Home/MP History Madhy Kaal/ तैमूर के बाद मध्यप्रदेश का इतिहास | मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत की सांस्कृतिक गतिविधियाँ | History of Madhya Pradesh after Timur
तैमूर के बाद मध्यप्रदेश का इतिहास | मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत की सांस्कृतिक गतिविधियाँ | History of Madhya Pradesh after Timur
सन् 1402 के अन्तिम महीनों में महमूद तुगलक का सेनापति मल्लू इकबाल ने ग्वालियर का अभियान किया जो तब वीरसिंहदेव के बेटे वीरम देव के अधीन था। उसने आसपास के इलाके को बरबाद कर दिया लेकिन किले पर उसका अधिकार न हो सका और उसे लौटना पड़ा। अगले साल उसने फिर आक्रमण किया और तोमर राजा को हरा दिया। 1416 में सैयद शासक खिज्र खान ने वीरमदेव से कर उगाहने के लिए अपने वजीर मलिक ताजुलमुल्क को भेजा ।
1424 के लगभग सैयद वंश के सुल्तान मुबारक सैयद ने हतकन्त क्षेत्र अर्थात् भिण्ड - भदावर इलाके पर धावा किया और वहाँ से राजस्व और कर वसूल किया। 1429-30 में मुबारक सैयद अपनी सेना सहित ग्वालियर को चला और बयाना के प्रदेश से गुजरा। ग्वालियर पर अधिकार करके वह हतकन्त गया और वहाँ के राय को पराजित किया। राय के प्रदेश को याने भिण्ड - भदावर इलाके को लूटा गया और बरबाद कर दिया गया तथा कई निवासियों को बन्दी बना लिया गया। यहाँ से सुल्तान अपनी सेना के साथ रापरी को बढ़ा और उस पर अधिकार कर लिया। वहाँ से वह मार्च-अप्रैल 1430 में अपनी राजधानी लौट गया।
ग्वालियर के सिंहासन पर 1424 में डूंगरसिंह बैठा। वह एक योग्य शासक था और उसके समय ग्वालियर राज्य ने उत्तर भारत की राजनीति में अपना स्थान बना लिया। 1438 में उसने नरवर पर अधिकार करने की कोशिश की जो मालवा के सुल्तान के अधीन था लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हुआ। डूंगरसिंह के समय ग्वालियर के किले के पास एक विशाल चट्टान पर जैन तीर्थंकर की मूर्ति उत्कीर्ण की गई थी। उल्लेख मिलता है कि उसने काश्मीर के प्रसिद्ध शासक सुल्तान जैनुल आबदीन को संगीत की कुछ उल्लेखनीय पाण्डुलिपियाँ भेंट में दीं। उसके बेटे कीर्ति या करणसिंह के समय शिला पर बनी मूर्ति पूरी की गई थी। डूंगरसिंह के समय ग्वालियर राज्य की शक्ति इतनी थी कि उसके पड़ोसी राज्य जौनपुर, मालवा और दिल्ली उससे दोस्ती करना चाहते थे।
कहा जाता है कि कीर्तिसिंह ने एक विशाल झील का निर्माण कराया जो शंकरपुरा और अकबरपुरा से अदली-बदली की पहाड़ियों तथा बाला राजा तक विस्तृत थी। पर अब यह झील नहीं है। डूंगरसिंह तोमर का एक समकालीन लेखक राइधू अपने अप्रकाशित ग्रंथों पार्श्व-पुराण, पद्म चरित और सम्यकत्वगुणनिधान में ग्वालियर शहर का विस्तृत विवरण देता है। पार्श्व पुराण में वह कहता है कि गोपांचल यानी ग्वालियर एक समृद्ध शहर था और लोग सुखी, धार्मिक, उदार और सज्जन थे। डूंगरसिंह और उसका बेटा जैन थे। राज्य में चोर, डकैत और अन्य असामाजिक तत्व नहीं थे और कोई गरीब तथा दुखी नहीं था। चौराहे पर सुन्दर बाजार बने थे जहाँ व्यापारी विभिन्न चीजों का व्यापार करते थे। शहर में जैन मन्दिर थे और श्रावक दान ताकि पूजा में रत रहते थे।
1465 में जौनपुर के शासक हुसैनशाह शर्की ने ग्वालियर के किले को घेर लिया लेकिन वहाँ के शासक कीर्तिसिंह ने उससे संधि कर ली। इस संधि के कारण ग्वालियर के शासक को दिल्ली के शासक बहलोल लोदी का कोप भाजन होना पड़ा क्योंकि दिल्ली तथा जौनपुर के रिश्ते अच्छे नहीं थे। जब 1468 में बहलोल लोदी ने जौनपुर के शासक हुसैनशाह शर्की को हराया तो शर्की शासक ग्वालियर की तरफ जाने के लिए उसने जमुना नदी पार की। उस पर चम्बल इलाके के भदौरिया सरदारों ने आक्रमण करके उसका शिविर लूट लिया।
