राज्य वित्त आयोग गठन एवं कार्य | State Finance Commission work
राज्य वित्त आयोग गठन एवं कार्य (State Finance Commission work )
राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission )
- अनुच्छेद 280 के तहत केंद्र के वित्त आयोग की तर्ज पर 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गयी थी जिसका उद्देश्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना होता है। राज्य वित्त आयोग के निम्न कार्य हैं, राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना। राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज्य संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना ।
अनुच्छेद 280 के तहत केंद्र के वित्त आयोग की तर्ज पर 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग की स्थापना की गयी थी जिसका उद्देश्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करना और इसके लिए निम्न रूपों में सिफारिश करना होता है -
(i) राज्य द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल और फीस की विशुद्ध आय का पंचायतों तथा राज्य के बीच आवंटन करना जिसे दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है और पंचायत के विभिन्न स्तरों पर खर्च या आवंटित किया जा सकता है।
(ii) पंचायतों को कितने कर, शुल्क, टोल और फीस सौंपी जा सकती है, का निर्धारण करना;
(iii) पंचायतों को अनुदान सहायता
राज्य वित्त आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं :
- राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा करना । राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज्य संस्थाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए विभिन्न कदम उठाना ।
- राज्य की संचित निधि से राज्य में स्थित विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों को धन आवंटित करना।
- वित्तीय मुद्दों के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना । केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को प्रदान की जानी वाली धनराशि का सदुपयोग करना
- राज्य सरकार द्वारा लगाये गये करों, शुल्कों, टोल, और अधिशुल्कों का राज्य में स्थित विभिन्न नगर निकायों और पंचायती राज संस्थाओं की बीच आवंटन करना। कर, टोल, शुल्क, और फीस, जिसे राज्य में विभिन्न पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों द्वारा लगाया जा सकता है, का निर्धारण करना ।
संविधान के अनुच्छेद 243 - 1 का संबंध वित्त आयोग है जो पंचायतों के विशेष मूल्यांकन के लिए वित्तीय स्थिति समीक्षा करता है। भारत में पंचायती राज संस्था की अवधारणा और आकांक्षा को उपयोग में लाने के लिए राज्य वित्त आयोग की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि पर्याप्त स्वायत्तता और अधिकार के साथ अंतिम रैंक के अधिकारी तक वित्त आसानी या सावधानी से उपलब्ध होता है तो सत्ता के अंतरण को महसूस किया जा सकता है। इन पहलुओं के मद्देनजर राज्य वित्त आयोग की भूमिका को देखा जा सकता है।
सकारात्मक पक्ष
- लोकतंत्र के विचार को बढावा देना
- सरकार और शासन के वृहद विकासवादी पहलू ।
- स्थानीय लोगों और स्थानीय नेताओं का सशक्तिकरण ।
- दूरस्थ क्षेत्रों के लिए धनराशि का सही मात्रा और समय पर पहुंचना
नकारात्मक पक्ष
- राज्य अपने वित्तीय अधिकारों का प्रयोग करने में अनिच्छुक रहे हैं।
- राज्य वित्त आयोग स्वायत्तता में बहुत अधिक हस्तक्षेप और अतिक्रमण का कार्य कर रहा है।
- राज्यों के पास स्वयं के खर्चे के लिए पर्याप्त धन नहीं है जिस वजह से धन राशि को साझा करने के कारण मामूली धनराशि का राज्य सरकार द्वारा हमेशा विरोध किया जाता है।
- अभी तक राज्य वित्त आयोग के विचार को सच्ची भावना में लागू नहीं किया जा सका है।
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