विज्ञापन (मार्केटिंग) का महत्व |Importance of Advertising (Marketing)
विज्ञापन (मार्केटिंग) का महत्व
विज्ञापन (मार्केटिंग) का महत्व
सामान्य तौर पर विज्ञापन शब्द का नाम सुनते ही आपके मन में
किसी लोकप्रिय साबुन, तेल, सिनेमा, कार या किसी अन्य
उत्पाद के प्रचार के लिए रेडियो, अखबार या टीवी में किसी सुने, पढ़े या देखे विज्ञापन की छवि उभर आती है।
विज्ञापन कला का उद्देश्य ही यही है। किसी भी विज्ञापन की सफलता इसी बात में है कि
उसे कितने लोग देखते, सुनते या पढ़ते
हैं और उनके मन में वह कैसा प्रभाव डालता है। प्रारम्भ में विज्ञापन का अर्थ
प्रायः प्रचार के लिए ही होता था लेकिन उपभोक्तावाद के ताजा दौर में विज्ञापन अब
प्रचार से भी आगे बढ़ कर मार्केटिंग तक पहुँच गया है। आज विज्ञापन के जरिए की गई
मार्केटिंग के जरिए किसी भी तरह का उत्पाद बेचा जा सकता है, उसकी जरूरत और
खपत बढ़ाई जा सकती है। यानी आप कह सकते हैं कि आज के दौर में विज्ञापन एक अत्यधिक
महत्वपूर्ण जनसंचार साधन हो गया है और व्यवसाय के लिए इसका महत्व बहुत बढ़ गया है।
प्रारम्भिक दौर में विज्ञापन को जितना महत्व मिलता था, वर्तमान में उससे
कई गुना अधिक मिलने लगा है। क्योंकि विज्ञापन की उपयोगिता और इसके परिणाम निरन्तर
बेहतर होते जा रहे हैं। ऐसा दावा किया जाता है कि विश्व का पहला विज्ञापन भारत में
ही बना था । यह विज्ञापन दशमपुर (मंदसौर) के सूर्य मंदिर की दीवारों पर गुप्त काल
में 350 से 500 ईस्वी के बीच
उत्कीर्ण किया गया था। संस्कृत के इस विज्ञापन में कहा गया था कि -
"तासण्यु कानव्य पचितोडपि सुवर्णहारं
ताम्बूलं पुष्प विधिना समलङः कृतोडपि,
नीर जनः प्रि (श्री) य भुवति न ताव दम्यां,
यावत्र
पट्टमयवस्त्रं युगनिधन्तं "
अर्थात्, चाहे तन पर कितना ही यौवन फूट रहा हो, अंग-प्रत्यंग पर
कितनी ही कान्ति फैल रही हो, आलेपन से सजे होठों पर ताम्बूल का कैसा ही लाल रंग क्यों न
दिखता हो, फूलों से वेणी और
कलियों से माँग कितनी ही सुन्दर क्यों न सजी हो, समझदार नारी अपने प्रिय (पति) के मन को तब तक
नहीं भाती, जब तक कि वह
हमारे द्वारा बुने गए रेशम का वस्त्र नहीं पहन लेती।
विज्ञापन की दुनिया में पहला बड़ा बदलाव पन्द्रहवीं सदी में
मुद्रण के आविष्कार के बाद आया । यह माना जाता है कि अंग्रेजी का पहला मुद्रित
विज्ञापन 1473 अथवा 1477 में विलियम
कैक्सटन ने तैयार किया था,
जो एक हैण्डबिल
था । 1678 में प्रकाशित
जान होटल का अखबार 'इलेक्शन फॉर द
इम्प्रूवमेंट ऑफ द हस्बैंड एण्ड ट्रेड विचित्र और रोचक खबरों के साथ-साथ व्यवसायिक
विज्ञापन भी छापने लगा था। उस दौर में भी विज्ञापन का महत्व इतना हो चुका था कि 1712 में इंग्लैण्ड
की सरकार ने उन सभी पत्र-पत्रिकाओं पर आधा पेनी सेवाकर लगा दिया, जिनमें विज्ञापन
छपते थे। बीसवीं सदी आते-आते भारत में भी विज्ञापनों का एक बड़ा बाजार बन चुका था
और लोग विज्ञापनों का महत्व समझने लगे थे। तब यह धारणा भी स्थापित हो चुकी थी कि
अच्छे विज्ञापन से किसी भी वस्तु का प्रचार किया जा सकता है। भारतीय सिनेमा की
पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' का जब 1913 में दादा साहब
फालके ने निर्माण किया था,
तब उसका विज्ञापन
