भारत के प्रमुख अंतर्राज्यीय विवाद | महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद क्या है ?|Major Interstate Disputes of India
भारत के प्रमुख अंतर्राज्यीय विवाद , महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद क्या है ?
असम-अरुणाचल प्रदेश अंतर्राज्यीय विवाद:
- असम और अरुणाचल प्रदेश 804.10 किमी. की अंतर-राज्यीय सीमा साझा करते हैं।
- वर्ष 1987 में बनाए गए अरुणाचल प्रदेश राज्य का दावा है कि पारंपरिक रूप से इसके निवासियों की कुछ भूमि असम को दे दी गई है।
- एक त्रिपक्षीय समिति ने सिफारिश की थी कि कुछ क्षेत्रों को असम से अरुणाचल प्रदेश में स्थानांतरित किया जाए। इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्य न्यायालय की शरण में हैं।
असम-मिज़ोरम अंतर्राज्यीय विवाद:
- मिज़ोरम अलग केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले असम का एक ज़िला हुआ करता था जो बाद में अलग राज्य बना।
- मिज़ोरम की सीमा असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज ज़िलों से लगती है।
- समय के साथ सीमांकन को लेकर दोनों राज्यों की अलग-अलग धारणाएँ बनने लगीं।
- मिज़ोरम चाहता है कि यह बाहरी प्रभाव से आदिवासियों की रक्षा के लिये वर्ष 1875 में अधिसूचित एक आंतरिक रेखा के साथ हो, जो मिज़ो को उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि का हिस्सा लगता है, असम का मानना है कि सीमा का निर्धारण बाद में तैयार की गई ज़िला सीमाओं के अनुसार किया जाए।
असम-नगालैंड अंतर्राज्यीय विवाद:
- वर्ष 1963 में नगालैंड के गठन के बाद से ही दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद चल रहा है।
- दोनों राज्य असम के गोलाघाट ज़िले के मैदानी इलाकों के निकट एक छोटे से गांँव मेरापानी पर अपना दावा करते हैं।
- वर्ष 1960 के दशक से इस क्षेत्र में हिंसक झड़पों की खबरें आती रही हैं।
असम-मेघालय अंतर्राज्यीय विवाद:
- मेघालय ने करीब एक दर्ज़न क्षेत्रों की पहचान की है जहाँ राज्य की सीमाओं को लेकर असम के साथ उसका विवाद है।
हरियाणा-हिमाचल प्रदेश अंतर्राज्यीय विवाद:
- दो उत्तरी राज्यों (हरियाणा-हिमाचल प्रदेश) में परवाणू क्षेत्र को लेकर सीमा विवाद है, जो हरियाणा के पंचकुला ज़िले के समीप स्थित है।
- हरियाणा ने इस क्षेत्र की ज़मीन के काफी बड़े हिस्से पर अपना दावा किया है और हिमाचल प्रदेश पर हरियाणा के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने का आरोप लगाया है।
लद्दाख-हिमाचल प्रदेश अंतर्राज्यीय विवाद:
- लद्दाख और हिमाचल प्रदेश दोनों केंद्रशासित प्रदेश सरचू क्षेत्र पर अपना दावा करते हैं, जो लेह-मनाली राजमार्ग से यात्रा करने वालों के लिये एक प्रमुख पड़ाव बिंदु है।
- यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति ज़िले तथा लद्दाख के लेह ज़िले के बीच स्थित है।
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद क्या है ?
उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा संबंधी विवाद
काफी पुराना है।
वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की
सीमाओं को भाषायी आधार पर निर्धारित किया गया, तब बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
यह अधिनियम वर्ष 1953 में नियुक्त न्यायमूर्ति फज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर
आधारित था और उन्होंने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
महाराष्ट्र का दावा है कि बेलगावी के कुछ हिस्से, जहाँ मराठी
प्रमुख भाषा है, महाराष्ट्र के अंतर्गत
रहने चाहिये।
अक्तूबर 1966 में केंद्र ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में सीमा विवाद को हल करने के
लिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन के नेतृत्त्व में महाजन आयोग
की स्थापना की।
इस आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक के
अंतर्गत रहें। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च
न्यायालय का रुख किया।
महाराष्ट्र के दावे का आधार:
महाराष्ट्र का अपनी सीमा के पुन: समायोजन का दावा सामीप्य, सापेक्ष भाषायी
बहुमत और लोगों की इच्छा के आधार पर था। बेलगावी और आसपास के क्षेत्रों में मराठी
भाषी लोगों तथा भाषायी एकरूपता के आधार पर दावे का मुख्य कारण कारवार एवं सुपा
क्षेत्र में मराठी की बोली के रूप में उद्धृत भाषा कोंकणी का प्रयोग है।
इसका तर्क इस विचार पर केंद्रित था कि गणना समुदायों के
आधार पर होनी चाहिये, और इसने प्रत्येक
गाँव में भाषायी निवासियों की संख्या/आबादी को सूचीबद्ध किया।
महाराष्ट्र ने इस ऐतिहासिक तथ्य की ओर भी इशारा किया कि इन
मराठी भाषी क्षेत्रों के राजस्व अभिलेख भी मराठी में ही होते हैं।
कर्नाटक की स्थिति:
कर्नाटक ने तर्क दिया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के
अनुसार सीमाओं का समझौता अंतिम है।
राज्य की सीमा न तो अस्थायी थी और न ही लचीली। राज्य का
तर्क है कि यह मुद्दा उन सीमा मुद्दों को फिर से खोल देगा जिन पर अधिनियम के तहत
विचार नहीं किया गया है, अत: ऐसी मांग की
अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
अंतर-राज्यीय परिषद के बारे में जानकारी :
संविधान का अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को राज्यों के बीच विवादों के समाधान के
लिये अंतर-राज्यीय परिषद गठित करने की
शक्ति देता है।
परिषद की परिकल्पना राज्यों और केंद्र के बीच चर्चा के लिये
एक मंच के रूप में की गई है।
वर्ष 1988 में सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया कि परिषद को एक स्थायी निकाय के रूप में गठित किया जाना चाहिये तथा वर्ष 1990 में यह राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अस्तित्व में आया।
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