वैज्ञानिक प्रबंध की प्रशासनिक विचारधारा : हेनरी फेयोल लूथर गुलिक | Scientific Management Theory in Hindi
वैज्ञानिक प्रबंध की प्रशासनिक विचारधारा : हेनरी फेयोल लूथर गुलिक
वैज्ञानिक प्रबंध की प्रशासनिक विचारधारा
वैज्ञानिक प्रबंध की विचारधारा का प्रारंभ अमेरिका से हुआ था। किन्तु ठीक उसी समय यूरोप में भी एक पूरक सम्पूर्ण विचारधारा प्रचलित हो रही थी जिसे प्रशासकीय विचारधारा के नाम से जाना जाता है । यह विचारधारा अनेक विद्वानों के विचारों का परिणाम रही है। इसमें हेनरी फेयोल, लूथर गुलिक तथा ऑलिवर शैल्डन आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
1 हेनरी फेयोल का योगदान (Contributions of Henry Fayol)
हेनरी फेयोल एक फ्रांसिसी (1841-1925) अभियंता थे जिन्हें "आधुनिक प्रबंध का जन्मदाता" माना जाता है । उन्होंने प्रशासन से सम्बंधित विचार आपनी लोकप्रिय पुस्तक "General and Industrial management" ' में 1916 प्रकाशित किया। उनके प्रशासन से सम्बंधित सिद्धांत को व्यापक स्वीकृति मिली और विश्व के सभी राष्ट्रों के प्रशासकों एवं संगठन के मालिकों ने अपनाया। इकाई में आपने पढ़ा कि हेनरी फेयोल ने प्रशासन के 14 सिद्धांतो का प्रतिपादन करके प्रशासकों की कार्यक्षमता बढ़ाने में सक्रिय योगदान दिया । उनका यह मत था कि प्रशासन कुछ निश्चित कार्यों के द्वारा संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने से सम्बंधित है।यह एक प्रक्रिया है जो कि पृथक पृथक क्रियाओं से मिलकर नहीं बनती है जबकि यह अंतर्संबंधित कार्यों का एक समूह है जिसे एक विशिष्ट क्रम में निष्पादित किया जा सकता है। प्रशासन प्रक्रिया को नीचे दिये गये चित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
हेनरी फेयोल की प्रशासन प्रक्रिया
हेनरी फेयोल ने प्रशासन प्रक्रिया के पांच महत्वपूर्ण क्रियायें बतायें हैं जिनकी चर्चा निम्नाकित है :
I) नियोजन (Planning):
नियोजन के अंतर्गत यह निर्धारित किया जाता है की क्या किया जाना है, कैसे जब और कहाँ करना है, कौन करेगा तथा परिणामों का मूल्यांकन कैसे किया जायेगा । नियोजन के के लिये निम्न कदम उठाये जाते हैं:
• लक्ष्य / उद्देश्य निर्धारित करना
• नियोजन की आधारभूत मान्यताओं को निर्धारित करना
• वैकल्पिक उपायों की खोज तथा परीक्षण करना
• किसी क्षेष्ठ विकल्प का चयन करना आवश्यक सहायक योजनाओं का निर्माण करना
• योजना का क्रियान्वयन एवं अनुवर्तन करना
II) संगठन (Organizing):
नियोजन जिन उद्देश्यों व कार्यक्रमों को निर्धारित करता है, उनके क्रियान्वयन के लिये संगठन एक साधन या उपकरण है। इसके अंतर्गत प्रशासक विभिन्न साधनों को एकत्रित करता है तथा उनमें कार्यकारी संबंध स्थापित करने का कार्य करता है। संगठन विभिन्न कार्यों का समूहीकरण करने, कार्यों का वितरण करने तथा संबंधित व्यक्तियों को अधिकार एवं दायित्व सौंपने की प्रक्रिया है। किसी संस्था के संगठन के लिये प्रशासक को निम्न कार्यों को करता है:
• क्रियाओं का निर्धारण करना
• क्रियाओं का समूहीकरण करना
• क्रिया समूहों को विभागों को सौपना
