ताल छापर अभयारण्य के बारे में जानकारी | Tal Chaapar Wild Life Sanctuary
ताल छापर अभयारण्य के बारे में जानकारी
ताल छापर अभयारण्य महत्वपूर्ण तथ्य
- ताल छापर अभयारण्य भारतीय थार रेगिस्तान की सीमा पर स्थित है।
- ताल छापर भारत में देखे जाने वाले सबसे सुंदर एंटीलोप "द ब्लैकबक" का एक विशिष्ट आश्रय स्थल है।
- इसे वर्ष 1966 में अभयारण्य का दर्जा दिया गया था।
- ताल छापर बीकानेर के पूर्व शाही परिवार का एक शिकार अभ्यारण्य था।
- “ताल” शब्द राजस्थानी शब्द है जिसका अर्थ समतल भूमि होता है।
- इस अभयारण्य में लगभग समतल क्षेत्र और संयुक्त पतला निचला क्षेत्र है। इसमें फैले बबूल और प्रोसोपिस के पौधों के साथ खुले एवं चौड़े घास के मैदान हैं जो इसे एक विशिष्ट सवाना का रूप देते हैं।
ताल छापर अभयारण्य के पशु:
- कृष्णमृग या काले हिरण या ब्लैकबक देखने के लिये ताल छापर एक आदर्श स्थान है जो यहाँ एक हज़ार से अधिक संख्या में हैं। यह रेगिस्तानी जानवरों और सरीसृप प्रजातियों को देखने हेतु एक अच्छी जगह है।
- यह अभयारण्य लगभग 4,000 ब्लैकबक, रैप्टर्स की 40 से अधिक प्रजातियों और स्थानिक एवं प्रवासी पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियों का निवास स्थल है।
- अभयारण्य में प्रवासी पक्षियों में हैरियर, ईस्टर्न इम्पीरियल ईगल, टॉनी ईगल, शॉर्ट-टोड ईगल, गौरैया और छोटे-हरे मधुमक्खी खाने वाले, ब्लैक आईबिस और डेमोइसेल क्रेन शामिल हैं। इसके अलावा, स्काईलार्क्स, क्रेस्टेड लार्क्स, रिंग डव्स और ब्राउन डव्स पूरे साल देखे जा सकते हैं।
ताल छापर अभयारण्य के कृष्णमृग या काले
हिरण (Blackbuck) की जानकारी
- कृष्णमृग का वैज्ञानिक नाम ‘Antilope cervicapra’ है, जिसे ‘भारतीय मृग’ (Indian Antelope) के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत और नेपाल में मूल रूप से स्थानिक मृग की एक प्रजाति है।
- ये राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा और अन्य क्षेत्रों में (संपूर्ण प्रायद्वीपीय भारत में) व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
- ये घास के मैदानों में सर्वाधिक पाए जाते हैं अर्थात् इसे घास के मैदान का प्रतीक माना जाता है।
- इसे चीते के बाद दुनिया का दूसरा सबसे तेज़ दौड़ने वाला जानवर माना जाता है।
- कृष्णमृग एक दैनंदिनी मृग (Diurnal Antelope) है अर्थात् यह मुख्य रूप से दिन के समय ज़्यादातर सक्रिय रहता है।
- यह आंध्र प्रदेश, हरियाणा और पंजाब का राज्य पशु है।
- सांस्कृतिक महत्त्व: यह हिंदू धर्म के लिये पवित्रता का प्रतीक है क्योंकि इसकी त्वचा और सींग को पवित्र अंग माना जाता है। बौद्ध धर्म के लिये यह सौभाग्य (Good Luck) का प्रतीक है।
इको सेंसिटिव ज़ोन (ESZ) क्या होते हैं
ESZ पर्यावरण संरक्षण
अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु
परिवर्तन मंत्रालय (Climate
Change- CC) द्वारा अधिसूचित क्षेत्र हैं।
मूल उद्देश्य
राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित
करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों को शामिल करने वाले संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र
पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
जून, 2022 में सर्वोच्च
न्यायालय ने निर्देश दिया कि देश भर में प्रत्येक संरक्षित वन, राष्ट्रीय उद्यान
और वन्यजीव अभ्यारण्य में उनकी सीमांकित सीमाओं से शुरू करते हुए कम से कम एक
किलोमीटर का अनिवार्य पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) होना चाहिये।
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