होशंगशाह द्वारा राज्य विस्तार | होशंगशाह के अन्तिम दिन होशंगशाह द्वारा राज्य विस्तार | HoshangShah Rajya Vistaar

 होशंगशाह द्वारा राज्य विस्तार, होशंगशाह के अन्तिम दिन

होशंगशाह द्वारा राज्य विस्तार, होशंगशाह के अन्तिम दिन



होशंगशाह द्वारा राज्य विस्तार

 

गुजरात के विरुद्ध सफलता की कोई आशा न देख होशंगशाह ने अब राज्य विस्तार के लिये दक्षिणपूर्व और उत्तर को चुना। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने खेरला गागरोनग्वालियरऔर दक्षिण में बहमनी तथा उत्तर में कालपी पर अभियान किये।

 

होशंगशाह ने अपने जाजनगर अभियान के दौरान खेरला पर 1420 ई. में अधिकार कर हाथी भी प्राप्त किये थे। उसने खेरला के राय नरसिंह को पराजित कर अधीनता स्वीकार करवाई और इस शर्त पर खेरला पुनः लौटाया की राय प्रतिवर्ष मालवा को राजस्व देता रहेगा। जब खेरला के राय नरसिंह ने बहमनी राज्य की अधीनता स्वीकार की थी तो होशंगशाह ने खेरला पर आक्रमण कर युद्ध में राय को मार डाला। नरसिंह राय के पुत्र ने मालवा की अधीनता स्वीकार कर ली।

 

गागरोन मालवा के उत्तर-पश्चिम में हाड़ौती क्षेत्र में स्थित था। इसका राजनीतिक और सामूहिक महत्व था । गागरोन पर खीची राजपूतों का राज्य था । यहाँ का शासक अचलदास खीची मेवाड़ के राणा मोकल का जामाता था। अचलदास भोगविलास में व्यस्त रहता और उसने प्रशासन की उपेक्षा की। होशंगशाह ने शक्तिशाली सेना के साथ 29 दिसम्बर 1423 ई. में गागरोन के किले को घेर लिया। घेरा 15 दिनों तक चला। अचलदास का पुत्र पाल्हणसिंह सहायता के लिए मेवाड़ के राणा मोकल के पास पहुँचा। परन्तु होशंगशाह के भय के कारण सहायता न प्राप्त हो सकी। खीचियों ने वीरता से सामना किया किन्तु अन्त में पराजित हो गये। दुर्ग पर मालवा का अधिकार हो गया। अचलदास की रानियाँ और हजारों स्त्रियाँ जौहर कर आग में जल कर मर गई। अचलदास सहित हजारों राजपूत युद्ध में मारे गये।

 

गागरोन विजय से प्रोत्साहित होकर होशंगशाह ने ग्वालियर के दुर्ग पर अधिकार करने का विचार कियाताकि उत्तरी सीमा पर सतर्क निगाह रखी जा सके। उसने ग्वालियर के राय को विवश किया की वह उसकी अधीनता स्वीकार करे। ग्वालियर के शासक ने दिल्ली के सुल्तान मुबारकशाह सैयद से सहायता की प्रार्थना की। सुल्तान ने सेना के साथ चम्बल नदी के उत्तरी तट पर आकर पड़ाव डाल दिया। मालवा और दिल्ली की सेनाओं में छुटपुट झड़पें हुईं। ऐसा प्रतीत होता था दोनों युद्ध के पक्ष में नहीं थे। उपहारों के आदान-प्रदान के बाद दोनों अपने-अपने राज्यों को लौट गये मालवा के दक्षिण में बहमनी राज्य शक्तिशाली राज्य था । उत्तर की ओर उसकी दृष्टि खेरला राज्य पर थी जो मालवा के आधीन था। साम्राज्य विस्तार की कामना से 1428 ई. अहमदशाह बहमनी ने खेरला पर आक्रमण कर दिया। खेरला के राय ने होशंगशाह से सहायता की प्रार्थना कीहोशंगशाह तुरन्त खेरला की ओर अग्रसर हुआ। होशंगशाह के आगमन का समाचार पाकर बहमनी सेना वापस लौटने लगी। इसी बीच खेरला के राय के आग्रह पर होशंगशाह ने बहमनी की लौटती सेना का पीछा तीन दिनों तक किया। बहमनी सेना ने रुककर मालवा की सेना को चारों ओर घेर लिया। होशंगशाह बुरी तरह पराजित हुआऔर मुश्किल से बच सका। उसके हरम और पत्नी को कैद कर लिया गया। बाद में ससम्मान अहमदशाह बहमनी ने उन्हें मालवा भिजवा दिया। खेरला होशंगशाह के पास रहापरन्तु इस अभियान से होशंगशाह की प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुँची। बाद में खानदेश के प्रयासों से मालवा और बहमनी राज्यों में शान्ति स्थापित हो गई।

