समाचार पत्रों और पत्र पत्रिकाओं की कार्यशैली | Working style of newspapers and magazines
पत्र पत्रिकाओं के विभिन्न विभागों की कार्यशैली
चाहे समाचार पत्र हो अथवा पत्रिकाएं, उनके सफल प्रकाशन के लिए एक सम्पूर्ण टीम की आवश्यकता होती है। यह टीम पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन से जुड़े विभिन्न विभागों के कुशल कर्मियों से मिलकर बनती है। वर्तमान में टैक्नोलॉजी के निरन्तर विकास के कारण समाचार पत्र-पत्रिकाओं की कार्यशैली में भी बहुत सारे बदलाव हो गए हैं। कार्यशैली के लिहाज से समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के स्वरूप में कुछ अन्तर होते हैं।
1 समाचार पत्रों की कार्यशैली :
समाचार पत्रों में रोज का काम रोज निपटाना होता है, लेकिन किसी एक दिन के अखबार को तैयार करने के लिए उसकी योजना कई दिन पहले से बन जाती है। प्रतिद्वन्दिता के इस दौर में हर अखबार पर यह दबाव रहता है कि वह किसी भी खबर के मामले में प्रतिस्पर्धी समाचार पत्र से उन्नीस न रहे। इसके लिए योजना की आवश्यकता होती है। इसलिए आज के दौर में समाचार पत्रों में दैनिक मीटिंगों का जितना महत्व है, उतना ही महत्व अग्रिम बैठकों का भी होने लगा है। इन्हीं अग्रिम बैठकों में भावी रणनीति तय की जाती है।
किसी भी समाचार पत्र में सका सम्पादकीय विभाग सबसे प्रमुख होता है। सम्पादकीय विभाग ही समाचार पत्र का सार्वजनिक चेहरा होता है। चूंकि आजकल प्रायः सभी बड़े समाचार पत्र एक से अधिक स्थानों से छपते हैं इसलिए हर अखबार में सम्पादकीय जिम्मेदारी को दो भागों में बांटा जाता है।
• मुख्य संपादकीय कार्यालय और
• क्षेत्रीय अथवा स्थानीय संपादकीय कार्यालय
मुख्य संपादकीय कार्यालय ही अखबार का असल संपादकीय कार्यालय होता है। अखबार का संपूर्ण स्वरूप, भाषा-शैली, ले आउट आदि सब यहीं तय किये जाते हैं। मुख्य संपादकीय कार्यालय में अखबार का प्रधान संपादक इन सब जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है। मुख्य संपादक के अधीन सहायक संपादक, कायकारी संपादक आदि अनेक अन्य लोग होते हैं।
अखबार के संपादकीय पृष्ठ विशेष परिशिष्ट, फीचर पृष्ठ आदि प्रधान कार्यालय से ही बनाए जाते हैं। अनेक अखबारों में खेल के पृष्ठ और व्यापार वाणिज्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय खबरों के पृष्ठ भी इसी केन्द्रीयकृत व्यवस्था के तहत बनाए जाते हैं। मुख्य कार्यालय से ही यह पृष्ठ इण्टरनेट के जरिए अन्य स्थानों तक पहुँचा दिए जाते हैं। इस व्यवस्था का लाभ यह होता है कि इससे अखबार के स्वरूप में एकरूपता बनी रहती है और लागत भी काफी कम हो जाती है। कई समाचार पत्र तो एक राज्य के अलग-अलग शहरों से प्रकाशित अपने सभी शहरों के मुख्य पृष्ठ भी प्रधान कार्यालय से ही तैयार करते हैं, स्थानीय स्तर पर उसमें थोड़े बहुत बदलाव की ही अनुमति होती है।
