निजी क्षेत्र में मास मीडिया स्वामित्व |Mass media ownership in the private sector
निजी क्षेत्र में मास मीडिया स्वामित्व
निजी क्षेत्र में मास मीडिया स्वामित्व :
भारत में आरम्भ से ही मुद्रित जनसंचार माध्यम निजी क्षेत्र के हाथों में ही फलते फूलते रहे। सरकारी प्रकाशन कभी भी प्रथम स्तर के मुद्रित माध्यमों की श्रेणी में नहीं आ सके। रोजगार समाचार या विज्ञान प्रगति जैसे अखबार या पत्रिकाएं भी एक सीमित दायरे तक ही सीमित रह गयीं। इसके विपरीत निजी स्वामित्व वाले अखबार और पत्रिकाएं हर रोज देश के करोड़ों लोगों द्वारा पढ़े जाते हैं। टेलीविजन और इंटरनेट की दुनिया में भी निजी क्षेत्र का ही बोल बाला है। देश में आज पचासों टीवी न्यूज चैनल निजी क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं। अनेक निजी एम एफ रेडियो चैनल भी सूचनाओं और समाचारों के प्रवाह के साक्षी बन रहे हैं। जो भारत जैसे बड़े लोकतंत्र की सेहत के लिए बहुत ही सकारात्मक लक्षण हैं। मास मीडिया के बड़े हिस्से पर आज सरकार का कोई स्वामित्व नहीं है। उन पर नजर रखने के लिए नियम कानून और दिशा निर्देश जरूर हैं, लेकिन उन्हें अपनी बात अपनी तरह से कहने की पूरी आजादी है। पेड न्यूज या विज्ञापन और व्यवसायिकता के दबाव के चलते अनेक बार उनमें विचलन हो जाता है, फिर भी समग्र रूप में भारत में मास मीडिया आज भी पूर्णतः स्वतंत्र और दबाव मुक्त है।,
प्रारम्भ में निजी क्षेत्र में मास मीडिया एकल स्वामित्व या साझेदारी के रूप में विकसित हुआ, लेकिन आज इसके अनेक प्रकार के रूप हो गए हैं। अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में स्वामित्व की नई नई शैलियाँ और तरीके विकसित होने लगे हैं। देश में निजी क्षेत्र में मास मीडिया के स्वामित्व की प्रमुख पद्धतियाँ इस प्रकार हैं-
1 एकाधिकार स्वामित्व :
यह मीडिया के स्वामित्व की सबसे पुरानी, प्रचलित एवं सुविधाजनक प्रणाली है। इसमें अखबार या मीडिया समूह का मालिक ही सम्पादक होता है, वही प्रबन्धक होता है और वही व्यवस्थापक भी। इस पद्धति की सफलता का मूल मंत्र यह है कि इसमें मालिक ही अखबार या समूह की प्रगति अथवा पतन से सीधे-सीधे प्रभावित होता है। लाभ हानि का सीधा फायदा या नुकसान भी उसी को मिलता है। इसलिए वह समूह या पत्र की तरक्की के लिए लगातार प्रयास करता रहता है। लेकिन इस व्यवस्था के कुछ नुकसान भी हैं। एक ही व्यक्ति द्वारा संचालित होने में उसकी स्थाई या अस्थाई अनुपस्थित के कारण सारा ढाँचा चरमरा जाता है। उसकी अपनी कमियाँ और कमजोरियाँ संस्थान या पत्र की प्रगति में बाधा बन जाती हैं।
इसी प्रणाली के एक संशोधित रूप में स्वामित्व तो एक व्यक्ति के हाथ में ही रहता है, लेकिन संपादन का असल भार वह किसी योग्य संपादक के हाथों सौंप देता है। इस समय देश में हिन्दी के अनेक क्षेत्रीय अखबार इस प्रणाली से संचालित हो रहे हैं। देश का सबसे बड़ा हिन्दी अखबार दैनिक जागरण इसका एक उदाहरण है। जिसकी स्थापना पूर्णचन्द गुप्त ने 1942 मे झांसी में की थी। 1947 में यह कानपुर से भी प्रकाशित होने लगा और आज देश का सबसे बड़ा अखबार है। अपने विकास कम के प्रथम चरण में इसने भी यही प्रणाली अपनाई थी।
2 साझेदारी स्वामित्व :
साझेदारी की स्वामित्व प्रणाली भी भारत में मास मीडिया के स्वामित्व की एक लोकप्रिय प्रणाली है। इस प्रणाली में व्यवसाय की जिम्मेदारी एक या एक से अधिक साझेदार उठा सकते हैं। परन्तु लाभ सारे साझेदारों में, उनके साझेदारी के अनुपात के आधार पर बाँटा जाता है। इस प्रणाली में एक से अधिक साझेदारों के विचार और योजनाएं मिल जुल कर अपेक्षित लाभ देती हैं, लेकिन कभी-कभी साझेदारों के बीच आपसी प्रतिद्वन्दिता और अहं का टकराव समस्या भी पैदा कर देता है। साझेदारी प्रणाली में प्रायः साझेदारी अधिनियम 1932 की धारा 4 के अनुसार संस्थान का संचालन किया जाता है। 12 अप्रैल 1949 को जब आगरा से 4 पृष्ठ के अमर उजाला का प्रकाशन शुरू हुआ तो यह भी एक साझेदारी स्वामित्व वाला अखबार ही था। डोरी लाल अग्रवाल और मुरारी लाल माहेश्वरी इसके संस्थापक साझेदार थे और लम्बे समय तक यह साझेदारी अटूट बनी रही और अमर उजाला दिन रात प्रगति करता रहा।
