मध्यप्रदेश में खिलजी शासन: मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत का प्रसार भाग 02
मध्यप्रदेश में खिलजी शासन: मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत का प्रसार भाग 02
सन् 1290 ई. में जलालुद्दीन फीरोज खल्जी द्वारा सत्ता प्राप्त करने के साथ दिल्ली सल्तनत में साम्राज्यवाद का युग प्रारंभ हुआ। अमीर खुसरों और जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि जलालुद्दीन के शासनकाल में झाई नगर पर कब्जा किया। अनुमान है कि यह उज्जैन था । यहाँ के सुन्दर मंदिरों का वर्णन मुस्लिम इतिहासकार ने किया है।
1295 में जलालद्दीन शिकार के एक अभियान पर ग्वालियर आया और जैसा कि इतिहासकार फरिश्ता कहता है, उसने वहाँ यात्रियों के लिए एक भवन बनवाया। जलालुद्दीन खल्जी के भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खल्जी के काल में मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों पर विशेष तौर पर मालवा में, सफलतापूर्वक आक्रमण किए गए। अलाउद्दीन द्वारा जलालुद्दीन के काल में 1292 ई. में मालवा पर आक्रमण किया गया था। इस समय परमार राजा भोज द्वितीय सत्तारूढ़ था। इस आक्रमण में ही उसने भिलसा का दुर्ग जीत लिया था। अलाउद्दीन द्वारा भिलसा पर सफल हुए सफल आक्रमण ने उसे दक्षिण पर आक्रमण के लिए प्रोत्साहित किया ।
अलाउद्दीन खिलजी का मध्यप्रदेश में अभियान
मालवा विजय का संपूर्ण श्रेय अलाउद्दीन को ही जाता है चाहे वह जलालुद्दीन खल्जी के काल में अलाउद्दीन द्वारा भिलसा पर किए गए आक्रमण हो या फिर शासक बनने के पश्चात् संपूर्ण मालवा को अधिकार में करना ।
अलाउद्दीन ने चंदेरी और विदिशा (भिलसा) पर आक्रमण करने के लिए सुल्तान जलालुद्दीन से अनुमति माँगी। अनुमति मिलने पर अलाउद्दीन ने कड़ा से प्रस्थान कर 1292 में चंदेरी पर अधिकार कर लिया और फिर उसने विदिशा पर आक्रमण किया। आक्रमण से नगर में आतंक उत्पन्न हो गया। भयभीत निवासियों ने अपनी मूर्तियों को बेतवा के तट में छिपा दिया, जिससे वे अपवित्र न हो सकें, किन्तु अलाउद्दीन ने उन्हें नदी से बलपूर्वक निकलवा लिया। अनेक मंदिरों को नष्ट करने और प्रचुर मात्रा में लूट का माल अधिकार में करने के पश्चात् अलाउद्दीन सुल्तान के सम्मान में उक्त समस्त लूट का माल दिल्ली जाकर दे आया। इस आक्रमण के पश्चात् ही अवध के क्षेत्र की बागडोर भी अलाउद्दीन को सौंपी गई। भिलसा की विजय ने अलाउद्दीन को पूरे मालवा और दक्षिण विजय का विचार दिया।
अलाउद्दीन ने सन् 1234 में देवगिरी का अभियान किया जिसके लिए वह मालवा होकर ही गया। देवगिरी के अभियान से लौटते समय उसने खानदेश पर आक्रमण किया। उस समय खानदेश एक सरदार के अधीन था, जो खानदेश का राजा कहलाता था और संभवतः वह असीरगढ़ का चौहान शासक रावचंद था। यह भी माना जाता है कि उसके पास चालीस से पचास हजार की सेना थी । अलाउद्दीन ने असीरगढ़ के किले पर आक्रमण कर दिया। रावचंद और उसके समस्त परिवार में से एक पुत्र को छोड़कर सभी को मौत के घाट उतार दिया गया।
1296 में सुल्तान बनने के पश्चात् अलाउद्दीन खलजी ने मालवा पर जो आक्रमण किए उसका नेतृत्व उसने स्वयं नहीं किया बल्कि उसके सेनापति ऐनुल्मुल्क को उसने यह कार्य सौंपा था।
