थे और 5 दिन अतिरिक्त होते थे जो किसी महीने से संबंधित नहीं थे प्राचीन रोमन पंचांग केवल कृषि महीनों पर आधारित था तथा इसमें मार्च से दिसंबर तक महीने थे। इस कैलेंडर में सर्दी के महीने छोड़े गये थे। इसके परिणामस्वरूप सूर्य के आधार पर तथा चंद्रमा के आधार पर निर्धारित वर्ष की अवधि में अंतर रहता था। यह पंचांग जुलियस सीजर के द्वारा 90 दिन जोड़ने के पश्चात् वर्ष 46 ई.पू. में ठीक किया गया था। उसने निर्देश दिया कि अब एक वर्ष 365 दिन का होगा तथा प्रत्येक चार वर्ष पश्चात् लीप वर्ष होगा। कैलेंडर को अंतिम रूप देने का कार्य ग्रेगरी XII के द्वारा किया गया था। पोप ग्रेगरी XII ने शताब्दी का अंतिम वर्ष 400 से विभाजित होने पर लीप वर्ष मानने की प्रथा आरंभ को इस कैलेंडर को विश्व में सभी ने अपना है। यद्यपि इस आधार पर वर्ष की अवधि को शुद्ध कर लिया गया है किंतु इस कैलेंडर में महीनों को समान दिनों में विभाजित नहीं किया गया है।
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