मध्य प्रदेश के प्रमुख अखबार दैनिक भाष्कर की प्रकाशन कंपनी डीबी कार्प लिमिटेड की जी समूह के साथ साझेदारी में मुम्बई से 2004 में अंग्रेजी दैनिक डीएनए का प्रकाशन शुरू हुआ था। यह भी साझेदारी प्रणाली की सफलता का एक उदाहरण है।
3 कंपनी स्वामित्व :
कम्पनी स्वामित्व वर्तमान में प्रचलित मीडिया स्वामित्व की सबसे आधुनिक और सुविधाजनक प्रणाली है। इस प्रणाली के तहत किसी मीडिया संस्था या समूह का संचालन करने वाली कम्पनी को भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकरण कराना होता है। इस प्रणाली में मीडिया स्वामी या स्वामित्व वाले समूह का दायित्व और जिम्मेदारियाँ सीमित हो जाती हैं और संचालन में अनेक प्रकार की व्यवहारिक सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। कंपनी स्वामित्व की तीन प्रमुख श्रेणियाँ हैं।
- लिमिटेड कम्पनी
- प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी और
- पब्लिक लिमिटेड कम्पनी
लिमिटेड कम्पनी, कम्पनी स्वामित्व की पहली श्रेणी है। इनका कम्पनी अधिनियम के तहत पंजीकरण अनिवार्य होता है। इसमें कंपनी का संचालन निदेशक (डायरेक्टर) करते हैं और कम्पनी की मिल्कियत शेयर होल्डर्स की होती है। किसी तरह का घाटा होने पर कंपनी की पूंजी और सम्पत्ति से ही उसकी भरपाई हो सकती है, निदेशकों या शेयर होल्डर्स की व्यक्तिगत सम्पत्ति से नहीं। इस श्रेणी में शेयर होल्डर प्रायः अखबार या मीडिया समूह के मालिकों के परिवार के सदस्य ही होते हैं। इस श्रेणी में हिन्दी के अनेक बड़े अखबारों से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं। हालांकि अब इस पद्धति को कम अपनाया जाता है।
प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के लिए न्यूनतम अंशपूंजी एक लाख रूपये होनी चाहिए। यह आपसी साझेदारी वाले व्यक्तियों के एक समूह द्वारा संचालित होती है। इनके अंशधारकों की संख्या कम से कम दो और अधिक से अधिक 50 हो सकती है। इन पर भी कम्पनी अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं, लेकिन ये शेयर मार्केट में कारोबार नहीं कर सकतीं। यह प्रणाली बहुत लोकप्रिय है क्योंकि इसमें पारिवारिक कारोबार को कंपनी की तरह चलाया भी जा सकता है और उसमें शेयर होल्डर्स की दखलंदाजी भी नहीं रहती। इस श्रेणी में नई दुनिया की प्रकाशक, नई दुनिया मीडिया प्राइवेट लिमिटेड, कन्नड़ अखबार प्रजावाणी की प्रकाशक, द प्रिंटर्स (मैसूर) प्राइवेट लिमिटेड जैसे मीडिया समूह शामिल हैं। अनेक पत्रिकाएं और कई टीवी न्यूज चैनल भी इसी प्रणाली से संचालित हो रहे हैं। आजकल अनेक बड़े मीडिया समूह अपने नए उत्पादों के लिए भी इस तरह की नई कम्पनी बनाने लगे हैं।
पब्लिक लिमिटेड कम्पनी के लिए अंशधारकों की न्यूनतम संख्या सात होनी चाहिए जबकि अधिकतम के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है। लेकिन इसके लिए तुलनात्मक रूप से अधिक अंशपूंजी की आवश्यकता होती है। यह कंपनी स्टॉक मार्केट में कारोबार कर सकती है। बाजार से पैसा उठा सकती है। यह प्रणाली भी इन दिनों काफी प्रचलन में है। हैदराबाद से प्रकाशित डेक्कन कॉनिकल की संचालक, डेक्कन कॉनिकल होल्डिंग्स लिमिटेड, लोकमत प्रकाशन से जुड़ी लोकमत मीडिया लिमिटेड और हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान की संचालक हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड इसी इसी श्रेणी की कम्पनियों के कुछ उदाहरण हैं। प्रायः सभी बड़े अखबार आज इसी प्रणाली से संचालित हो रहे हैं।