 

मालवा की स्वतंत्र सल्तनत की स्थापना के समय ही कालपी में महमूद शाह ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। महमूद शाह को प्रारंभिक दिनों में इटावा और बुंदेलखण्ड के राजपूत शासकों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा था। दिलावर खाँ गोरी ने कालपी की सहायता कर उसे उपकृत किया और अपना हितैषी बना लिया। इस सम्बंध को अधिक मजबूत करने के लिये दिलावर खाँ ने अपनी पुत्री का विवाह कालपी के शासक महमूद शाह के पुत्र कादिर शाह से कर दिया था।

 

महमूद शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कादिर शाह गद्दी पर बैठा। कादिर शाह के काल में मालवा और कालपी के सम्बन्ध बहुत अच्छे रहे। 1432 ई. में सुल्तान कादिर शाह की मृत्यु हो गई । परिणामस्वरूप मृत सुल्तान के पुत्रों में संघर्ष स्वाभाविक था । अमीरों ने होशंगशाह के भानजे जलाल खाँ को गद्दी पर बैठायाक्योंकि वे होशंगशाह को अप्रसन्न नहीं करना चाहते थे। मृत सुल्तान का बड़ा पुत्र सहायता के लिए जौनपुर शर्की सुल्तान के दरबार में पहुँचा। इब्राहीमशाह शर्की ने उसे सहायता का आश्वासन देकर सेना के साथ कालपी की ओर कूच किया। होशंगशाह यह कभी सहन नहीं कर सकता था कि कालपी जौनपुर के प्रभाव में चला जाये। इसलिये वह भी कालपी की ओर सेना सहित चल दिया | 20 इब्राहीमशाह शर्की ने नासिर खाँ को गद्दी पर बैठा दिया। जलाल खाँ भागकर चन्देरी आ गया। होशंगशाह ने जलाल खाँ के साथ कालपी पहुँच कर कालपी को घेर लिया। इस बीच समाचार मिला कि सुल्तान मुबारक शाह सैयद जौनपुर की ओर कूच कर गया। जौनुपर की रक्षा से चिन्तित हो इब्राहीमशाह जौनपुर लौट गया। होशंगशाह ने पुनः जलाल खाँ को कालपी की गद्दी पर बैठा दिया और मालवा लौट आया। कालपी का राज्य पूर्ण रूप से मालवा का आश्रित राज्य बन गया ।

 

मालवा के शासकों ने खानदेश के फारुखी सुल्तानों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करगुजरात और बहमनी राज्य के विरुद्ध मालवा की दक्षिणी-पश्चिमी सीमा सुरक्षित कर ली थी। होशंगशाह ने समय-समय पर गुजरात के विरुद्ध खानदेश की सहायता की। कुछ समय बाद दोनों राज्यों में गुजरात और बहमनी राज्यों के कारण दरार पड़ गई। 1429 ई. में जब मालवा और बहमनी राज्यों में युद्ध हुआ तो नासिरखाँ ने उदासीनता और तटस्थता का रुख अपनाया। मालवा के पुराने सम्बन्धों की उपेक्षा कर खानदेश के सुल्तान नासिर खाँ ने अपनी पुत्री का विवाह बहमनी के सुल्तान के पुत्र अलाउद्दीन के साथ कर दिया। किन्तु होशंगशाह ने इस सम्बंध पर अपनी कोई अप्रसन्नता व्यक्त नहीं की। मालवा और बहमनी के युद्ध के समय खानदेश के सुल्तान नासिर खाँ ने खेरला के प्रश्न पर दोनों में समझौता कर दिया। परिणामस्वरूप मालवा और खानदेश के सम्बन्ध सौहर्द्रपूर्ण हो गये। जो गोरी शासकों के शासनकाल तक चलते रहे।

