अहमदशाह का मालवा पर आक्रमण | Ahmad Shah Ka Malwa Par Aakraman

अहमदशाह का मालवा पर आक्रमण

अहमदशाह का मालवा पर आक्रमण | Ahmad Shah Ka Malwa Par Aakraman


 

अहमदशाह का मालवा पर आक्रमण

निजामुद्दीन अहमद लिखता है कि फरवरी-मार्च 1418 ई. को गुजरात का सुल्तान मेहसाना से होशंगशाह को दण्डित करने के लिए मालवा को रवाना हुआ।  इस बार मालवा में अहमदशाह का लक्ष्य मालवा की राजधानी न होकर धार्मिक नगर उज्जैन था। उसने उज्जैन के निकट कालियादह तालाब के किनारे पड़ाव डाला और सेना की सुरक्षा के लिए मिट्टी की दीवारें बनवा दीं। होशंगशाह ने भी कटीली झाड़ियों की बाड़ (घेरा) बनवा कर अपनी सेना की मोर्चाबन्दी कर ली । युद्ध प्रारंभ हो. गया। होशंगशाह की सेना छिन्न-भिन्न होकर भागने लगी। सुलतान पराजित होकर माण्डू के किले की ओर शरण लेने के लिए भागा और किले में शरण ले ली। गुजराती सेना ने होशंगशाह का पीछा माण्डू तक किया और मालवा के कुछ हाथियों और सैनिकों को अपने अधिकार में ले लिया। अहमदशाह का इरादा माण्डू के दुर्ग का घेरा डालने का था । माण्डू के किले की सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही मजबूत थी। वर्षा ऋतु भी आ चुकी थी। अमीरों की सलाह मानकर अहमदशाह जून - जुलाई 1418 ई. में चम्पानेर के मार्ग से गुजरात लौट गया।

 

अपनी योजनानुसार अहमदशाह ने मालवा पर पुनः आक्रमण किया। होशंगशाह युद्ध के लिए तैयार नहीं था। उसने मौलाना मूसा और हमीद को उपहारों के साथ अहमदशाह के पास भेजा और प्रार्थना कीकि वह मालवा के पीड़ितों और मुसलमानों को कष्ट न पहुँचाए। अहमदशाह युद्ध नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने अपने वजीर निजाम उल्मुल्क की सलाह मानकर होशंगशाह का निवेदन स्वीकार कर लिया और मई 1419 में गुजरात वापस लौट गया। होशंगशाह ने इस समय बुद्धिमत्ता और सूझबूझ से मालवा को एक भीषण युद्ध से बचा लिया। यदि युद्ध होता तो मालवा के लिए विनाशकारी होता।

 

होशंगशाह को अहमदशाह गुजराती के वापस जाने के बाद यह अहसास हो गया था कि बिना सैन्य शक्ति को मजबूत किये वह गुजरात का सामना नहीं कर सकता है। सेना को और शक्तिशाली बनाने के लिए हाथियों की आवश्यकता थी । ये हाथी जाजनगर (उड़ीसा) और खेरला (म.प्र. के बैतूल जिले में) से प्राप्त किये जा सकते है।" अभियान पर जाने के पूर्व उसने मलिक मुगीथ के पुत्र महमूद की योग्यता को जानकर उसे 'खानकी पदवी प्रदान की और राज्य के सभी कार्यों में सहायक नियुक्त किया। मलिक मुगीथ को माण्डू से शासन का कार्यभार सम्भालने का उत्तरदायित्व सौंपा। उसने सर्व प्रथम खेरला के दुर्ग पर आक्रमण कर वहाँ के राय नरसिंह को आत्मसमर्पण के लिए विवश किया। खेरला से वह व्यापारी के वेश में हाथियों को प्राप्त करने जाजनगर जा पहुँचा। उसने वहाँ के शासक भानुदेव चतुर्थ को 75 हाथी देने को कहा और जब राजा उसके शिविर में पहुँचा तो उसने अपनी असलियत बताई कि वह मालवा का सुल्तान होशंगशाह है। 17 उसने हाथियों को प्राप्त कर राजा भानुदेव को सुरक्षा की दृष्टि से मालवा की सीमा तक लाया और बाद में मुक्त किया। इसी बीच होशंगशाह को समाचार मिला कि गुजरात के शासक ने मालवा पर आक्रमण कर माण्डू को घेर लिया है । वह खेरला के किले में सेना रखकर खेरला के राजा नरसिंह राय को अपने साथ लेकर तारापुर दरवाजे से माण्डू दुर्ग में प्रवेश कर गया। 

