शैक्षिक प्रशासन में निर्णयन|निर्णयन की परिभाषायें विशेषतायें सिद्धांत प्रक्रिया | Decision Making Definition process Principle

निर्णयन की परिभाषायें विशेषतायें सिद्धांत प्रक्रिया 

शैक्षिक प्रशासन में निर्णयन|निर्णयन की परिभाषायें विशेषतायें सिद्धांत प्रक्रिया | Decision Making Definition process Principle



शैक्षिक प्रशासन में निर्णयन 

निर्णय लेना किसी प्रशासक का एक प्रमुख कार्य है। निर्णय के बिना किसी भी संस्था को कारगर नहीं बनाया जा सकता है। आर. एस. डावर के अनुसार "एक प्रशासक जो भी करता है वह निर्णय पर आधारित होता है। उसे निर्णय लेकर ही अपने कर्तव्यों का निष्पादन करना परता है। उदाहरण के लिए एक विद्यालय के प्रशासक को यह सोचना पड़ता है कि उस विद्यालय को संचालित करने के लिए कितने शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक कर्मचारियों कि आवश्यकता होती है। उसे यह तय करना होता है कि विद्यालय कि समय सारिणी क्या होगी और कौन से शिक्षक को कितने कालांश दिए जायेंगे इन प्रश्नों पर चिंतन करके किसी निष्कर्ष तक पहुँचने का कार्य ही निर्णयन कहा जाता है। इस तरह एक प्रशासक अनेक विकल्पों पर विचार करके किसी श्रेष्ठ विकल्प का चयन करता है ताकि कम समय एवं नयूनतम लागत पर कार्यों को सम्पन्न किया जा सके। 


निर्णयन की परिभाषायें (Definitions of Decision Making):

 

वेबस्टर शब्दकोष: निर्णयन किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में किसी विचार या क्रिया विधि को निर्धारित करने की क्रिया है।

 

कूंज एवं विहरिच: निर्णयन किसी क्रियाविधि के विभिन्न विकल्पों में से किसी एक का चयन करना है।

 

चेस्टर बर्नार्ड: निर्णयन की प्रक्रियायें प्रमुख रूप से चयन को सीमित करने की तकनीकें हैं। 


ट्रेवेथा तथा न्यूपोर्ट: निर्णयन में से किसी समस्या का समाधान करने के लिये दो या अधिक संभावित विकल्पों में से किसी एक क्रियाविधि का चयन किया जाता है। 


उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि निर्णयन एक बौद्धिक क्रिया है जिसमें किसी कार्य को करने या किसी समस्या के समाधान के लिये विभिन्न संभावित विपल्पों में से सर्वोत्तम विकल्प का चयन किया जाता है। । निर्णयन किसी वांछित लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक सर्वश्रेष्ठ क्रियाविधि के चयन की प्रक्रिया है । 


निर्णयन की विशेषतायें (Characteristics of Decision Making):

 

• निर्णयन विभिन्न चरणों में विभाजित एक प्रक्रिया है। 

• यह श्रेष्ठ विकल्प की खोज एवं चयन की प्रक्रिया है । 

• यह एक बौद्धिक एवं विवेकपूर्ण प्रक्रिया है । 

• निर्णयन के कुछ मानदंड या आधार होते हैं। 

• सामान्यतः तर्कपूर्ण एवं पर्याप्त विचार विमर्श के बाद ही निर्णय लिये जाते हैं 

• निर्णय कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लिये जाते हैं। यह एक सामाजिक एवं मानवीय प्रक्रिया है । 

• निर्णयन परिस्थितियोंसंशाधनों तथा कार्य वातावरण से प्रभावित होता है। 

• निर्णयन वास्तविक स्थिति के समरूप होते हैं 

• निर्णयन नियोजन का एक अंग है। 

• निर्णयन में समय तत्व महत्वपूर्ण होता है। 

• निर्णयों की एक क्रमिक श्रृंखला होती है। कोई भी निर्णय अकेला नहीं होता है। वह अपने पहले और बाद के निर्णयों से किसी न किसी रूप में जुड़ा रहता है । 

• निर्णयन स्वयं में कोई लक्ष्य नहीं होता है जबकि यह अन्तिम लक्ष्य की प्राप्ति का एक साधन है। 

