उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण : छात्र नामांकन में 7.5% की वृद्धि |All India Survey on Higher Education- AISHE) 2020-2021

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण 

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण : छात्र नामांकन में 7.5% की वृद्धि  |All India Survey on Higher Education- AISHE) 2020-2021



उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (All India Survey on Higher Education- AISHE) 2020-2021 के आँकड़े जारी किये हैं जिसमें वर्ष 2019-20 की तुलना में देश भर में छात्र नामांकन में 7.5% की वृद्धि देखी गई।

 

इस सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि वर्ष 2020-21 में, यानी जिस वर्ष कोविड-19 महामारी शुरू हुई थी, दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में नामांकन में 7% की वृद्धि देखी गई थी।


All India Survey on Higher Education- AISHE) 2020-2021

देश में उच्च शिक्षा की स्थिति को प्रस्तुत करने के लिये शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2010-11 से एक वार्षिक वेब-आधारित AISHE आयोजित करने का लक्ष्य रखा है।

इसके तहत शिक्षक, छात्र नामांकन, विभिन्न कार्यक्रम, परीक्षा परिणाम, शिक्षा संबंधी वित्त, बुनियादी ढाँचे जैसे कई मापदंडों पर डेटा एकत्रित किया जा रहा है।

शैक्षिक विकास के विभिन्न संकेतक जैसे- संस्थान घनत्त्व, सकल नामांकन अनुपात, छात्र-शिक्षक अनुपात, लैंगिक समानता सूचकांक, प्रति छात्र व्यय की गणना भी AISHE के माध्यम से एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर की जाएगी।

यह शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिये सूचित नीतिगत निर्णय लेने और अनुसंधान करने में काफी उपयोगी होगा।


उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण प्रमुख बिंदु: 

छात्र नामांकन: 

सभी नामांकनों (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) के लिये सकल नामांकन अनुपात (GER) 2 अंक बढ़कर 27.3 हो गया।

उच्चतम नामांकन स्नातक स्तर पर देखा गया, जो कुल नामांकन का 78.9% था।

उच्च शिक्षा कार्यक्रमों में महिला नामांकन, जो कि वर्ष 2019-20 में 45% था, यह वर्ष 2020-21 में कुल नामांकन का 49% हो गया।

परंतु विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में नामांकन (उच्च शिक्षा के सभी स्तरों पर) के समग्र आँकड़े बताते हैं कि महिलाएँ पुरुषों से पीछे हैं, जिनका इन क्षेत्रों में  56% से अधिक नामांकन हुआ है।

लैंगिक समानता सूचकांक (GPI), महिला GER और पुरुष GER अनुपात वर्ष 2017-18 के 1 से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 1.05 हो गया है।

दिव्यांग जन श्रेणी में छात्रों की संख्या वर्ष 2019-20 के 92,831 से घटकर वर्ष 2020-21 में 79,035 हो गई।

उच्च शिक्षा के लिये नामांकन करने वाले मुस्लिम छात्रों का अनुपात वर्ष 2019-20 में 5.5% से गिरकर 2020-21 में 4.6% हो गया।

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान नामांकित छात्रों की संख्या के मामले में शीर्ष 6 राज्य हैं।

विश्वविद्यालय और कॉलेज: वर्ष 2020-21 के दौरान विश्वविद्यालयों की संख्या में 70 की वृद्धि हुई है और कॉलेजों की संख्या में 1,453 की वृद्धि हुई है।

वर्ष 2020-21 में 21.4% सरकारी कॉलेजों में कुल नामांकन का 34.5% हिस्सा था, जबकि शेष 65.5% निजी सहायता प्राप्त और निजी गैर-सहायता प्राप्त कॉलेजों में देखा गया था।

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और गुजरात कॉलेजों की संख्या के मामले में शीर्ष 8 राज्य हैं।

संकाय/फैकल्टी: प्रति 100 पुरुष फैकल्टी पर महिला फैकल्टी का आँकड़ा वर्ष 2014-15 में 63 और 2019-20 में 74 से वर्ष 2020-21 में 75 हो गया है।


उच्च शिक्षा प्रणाली से संबंधित वर्तमान प्रमुख मुद्दे: 

फैकल्टी की कमी: AISHE 2020-21 के अनुसार, छात्र-शिक्षक अनुपात सभी विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्टैंडअलोन संस्थानों के लिये 27:1 था और नियमित मोड संस्थानों में छात्र-शिक्षक अनुपात 24:1 के संदर्भ में पर विचार किया जाए तो शिक्षा की गुणवत्ता चिंता का विषय बनी हुई है।

अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: भारत में उच्च शिक्षा के लिये खराब बुनियादी ढाँचा एक और चुनौती है।

बजट घाटे, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थ समूह द्वारा पैरवी के कारण भारत में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में आवश्यक बुनियादी ढाँचे की कमी है।

विनियामक मुद्दे: भारतीय उच्च शिक्षा का प्रबंधन जवाबदेही, पारदर्शिता और व्यावसायिकता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। 

संबद्ध कॉलेजों और छात्रों की संख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप, विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक कार्यों का दबाव काफी बढ़ गया है जिससे शिक्षा तथा अनुसंधान पर ध्यान देना कठिन हो रहा है।

ब्रेन ड्रेन की समस्या: IIT और IIM जैसे शीर्ष संस्थानों में प्रवेश पाने के लिये गलाकाट प्रतियोगिता के कारण भारत में बड़ी संख्या में छात्रों हेतु एक चुनौतीपूर्ण शैक्षणिक माहौल बना हुआ है, इसलिये वे विदेश जाना पसंद करते हैं, जिसके कारण हमारा देश अच्छी प्रतिभाओं से वंचित हो जाता है।

भारत में शिक्षा का मात्रात्मक विस्तार ज़रूर हुआ है लेकिन गुणात्मक पक्ष (एक छात्र को नौकरी पाने के लिये आवश्यक) पिछड़ता जा रहा है।


भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में सुधार:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का कार्यान्वयन: 

NEP के कार्यान्वयन से शिक्षा प्रणाली में सुधार हेतु मदद मिल सकती है।

नई शिक्षा नीति में वर्तमान में सक्रिय 10+2 के शैक्षिक मॉडल के स्थान पर शैक्षिक पाठ्यक्रम को 5+3+3+4 प्रणाली के आधार पर विभाजित करने की बात कही गई है। 

शिक्षा-रोज़गार गलियारा: 

भारत के शैक्षिक ढाँचे को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा से एकीकृत कर और स्कूल में (विशेष रूप से सरकारी स्कूलों में) सही मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि छात्रों को शुरू से ही सही दिशा में निर्देशित किया जा सके और वे कॅरियर के अवसरों के बारे में जागरूक हो सकें।

अतीत से भविष्य की ओर ध्यान देना: 

लंबे समय से स्थापित हमारी अतीत को ध्यान में रखते हुए भविष्य पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

शिक्षा का प्राचीन मूल्यांकन विषयगत ज्ञान की ग्रेडिंग तक ही सीमित नहीं था। इसमें छात्रों द्वारा सीखे गए कौशल ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता था कि वे वास्तविक जीवन स्थितियों में व्यावहारिक ज्ञान को कितनी अच्छी तरह लागू कर सकते हैं।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी मूल्यांकन की समान प्रणाली विकसित कर सकती है।

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