कर्मचारियों की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकतायें |Psychological and Social Needs Of Employees
कर्मचारियों की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकतायें
(Psychological and Social Needs Of Employees)
कर्मचारियों की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकतायें
किसी भी संस्था का आधार स्तम्भ उनमें काम करने वाले कर्मचारी / सदस्य ही होते हैं। तकनीकी रूप से इन लोगों को उस संस्था / संगठन का मानव शक्ति (Man power) कहा जाता है। कोई भी संस्था / संगठन चाहे समृद्ध और विकासोन्मुखी क्यों न हो, उसे इस स्थिति तक पहुंचाने वाले वहाँ कार्यरत कर्मचारी / सदस्य ही होते हैं कर्मचारियों / सदस्यों की मूलतः दो प्रकार की आवश्यकतायें होतीं हैं। प्रथम, आर्थिक आवश्यकतायें तथा द्वितीय, मनोवैज्ञानिक-सामाजिक आवश्यकतायें। प्रथम प्रकार की आवश्यकताओं का स्वरुप मौद्रिक होता है । जबकि दूसरे प्रकार की आवश्यकतायें संतुष्टि, स्वस्थ मनोदेशायें, पहचान, आदि से जुडी होतीं हैं इन्हीं आवश्यकताओं को मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकता कहा जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित आवश्यकताओं का समवेश किया जाता है:
1) महत्वपूर्ण बनने की भावना (Feeling of Being Important ) :
यह भावना प्रायः सभी व्यक्तियों में होती है चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो। उदाहरण के लिये प्रत्येक शिक्षक यह चाहता है कि विद्यालय के प्राध्यापक उसके कार्यों को गंभीरता से लें और उसको अपनी संस्था का महत्वपूर्ण अंग समझे ।
II) आत्म-सम्मान की भावना (Feeling of Self esteem ) :
प्रत्येक व्यक्ति हमेशा अपने आत्म-सम्मान को बनाये रखना चाहता है। उसका पद कितना भी निम्न श्रेणी का क्यों न हो, किसी को यह अधिकार नहीं है कि उसके अहम को चोट पहुंचाये या उसकी बेईज्जती करे ।
III) समाज में इज्जत के साथ रहना तथा समाज द्वारा मान्यता की आवश्यकता (Need of living with Dignity in Society and Getting Societal Approval):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः समाज के साथ अन्य सहयोगियों - सम्बन्धियों के साथ रहने की उसमें स्वाभाविक प्रवृति होती है। ऐसी दश में प्रशासकों का यह दायित्व बनता है वे सदस्यों की इस सामाजिक आवश्यकता की संतुष्टि करें।
IV) स्नेह का आदान-प्रदान (Exchange of Love and Affection):
किसी संस्था में कार्यरत सभी सदस्य आपस में मिलजुल काम करना रहना चाहते हैं। वे हमेशा एक दूसरे की मदद को तैयार रहते हैं। इससे उनके बीच स्नेह का आदान प्रदान होता रहता है और संस्था का माहौल सौहार्द्रपूर्ण बना रहता है।
V) सुरक्षा एवं शांति की आवश्यकता (Needs of Security and Peace):
रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकताओं की भांति प्रत्येक सदस्य यह चाहता है कि वह जिस संस्था में कार्य कर रहा है वहां उसकी सेवा स्थायी प्रकृति की हो। कोई भी व्यक्ति आपने जीवन में अशांति नहीं पसंद नहीं करता है। संस्था के सदस्य सुरक्षित सेवायें पसंद करते है, नौकरी से किसी भी क्षण निकल दिये जाने की आशंका से वे अपने कार्य में रूचि खो देते हैं अतः कर्मचारी राज्य बीमा, पेंशन एवं प्रोविडेंट फंड, वृद्धावस्था में सुरक्षा, बीमारी की अवस्था में चिकित्सीय सहायता एवं अवकाश आदि योजनाओं से श्रमिकों में सुरक्षा की भावना को बढ़ायी जा सकती है।
VI) जीवन में कुछ प्राप्त करने की अभिलाषा (Desire to Acquire Something Special):
प्रत्येक सदस्य यह चाहता है की वह अपने सेवाकाल में कुछ प्राप्त करे। इस मनोवैज्ञानिक आवश्यकता की संतुष्टि में यदि प्रशासक सहायक है तो सदस्य को प्रेरणा मिलती है।
VII) अन्य आवश्यकतायें (Other Needs):
इस शीर्षक के अंतर्गत श्रमिकों की अन्य विविध प्रकार की आवश्कताओं का समावेश किया जा सकता है जैसे- पूछताछ एवं समझने की आवश्यकता, प्रयोग व शोध की आवश्यकता
1 मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सुझाव
(Suggestions for Fulfillment of Psychological and Social Needs):
किसी भी संगठन में सदस्यों / कर्मचारियों मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक होती है क्योंकि उनकी कार्य क्षमता का सीधा सम्बन्ध उनके मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दशाओं (Psycho- Socio Built-Up) से है इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकतें हैं:
