मालवा में दिलावर खाँ का शासन (1401-1406 ई.) | Malwa Ke Itihaas Aur Dilawar Khan
मालवा में दिलावर खाँ का शासन (1401-1406 ई.)
मालवा में दिलावर खाँ का शासन (1401-1406 ई.)
फरिश्ता लिखता है कि सुल्तान महमूद के जाते ही दिलावर खाँ ने अपने पुत्र अल्प खाँ के आग्रह पर सुल्तान आमिदशाह दाऊद दिलावर खाँ गोरी की पदवी धारण कर अपने आप को मालवा का स्वतंत्र सुल्तान घोषित कर दिया वूल्जलेहेग के अनुसार दिलावर खाँ ने कभी राजत्व धारण नहीं किया, उसने दिल्ली पर निर्भरता का कोई दिखावा भी नहीं किया, जिसका नाम मात्र का सुल्तान एक महत्वाकांक्षी वजीर के हाथों कैद था। दिलावर खाँ ने राजत्व और पट्टियाँ धारण कीं जैसे सफेद छत्र, लाल तम्बू सिक्को का ढालना और स्वयं के नाम पर खुतबा पढ़ा जाना आदि । गद्दी पर बैठते ही दिलावर खाँ ने अपने समर्थक मुसलमान और हिन्दू अधिकारियों को जागीरें प्रदान कर अभिजात वर्ग में शामिल कर लिया। उसने निमाड़ और पूर्व में पूरबिया राजपूतों को ऊँचे पद और जागीरें प्रदान कर उन्हें अपना सहयोगी बना लिया। कालान्तर में इन राजपूतों का मालवा की राजनीति और दरबार में अत्यधिक प्रभाव बढ़ गया था। दिलावर खाँ ने उत्तर में मालवा के द्वार चन्देरी पर भी अधिकार करने की कोशिश की परन्तु वह सफल नहीं हो सका। वहाँ के शासक ने दिलावर खाँ के प्रमुत्व को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उसने उत्तर की ओर से मालवा की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था कर ली थी।
दिलावर खाँ एक दूरदर्शी और सुलझा हुआ राजनीतिज्ञ था। वह मालवा के संभावित भीतरी और बाहरी खतरों को समझता था। इसलिये उसने अनेक कदम उठाये। उसने मालवा के शक्तिशाली खिलजी अमीर अलीशेख खुर्द से अपनी बहिन का विवाह कर इस जाति का समर्थन प्राप्त कर लिया। मालवा की बाह्य सुरक्षा के लिये दिलावर खाँ ने खानदेश और कालपी के शासकों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। उसने अपने पुत्र अल्प खाँ का विवाह खानदेश के शासक मलिक राजा फारुखी की पुत्री से किया और अपनी पुत्री का विवाह मलिक राजा के पुत्र और उत्तराधिकारी नासिर खाँ से कर दिया और दक्षिण-पश्चिमी मालवा की सीमाओं को सुरक्षित कर लिया। दिलावर खाँ ने कालपी के शासक नासिरुद्दीन मुहम्मद को सुलेमान-बिन- दाऊद के विद्रोह के समय सहायता देकर अपना हितैषी बना लिया। इस मित्रता को घनिष्ट करने के उद्देश्य से उसने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन मुहम्मद के पुत्र कादिरखाँ से कर दिया। इस प्रकार दिलावर खाँ ने कालपी को दिल्ली और जौनपुर के विरुद्ध अपना शक्तिशाली समर्थक बना लिया। इस सम्बन्ध ने सुल्तान होशंगशाह के समय दिल्ली और जौनपुर के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
पाँच वर्ष के अल्प शासनकाल के बाद दिलावर खाँ की एकाएक 1406 ई. में मृत्यु हो गई । फरिश्ता के अनुसार मालवा में ऐसी अफवाह प्रचलित थी कि दिलावर खाँ की मृत्यु उसके पुत्र अल्प खाँ द्वारा जहर दिये जाने के कारण हुई। वह आगे लिखता है कि इस बात का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है, यह एक शंका का विषय है।
सुल्तान के रूप में उसकी उदार नीति के फलस्वरूप उसने सभी वर्गों का सहयोग प्राप्त कर लिया था। अपने समकालीन शासकों के विपरीत उसकी धार्मिक नीति उदार थी। सूझबूझ, विवेकशील राजनीतिज्ञता के फलस्वरूप उसने मालवा को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखा। उसने मालवा की भूमि पर युद्ध नहीं होने दिये । परिणामस्वरूप मालवा को स्थायित्व और शान्ति मिली। राज्य की आर्थिक उन्नति हुई ।
दिलावर खाँ कला प्रेमी भी था। वह मालवा में मध्य युगीन मुस्लिम स्थापत्यकला का संस्थापक था। उसने धार और माण्डू में दो मस्जिदों का निर्माण करवाया जिनमें स्थानीय और मुस्लिम शैली का समन्वय है। उसके शासन काल में उसके पुत्र अल्प खाँ ने 'शादियाबाद' माण्डू दुर्ग की जो मध्ययुग में एक शानदार और सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया।
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