अमीर खुसरो ने लिखा है कि मालवा के परमार शासक महलकदेव के पास तीस-चालीस हजार घुड़सवार और असंख्य पैदल सेना थी। वहीं महलकदेव का दूधभाई और सेनापति हरनंद भी था जो बड़ा साहसी योद्धा और निपुण राजनीतिज्ञ था ।
सन् 1305 ई. में ऐन-उल-मुल्क के नेतृत्व में अलाउद्दीन ने दस हजार सैनिकों का दल मालवा पर आक्रमण के लिए भेजा। तुर्की सेना और परमार शासक के विरुद्ध जबर्दस्त संघर्ष में हरनंद कोका मारा गया। तुर्कों की विजय हुई। कोका का सिर दिल्ली भेजा गया, जहाँ उसे महल के दरवाजों के नीचे घोड़ों के पैरों से कुचल दिया गया। कोका की मृत्यु होते ही महलक देव मांडू चला गया।
ऐनुल्मुल्क ने महलक देव का पीछा किया। महलक देव की सेना की एक टुकड़ी ने उसके पुत्र के नेतृत्व में शाही सेना से टक्कर ली किन्तु उसकी पराजय हुई। महलक देव का पुत्र मारा गया। माण्डू का किला घेर लिया गया। महलक देव के खिलाफ एक द्रोही ने ऐनुल्मुल्क की सेना को दुर्ग को गुप्त मार्ग बता दिया। परिणामस्वरूप शत्रु की सेना किले में प्रविष्ट हो गई। महलक देव और उसके सैनिक किले के भीतर शत्रु के आगमन से भौंचक रह गए और किले में अफरा-तफरी मच गई। महलक देव मारा गया।23 नवंबर 1305 ई. को मांडू पर अलाउद्दीन की सेना का कब्जा हो गया। मांडू के पतन के पश्चात् उज्जैन, धार, चंदेरी, शाजापुर, सारंगपुर, मंदसौर, रतलाम आदि के निकटवर्ती के सारे क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अधिकार में आ गए। इसके बाद ही संभवतः मंदसौर नगर के पूर्व में अलाउद्दीन ने एक दुर्ग की नींव भी डाली थी ।
ऐनुल्मुल्क को मालवा का अक्तादार नियुक्त किया गया और इस क्षेत्र को धार और उज्जैन के प्रांत के रूप में निरूपित किया गया। स्थिति मजबूत करने हेतु अलाउद्दीन ने मलिक तमर को चंदेरी और इरज क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया। इस प्रकार मालवा का क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अधीन आ किया । गया और अलाउद्दीन के दक्षिण अभियानों की कुंजी साबित हुआ। जब 1310 में अलाउद्दीन खल्जी का सेनानायक देवगिरी के अभियान से लौटा तो उसने धार में मुकाम किया ।
अंतिम महान चंदेल शासक हम्मीरवर्मन (सन् 1289-1308 ई.) के उपरांत दमोह, जबलपुर प्रदेश अलाउद्दीन के अधीन हो गया। यह बात दमोह से 28 किलोमीटर दूर सलैया ग्राम में प्राप्त एक शिलालेख से स्पष्ट है। यह शिलालेख संवत 1366 यानी सन 1309 का है और उसमें अलाउद्दीन खल्जी को सार्वभौम शासक कहा गया है।
सुल्तान अलाउद्दीन खल्जी को उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन मुबारक खलजी चंदेरी के इक्तादार मलिक तमर से किसी कारण नाराज हो गया और उसने चंदेरी का इक्ता खुसरो खान को दे दिया।
दिल्ली के निकट होने के कारण ग्वालियर पर खल्जियों का नियंत्रण बना रहा। जलालुद्दीन खल्जी, अलाउद्दीन और मुबारक शाह खल्जी के काल में ग्वालियर में भिन्न-भिन्न गतिविधियों की सूचना सभी समकालीन स्रोत देते हैं। खिज खाँ और देवलरानी को ग्वालियर के किले में ही बंदी बनाकर रखा गया था। यहीं पर कैद में खिज्र खाँ को अंधा कर दिया गया था ।
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