क्षेत्रीय या स्थानीय संपादकीय कार्यालय नगर विशेष या क्षेत्र विशेष से प्रकाशित संस्करणों का काम देखते हैं। क्षेत्रीय संपादकीय संस्करणों में स्थानीय संपादक या उप स्थानीय संपादक सारे कार्य के प्रति उत्तरदायी होता है। वह मुख्य संपादकीय कार्यालय और अपने संस्करण के बीच तालमेल का काम भी देखता है और अपने संस्मरण में रोजाना के कामकाज के निर्देशन की जिम्मेदारी उसी पर होती है।
हर समाचार पत्र में रोज के अखबार के लिए कई बैठकें की होती हैं। सामान्यतः प्रत्येक दिन सुबह 10 से 12 बजे के बीच एक संपादकीय बैठक होती है, जिसमें संपादक या स्थानीय संपादक के साथ-साथ, समाचार सम्पादक, उप समाचार संपादक, मुख्य संवाददाता, मुख्य फोटोग्राफर, खेल व वाणिज्य पृष्ठों के प्रभारी, जिला व नगर डेस्क के प्रभारी आदि शामिल होते हैं।
इस बैठक में दिन के संस्करण के लिए अग्रिम रणनीति बनाई जाती है। बैठक में अंक के सम्पादकीय पर भी चर्चा की जाती है। यदि किसी समाचार के कवरेज के लिए टीम को जल्दी भेजना होता है तो उसकी व्यवस्था की जाती है। स्थानीय स्तर या जिलों से किसी विशेष विषय पर समाचार मंगवाने होते हैं तो उसकी भी योजना बनाई जाती है। सुबह -सुबह होने वाले कार्यक्रमों के लिए संवाददाताओं और छायाकारों को भेजने का इंतजाम भी इसी बैठक में किया जाता है।
समाचार पत्रों में संपादकीय विभाग की हर रोज सुबह सुबह होने वाली मीटिंग सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस मीटिंग में सुबह प्रकाशित हुए समाचार पत्र की समीक्षा होती है और यह देखा जाता है कि कहाँ-कहाँ चूक हुई । कमियों को पहचान कर उन्हें ठीक करने की व्यवस्था की जाती है। प्रतिस्पर्धी समाचार पत्रों से भी तुलना कर खूबियों खामियों की समीक्षा की जाती हैं । इसके बाद दिन के घटनाक्रम पर विचार विमर्श होता है। इसमें यह देखा जाता है कि किस खबर का क्या महत्व हो सकता है। दिन की खबरों के कवरेज और उनकी प्रस्तुति की योजनाएं भी इस बैठक में बनाई जाती हैं। इस बैठक में संपादक, समाचार संपादक मुख्य संवाददाता, फोटोग्राफर व अन्य संवाददाता मौजूद रहते हैं, कुछ अखबारों में संपादकीय विभाग में स्पेशल डेस्क या स्पेशल ब्यूरो भी होते हैं जो किसी बड़ी खबर की योजना बना कर उस पर काम करते हैं। इस ब्यूरो के लोग भी आवश्यकतानुसार सुबह की बैठक में शामिल रहते हैं। कभी-कभी इस बैठक से पहले या बाद में विज्ञापन विभाग अथवा प्रसार विभाग के लोग भी अपनी योजनाओं अथवा समस्याओं के बारे में संपादकीय विभाग के प्रमुख लोगों अथवा संपादक के साथ बैठकर विचार-विमर्श करते हैं। इसी तरह सुबह की बैठक के बाद संपादक को संपादकीय पृष्ठ अथवा फीचर आदि पृष्ठों के प्रभारियों के साथ भी बैठक करनी होती है। इन सब बैठकों का उद्देश्य अखबार की सामग्री का इंतजाम करना और उसके स्तर को अच्छा बनाना होता है।
