सुशीला दीदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (प्रमुख तथ्य) | Susheela Didi Fact in Hindi
सुशीला दीदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी (प्रमुख तथ्य)
सुशीला दीदी के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
भारत की आजादी एक दीर्घकालिक संघर्ष एवं असंख्य बलिदानों की परिणीति थी. भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के समय मातृशक्ति जितनी जागृत हुई, उतनी शायद ही कभी रही. भारत को परतंत्रता की बेडियों से मुक्त कराने के लिए देश-प्रेमी महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर आज हम आपको एक ऐसी ही महिला क्रांतिकारी सुशीला मोहन उर्फ सुशीला दीदी की कहानी बता रहे हैं. जिन्होंने काकोरी कांड में फँसे क्रांतिकारियों को बचाने के लिए अपनी शादी के लिए रखा गया सोना तक बेच दिया था.
सुशीला दीदी प्रमुख तथ्य ( Susheela Didi Fact in Hindi)
- सुशीला दीदी का जन्म 5 मार्च, 1905 को तत्कालीन पंजाब के दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान में) हुआ था एवं उनकी आरम्भिक शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई थी.
- देशभक्ति और क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित होने के उपरांत वह क्रांतिकारी दलों से जुड़ गई. अपने अध्ययन काल के दौरान ही सुशीला दीदी स्वतंत्रता आन्दोलन के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जुलूस को बुलाना, क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए गुप्त सूचनाओं को पहुँचाना एवं चंदा इकट्टा करने में संलग्न हो गई.
- क्रांतिकारी गतिविधियों के समर्थन में किए जा रहे कार्यों के दौरान ही उनकी मुलाकात भगत सिंह के साथ हुई, भगत सिंह के जरिए उनकी मुलाकात भगवती चरण और उनकी पत्नी दुर्गा देवी वोहरा से हुई. गौरतलब है कि सुशीला दीदी ने ही सबसे पहले 'दुर्गा देवी' को दुर्गा भाभी का नाम दिया जिसके उपरांत हर क्रांतिकारी उन्हें दुर्गा भाभी के नाम से सम्बोधित करने लगा. सुशीला दीदी को भगत सिंह अपनी बड़ी बहन मानते थे.
- जब क्रांतिकारियों के द्वारा 'काकोरी कांड' को अंजाम दिया गया, तो ब्रिटिश सरकार के द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों पर काकोरी षड्यंत्र का मुकदमा चलाया गया. मुकदमे की पैरवी में धन की आवश्यकता को देखते हुए सुशीला दीदी ने अपने शादी के लिए रखे गए 10 तोले सोने को क्रांतिकारियों की पैरवी हेतु दे दिया. हालांकि क्रांतिकारियों के अथक् प्रयासों के बावजूद भी काकोरी कांड मामले में 4 क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा दी गई जिसके फलस्वरूप सुशीला दीदी समेत भारतीय क्रांतिकारियों को काफी झटका लगा.
- सुशीला दीदी पर घर वालों ने क्रांति की राह को छोड़ने का दबाव बनाया, लेकिन इन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन की राह को न छोड़ते हुए घर से दूर कोलकाता में बतौर शिक्षिका की नौकरी करने लगीं. इस दौरान वह लगातार क्रांतिकारियों के सम्पर्क में रहीं और उनकी मदद करती रही.
- 1927 में साइमन कमीशन के विरोध करने पर लाठीचार्ज में घायल हुए लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने का क्रांतिकारियों के द्वारा निर्णय लिया गया. उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह दुर्गा भाभी के साथ छद्म वेश में कोलकाता पहुँचे जहाँ पर वह सुशीला दीदी ने उन्हें आश्रय दिया.
- आगे चलकर जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट की योजना बनाई गई एवं भगत सिंह ने अपने मिशन को अंजाम देने से पहले सुशीला दीदी, दुर्गा भाभी और भगवती चरण से मुलाकात की.
- केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट के कारण भगत सिंह पर 'लाहौर षड्यंत्र केस' चलाया गया जिसके उपरांत सुशीला दीदी ने भगत सिंह को बचाने के लिए चंदा इकट्टा करना शुरू किया एवं लोगों को भगत सिंह डिफेन्स फंड' में दान देने की अपील की. सुशीला दीदी ने इस समय शिक्षण कार्य को छोड़ दिया एवं पूर्ण रूपेण अपने आप को क्रांतिकारी गतिविधियों हेतु समर्पित कर दिया. सुशीला दीदी ने महिला मंडलियों के साथ कई सारे नाटक मंचन किए जिससे भगत सिंह को बचाने हेतु फंड इकट्टा किया जा सके.
- क्रांतिकारियों के द्वारा भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को छुड़ाने की योजना बनाई गई एवं इस अभियान के लिए जब चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में जब दल ने प्रस्थान किया, तो सुशीला दीदी ने अपनी उंगली चीरकर उसके रक्त से सबको तिलक किया. क्रांतिकारियों के द्वारा भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को छुड़ाने के कार्य को पूरा करने के लिए इन्होंने सिख युवक का भेष बदलकर क्रांतिकारियों के द्वारा चलाए जा रहे फैक्ट्री में बम भी बनाए.
- धीरे-धीरे सुशीला दीदी ब्रिटिश अफसरों के निशाने पर आ गई. इसके बावजूद जतिंद्र नाथ की मृत्यु के उपरांत दुर्गा भाभी के साथ मिलकर उन्होंने एक विशाल जुलूस का संचालन किया.
- ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण 1932 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया एवं 6 महीने बाद रिहा करते हुए इन्हें ब्रिटिश अफसरों के द्वारा अपने घर यानी पंजाब लौटने की हिदायत दी गई.
- आगे चलकर सुशीला दीदी ने श्याम मोहन से विवाह किया जो ना केवल एक वकील थे बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उल्लेखनीय है कि भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान दोनों पति-पत्नी भी जेल गए थे.
- भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयास के बावजूद 1947 में भारत को आजादी मिली, लेकिन इसके उपरांत सुशीला दीदी ने अपना जीवन गुमनामी में गुजारते हुए दिल्ली के बल्लीमारान मोहल्ले में एक विद्यालय का संचालन करने लगीं. आखिरकार 3 जनवरी, 1963 को इस महान् आत्मा ने सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
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