• निर्णयन से वचनबद्धता या कार्यवाही का जन्म होता है।

 

निर्णयन के सिद्धांत (Principles of Decision Making): 

किसी प्रशासक को निर्णय लेने हेतु कुछ आधारभूत सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए जो इस प्रकार हैं:

 

I) उचित व्यवहार का सिद्धांत Principle of Reasonable Behaviour): 

निर्णय लेते समय प्रशासक को मानवीय व्यवहार का अध्ययन करके उसे समझना चाहिए उसे उस निर्णय से अपने अधीनस्थों / सहकर्मियों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन चाहिए।

 

II) सीमित घटक का सिद्धांत (Principle of Limiting Factors) : 

किसी प्रशासक को निर्णय लेते समय उन घटकों को पहचान लेना चाहिए जो इक्छित लक्ष्यों की प्राप्ति में सीमित हैं।

 

(III) गतिशीलता का सिद्धांत (Principle of Dynamics) 

किसी भी संस्था के सदस्यों की आवश्यकतायेंउद्देश्यमनोदशायेंसामाजिक मूल्यराजनीतिक दशायेंआर्थिक परिवेश आदि सभी बदलते रहते हैं इन सभी को ध्यान में रख कर ही प्रशासक को निर्णय लेने चाहिये ।

 

IV) समय का सिद्धांत (Principle of Timing): 

अनुकूल और अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने के लिये सही समय पर सही निर्णय लेना चाहिये तथा उनका क्रियान्वयन भी सही समय पर सही तरीके से होना चाहिये

 

V) अनुपातिक सिद्धांत (Principle of Proportionality): 

निर्णय लेते समय वित्तीयमानवीय एवं समय संसाधनों का आनुपातिक संयोजन रखा जाना चाहिये 


VI) सहभागिता का सिद्धांत (Principle of Participation): 

निर्णय लेते समय निर्णय से प्रभावित सभी पक्षकारों को निर्णयन में सहभागिता प्रदान की जानी चाहिए।

 

VII) विकल्पों का सिद्धांत (Principle of Alternatives): 

किसी समस्या के समाधान हेतु निर्णय लेने से पूर्व प्रशासक को विभिन्न विकल्पों का पता लगाकर उनका सही सही मूल्यांकन करना चाहिए। 


VIII) लोच का सिद्धांत (Principle of Flexibility): 

प्रशासकों द्वारा लिये गये निर्णय लोचशील होने चाहिये ताकि उन्हें परिवर्तित परिस्थितियों एवं वातावरण के अनुरूप समायोजित किया जा सके।

 

IX) अधिकतम लाभ का सिद्धांत (Principle of Profit Maximization): 

इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक प्रशासक को अपने निर्णयों में संगठन के आर्थिकमानवीय सेवा उद्देश्यों का इस प्रकार से समन्वय करना चाहिये कि वह संगठन को अधिक रूप से लाभान्वित कर सके। 

X) संदेह का सिद्धांत (Principle of Doubt ) : 

संदेह की स्थिति निर्णयन का ह्रदय होती है। कौन सा विकल्प श्रेष्ठ है इस सम्बन्ध में निर्णय कर्ता के मस्तिष्क में अनिश्चितता रहनी चाहिये। संदेह ही विकल्पों के विश्लेषण और मूल्याङ्कन को जन्म देता है। 


निर्णयन प्रक्रिया (Decision Making Process):

 

निर्णयन प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न चरण शामिल होते हैं। ये चरण निम्नलिखित हैं: 

1) स्थिति परीक्षण एवं समस्या की परिभाषा 

(Investigating the situation and defining the problem) : 


निर्णयन प्रक्रिया तभी आरम्भ होती जब कोई प्रशासक किसी समस्या को हल करने या किसी अवसर का लाभ उठाने की आवश्यकता अनुभव करता है। इसमें निम्न चार पहलूओं पर विचार किया जाता है- 


समस्या का अभिज्ञान (Problem awareness): समस्या की जानकारी होने पर ही प्रशासक उसके समाधान के लिये प्रयास करता है।

 