 

लगभग दो वर्ष के अन्तराल के बाद अहमदशाह ने पुनः मार्च 1422 ई. में मालवा पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के क्या कारण और उद्देश्य थेयह स्पष्ट नहीं हो पाया हैक्योंकि पूर्व में शासकों में समझौता हो चुका था कि वे दोनों राज्यों मे शान्ति बनाए रखेंगे। जब अहमदशाह को पता चला कि होशंगशाह हाथियों की प्राप्ति हेतु मालवा से बाहर गया है तो उसने होशंगशाह की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर मालवा पर आक्रमण कर दिया। उसने माण्डू दुर्ग को घेर लिया। किन्तु वर्षा ऋतु आ जाने से वह उज्जैन आ गया और वहाँ शिविर स्थापित किया। अहमदशाह ने पुनः वर्षा ऋतु की समाप्ति पर माण्डू दुर्ग को घेर लिया। घेरा चालीस दिनों तक चला। इसी बीच होशंगशाह माण्डू के किले में आ चुका थापरिणामस्वरूप वहाँ सेना और लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई और वे अब उत्साह के साथ दुर्ग की रक्षा में लग गये। दुर्ग को जीतना कठिन जानकर अहमदशाह ने आसपास के क्षेत्रों को लूटना प्रारंभ कर दिया। उसने पवित्र नगर महेश्वर को भी लूटा। अहमदशाह ने अपनी सेना को एकत्र किया जो मालवा के कई भागों में थी उसने सारंगपुर में शिविर स्थापित किया ! होशंगशाह सारंगपुर की सुरक्षा के लिए चिन्तित हो गया। उसने गुजरात के सुल्तान के समक्ष शान्ति और संधि का प्रस्ताव रखा कि आप वापस गुजरात लौट जायें मुसलमानों का खून बहाना बहुत बड़ा पाप है। उसने कहा कि भेंट आपके पीछे-पीछे पहुँच जाएगी। अहमदशाह जो धार्मिक प्रवृत्ति का थाहोशंगशाह का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और लौटने की तैयारियाँ शुरू कर दीं। लेकिन होशंगशाह ने धोखे से रात्रि में असावधान गुजराती सेना पर आक्रमण कर दिया. 

 

इस अचानक आक्रमण से गुजराती सेना में खलबली मच गई और वह इधर-उधर भागने लगी परन्तु सुल्तान अहमदशाह ने हिम्मत नहीं हारी और जीत की खुशी में मगन मालवी सेना पर संगठित होकर भीषण आक्रमण किया। दोनों सुल्तान हाथों में तलवार लिये अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल वीरता से लड़ते रहे। दोनों घायल हो गयेगुजराती सेना ने मालवी सेना को घेर लिया। होशंगशाह इस आक्रमण का सामना न कर सका। फरिश्ता लिखता है कि "मालवा के सुल्तान जिसके सम्मुख विजयश्री कभी भी नहीं मुस्कराईपुनः हार गयाऔर भागकर उसने सांरगपुर के किले में शरण ली सुल्तान अहमदशाह ने सारंगपुर को घेर लिया परन्तु सफलता की कोई आशा न देख विशाल धन सम्पति और हाथियों के साथ 6 अप्रेल 1423 ई. को गुजरात लौट गया। 

 

होशंगशाह के जीवनकाल में गुजरात से यह उसका अन्तिम युद्ध था। दोनों सुल्तानों के लिये राजनैतिक दृष्टि से ये आक्रमण निष्फल रहे। दोनों राज्यों के निवासियों को असहनीय कष्ट सहने पड़े जन और धन सम्पत्ति की अपार क्षति हुई। भविष्य में दोनों राज्यों के सम्बन्ध कटुतापूर्ण हो गये।

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