मालवा में होशंगशाह गोरी (1406 ई. से 1435 ई.) | होशंगशाह का गुजरात पर आक्रमण | Hoshangshaah Aur Malwa ka Itihas
मालवा में होशंगशाह गोरी (1406 ई. से 1435 ई.) , होशंगशाह का गुजरात पर आक्रमण
मालवा में होशंगशाह गोरी (1406 ई. से 1435 ई.)
दिलावर खाँ गोरी का बड़ा पुत्र अल्प खाँ "अस सुल्तान उल आजम - हुसाम-उद-दुनिया वदीन अंबुल मुजाहिद होशंगशाह अस सुल्तान" की पद्वी धारण कर 1406 ई. (806 हि.) में गद्दी पर बैठा ।
होशंगशाह का राज्यारोहण बहुत ही शान्तिपूर्वक हुआ। सभी अमीरों ने उसका अभिनन्दन कर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। होशंगशाह ने माण्डू को अपनी राजधानी बनाया ।
होशंगशाह के सुल्तान बनते ही गुजरात के शासक मुजफ्फर शाह ने 1407 ई. में धार पर आक्रमण किया। आक्रमण के कारणों और उद्देश्य के सम्बन्ध में समकालीन और बाद के इतिहासकार एकमत नहीं हैं। निजामुद्दीन अहमद और फरिश्ता दोनों लिखते है कि गुजरात के शासक ने होशंगशाह को दण्ड देने के लिये आक्रमण किया था क्योंकि उसने अपने पिता को विष देकर मारा था। गुजरात का शासक दिलावर खाँ का अभिन्न मित्र था और दोनों में भ्रातृभाव था। मालवा का इतिहासकार शीहाब हाकिम लिखता है कि गुजरात का शासक मालवा का पुराना बैरी था और होशंगशाह के पूर्ण रूप से व्यवस्थित होने के पूर्व मालवा पर अधिकार कर उसे गुजरात में मिलना चाहता था।
गुजरात के आक्रमण का समाचार मिलते ही होशंगशाह शीघ्रता से सेना के साथ धार आ गया। दोनों सेनाओं में युद्ध धार नगर के सामने वाले मैदान पर हुआ। युद्ध भीषण था । दोनों सेनाएँ अन्त तक वीरता से लड़ती रहीं। मुजफ्फरशाह घायल हो गया और होशंगशाह घोड़े से नीचे गिर गया। होशंगशाह की पराजय हुई, और उसने धार के किले में शरण ली। मुजफ्फर शाह को विश्वास हो गया था कि वह धार के किले को नहीं जीत सकता है। इसलिए उसने शान्तिवार्ता के लिये होशंगशाह को निमंत्रण दिया। होशंगशाह ने प्रस्ताव पर अपने दरबारियों से विचार विमर्श किया। दरैबारी वार्ता के पक्ष में नहीं थे। वे इसे गुजरात के शासक की एक चाल और धोखा मानते थे। युवा होशंगशाह ने दरबारियों के परामर्श को नहीं माना और वार्ता के लिए गुजराती शिविर में चला गया। वार्ता चलती रही लेकिन एक रात मुजफ्फर शाह ने धोखे से होशंगशाह को कैद कर उसे गुजरात भेज दिया।
मुजफ्फर शाह अपने भाई नुसरत खाँ को मालवा का शासक नियुक्त कर गुजरात लौट गया । नुसरत खाँ का शासन मालवा पर कठोर और अमानवीय था। इस कारण मालवा में सभी ओर असन्तोष और विद्रोह फैल गया। अमीरों और अधिकारियों ने धार के निकट युद्ध में नुसरत खाँ को पराजित कर दिया, वह विवश होकर गुजरात भाग गया। अमीरों और अधिकारियों ने होशंगशाह के चचेरे भाई मूसा खाँ को अपना नेता स्वीकार कर लिया। मूसा खाँ ने शीघ्र ही धार और पूरे मालवा में शान्ति और व्यवस्था कायम की।
मुजफ्फर शाह जानता था कि वह मालवा में अमीरों के विरोध के कारण सफल नहीं हो पायेगा इसलिए उसने अपने अमीरों से परामर्श कर और होशंगशाह की प्रार्थना पर विचार कर अपने पोते राजकुमार अहमद को सेना के साथ 1408 ई. में होशंगशाह को मालवा में पुनः प्रतिष्ठित करने भेजा ।
होशंगशाह के धार आते ही उसके विश्वास पात्र अमीर और अधिकारी उससे मिल गये। मालवा की जनता होशंगशाह को बहुत चाहती थी। उन्होंने उसे सहायता का पूरा वचन दिया। उसने मालवा के दक्षिणी भागों पर अधिकार कर महेश्वर को अपना केन्द्र बनाया। इसी बीच मलिक मुगीथ ने, जो होशंगशाह की बुआ का पुत्र था, होशंगशाह का साथ दिया। वह माण्डू के किले से निकल कर एक अन्य अमीर मियाँ आखा के साथ होशंगशाह से जा मिला। मूसा खाँ को जब इन अमीरों का होशंगशाह के पक्ष में जाने का पता चला तो वह बहुत हताश और निराश हो गया। उसने माण्डू दुर्ग खाली कर दिया। मूसा खाँ को निमाड़ क्षेत्र में जागीर प्रदान कर दी गई। मलिक मुगीथ को होशंगशाह ने मलिक-उस-शर्क की पदवी प्रदान की और उसे मालवा का वजीर नियुक्त किया। इसी मलिक मुगीथ और इसके पुत्र महमूद ने मालवा के इतिहास महत्व योगदान दिया ।
