संत पीपा जी ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी) | Sant Pipa Jee Important GK Fact in Hindi
संत पीपा जी ऐतिहासिक व्यक्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (जानकारी)Sant Pipa Jee Important GK Fact in Hindi
संत पीपा जी ऐतिहासिक व्यक्तित्व
संत पीपा मध्यकालीन राजस्थान में भक्ति आन्दोलन के प्रमुख संतों में से एक थे. वे देवी दुर्गा के भक्त बन गए थे. बाद के समय में उन्होंने रामानंद जी को अपना गुरु मान लिया. फिर वे अपनी पत्नी सीता के साथ राजस्थान के तोडा नगर में एक मंदिर में रहने लगे थे.
संत पीपा जी प्रमुख तथ्य ( Sant Pipa Jee Fact in Hindi)
- संत पीपा जी का जन्म 1426 ईस्वी में राजस्थान में कोटा से 45 मील पूर्व दिशा में गगनौरगढ़ रियासत में हुआ था.
- संत पीपा जी कालीसिंध नदी पर बना प्राचीन गागरोन दुर्ग संत पीपा की जन्म स्थली रहा है.
- इनका जन्म विक्रम संवत् 1417 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को खिचीं राजवंश परिवार में हुआ था.
- वे गागरोंन राज्य के वीर साहसी एवं प्रजापालक शासक थे.
- इनके बचपन का नाम राजकुमार प्रतापसिंह था और लक्ष्मीवती इनकी माता थीं.
- संत पीपा जी देश के महान् समाज सुधारकों की श्रेणी में आते है. संत पीपा का जीवन व चरित्र महान् था. इन्होने राजस्थान में भक्ति व समाज सुधार का अलख जगाया.
- संत पीपा ने अपने विचारों और कृतित्व से समाज सुधार का मार्ग प्रशस्त किया. शासक रहते हुए उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुलतान फिरोज तुगलक से संघर्ष करके विजय प्राप्त की, लेकिन युद्ध जनित उन्माद, हत्या, जमीन से जल तक रक्तपात को देखा, तो उन्होंने संन्यासी होने का निर्णय ले लिया.
- पीपा जी ने रामानंद से दीक्षा लेकर राजस्थान में निर्गुण भक्ति परम्परा का सूत्रपात किया था.
- दर्जी समुदाय के लोग संत पीपा जी को आपना आराध्य देव मानते हैं.
- बाड़मेर जिले के समदड़ी कस्बे में संत पीपा का एक विशाल मंदिर बना हुआ है, जहाँ हर वर्ष विशाल मेला लगता है. इसके अतिरिक्त गागरोन (झालावाड़) एवं मसुरिया (जोधपुर) में भी इनकी स्मृति में मेलों का आयोजन होता है.
- संत पीपा जी ने 'चिंतावानी जोग' नामक गुटका की रचना की थी, जिसका लिपि काल संवत् 1868 दिया गया है.
- पीपा जी ने अपना अंतिम समय टोंक के टोडा गाँव में बिताया था और वहीं पर चैत्र माह की कृष्ण पक्ष नवमी को इनका निधन हुआ, जो आज भी 'पीपाजी की गुफा के नाम से प्रसिद्ध है.
- गुरु नानक देव ने इनकी रचना इनके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की थी. इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है.
- इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव ने 'गुरु ग्रंथ साहिब' में जगह दी थी.
- समाज सुधार की दृष्टि से संत पीपा जी ने बाहरी आडम्बरों, कर्मकांडों एवं रूढ़ियों की कड़ी आलोचना की तथा बताया कि ईश्वर निर्गुण व निराकार है वह सर्वत्र व्याप्त है.
- मानव मन में ही सारी सिद्धियाँ व वस्तुएं व्याप्त हैं. ईश्वर या परम ब्रह्म की पहचान मन की अनुभूति से है.
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