• क्रियाओं के लिये अधिकारों व दायित्वों का निर्धारण करना
• आपसी कार्य संबंधों का निर्धारण करना
III) निर्देशन (Directing):
निर्देशन वह कार्य है जिसके अंतर्गत संस्था के सदस्यों का पर्यवेक्षण, मार्गदर्शन एवं अभिप्रेरण किया जाता है ताकि संस्था के उद्देश्यों को अधिकतम कुशलता के साथ प्राप्त किया जा सके। टेरी के अनुसार, निर्देशन में, "किसी कार्य को गति देना व्यवहार में परिणित करना तथा गति समूह को प्रेरणात्मक शक्ति प्रदान करना शामिल है।" वास्तव में, निर्देशन का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत है निम्न कार्य शामिल होते हैं:
• पर्यवेक्षण (Supervision ) :
यह कार्य प्रशासक द्वारा आपने अधीनस्थों के कार्यों का निरीक्षण करने से संबंधित है। इसमें वह आपने अधीनस्थों को कार्य करने के ढंग, प्रक्रिया और नियमों की जानकारी देते हैं ।
• सम्प्रेषण (Communicating):
इसके अंतर्गत प्रशासक आपने अधीनस्थों को कार्य के सम्बन्ध में आदेश- निर्देश प्रदान करते हैं, विभिन्न प्रकार की सूचनायें प्रेषित करते हैं तथा उनकी शिकायतों सुझावों को सुनते हैं।
• अभिप्रेरण ( Motivating):
इसके अंतर्गत प्रशासक अपनी संस्था के सदस्यों में कार्य भावना तथा संस्था के प्रति अपनत्व की भावना का करते हैं।
• नेतृत्व ( Leading):
यह प्रशासक के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा वह संस्था के सदस्यों को एक सूत्र में बंधे रखता है और उन्हें पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर प्रेरित करता है ।
IV) समन्वय (Coordinating):
किसी संस्था के कार्यों में सुविधा उत्पन्न करने एवं सफलता प्राप्त करने के लिये सभी क्रियाओं में सामंजस्य उत्पन्न करना ही समन्वय है। इसके अभाव में लोग अलग अलग दिशाओं में कम करते हैं और उत्पादकता कुप्रभावित होती है और लागत व्यय बढ़ता है । अतः बर्नार्ड ने लिखा है "समन्वय किसी संगठन को जीवित रहने का महत्वपूर्ण तथ्य है।" समन्वय के अंतर्गत निम्न तत्व शामिल होते हैं -
• संतुलन
• समय निर्धारण
• विलयन
V) नियंत्रण (Controlling):
नियंत्रण से आशय निर्धारित लक्ष्यों कि प्राप्ति हेतु किये जा रहे प्रयासों की जाँच करना तथा उनमें यदि कोई त्रुटि है तो उसे दूर करना है। नियंत्रण प्रक्रिया के निम्न चार तत्व हैं:
• लक्ष्यों तथा प्रमापों का निर्धारण करना
• कार्यों का मूल्यांकन करना
• वास्तविक प्रगति को निर्धारित प्रमापों से तुलना करना
• विचलन हेतु सुधारात्मक कार्यवाही करन
2 लूथर गुलिक की प्रशासनिक विचारधारा
लूथर गुलिक ने 1937 में "Papers on the Science of Administration" नामक पुस्तक का संपादन किया जो प्रशासन के नियमों पर सर्वाधिक प्रभावशाली कृति है । उन्होंने प्रशासन के सात कार्य बताये । इन कार्यों के लिये "POSDCORB (पोस्ड कोर्ब) " शब्द का प्रयोग किया। इस चिन्ह का प्रत्येक शब्द प्रशासन के कार्यों का संबोधन करता है। ये कार्य निम्नलिखित हैं :
P- Planning (नियोजन):
यह किसी संग का एक प्रमुख एवं सर्वोपरि कार्य है। नियोजन का अर्थ होता है निर्धारित लक्ष्यों कि प्राप्ति हेतु उपलब्ध वैकल्पिक नीतियों, विधियों एवं कार्यक्रमों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना है ।