होशंगशाह, मलिक मुगीथ और अधिकारियों की मदद से मालवा के प्रशासन को व्यवस्थित करने में लग गया, परन्तु अभी उसकी स्थिति डावाँडोल थी । होशंगशाह और मालवा के लोगों का सबसे कट्टर शत्रु गुजरात था । यद्यपि होशंगशाह गुजरात की कृतज्ञता के बोझ से दबा था, किन्तु वह अपने अपमान को नहीं भूला था। वह गुजरात से पुराना हिसाब बराबर करना चाहता था ।
होशंगशाह का गुजरात पर आक्रमण
गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह की मृत्यु 27 जुलाई 1411 ई. में हो गई। मृत सुल्तान का पोता अहमद शाह गद्दी पर बैठा। अहमद शाह का उसके चाचाओं फीरोज खाँ और हेबत खाँ ने विरोध कर विद्रोह कर दिया। गुजरात के अनेक असन्तुष्ट अमीरों ने भी दोनों का समर्थन किया। फीरोज खाँ को भड़ोंच में स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया गया। इस अवसर का लाभ होशंगशाह उसी प्रकार उठाना चाहता था जैसा कि सुल्तान दिलावर खाँ की मृत्यु के समय उत्पन्न परिस्थिति का लाभ मुजफ्फरशाह ने उठाया था ।
फीरोज खाँ ने होशंगशाह को सहायता के लिए पत्र लिखा और निवेदन किया कि वह तुरन्त गुजरात पहुँचे। फीरोज खाँ ने सेना के खर्च के लिये प्रत्येक पड़ाव के लिए एक लाख टंका भी देना स्वीकार किया। होशंगशाह फीरोज खाँ का निमंत्रण स्वीकार कर तुरन्त सेना के साथ गुजरात की ओर चल दिया। उसे विश्वास था कि सुल्तान अहमदशाह आन्तरिक विद्रोहों को दबाने में व्यस्त है और इस अवसर का लाभ उसे गुजरात के कुछ भागों पर अधिकार करने में प्राप्त हो जाऐगा। लेकिन युवा गुजराती सुल्तान कहीं अधिक फुर्तीला और दूरदर्शी था। उसने तत्काल विद्रोहों का दमन कर दिया। उसने अपने चाचाओं और विद्रोहियों को आश्वासन दिया कि यदि वे विद्रोह का मार्ग छोड़ दें तो उन्हें क्षमा कर दिया जावेगा। परिणामस्वरूप सफलता की आशा क्षीण समझ फीरोज खाँ ने आत्मसमर्पण कर दिया। अहमदशाह ने फीरोज खाँ और विद्रोहियों को क्षमा कर उनकी जागीरें पुनः प्रदान कर दीं।
गुजरात के विद्रोह की समाप्ति और वहाँ सहायता की कोई संभावना नहीं होने से होशंगशाह निराश हो गया और उसने मालवा लौटने का विचार किया। लौटते समय उसने पूर्वी गुजरात के एक बड़े क्षेत्र को उजाड़ डाला। अहमदशाह ने एमादुल्मुल्क को होशंगशाह के विरुद्ध भेजा, जिसने होशंगशाह का पीछा मालवा की सीमा तक किया। लौटते समय उसने उन जमींदारों को दण्ड देने के लिये बन्दी बना कर सुल्तान अहमदशाह के सामने पेश किया जिन्होंने होशंगशाह का साथ दिया था।
प्रथम आक्रमण की असफलता के बाद होशंगशाह ने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि जब भी उसे अवसर मिलेगा तो वह गुजरात पर आक्रमण करेगा। 1413-14 ई. में गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने झालावाड़ के राज्य पर आक्रमण किया। झालावाड़ के शासक ने होशंगशाह से सहायता की प्रार्थना की। होशंगशाह के लिये यह बहुत उपयुक्त अवसर था। होशंगशाह ने अहमदशाह को व्यस्त जानकर तुरन्त गुजरात के पूर्वी भागों पर आक्रमण कर दिया। उसने इस क्षेत्र को लूटना और उजाड़ना शुरू कर दिया। उसे आशा थी कि झालावाड़ का शासक और अन्य असन्तुष्ट अमीर उसकी सहायता करेंगे। सुल्तान अहमदशाह ने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित कर एक सेना को कच्छ के विद्रोह के दमन के लिये भेजा। दूसरी सेना को उसने इमादुल्मुल्क के नेतृत्व होशंगशाह के विरुद्ध भेजा। गुजराती सेना के आगमन का समाचार पाकर वह तेजी से मालवा लौट आया। इस प्रकार गुजरात का द्वितीय अभियान भी असफल रहा।