I) कार्य स्थल का वातावरण (Ambience of Work Place):
भय मुक्त एवं सौहार्द पूर्ण वातावरण ही सदस्यों / कर्मचारियों में आत्म-विश्वास उत्पन्न करता है । अतः कार्य स्थल का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि कर्मचारी स्वतंत्र होकर संगठन में पूर्ण मनोयोग से कार्य कर सकें।
II) मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध (Friendly Relation):
नियोक्ता एवं कर्मचारियों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध चाहिये । इससे कर्मचारी स्वयं को संगठन से जुड़ा हुआ मानने लगतें हैं और अपने कार्यों में रूचि लेते हैं ।
III) कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका (Employee's Service Book):
इस पुस्तिका में कर्मचारियों के सेवा सम्बन्धी नियमों का उल्लेख होता है। इसके अतिरिक्त उसमें उनकी फोटो, जन्म तिथि, उँगलियों तथा अंगूठों के चिन्ह, निवास स्थान, पदनाम, पद का प्रकार (मौलिक / स्थानापन्न / स्थाई / अस्थाई) नियुक्ति की तिथि, वेतनमान, पदच्युति का दिनांक और कारण लिए हुए अवकाश के प्रकार एवं अवधि, कर्मचारी को दिए गए दंड या पुरष्कार या प्रशंसा का विवरण, अर्जित अवकाश आदि का लेखा होता है।
IV) अवकाश का प्रावधान (Leave Arrangement):
संगठन में कार्यरत सदस्यों को मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिये । इसके लिये यह आवश्यक है कि उन्हें साप्ताहिक अवकाश के अतिरिक्त आकस्मिक अवकाश (Causal Leave ), चिकित्सा अवकाश (Medical Leave ), अर्जित अवकाश (Earned Leave) दिये जायें।
V) पदोन्नति का प्रावधान (Provisions of Promotion):
संगठन के सदस्यों / कर्मचारियों को समय- समय पर पदोन्नति दी जानी चाहिये। पदोन्नति का आधार वरीयता/सेवा काल न होकर कार्य की गुणवत्ता होनी चाहिये
VI) सेवा का स्थायीकरण (Permanence of Services):
जिन संगठनों में कर्मचारी स्थाई तौर पर बहाल नहीं किये जाये जाते हैं वहाँ पर निष्पादन संतोषपूर्ण नहीं होता है। ठेके पर बहाल किये गये कर्मचारी उस संगठन से लगाव महसूस नहीं करते हैं और हमेशा नौकरी से हटाये जाने का भय बना रहता है । अतः यह आवश्यक है कि अधिकतम दो सालों तक लगातार सेवाएँ देने पर उस कर्मचारी / सदस्य को सेवाएँ स्थाई / नियमित कर दी जानी चाहिये
VII) निर्णयों में पारदर्शिता (Transparency in Decision Making):
एक प्रशासक जो भी क्रिया करता है वह निर्णयन के द्वारा करता है । अतः उसे व्यक्तिगत तौर पर निर्णय न लेकर सामूहिक तौर पर निर्णय लेने चाहिये । उसे निर्णय प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना चाहिये। ऐसा करने से संगठन के सदस्यों को भी यह अहसास होता है कि वे संगठन के लिए कितने महत्वपूर्ण है ।
VIII) विशिष्ट कार्यों के किये पुनर्वलन (Reinforcement for Specific Work):
संगठन के कर्मचारियों / सदस्यों को उनके विशिष्ट योगदानों या कार्यों के लिए सम्मानित किया जाना चाहिये यह सम्मान मेडल, पुरस्कार या सुविधाओं के रूप में दिया जाना चाहिये।
IX) नव प्रवर्तन को प्रोत्साहन (Encouragement to Innovations ) :
एक ही तरह का कार्य लम्बे समय तक करते रहने से कर्मचारियों / सदस्यों में बोरियत / उबाऊपन आ जाता है। इससे निजात पाने के लिए यह आवश्यक होता है कि संगठन में काम करने के नये तरीकों या नयी सोच को बढ़ावा दिया जाये ।
X) दुर्घटना सम्बन्धी बीमा (Accident Insurance):
संगठन के सदस्यों / कर्मचारियों किसी दुर्घटना या गंभीर चोट के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में उनके इलाज या दवाईयों या आपरेशन पर बहुत रुपया खर्च होने की सम्भावना होती है | इस विषम परिस्थिति से लड़ने हेतु यह आवश्यक है कि संगठन द्वारा उनकी दुर्घटना सम्बन्धी बीमा करायी जाये ।
XI) अवकाश प्राप्ति पर परिलब्धियां (Retirement Benefits) :
अवकाश प्राप्ति पर कर्मचारियों के लिये PPF, Gratuity, Leave Encashment आदि का प्रावधान होना चाहिये ।
XII) Other Allowances and perks ( अन्य भत्ते एवं परिलब्धियाँ):
इसके अंतर्गत आवासीय सुविधा, बच्चों के लिए स्कूल की सुविधा, यात्रा भत्ता, कैंटीन, अस्पताल, क्लब आदि सुविधायें शामिल हैं।
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