मालवा पर मुगल अधिपत्य (1561-62 ई.) | Mughal Empire Malwa

मालवा पर मुगल अधिपत्य (1561-62 ई.)

मालवा पर मुगल अधिपत्य (1561-62 ई.) | Mughal Empire Malwa

 

मालवा पर मुगल अधिपत्य (1561-62 ई.)

सम्राट ने आधमखाँ के नेतृत्व में 12 मार्च 1561 ई. में मालवा की विजय के लिए सेना भेज दी। इस सेना में कई प्रसिद्ध मुगल सेनापति थेजिनमें पीर खाँअब्दुल्ला खाँ आदि प्रमुख थे। बाजबहादुर को जब आक्रमण की जानकारी मिली तो उसने सारंगपुर से लगभग सात मील दूर खाईयाँ खोद कर सुरक्षा की व्यवस्था की। एक रात मुगलों ने एकाएक आक्रमण कर दिया। 

बाजबहादुर पराजित होकर खानदेश की ओर भाग गया। आधम खाँ ने सारंगपुर में भीषण अत्याचार कर हजारों की संख्या में पुरूषस्त्रियों और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। उसने बाजबहादुर का हरम लूट लिया। यही नहीं अनेक सुन्दर स्त्रियों को बलपूर्वक अपने अधिकार में कर लिया। वह रूपमती को पाना चाहता थापरन्तु रूपमती ने विषपान कर अपने सम्मान की रक्षा की अकबर को जब आधम खाँ के इन कृत्यों और अत्याचारों का पता चला तो वह स्वयं आगरा से सारंगपुर आधम खाँ को दण्ड देने पहुँच गया। उसने आधम खाँ को उसके द्वारा क्षमा माँगने पर उसे दण्डित नहीं किया और आधम खाँ के स्थान पर पीर मोहम्मद को मालवा भेजा। 

पीर मोहम्मद ने भी मालवा की जनता पर अत्याचार करने में कोई कसर नहीं की और जब वह बाज बहादुर का पीछा कर लौट रहा थातो एक नाव दुर्घटना में नर्मदा नदी में डूब कर मर गया। इसी बीच बाजबहादुर ने खानदेश से निकलकर मालवा के कई क्षेत्रों पर पुनः अधिकार कर लिया था। अकबर अब्दुल्ला खाँ उजबेग को मालवा भेजा। जब बाजबहादुर को अब्दुल्ला खाँ के सेना के साथ मालवा में आगमन की सूचना मिलीतो वह हतोत्साहित होकर मालवा से पलायन कर गया। 

मुगल सेना ने उसका पीछा किया इधर उधर भागने के बाद उसने मेवाड़ में राणा उदयसिंह के यहाँ शरण ली। 1562 ई. के अन्त में मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला कर एक सूबा बना दिया गया। बाजबहादुर ने अन्त में अकबर की आधीनता स्वीकार कर लीइस कारण उसे प्रारंभ में एक हजार का मनसब प्रदान किया गया। बाजबहादुर भारतीय शास्त्रीय संगीत में बेजोड़ कुशलता रखता था इस कारण बाद में उसका मनसब बढ़ाकर दो हजार का कर दिया गया. 

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