विज्ञापन का आर्थिक पक्ष |Economics of advertising
विज्ञापन का आर्थिक पक्ष Economics of advertising
विज्ञापन का आर्थिक पक्ष :
विज्ञापन आधारभूत
रूप से आर्थिक क्रिया-कलाप । यह विज्ञापनदाता की बात कहता है, विज्ञापन
देखने-सुनने या पढ़ने वालों के आर्थिक निश्चयों को प्रभावित करता है और इस रूप में
यह मीडिया के अर्थ तंत्र का भी अभिन्न अंग है । इसीलिए विज्ञापन के आर्थिक पक्ष की
ओर पहले विचार-विमर्श करना समीचीन होगा। इसमें खरीदार को सूचना प्रदान करने, नयी वस्तुओं के
विकास में योगदान, प्रचार-प्रसार
माध्यमों की सहायता वितरण लागत पर प्रभाव, व्यापार का चक चालू रखना, वस्तु विशेष के ब्रांड नाम की लोकप्रियता तथा
वस्तु की उपयोगिता का प्रसार आदि बातें आ जाती हैं।
किसी भी उद्योग या व्यवसाय का उद्देश्य अपनी उत्पादित वस्तु या सेवा ग्राहक तक कुशलतापूर्वक, कम से कम खर्चे में लाभपूर्वक पहुंचाना होता है। कुछ ग्राहक वस्तु या सेवा को तुरन्त खरीदने की स्थिति में होते हैं लेकिन कुछ ग्राहक उसे खरीदने की सोच रहे होते हैं । ग्राहक प्रतिस्पर्द्धा पूर्ण बाजार में उसकी ही वस्तु खरीदें, यह भाव ग्राहक के मन में बैठाये बिना उसकी वस्तु की बिक्री नहीं होती। यह काम विज्ञापन करता है जो वस्तु विषयक विशेषताएं बनाकर उसे औरों से उत्तम, टिकाऊ या अधिक उपयोगी सिद्ध करके विज्ञापित वस्तु ही खरीदने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार विज्ञापन बिक्री बढ़ाने के साथ-साथ ग्राहक निर्माण का काम भी करता है।
संक्षेप में कहें
तो विज्ञापन बिक्री का एक साधन है। जो किसी वस्तु की ओर ग्राहकों को खींचता है, साथ ही मीडिया
प्रबन्ध को भी प्रबलता व मजबूती प्रदान करता है। विज्ञापन के माध्यम से बहुसंख्यक
लोगों तक वस्तु या सेवा का नाम एवं उपयोगिता पहुंचाने का काम किया जाता है।
विज्ञापन वास्तव में सेल्समैन का स्थान तो नहीं लेता; हां, उसकी इस काम में
मदद करता है। विज्ञापन से ग्राहक को वस्तु की उपयोगिता तथा लाभ के विषय में पहले
ही जानकारी हो जाती है। विज्ञापन के माध्यम से ग्राहक को यह पता चल जाता है कि कौन
सी वस्तु बाजार में सूलभ है। ग्राहक वस्तु की सुलभता के साथ उसके गुणावगुणों से भी
परिचित होता है। यह जानकारी ग्राहक को वस्तु खरीदने के विषय में निर्णय करने में
सहायक होती है।
जब ग्राहक को
वस्तु की उपयोगिता और सुलभता का ज्ञान हो जाता है तो स्वाभाविक रूप से वह अपनी
आर्थिक स्थिति के अनुरूप उसे खरीदने की योजना बनाता है। यहां ग्राहक का मनशः किसी
वस्तु विशेष की ओर झुकाव हो जाना आर्थिक रूप से उस वस्तु की मांग पैदा करना है। इस
प्रक्रिया में विज्ञापन ग्राहक को उस वस्तु के संबंध में एक प्रकार से शिक्षित भी
करता है।
1 उत्पादन लागत पर प्रभाव:
विज्ञापन के
द्वारा जब उद्यमी अपनी वस्तु / सेवा के लिए मांग बढ़ती देखता है, तो वह अपना
उत्पादन और बढ़ाने का प्रयास करता है। हर कारखाने की निश्चित उत्पादन क्षमता होती
है। उसके संयत्रों का अभीष्टतम उपयोग होने पर उसकी कार्य-कुशलता बढ़ती है, जिसके फलस्वरूप
उत्पादित वस्तु की प्रति इकाई लागत कम बैठती है। मांग बढ़ने पर उद्योगपति ऊपरी
खर्चे बढ़ाये बिना ही क्षमता का विस्तार कर सकता है। जिससे वस्तुएं कम लागत पर
अधिक परिमाण में बननी संभव होती है। इससे खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं दोनों को
लाभ मिलता है। विज्ञापन के द्वारा मौसम - विशेष में रहने वाली मांग वर्ष भर तक
चलायी जा सकती है जिससे कारखाने में उत्पादन तथा श्रमिकों को रोजगार मिला रहता है और
स्थायी कर्मचारियों की सेवाओं का समुचित उपयोग संभव होता है।
विज्ञापन के द्वारा अल्पविकसित बाजारों तक पहुंचा जा सकता है, जिससे उत्पादनकर्ता उद्योग किसी क्षेत्र - विशेष में घटती मांग की कमी पूरी कर लेता है। इस प्रकार उसका उत्पादन का परिणाम कम न होने देने में विज्ञापन विशिष्ट योगदान कर पाता है। यहां पर यह भी सच हैं कि बाजार की अन्य विरोधी शक्तियों के कारण वस्तु विशेष के ग्राहकों को वस्तु कम दामों पर भले न मिल पाये, फिर भी दामों में, बढ़ती मांग के साथ वृद्धि न होना भी उपभोक्ता के लिए लाभकर सौदा ही है।