इस तरह किया गया था- "मात्र तीन आने में देखिए, दो मील लम्बी फिल्म में 57000 से भी अधिक
चित्र" । इस विज्ञापन को देश भर में प्रसारित किया गया था। इससे आप समझ सकते
हैं कि उस दौर में भी विज्ञापन को कितना महत्व मिलने लगा था। प्रारम्भ में भारत
में मुद्रित विज्ञापनों के साथ साथ रेडियो विज्ञापनों को भी काफी महत्व मिला था।
टीवी के विस्तार के बाद रेडियो विज्ञापनों का महत्व कुछ कम हुआ मगर एफ एम रेडियो
की लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ अब रेडियो विज्ञापन पुनः महत्व पाने लग गए हैं और
अब रेडियो, टीवी, प्रिंट मीडिया के
साथ-साथ इंटरनेट भी विज्ञापन का एक बड़ा जरिया बन गया है। इसके कारण अब विज्ञापन
का महत्व भी बहुत बढ़ गया है।
आज आर्थिक उदारीकरण और उपभोक्तावाद के युग में घरेलू और बहुराष्ट्रीय उत्पादकों के बीच जिस तरह की गलाकाट प्रतिद्वन्द्विता चल रही है उसके कारण भी विज्ञापन का महत्व बहुत बढ़ गया है। अब उत्पादक विज्ञापन को मार्केटिंग के एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। प्रारम्भ में विज्ञापन का उपयोग संचार के लिए होता था। कभी विज्ञापन का उपयोग किसी विचार, नीतियों अथवा संदेश के प्रचार के लिए किया जाता था। यानी विज्ञापन के जरिए विचारों का आदान-प्रदान होता था। लेकिन अब विज्ञापन का प्रयोग मार्केटिंग यानी विपणन के लिए अधिक होने लगा है। आज किसी वस्तु उत्पाद या सेवा की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए और उसकी बिक्री बढ़ाने के लिए तमाम तरह की मार्केटिंग योजनाएं व रणनीतियाँ बनाई जाती हैं। इन रणनीतियों को प्रसारित करने के लिए इनके जरिए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की मदद ली जाती है। विज्ञापन ही मार्केटिंग रणनीति को उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं। आज मार्केटिंग का ही कमाल है कि विज्ञापन प्रकाशित प्रसारित करने वाले माध्यमों को भी अपना खुद का विज्ञापन करना पड़ता है। अखबारों को बार-बार यह बताना पड़ता है कि वे कितनी संख्या में प्रकाशित होते हैं, किस क्षेत्र और किस आय वर्ग के बीच अधिक पढ़े जाते हैं। इसी तरह पत्र-पत्रिकाओं से भी खुद को दूसरों से श्रेष्ठ या अलग साबित करके विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करना पड़ता है। टीवी मीडिया में टीआरपी का जन्म भी इसी कारण हुआ है और यह कहा जा सकता है कि विज्ञापन का ही दबाव है कि न्यूज चैनलों को अपनी विषय वस्तु में लगातार परिवर्तन करते रहना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि विज्ञापन आज न सिर्फ जनमत तय करने और विचार परिवर्तन करने के साधन हैं बल्कि वे किसी भी उद्योग व्यवसाय या सेवा की सफलता के - भी सूत्रधार बन गए हैं।
अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. विज्ञापन की सफलता का प्रमाण क्या है?
प्रश्न 2. विश्व का पहला विज्ञापन कहा जाने वाला विज्ञापन क्या था ?
प्रश्न 3. विज्ञापन की दुनिया में पहला बड़ा बदलाव कब आया ?
प्रश्न 4. अंग्रेजी का पहला मुद्रित विज्ञापन किसने तैयार किया था?
प्रश्न 5. इंग्लैण्ड में विज्ञापनों पर पहली बार कर कब लागू हुआ?
प्रश्न 6. राजा हरिश्चन्द फिल्म के प्रचार का विज्ञापन क्या था ?
Post a Comment