यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डिजरटिफिकेशन |पेरिस समझौता क्या | UNCCD GK in Hindi
यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डिजरटिफिकेशन
UNCCD GK in Hindi
- यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डिजरटिफिकेशन- (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) को पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाया गया। पर्यावरण एवं विकास के संदर्भ में यह एक बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा में 1994 में मरुस्थलीकरण रोकथाम का प्रस्ताव रखा गया जिसका अनुमोदन दिसम्बर 1996 में किया गया। वहीं 14 अक्टूबर 1994 को भारत ने यूएनसीसीडी पर हस्ताक्षर किया।
- विश्व में मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने एवं लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस’ मनाया जाता है।
पेरिस समझौता क्या है ?
- पेरिस समझौता एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय समझौता है जिसे जलवायु परिवर्तन और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये वर्ष 2015 में दुनिया के लगभग प्रत्येक देश द्वारा अपनाया गया था।
- इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।
- इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ध्यातव्य है कि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रत्येक देश को ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन को कम करना होगा, जिसके संबंध में कई देशों द्वारा सराहनीय प्रयास भी किये गए हैं।
- यह समझौता विकसित राष्ट्रों को उनके जलवायु से निपटने के प्रयासों में विकासशील राष्ट्रों की सहायता हेतु एक मार्ग प्रदान करता है।
पेरिस समझौते का इतिहास
- 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर, 2015 तक 195 देशों की सरकारें पेरिस, फ्राँस में इकट्ठा हुईं और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से जलवायु परिवर्तन पर एक नए वैश्विक समझौते को संपन्न किया, जो जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने की दृष्टि से एक प्रभावी कदम होगा।
- वर्तमान में पेरिस समझौते में कुल 197 देश हैं। गौरतलब है कि युद्धग्रस्त सीरिया इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला आखिरी देश था। इनमें से 179 देशों ने इस समझौते को औपचारिक रूप से अपनी अनुमति दी है, जबकि रूस, तुर्की और ईरान जैसे कुछ प्रमुख देश अभी तक समझौते में औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुए हैं।
पेरिस समझौते के प्रमुख बिंदु
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में प्रत्येक पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें।
- समझौते के अनुसार, विकसित देशों को ‘जलवायु वित्त’ के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में विकासशील और अल्पविकसित देशों की मदद करनी चाहिये।
- किसी एक देश की सरकार पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा नहीं कर सकती है। इसीलिये पेरिस समझौते के तहत स्पष्ट रूप से स्थानीय सरकारों, व्यवसायों, निवेशकों, नागरिक समाज, यूनियनों और शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण माना गया है।
- उल्लेखनीय है कि कार्बन उत्सर्जन की कटौती के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु वैश्विक उत्सर्जन के 90 प्रतिशत से अधिक के लिये ज़िम्मेदार 186 देशों ने कार्बन कटौती के लक्ष्य निर्धारित किये हैं, जिन्हें ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDC) के रूप में जाना जाता है।
- पेरिस समझौते में कार्बन उत्सर्जन की कटौती के लक्ष्यों की प्रगति की निगरानी, सत्यापन और रिपोर्टिंग हेतु अनिवार्य उपाय भी सुझाए गए हैं।
पेरिस समझौता की जरुरत
- कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन कुछ ऐसी गैसें हैं जो वायुमंडल में एकत्रित होकर ऊष्मा को पृथ्वी की सतह से अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं, इसे ग्रीनहाउस प्रभाव भी कहा जाता है। जलवायु परिवर्तन के विषय में शोध करने वाली वैज्ञानिक संस्था IPCC कहना है कि 1950 के दशक के बाद से इन गैसों का उत्सर्जन ही वैश्विक तापमान में वृद्धि का सबसे प्रमुख कारण रहा है।
- उल्लेखनीय है कि तापमान में वृद्धि ने वैश्विक मौसम के पैटर्न में काफी बदलाव किया है और इस बदले हुए पैटर्न से विश्वभर में सूखे, गर्म हवाओं, बाढ़, वनाग्नि, और तूफान आदि को बढ़ावा मिला है। तापमान में वृद्धि और मौसम पैटर्न में बदलाव के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जो कि विश्व को समुद्र जल के स्तर में बढ़ोतरी और तटीय कटाव की ओर ले जा रहा है।
- जलवायु परिवर्तन न सिर्फ तापमान में वृद्धि और मौसमी पैटर्न में बदलाव कर रहा है, बल्कि यह हमारी हवा, पानी और भोजन को भी प्रभावित करता है। ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हम एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहे हैं।
- अत्यधिक गर्मी प्रत्यक्ष रूप से हृदय संबंधी मौतों और श्वसन रोग में योगदान देती है। उदाहरण के लिये अहमदाबाद में मई 2010 में गर्म हवाओं के कारण तकरीबन 1,300 से अधिक मौतें दर्ज की गई थीं। गौरतलब है कि दुनियाभर में लगभग 235 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं।
- मौसम के पैटर्न में परिवर्तन से स्वच्छ पानी और भोजन के स्रोत भी प्रभावित होते हैं। जहाँ एक ओर सूखा पानी की आपूर्ति को प्रभावित करता है, वहीं बाढ़ पीने योग्य पानी के स्रोतों को दूषित कर देती है और जल-जनित बिमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
- अप्रत्याशित मौसम कृषि को भी प्रभावित करता है और यह कृषि प्रधान क्षेत्रों के लिये काफी नुकसानदायक हो सकता है। ऐसी स्थिति में उस क्षेत्र की खाद्य आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
पेरिस समझौताऔर क्योटो प्रोटोकॉल
- पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकॉल दोनों ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये तैयार किये गए हैं, परंतु फिर भी इन दोनों के मध्य कुछ आधारभूत अंतर हैं।
- जहाँ एक ओर क्योटो प्रोटोकॉल में विकसित देशों के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं, वहीं पेरिस समझौते में देशों (विकसित, विकासशील और अल्पविकसित) के लिये ऐसे बाध्यकारी लक्ष्य नहीं हैं बल्कि इसमें सभी देशों द्वारा स्वेच्छा से इस ओर ध्यान देने की बात की गई है।
- पेरिस समझौते के अंतर्गत सभी देश स्वयं अपने उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान नहीं है।
पेरिस समझौते की सीमाएँ
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि पेरिस समझौते के तहत सभी देश कार्बन कटौती संबंधी प्रतिबद्धताओं का पालन करें तो भी सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार सिर्फ 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भी दुनिया में तबाही मचा सकती है।
- कई आलोचकों का मानना है कि सिर्फ वैश्विक आपदा के डर से लोगों के व्यवहार को परिवर्तित नहीं किया जा सकता और इसीलिये मौद्रिक दंडात्मक कार्यवाही के अभाव में इस समझौते का कोई महत्त्व नहीं है।
- पेरिस समझौते में उन देशों के विरुद्ध कार्यवाही का कोई प्रावधान नहीं है, जो इसकी प्रतिबद्धताओं का सम्मान नहीं करते। यहाँ तक कि पेरिस समझौते में जवाबदेही तय करने व जाँच करने के लिये भी कोई नियामक संस्था नहीं है।
पेरिस समझौता और भारत
- भारत ने अप्रैल 2016 में औपचारिक रूप से पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- भारत के INDC में सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 33-35 प्रतिशत तक कम करना शामिल है।
- इसके अलावा इसमें वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन ह्रास सृजित करना भी शामिल हैं।
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