2 वितरण लागत पर प्रभाव :
आज की पेचीदा
अर्थ-व्यवस्था में यह आवश्यक है कि उत्पादित वस्तु नगरों, महानगरों, उनके उपनगरों, कस्बों तथा
देहातों तक पहुंचे। इसके लिए वस्तु के वितरण पर भी खासी लागत आती है। इसमें
विज्ञापन का खर्च कुल लागत का छोटा अंश ही होता है। विज्ञापन का वितरण लागत पर तीन
रूपों में प्रभाव पड़ता है-
1. किसी वस्तु के
राष्ट्रव्यापी विज्ञापन से उस वस्तु की घर-घर जाकर बिक्री करने की लागत बचती है।
खुदरा विक्रेताओं को भी वस्तु बेचने में सुविधा होती है।
2. वस्तु के थोक
वितरणकर्ताओं को वस्तु का परिचय देने की लागत नहीं पड़ती क्योंकि विज्ञापनों के
माध्यम से ग्राहक वस्तुओं की विशेषताओं एवं उपयोगिताओं से पूर्व परिचित हो चुका
होता है।
3. अधिक बिक्री से
उद्योग का विकास होता है। थोक विक्रेता बड़े परिमाण में माल लेकर खुदरा विक्रेताओं
को देता जाता है। इससे अधिक माल बेचकर वह अधिक लाभ कमाता है। इस रूप में वितरण पर
उसकी लागत घटती है।
बिक्री व्यवस्था
को समग्र रूप में देखें तो इस प्रक्रिया में माल के परिवहन, उसे गोदाम में
रखने, उधार लेन-देन तथा
बिक्री करने पर खर्च करना होता है। इन तमाम खर्चों में विज्ञापन, बिक्री पर अपने
वाले खर्चों में ही कमी करने की स्थिति पैदा करता है। अन्य खर्चे तो अपनी जगह रहते
ही हैं।
3 नयी वस्तुओं के विकास में योगदान :
विज्ञापन के
प्रभाव से नयी वस्तुओं के विकास में सहायता मिलती है। विज्ञापन के माध्यम से
संभावित खरीददारों को यह बताया जाता है कि विद्यमान वस्तु में क्या सुधार कर दिये
गये हैं या उसी प्रकार की क्या नयी वस्तु बाजार में सुलभ है। उद्योग-धन्धे नयी
वस्तओं के विकास पर पर्याप्त धन खर्च करते हैं। और यदि विज्ञापन के माध्यम से
उन्हें यह आश्वासन न हो कि उस वस्तु के पर्याप्त ग्राहक हैं, तो उस वस्तु के
निर्माण में बड़े परिमाण में पूंजी लगाना पर्याप्त जोखिम का काम हो जाता है। इस
प्रक्रिया के द्वारा विज्ञापन बाजार में प्रतियोगिता को बढ़ावा देता है; विद्यमान वस्तुओं
में ही सुधार किये जाने या किसी नयी वस्तु के अविष्कार से अर्थ-व्यवस्था का
विस्तार होता है, अधिक पूंजी निवेश
होता है और अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।
व्यापार चक्र पर प्रभाव सिद्धान्त रूप में विज्ञापन के माध्यम से बाजार के रूप का अनुमान लगता रहता है। चतुर व्यापारी जब देखते हैं कि धंधा बढ़ रहा है, मांग बढ़ रही है तो विज्ञापन व्यय कम कर देते हैं और जब देखते हैं कि बाजार ढीला चल रहा है तथा नये आर्डरों की आवश्यकता है तो वे विज्ञापन कार्य बढ़ा देते हैं। व्यापार चक में तेजी आने से महंगाई बढ़ती है और मन्दी आने पर बेरोजगारी बढ़ती है। सामान्य रूप से विज्ञापन बजट भी कारोबार के हिसाब से ही चलता है और वे धन्धे की बढ़ोतरी के दिनों में जमकर विज्ञापन करते हैं और मंदी की हालत में विज्ञापन खर्च भी घटा देते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन स्वाभाविक आर्थिक चक पर विशेष प्रभाव डालने की स्थिति में नहीं होते किन्तु यदि कुशलतापूर्वक समझ-बूझ के साथ विज्ञापन माध्यम का प्रयोग किया जाए तो समग्र आर्थिक चक्र को विज्ञापन प्रभावित कर सकता है।
4 वस्तु के ब्रांड नाम की लोकप्रियता :
सत्त विज्ञापन के
द्वारा ग्राहकों को यह बताया जा सकता है कि कौन सी वस्तु अच्छी, उपयोगी, सस्ती आदि है।
लेकिन विज्ञापन के माध्यम से वसतु के साथ-साथ वस्तु के नाम का प्रचार भी किया जाता
है। इस दृष्टि से नहाने के साबुन के विविध नामों या वनस्पति धी के नामों आदि या
टूथपेस्ट के नामों और उनकी उपयोगिता आदि बताई जाती है। इस प्रकार विज्ञापन से
ब्रांड नामों को भी लोकप्रिय किया जाता है।
अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. विज्ञापन का नई वस्तुओं के विकास में क्या योगदान हैं?
प्रश्न 2. विज्ञापन का उत्पादन लागत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
प्रश्न 3. क्या विज्ञापन विक्री का साधन है?
प्रश्न 4. विज्ञापन का वितरण लागत पर क्या प्रभाव है?
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