होशंगशाह के दोनों गुजरात अभियान असफल और निष्फल ही रहे और उसकी प्रतिष्ठा धूमिल होने लगी। उसने पुनः गुजरात के सम्बन्ध में अपनी नीति की समीक्षा कर भविष्य की नीति निर्धारित की।
गुजरात पर तृतीय आक्रमण का अवसर उसे सुल्तान अहमदशाह गुजराती की कठोर धर्माध धार्मिक नीति ने प्रदान किया। सुल्तान अहमदशाह ने सम्पूर्ण गुजरात में मन्दिरों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया। उसने मावास और गिरास नामक सामन्तों को भी समाप्त करना प्रारंभ कर दिया। उसकी धार्मिक नीति से त्रस्त होकर ईडर के शासक पूजा, चम्पानेर के राजा त्रिम्बकदास झालावाड़ के राजा छत्रसाल और नान्दोत के राजा सीरा ने एक साथ होशंगशाह से सहायता की प्रार्थना की। इन शासकों पूर्व में सहायता न कर पाने के लिये क्षमा माँगी और निवेदन किया कि इस बार हम सहायता करने में कोई कसर नहीं रखेंगे। आपकी सेना को हमारे मार्गदर्शक ऐसे मार्गों से लाऐंगे कि सुल्तान अहमदशाह को खबर भी न होगी।
सुल्तान होशंगशाह में गुजरात की दक्षिणी-पश्चिमी सीमा पर अव्यवस्था उत्पन्न करने हेतु अपने पुत्र गजनी खाँ को पन्द्रह हजार घुड़सवारों के साथ खानदेश के सुल्तान नासिर खां की सहायता के लिये भेज दिया ताकि गुजरात के सुल्तान का ध्यान व शक्ति विभाजित हो जाए। इसी बीच खानदेश के सुल्तान ने अपने छोटे भाई इफ्तिकार खाँ को थालनेर के किले से निकाल दिया। इफ्तिकार खाँ ने गुजरात के शासक से सहायता की प्रार्थना की। नासिर खाँ और गजनी खाँ ने गुजरात के जिले सुल्तानपुर पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में ले लिया। सुल्तानपुर के पतन का समाचार पाकर अहमदशाह तुरन्त खानदेश की ओर बढ़ा। गुजरात के सुल्तान के आगमन का समाचार सुनकर अहमदशाह तुरन्त खानदेश की ओर बढ़ा। इससे गजनी खाँ भयभीत हो गया और नासिरखां को उसके भाग्य पर छोड़कर मालवा भाग आया। गजनी खाँ के इस पलायन से खानदेश और मालवा के सम्बन्धों में दरार पड़ गई जो लम्बे समय तक रही कुछ समय के लिए खानदेश गुजरात के प्रभाव में चला गया।
जैसे ही अहमदशाह खानदेश की ओर अग्रसर हुआ। होशंगशाह निर्धारित योजनानुसार विशाल सेना के साथ 1418-19 ई. में मेहसाना के रास्ते गुजरात में प्रवेश कर गया। उसने गुजरात के सुल्तान के चाचा शम्स खाँ को अपनी ओर मिलाने का प्रयत्न किया परन्तु वह सफल न हो सका। शम्स खाँ ने अपने भतीजे की इस उलझनपूर्ण और दयनीय स्थिति का लाभ न उठाते हुए एक तेज सन्देशवाहक के द्वारा उत्तरी गुजरात में निर्मित स्थिति से अवगत करवाया। होशंगशाह उत्तरी गुजरात के मध्य में पहुँच गया, वहाँ उसके समर्थक राजा उससे आ मिले। अहमदशाह भी वर्षाऋतु में नर्मदा और अन्य नदियों में आई बाढ़ की परवाह किये बिना द्रुत गति से एकाएक मेहसाना के पास पहुँच गया।
होशंगशाह को गुजरात के सुल्तान का मेहसाना के निकट एकाएक आने की सूचना मिली तो वह स्तम्भित रह गया, क्योंकि उसे विश्वास था कि अहमदशाह के आगमन के पूर्व ही वह उत्तरी गुजरात पर अधिकार कर लेगा। उसने गुजरात के राजाओं को बुलाकर उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया कि उन्होंने गुजरात के सुल्तान के आगमन की खबर को छुपाकर रखा। होशंगशाह राजाओं को उनके भाग्य पर छोड़कर मालवा लौट आया। गुजरात के राजाओं ने अहमदशाह से क्षमा माँग ली। सुल्तान ने उन्हें क्षमा कर दिया क्योंकि वह होशंगशाह को उसके कृत्यों का दण्ड देना चाहता था । उसने उसी वर्ष मालवा पर आक्रमण करने की योजना बनाई ।
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