फारुकी सल्तनत का मुगलों से सम्पर्क |फारुकी सल्तनत का पतन | Faruki Sultnat and Mugal

फारुकी सल्तनत का मुगलों से सम्पर्क

फारुकी सल्तनत का मुगलों से सम्पर्क |फारुकी सल्तनत का पतन | Faruki Sultnat and Mugal
 

फारुकी सल्तनत का मुगलों से सम्पर्क 

अब तक के इतिहास में उत्तर भारत में काफी कुछ घट चुका था। शेरशाह द्वारा पराजित होकर हुमायूं ने 1540 में दिल्ली से पलायन कर दिया था और उत्तर भारत में सूर वंश की सत्ता स्थापित हो गई थी। फिर 1556 में सूरवंश के स्थान पर पुनः मुगल सत्ता स्थापित हो गई और मुगल साम्राज्य के सिंहासन पर अकबर बैठा। 

 

1561 ई. में जब मुगल सेना ने आदम खाँ की कमान में मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को पराजित कर दियातब बाजबहादुर ने बुरहानपुर के फ़ारुकी दरबार में जाकर शरण ली। कुछ समय बाद बाजबहादुर का पीछा करते हुए मुगल सेनापति पीर मुहम्मद शेरवानी ने असीरगढ़ पर आक्रमण किया और न केवल खानदेश को बल्कि बुरहानपुर को उसने बरबाद कर डाला और अनेक गणमान्य लोगों की हत्या कर डाली। मीरन मुबारक शाह फारुकी और बाजबहादुर ने बरार के शासक से सहायता लेकर पीर मुहम्मद से संघर्ष किया। फलस्वरूप पीर मुहम्मद मालवा की ओर भागा और घोड़े की पीठ पर बैठक नर्मदा पार करते समय वह नर्मदा नदी में डूब गया। मीरन मुबारक और बाजबहादुर की सेनाएँ आगे बढ़कर माण्डू पहुँची जहाँ बाजबहादुर ने पुनः सिंहासन हस्तगत किया। पर इसके शीघ्र बाद मुगल सम्राट अकबर ने बाजबहादुर से मालवा छीन लिया। इससे खानदेश की सीमा मुगल साम्राज्य की सीमा से टकराने लगी। तेर

 

1564 में एक महत्वपूर्ण घटना बुरहानपुर के इतिहास में घटी। इस साल गुगल बादशाह अकबर अपने एक विद्रोही अमीर अब्दुल्ला खान उजबेग का विद्रोह दबाने मालवा आया और खानदेश के एक किले बीजागढ़ (खरगोन के पास) पर अधिकार कर लिया। अब मीरन मुबारक शाह को अपनी गद्दी बचाने की चिंता हुई। उसने अपने दूत को इस प्रस्ताव के साथ अकबर के पास भेजा कि वह अपनी बेटी का विवाह अकबर से करना चाहता है। अकबर ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और अपने एक अधिकारी इतमादखान को मूल्यवान भेंटों के साथ असीरगढ़ भेजा जहाँ से इतमादखान मीरन मुबारकशाह की बेटी को लेकर लौटा। इस विवाह संबंध से मीरन मुबारक का संकट टल गया और उसके संबंध भी मुगल सम्राट से सौहाद्रपूर्ण हो गये। तीस साल के शासन के उपरांत 24 दिसम्बर, 1566 को मीरन मुबारक शाह की मृत्यु हो गयी । 

 

फारुकी सल्तनत का पराजय का दशक 

मीरन मुबारकशाह के लम्बे शासन के बाद उसका बेटा मीरन मुहम्मद खान द्वितीय खानदेश का शासक हुआ। इसी समय गुजरात की राजनीति में हुए परिवर्तन ने मीरन मुहम्मद खान द्वितीय को प्रोत्साहित किया। गुजरात में ऐसी अफवाह थी कि सुल्तान मुज़फ्फरशाह तृतीय स्वर्गीय सुल्तान का पुत्र नहीं है। इस अफवाह का फायदा उठाकर मीरन मुहम्मद खान द्वितीय स्वयं को गुज़रात के सिंहासन का अधिकारी बताते हुए एक विशाल सेना लेकर अहमदाबाद की ओर चला लेकिन उसे परास्त होकर खानदेश लौटना पड़ा।

 

1574 में अहमदनगर के शासक मुर्तजा निजामशाह ने बरार पर आक्रमण किया और बरार को जीतकर अहमदनगर में मिला लिया। कुछ समय बाद जब मुर्तजा निजामशाह बीदर के अभियान में गया था तो मीरन मुहम्मदखान द्वितीय ने बरार पर आक्रमण कर दिया। यह समचार पाकर मुर्तजा निजामशाह बीदर का अभियान रद्द करके बरार पहुँचा। वहाँ उसने खानदेश की सेना को पराजित किया और बुरहानपुर पर चढ़ दौड़ा। घबराकर मीरन मुहम्मद खान बुरहानपुर से भाग गया और अहमदनगर के विजेता सुल्तान ने बुरहानपुर को खूब लूटा और असीरगढ़ की तरफ चला जहाँ मीरन मुहम्मदखान ने मोर्चा जमाया था। मीरन को भाग कर मुगल प्रदेश में शरण लेना पड़ी। अन्त में मीरन ने मुर्तजा निजामशाह से निवेदन किया कि यदि वह वापस लौट जायेगा तो उसे दस लाख गुजराती सिक्के प्रदान करेगा। इस पर मुर्तजा निजामशाह अहमदनगर लौट गया। मीरन मुहम्मद खान द्वितीय की मृत्यु 1576 में हो गई। उसे बुरहानपुर के दौलतपुरा में दफनाया गया जहाँ उसका प्रभावशाली मकबरा आज भी मौजूद है। 

 

1576 ई. में मीरन मुहम्मदखान द्वितीय की मृत्यु के समय उसका दूध भाई राजा अली खान मौजूद था। सुल्तान के आँख मूंदते ही लाड मुहम्मद बख्शी ने राजा अलीखान को सिंहासन पर कब्जा करने के लिए प्रोत्साहन किया। तब राजा अली खान ने अपने भतीजे हसन खान का संरक्षक बनकर शासन करने का फैसला किया। लेकिन अरब खानकोतवाल रेहांबुरहानपुर का गवर्नर खानजहाँ इससे सहमत न होकर षड़यंत्र करने लगे। तब राजा अली खान ने इन सभी की हत्या कर दी और हसनशाह को गद्दी से उतारकर खुद सिंहासन पर बैठ गया। सिंहासन पर बैठने पर राजा अलीखान ने लाड मुहम्मद बख्शी को असफखाँ की उपाधि देकर उसे अपना वजीर बना लिया।.

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