लाला हंसराज ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी) | Lala Hansraaj Important GK Fact in Hindi
लाला हंसराज ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी) Lala Hansraaj Important GK Fact in Hindi
लाला हंसराज ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी)
लाला हंसराज अविभाजित भारत के पंजाब के आर्यसमाज के एक प्रमुख नेता एवं शिक्षाविद् थे. पंजाब भर में दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की स्थापना करने के कारण उनकी कीर्ति अमर है.
लाला हंसराज प्रमुख तथ्य ( Lala Hansraaj Important Fact in Hindi)
- हंसराज का जन्म 19 अप्रैल, 1864 को पंजाब के होशियारपुर जिले के एक छोटे से शहर में हुआ था.
- सन 1885 में जब वे लाहौर में अपने बड़े भाई मुल्कराज के यहाँ रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उसी समय लाहौर में स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्संग में जाने का अवसर इन्हें मिला.
- स्वामी दयानन्द के प्रवचन का युवक हंसराज पर बहुत प्रभाव पड़ा. अब उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया.
- हंसराज जी आवश्यक कार्यों से बचा सारा समय मोहल्ले के गरीब तथा अनपढ़ लोगों की चिट्टी-पत्री पढ़ने और लिखने में ही लगा देते थे.
- वैदिक स्रोत से प्रेरणा लेते हुए, महर्षि दयानंद की स्मृति को चिरस्थायी करने के लिए और 1883 में उनके निधन से हतप्रभ हुए आर्यों में एक बार फिर आशा और आत्मविश्वास का संचार करने के लिए लाहौर आर्य समाज ने निर्णय लिया कि ऐसी शिक्षा संस्था बनाई जाए, जो वैदिक मूल्यों को जन-जन तक पहुँचाए.
- युवा वर्ग को विशेष रूप से महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म में दीक्षित करने के लिए शिक्षा का माध्यम ही अनोखा माध्यम माना गया. उसी निर्णय के अनुरूप 1 जून, 1886 को लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना की गई.
- युवा वर्ग को अपनी ओर खींचने के लिए एक संकल्पित युवक ही उस भूमिका में खरा उतर सकता था. धन की कमी के कारण विदेशों में शिक्षित और दीक्षित अनुभवी प्रधानाचार्य को डीएवी संस्था में लाना कल्पना से परे था.
- उन दिनों उन्हें उच्च स्तर का सरकारी अफसर का पद सहज रूप से मिल सकता था, किन्तु हंसराज जी ने वैदिक धर्म का प्रचार करना और नवयुवकों में दयानंद मिशन को लोकप्रिय करना अपने जीवन का ध्येय माना.
- महात्मा हंसराज एक राष्ट्रभक्त भी थे, परन्तु 'असहयोग आंदोलन' के समय उन्होंने डीएवी कॉलेजों को बन्द करने का घोर विरोध किया था. उनका कहना था कि इन कॉलेजों पर न तो विदेशी सरकार का कोई नियंत्रण है और न ये सरकार से किसी प्रकार की सहायता लेते हैं.
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