शाम के समय पुनः बैठकों का दौर शुरू होता है। शाम की पहली बैठक में दिन भर की प्रमुख खबरों पर विचार-विमर्श होता है। जिलों व संवाददाताओं द्वारा आने वाली खबरों पर चर्चा होती है। यदि किसी महत्वपूर्ण खबर पर कोई विशेष सामग्री या फोटो आदि की जरूरत समझी जाती है तो उसके लिए आवश्यक निर्देश दिए जाते हैं। शाम की दूसरी बैठक में उपलब्ध खबरों के ट्रीटमेन्ट और ले-आऊट आदि के बारे में विचार विमर्श किया जाता है। इस बैठक में संपादक या समाचार संपादक और उप संपादक ग्राफिक डिजाइनर तथा पृष्ठ प्रभारी आदि संपादकीय सहकर्मी शामिल रहते हैं।
इसके बाद की बैठकों में प्रथम संस्करण या डाक संरक्षण की समीक्षा, नगर संस्करण ले आऊट आदि के बारे में चर्चा होती है। कभी कभी अचानक कोई बड़ी खबर आ जाने पर उसको किस तरह प्रस्तुत किया जाय इस पर भी चर्चा होती है। इस तरह आप समझ सकते हैं कि अखबार का काम एक दिन पहले से शुरू होकर देर रात अंतिम संस्करण के प्रकाशित होने तक चलता ही रहता है ।
संपादन और पृष्ठ सज्जा का काम डेस्क के संपादन कर्मियों उदाहरणार्थ उप संपादक, मुख्य उप संपादक, कापी डेस्क, पृष्ठ प्रभारियों और सेंटर डेस्क इंचार्ज आदि के जिम्मे होता है। कई समाचार पत्रों में जिलों में भी स्थानीय कार्यालय होते हैं, जहाँ से उस जिले के पेजों को पूरा बनाकर भेज दिया जाता है। जबकि कुछ अखबारों में जिलों से इंटरनेट के जरिए समाचार तैयार कर कार्यालय को भेज दिए जाते हैं और फिर जहाँ से अखबार का प्रकाशन होना है वहीं उस सामग्री से पृष्ठ तैयार किए जाते हैं। इस काम की जिम्मेदारी जिला डेस्क प्रभारी की होती है । सेंटर डेस्क इंचार्ज इसकी निगरानी करता है। संपादन का यह कार्य प्रायः दो बजे दिन से शुरू होता है और सायं 4 बजे से इसमें तेजी आ जाती है। प्रायः दस ग्यारह बजे रात तक अखबार को बड़ा काम पूरा हो जाता है। कहीं कहीं पहले संस्करण का प्रकाशन भी तब तक हो जाता है। इसके बाद खेल पृष्ठ, मुख पृष्ठ तथा संस्करण विशेष के पृष्ठों का काम ही बाकी रह जाता है जो हर संस्करण के हिसाब से होता रहता है। प्रमुख समाचार पत्रों में नगर संस्करण के संपादन का कार्य प्रातः ढाई-तीन बजे तक भी चलता रहता है। और अब तो अखबारों के इंटरनेट संस्करण आ जाने से इसके बाद भी एक दो संपादकीय कर्मी इंटरनेट संस्करण में खबरों को देने के लिए जुटे रहते हैं।
2 पत्रिकाओं की कार्यशैली :
पत्रिकाओं का प्रकाशन साप्ताहिक या उससे अधिक अवधि में एक बार होता है इसलिए पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग पर हर रोज काम का दबाव नहीं होता। इसलिए पत्रिकाओं की कार्यशैली भी समाचार पत्रों से कोई भिन्न होती है। पत्रिकाओं में उनकी प्रकाशन अवधि के अनुसार सप्ताह में एक बार, महीने में दो बार या इसी अनुसार मीटिंग हुआ करती हैं।
चूंकि पत्रिकाओं में घटना समाचार या विषय की विस्तृत समीक्षा होनी है, विस्तार से विषय का विवरण होता है, किसी एक घटना या समाचार के हर पहलू का उल्लेख होता है इसलिए पत्रिकाओं को समाचार पत्रों की तुलना में अधिक तैयारी करनी होती है। प्रायः पत्रिकाएं अपने आगामी अंकों की योजना पहले से ही बना लेती हैं। इस तरह की योजना बनाने के लिए संपादक और अन्य वरिष्ठ संपादकीय सहकर्मियों की बैठकें होती हैं। किसी एक विषय पर