O-Organizing (संगठन):
इसके अंतर्गत नियोजन को कार्य रूप में परिणित करने के लिये क्रियाओं का निर्धारण करना, उन्हें विभिन्न भागों में विभक्त करना, विशिष्ट व्यक्ति समूह को सौपना तथा उनके मध्य पारस्परिक संबंधों को परिभाषित करना आदि सभी शामिल हैं।
S-Staffing (नियुक्तियां):
स्टाफिंग से तात्पर्य प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों के क्रियान्वयन हेतु योग्य एवं कर्मठ व्यक्तियों की नियुक्ति से हैं। इसके अंतर्गत पदाधिकारियों/कर्मचारियों का चयन, उनकी भर्ती, मूल्यांकन एवं प्रशिक्षण शामिल हैं जिससे कि कार्य शक्ति संस्था/संगत के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग दे सके तथा कार्य निष्पादन के दौरान अधिकतम संतोष प्राप्त हो सके।
D-Directing (निर्देशन):
निर्देशन से आशय नियत सिद्धांत एवं नीतियों के अनुसार किसी कार्य के क्रियान्वयन की समुचित देखभाल करना ही निर्देशन कहा जाता है। इसके अंतर्गत आदेश देना, निरीक्षण करना, मार्गदर्शन, अभिप्रेरित करना आदि शामिल है।
C- Coordinating (समन्वय):
यह प्रशासन का वह कार्य है जो किसी संगठन के विभिन्न विभागों, सदस्यों तथा उनके समूहों में इस प्रकार एकीकरण स्थापित करता है की न्यूनतम लागत पर वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।
R- Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):
इसके अंतर्गत प्रशासक अपने संगठन में हुये कार्यों या उसकी उपलब्धियों का विवरण तैयार करता है तथा अपने उच्चाधिकार्यों को इसकी जानकारी समय समय पर देता रहता है।
B-Budgeting (बजट बनाना):
इसके अंतर्गत एक निश्चित समय सीमा के अंतर्गत राजस्व तथा खर्ची का लेखा जोखा तैयार किया जाता है।
प्रशासनिक विचारधारा की आलोचनायें ( Criticisms of Administrative Theory):
प्रशासनिक विचारधारा के अनुयायियों ने ही सर्वप्रथम प्रशासन को एक प्रक्रिया के रूप में बताया। इस विचारधारा ने सभी संगठनों पर लागू होने वाले सामान्य नियमों का प्रतिपादन किया। ये नियम आज भी सार्थक हैं। परन्तु इसकी आलोचना निम्नलिखित बिन्दूओं पर हुई है:
1) यह विचारधारा प्रशासन के सिर्फ उच्च स्तरों पर ही ध्यान देती है।
(II) यह सिर्फ संगठन के औपचारिक स्वरुप की व्याख्या करती है
III) व्यवहारवादियों ने इसे यांत्रिक बताते हुये यह कहते हैं इसमें मानवीय पहलूओं को नकार दिया गया है। यह विचारधारा मानव रहित संगठन की कल्पना करता है।
IV) यह किसी संगठनात्मक व्यवहार की गत्यात्मकता की व्याख्या नहीं करता है।
V) यह पर्याप्त सत्यापन के बिना ही सर्वव्यापी नियमों पर बल देता है।
(VI) यह किसी संगठन को बंद व्यवस्था के समान समझता है।
VII) प्रशासकों का मार्गदर्शन करने के लिये को प्रशासन प्रक्रिया से संबंधित जो निश्चित कार्य बताये गये हैं वे अपर्याप्त हैं । यह सोचना भ्रम है कि बहु विविध उद्देश्यों वाले तथा जटिल संगठनों पर लागू करके एक अच्छा डिजाईन तैयार किया जा सकता है।
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