महमूद खिलजी द्वितीय की मालवा में पुनः प्रतिष्ठा ( 1518 ई.) | Mahmud Khilji 2nd and Malwa History

महमूद खिलजी द्वितीय की मालवा में पुनः प्रतिष्ठा ( 1518 ई.)

महमूद खिलजी द्वितीय की मालवा में पुनः प्रतिष्ठा ( 1518 ई.) | Mahmud Khilji 2nd and Malwa History
 

महमूद खिलजी द्वितीय की मालवा में पुनः प्रतिष्ठा ( 1518 ई.)

हाजी - उद्-दबीर के अनुसार महमूद खिलजी के गुजरात भाग जाने के बाद भी मेदिनीराय ने राज्य के कार्यों के प्रति कोई असम्मान व्यक्त नहीं किया। वह प्रतिदिन दरबार में जाता थाउसने हरम की महिलाओं से निवेदन किया कि वे सुल्तान को पत्र लिखेकि वे वापस मालवा आ जायें और उसे अपना वही पुराना स्वामिभक्त अनुचर समझें। गुजरात के सुल्तानों की मालवा के प्रति दुर्भावना सुल्तान होशंगशाह के समय से चली आ रही थीउनका सदैव यह स्वप्न रहा कि मालवा पर अधिकार करें। सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय इस संभावित विपत्ति को जानते हुए भी मालवा की स्वतंत्रता की अनदेखी कर गुजरात के सुल्तान की शरण में चला गया। गुजराती सुल्तान मुजफ्फर शाह द्वितीय का उद्देश्य और महत्वाकांक्षामहमूद खिलजी को मालवा की गद्दी पर पुनः स्थापित कर मालवा को अपना संरक्षित राज्य बनाना था।

 

गुजराती सेना के साथ दोनों सुल्तानों के नेतृत्व में मालवा पर आक्रमण किया गया और माण्डू को घेर लिया गया। मेदिनीराय यह समझ गया कि वह अकेले दोनों सुल्तानों का सामना न कर पाएगाइसलिये वह अपने भाई सिलहदी के साथ सहायता प्राप्त करने के लिये चित्तौड़ राणा साँगा के पास गया। मालवा की सुरक्षा का उत्तरदायित्व उसने अपने पुत्र पृथ्वीराज को सौंपा और कहा कि माण्डू की रक्षा उनके लौटने तक करे पृथ्वीराज ने माण्डू की सुरक्षा अन्तिम समय तक की। किन्तु अंत में माण्डू का पतन राणा सांगा और मेदिनीराय के आने के पूर्व ही हो गया। पृथ्वीराज मारा गया। बड़ी संख्या में हिन्दुओं का संहार कर दिया गया। मुजफ्फ़शाह ने महमूद खिलजी को पुनः गद्दी पर बैठा दिया । उसने आसफ खाँ के नेतृत्व में गुजराती सेना को माण्डू में रखा ताकि सुल्तान महमूद खिलजी की सहायता और निगरानी की जा सके। इस प्रकार मालवा पर अपना प्रभाव स्थापित कर वह गुजरात लौट गया।

 

यद्यपि महमूद ने मालवा की राजधानी को प्राप्त कर लिया थापरंतु मालवा के अधिकांश भागों पर मेदिनीराय के सम्बन्धियों और समर्थकों का अधिकार था। इनमें प्रमुख रूप से चन्देरीगागरोनसारंगपुरभेलसारायसेन आदि थे।

 

महमूद खिलजी इन स्थानों पर पुनः अधिकार करना चाहता था। इसलिये उसने सर्वप्रथम गागरौन पर आक्रमण कर दिया। गागरोन मेदिनीराय के पुत्र हेमकरण के अधिकार में थाजहाँ उसका परिवार स्त्रियाँ और बच्चे थे। महमूद खिलजी ने जब गागरोन के किले को घेर रखा थाउसी समय मेदिनीराय और राणा साँगा सेना के साथ सहायता के लिये पहुँच गये। राणा साँगा और मेदिनीराय की सेना ने अपनी सेनाओं को बिना विश्राम दिये एकाएक रात्रि में शत्रु पर आक्रमण कर दिया। अचानक हुए इस आक्रमण में मालवा की सेना बुरी तरह नष्ट हो गई। महमूद घायल हो गया। उसे कैद कर चित्तौड़ ले जाया गया। राजपूत इतिहासकारों के अनुसार सुल्तान को सम्मानपूर्वक कैद में रखा गया और उसका इलाज उसके घाव भरने तक करवाया गया। और सुल्तान के स्वस्थ होने पर उसे वापस मालवा भेज दिया गया ।

 

सुल्तान महमूद इतना कृतघ्न निकला कि उसने राणा की इस उदारता को भूल कर अपनी खोई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिये राणा के उत्तराधिकारी रतनसिंह पर आक्रमण कर चित्तौड़ को घेर लिया। राणा ने वीरतापूर्वक महमूद का सामना किया और उसे मालवा लौटने को विवश किया।

 

इसी बीच गुजरात में मुजफ्फर द्वितीय की मृत्यु हो गई। बहादुरशाह 2 जुलाई 1526 ई. में गुजरात का सुल्तान बना। महमूद खिलजी ने बहादुरशाह के भाई चाँद खां को गुजरात की गद्दी पर बैठाने में समर्थन देने का आश्वासन दिया। महमूद के इस कार्य से बहादुरशाह नाराज हो गया। उसने 28 मार्च 1531 ई. में मालवा पर आक्रमण कर माण्डू पर अधिकार कर लिया। 31 मार्च 1531 को बहादुरशाह ने माण्डू में खुतबा अपने नाम पर पढ़वाया और मालवा पर गुजरात का अधिकार हो गया। हमूद और उसके सात पुत्रों को जंजीरों में जकड़कर कैदियों के रूप में चम्पानेर के किले में रखने के लिये भेज दिया गया। मार्ग में महमूद ने भागने का प्रयत्न कियापरंतु उसे पकड़ लिया गया और रक्षकों ने उसे मौत के घाट उतार दिया।

 

इस प्रकार मालवा की स्वतंत्र सल्तनत का अंत हुआजिसकी स्थापना दिलावर खाँ गोरी ने की और होशंगशाह गोरी ने जिसे सींच कर खड़ा कियाजो महमूद खिलजी के समय भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था।

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