समस्या निदान ( Problem Diagnosis) : प्रत्येक प्रशासक को समस्या के लक्षणों एवं मूल कारणों को जानने का प्रयास करना चाहिये

 

वातावरणीय विश्लेषण ( Environmental analysis) : वातावरण के विभिन्न घटकों जैसे राष्ट्रीय नीतियाँ एवं निर्णयप्रतिस्पर्धाटेक्नोलॉजी आदि का विश्लेषण करने से समस्या निदान के लिये पर्याप्त सूचनायें प्राप्त हो जाती हैं।

 

समस्या को परिभाषित करना ( Defining the problem): इस चरण में किसी समस्या को प्रशासक सही-सही समझ कर उसे परिभाषित करता है।

 

II) समस्या का विश्लेषण करना ( Analyzing the problem ) : समस्या के विश्लेषण में निम्न जानकारियों को एकत्रित किया जाता है-

 

• निर्णय किसे लेना है ? 

• निर्णय किस तरह से लेना है ? 

• निर्णय लेने हेतु कौन कौन सी सूचनायें एकत्रित करनी है ? 

• निर्णय से प्रभावित होने वाले क्षेत्र एवं कार्य कौन-कौन से हैं?

 

III) वैकल्पिक समाधानों का विकास करना ( Developing alternatives): 

विभिन्न समाधान विकल्पों का विकास किये बिना कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है। विकल्पों के अभाव में निर्णयन नहीं वरन विवशता होती है। विकल्पों के विकास के लिये निर्णयकर्ता को अपनी सृजनात्मकताकल्पना एवं दूरदृष्टि का प्रयोग करना चाहिये ।

 

IV) विकल्पों का मूल्यांकन करना (Evaluating alternatives): 

विकल्पों के मूल्यांकन का उद्देश्य ऐसे विकल्प को निर्धारित करना है जो उद्देश्य के अनुकूल परिणाम उत्पन्न करता हो । विकल्पों के मूल्यांकन के प्रमुख मापदंड निम्न होते हैं-

 

• उपयुक्तता (Suitability): क्या विकल्प समस्या को हल कर सकेगा ? 

• व्यवहार्यता (Practicability): क्या विकल्प लागतक्षमता और व्यय की दृष्टि से व्यवहारिक है ? 

• स्वीकार्यता (Acceptability): क्या विकल्प प्रभावित लोगों को स्वीकार्य होगा ? 

• क्रियाशीलता (Functionality): क्या विकल्प को व्यवहार में क्रियान्वित कर पाना सरल होगा ?


( V) सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन (Selecting the best alternative): 

वैकल्पिक समाधानों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करने के लिये अनेक प्रमापों का प्रयोग किया जाता है जो निम्नवत है-

 

• जोखिम (Risk): सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन करते समय निर्णयकर्ता को प्रत्याशित लाभों की तुलना उसके जोखिमों का मुल्यांकन करना चाहिये

 

• प्रयास की मितव्ययिता (Economy of Effort ) : सामान्यतः ऐसे समाधान का चयन करना चाहिये जिसमें न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणाम प्राप्त हो सके।

 

• समयानुकूल (Timing): सर्वश्रेष्ठ विकल्प समय की आवश्यकताओं तथा आकस्मिकता को करने वाला तथा स्थिति की मांग के अनुसार भी होना चाहिये । पूरा

 

• संसाधनों की सीमा ( Limitation of Resources): सर्वश्रेष्ठ विकल्प संसाधनों की सीमा के भीतर होना चाहिये ।

 

VI) निर्णय का क्रियान्वयन (Implementing Decisions ) : 

इस चरण में निर्णयन को कार्यवाही में बदला जाता है। यदि किसी निर्णयन को क्रियान्वित नहीं किया जाता है तो वह मात्र एक कोरी कल्पना होती है और कुछ नहीं ।

 

VII) निर्णयन का अनुगमन तथा प्रतिपुष्टि (Following up decisions and feeding up the results): 

इसके अंतर्गत निर्णयन के प्रभावों की जानकारी लेना तथा निर्णय की सफलता और असफलता का मूल्यांकन किया जाता है।

 

शैक्षिक प्रशासन में निर्णयन|निर्णयन की परिभाषायें विशेषतायें सिद्धांत प्रक्रिया  (Decision Making):

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