पत्रिका का खास अंक या कव स्टोरी या विशेष स्टोरी तैयार करने के लिए सभी संपादकीय सहकर्मी उस विषय पर अपने विचार प्रकार करते हैं, सभी की राय से विषय प्रस्तुतिकरण की योजना बनती है। एक बार अंक या विषय तय हो जाने पर सम्बन्धित संवाददाता या संपादकीय सहयोगी को निर्देश देकर उसके लिए तैयारी शुरू करने को कह दिया जाता है। तैयार खबर या आलेख प्राप्त हो जाने पर कापी डेस्क, या पृश्ठ प्रभारी उस खबर या आलेख प्राप्त हो जाने पर कापी डेस्क या पृष्ठ प्रभारी उस खबर या आलेख को संपादक या समाचार संपादक के सामने प्रस्तुत करते हैं जरूरत होने पर उसमें जरूरी सुधार या अन्य सामग्री जोड़ने आदि के बारे में फिर से खबर या आलेख तैयार करने वाले को निर्देशित किया जाता है। जब अंतिम रूप से संशोधित कॉपी प्राप्त हो जाती है तो उसे जरूरी चित्रों, ग्राफिक्स आदि के जरिए पेज का रूप दे दिया जाता है।
समाचार प्रधान पत्रिकाओं में संवाददाताओं को अगले अंकों के लिए अपने स्टोरी आइडिया अग्रिम भेजने होते हैं। संपादकीय टीम विचार-विमर्श करके उसमें से उपयोगी आइडिया पर काम करने का निर्देश देती है। कभी कभी अचानक बहुत कम समय में किसी घटना या विषय पर खबर या आलेख तैयार करने की चुनौती भी पत्रिकाओं के पत्रकारों को झेलनी पड़ती हैं। ऐसे में संपादकीय टीम की कल्पनाशक्ति और रचनाधर्मिता बड़े काम आती है। पत्रिकाओं की संपादकीय टीम को शीर्षक उपशीर्षक, ले-आउट चित्रों के चयन और ग्राफिक्स के प्रयोग में बहुत सावधानी और कुशलता से कार्य करना पड़ता है। इसीलिए ग्राफिक डिजाइनर या फोटोग्राफर का कार्य अखबारों की तुलना में पत्रिकाओं में अधिक महत्वपूर्ण होता है। पत्रिकाओं में फोटोग्राफर का कार्य अखबारों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है। पत्रिकाओं में फोटोग्राफरों को भी अनेक बार विशेष फोटो शूट के लिए जाना होता है।
इसी तरह पत्रिकाओं के लिए हर अंक में मुख्य पृष्ठ का निर्माण सबसे बड़ा कार्य होता है। किसी विषय पर आकर्षक शीर्षक, ध्यान आकृष्ट करने वाला चित्र या मुख्य पृष्ठ का रंग संयोजन सहज ही पाठक का ध्यान खींच सकता है। अतः अच्छा मुखपन्ना तैयार करना पत्रिका के संपादन विभाग की सबसे बड़ी चुनौती होती है और अनेक बार एक-एक मुख पृष्ठ तैयार करने में कई-कई घंटे की मशक्कत करनी पड़ती है। पत्रिकाएं अपने खास खास अंकों के लिए भी काफी पहले से योजनाएं बना लेती हैं। इस तरह के अंकों की योजना बनाने में संपादकीय टीम के साथ-साथ विज्ञापन और प्रसार से जुड़े लोग भी शामिल रहते हैं।
अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. समाचार पत्रों की अग्रिम मीटिंगों में क्या होता है?
प्रश्न 2. मुख्य संपादकीय कार्यालय में क्या कार्य होते हैं ?
प्रश्न 3. अखबार का संपादकीय पृष्ठ कहां तैयार होता है?
प्रश्न 4. स्थानीय संपादक का क्या काम होता है ?
प्रश्न 5. अखबार के दफ्तर में प्रातः कालीन बैठक क्यों होती हैं?
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