1509 में वर्षा ऋतु के बाद दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी अपने अधीन के एक राज नरवर के अभियान पर रवाना हुआ। मार्ग में लहार पर एक माह रुकने के बाद 30 अप्रैल 1509 को हतकन्त की ओर बढ़ा और उस पर आसानी से अधिकार कर लिया। उसने विद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया और विभिन्न स्थानों पर चौकियाँ स्थापित करके अपनी राजधानी आगरा को लौट गया ।
ग्वालियर के तोमर वंश का सबसे महान शासक था मानसिंह तोमर, जिसने किले को बहुत सुन्दर बनाया। उसने 1486 से 1517 तक राज्य किया। मानसिंह तोमर ने बहलोल लोदी और उसके बेटे सिकंदर लोदी से सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखे। जब सिकंदर लोदी ने धौलपुर को जीत लिया तब ग्वालियर के तोमर शासक से उसके संबंध तनावपूर्ण हो गये। 1517 में सिकंदर लोदी ने ग्वालियर पर आक्रमण करने के लिए आजम हुमायूँ सरवानी को भेजा लेकिन तभी सिकंदर लोदी का निधन हो गया। सिकंदर लोदी के उत्तराधिकारी इब्राहीम लोदी के समय ग्वालियर पर फिर से आक्रमण किया गया लेकिन यह आक्रमण असफल रहा।1517 में ही मानसिंह तोमर का निधन हो गया। मानसिंह तोमर ने अनेक निर्माण कराये। वह संगीत का अनन्य प्रेमी था और उसने कुछ कविताएँ भी रचीं। उसके संगीत प्रेम के कारण संगीत के ग्वालियर घराने का जन्म हुआ जो मुगलों के समय और बाद में भी जारी रहा।
मानसिंह तोमर के उत्तराधिकारी विक्रमादित्य ने इब्राहीम लोदी की अधीनता स्वीकार कर ली और बाबर के खिलाफ पानीपत के युद्ध में भाग लिया और मारा गया। ग्वालियर के तोमर वंश का इस प्रकार अंत हो गया।
मध्यप्रदेश में दिल्ली सल्तनत की सांस्कृतिक गतिविधियाँ
मध्यप्रदेश अंचल में दिल्ली सल्तनत के प्रसार के समय ज्यादा सांस्कृतिक गतिविधियों की जानकारी नहीं मिलती। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दौरान मालवा अंचल में उत्तर भारत से सूफी संतों का आगमन प्रारंभ हो गया।
1290-91 में एक प्रख्यात सूफी संत मौलाना कमालुद्दीन धार आये। उनका धार आगमन मालवा के इतिहास में युग परिवर्तन का संकेत था और एक नये सांस्कृतिक परिवेश का बीजारोपण था।
मौलाना इस्लामी रहस्यवाद की एक महान विभूति थे और प्रखर विद्वान थे। वंश परम्परा में वे सुप्रसिद्ध सूफी संत बाबा फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर के प्रपौत्र थे। धार आगमन के समय उनकी आयु 50-51 साल की थी।
उन दिनों मालवा का गवर्नर दिलावर खाँ गोरी था। वह मौलाना का बहुत प्रशंसक था। उसने 1395 में मौलाना के उपयोग में आने वाली एक छोटी सी मस्जिद का, जो उस समय जीर्ण-शीर्ण हो चुकी थी, पुनर्निर्माण कराया और उसका विस्तार किया। यही मस्जिद परम्परा से कमाल मौला की मस्जिद कहलाई 1398 में दिल्ली पर तैमूर का आक्रमण होने से जब सल्तनत में अव्यवस्था फैली और जब मालवा के गवर्नर दिलावर खाँ ने अपने को मालवा का स्वतंत्र शासक घोषित किया तो कमाल मौला मस्जिद में ही उसके नाम खुतबा पढ़ा गया था। यह मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का मिश्रित उदाहरण है।
कमाल मौला मस्जिद के बारे में पर्सी ब्राउन का कहना है कि मुस्लिम शासन के समय धार में पहले चरण में हिंदू मंदिर तोड़े गये और उन्हें मस्जिदों में बदल दिया गया। उनके अनुसार कमाल मौला की मस्जिद इसी पहले चरण के समय की हैं।
Post a Comment