देश की पहली ज्वाइंट स्टाक (मिश्रित पूंजी ) पब्लिशिंग कंपनी मलयाला मनोरमा के प्रकाशन से जुड़ी मलयाला मनोरमा कंपनी लिमिटेड थी। वर्तमान में प्रायः सभी बड़े टेलीविजन मीडिया समूह बाजार से पैसा उठा चुके हैं। आज देश में व्यावसायिक प्रबन्ध का स्तर बेहद उच्च श्रेणी का हो चुका है, इसलिए आज के पेशेवर वित्त प्रबन्धक अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए इसी प्रणाली का अधिकाधिक उपयोग करने लगे हैं। देश में इस समय अनेक निजी एफ. एम. रेडियो चैनल कंपनियां भी इसी प्रकार के स्वामित्व के तहत चल रही हैं।
4 सहकारी संस्थाओं का स्वामित्व :
सहकारी या कोआपरेटिव स्वामित्व भी भारत में मास मीडिया के स्वामित्व की एक प्रणाली है। लोकतंत्र में मीडिया पर पूंजीवालों का एकाधिकार न हो जाए और आम आदमी के सामने अभिव्यक्ति का संकट न पैदा हो जाए, इस आशंका को खत्म करने की गुंजाइश सहकारी स्वामित्व की प्रणाली में ही है। इसके लिए आवेदक को रजिस्ट्रार सोसाइटीज के कार्यालय में पंजीकरण करवाना होता है। कार्य के संचालन के लिए एक सहकारी संस्था बनाई जाती है, जिसके सदस्यों के अंशदान से कार्यपूंजी तैयार होती है। संस्था के कार्यो के लिए संस्था का सचिव जिम्मेदार होता है। लेकिन आज जिस तरह टीवी या प्रिंट मीडिया में पूंजी की जरूरत बहुत बढ़ गई है, उसके कारण मास मीडिया में सहकारी स्वामित्व की प्रणाली को काफी चुनौती मिल रही हैं। नैनीताल से प्रकाशित पाक्षिक नैनीताल समाचार और लखनऊ तथा फैजाबाद से प्रकाशित दैनिक जनमोर्चा इस प्रणाली के कुछ उदाहरण हैं। हांलाकि यह प्रणाली अब छोटे अखबारों और कुछ प्रायोगिक रेडियो प्रसारणों तक ही सीमित रह गई है।
संस्थाओं द्वारा मीडिया समूह या पत्र-पत्रिकाओं का संचालन भी हमारे देश में काफी पहले से होता रहा है। अनेक सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं अपने-अपने मुख पत्र या अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अखबार निकालती हैं। इस तरह के स्वामित्व की प्रणाली में मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। अनेक धार्मिक एवं सामाजिक पत्रिकाएं इस तरह की स्वामित्व प्रणाली में निकल रही हैं। गोरखपुर की गीता प्रेस इस श्रेणी का अन्यतम उदाहरण है, जो 75 वर्ष से भी अधिक समय से 'कल्याण' पत्रिका सहित अनेक धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर रही है। प्रायः उत्तर भारत के हर हिन्दू घर में इस प्रकाशन का कोई न कोई उत्पाद दिख ही जाता है इसके प्रकाशनों का मूल्य भी बेहद कम है। लेकिन इस तरह का स्वामित्व आज की व्यवसायिक होड़ में पिछड़ता जा रहा है।
5 ट्रस्ट :
यों तो ट्रस्ट समाज में अच्छे कार्य करने के लिए एक व्यवस्था है। जिसमें व्यक्तिगत लाभ हानि की अपेक्षा सार्वजनिक हित को प्रमुखता दी जाती है। लेकिन हमारे देश में 'ट्रस्ट' प्रणाली के जरिए समाचार पत्रों का प्रकाशन भी होता रहा है। इस प्रणाली में जो भी ट्रस्ट इस काम के लिए बनाया जाता है उसके उद्देश्यों में प्रकाशन कार्य को भी शामिल कर लिया जाता है। ट्रस्ट की संचालन समिति मुख्य कार्य देखती है और ट्रस्ट के प्रकाशन आदि कार्य के लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं। ट्रस्ट द्वारा संचालित समाचार पत्रों में तमिल दैनिक थांती का संचालन थांती ट्रस्ट और द ट्रिब्यून का संचालन 'द ट्रिब्यून ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। ट्रिब्यून ट्रस्ट देश का सबसे पुराना प्रकाशन ट्रस्ट है। इसकी स्थापना 1883 में लाहौर में हुई थी। मद्रास में 'द हिन्दू' समूह भी एक ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है, लेकिन वह एक पारिवारिक ट्रस्ट है, सार्वजनिक ट्रस्ट नहीं ।
अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न-1 एकाधिकार स्वामित्व क्या होता है?
प्रश्न-2 एकाधिकार स्वामित्व प्रणाली की क्या हानियाँ हैं ?
प्रश्न- 3 दैनिक जागरण की स्थापना कब और कहाँ हुई थी?
प्रश्न - 4 डी बी कार्प की साझेदारी में कौन सा अंग्रेजी दैनिक प्रकाशित होता है?
प्रश्न-5 कंपनी स्वामित्व में पंजीकरण किस अधिनियम के तहत होता है?
प्रश्न - 6 कंपनी स्वामित्व की तीन प्रमुख श्रेणियां कौन सी हैं?
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