 

मालवा के उत्तर पश्चिम में गुहिलोत राजपूतों ने राणा क्षेत्रसिंह के नेतृत्व में अपने आपको राजपूताना की प्रमुख शक्ति के रूप में संगठित किया था। इस कारण गोरी शासकों ने मालवा की उत्तरी-पश्चिमी सीमा की कभी उपेक्षा नहीं की। दिलावर खाँ गोरी और क्षेत्रसिंह दोनों ही एक दूसरे की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित थे । कुंभलगढ़ अभिलेख के अनुसार क्षेत्रसिंह ने अन्य राजपूत शासकों की मदद से दिलावर खाँ को पराजित किया था ।

 

होशंगशाह ने मेवाड़ और हाड़ौती क्षेत्र पर नजर रखने के लिए मन्दसौर में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण करवाकर वहाँ सेना रखी थी। होशंगशाह ने मेवाड़ के प्रति कोई आक्रमण कार्यवाही नहीं की किन्तु वह मेवाड़ के दरबार में होने वाले कुचक्रों के प्रति सतर्क था 1421 ई. में राणा लक्ष्यसिंह का ज्येष्ठ पुत्र चूंडा अपने छोटे भाई अज्जा के साथ सौतेले भाई मोकल के पक्ष में गद्दी त्यागकर चितौड़ से माण्डू चला आया। होशंगशाह ने चूंडा को मालवा में आश्रय प्रदान कर जागीर प्रदान की। यह मालवा के लिए गौरव की बात थी। चूंडा की मालवा में उपस्थिति ने मेवाड़ को उलझन में डाल दिया 23

 

 होशंगशाह के अन्तिम दिन

 

होशंगशाह के अन्तिम दिन शान्ति से नहीं बीते। उसे उसके पुत्रों की आपसी कलह और योजताल के पास की पहाड़ियों को पास रहने वाली जातियों के विद्रोह के कारण ने परेशान कर दिया था। होशंगशाह ने मलिक मुगीथ से परामर्श कर राजकुमारों को माण्डू के दुर्ग में कैद कर दिया ।

 

भोजसागर का निर्माण राजा भोज परमार ने करवाया था। यह एक विशाल झील थी । यह सागर 16 मील लम्बा और 8 मील चौड़ा थाइसका एक किनारा दूसरे किनारे से दिखाई नहीं देता था। इसके बीच की पहाड़ियाँ टापू बन गये थे। इन्हीं टापुओं में विद्रोही शरण लेते थे इस कारण विद्रोहियों के विरुद्ध कोई सफल कार्यवाही नहीं हो पाती थी। होशंगशाह ने गौंड मजदूरों की विशाल सेना के प्रयत्नोंसे तीन माह के प्रयास के बाद भोज सागर के बाँधों को कटवा दिया। विद्रोही बाढ़ से बचने के लिये इधर-उधर भागने लगे और पहाड़ियों का राजा भाग गया। झील को सूखने में तीन वर्ष लगे। परन्तु होशंगशाह ने हजार एकड़ कृषि भूमि प्राप्त कर ली।

 

विद्रोहियों का दमन करने के बाद होशंगशाह ने होशंगाबाद नगर की नींव नर्मदा नदी के तट पर की और वहाँ एक किला भी बनवाया । फरिश्ता और निजामुद्दीन अहमद ने इस नगर के बसाये जाने का कोई उल्लेख नहीं किया है। परन्तु कालपी अभियान से लौटने के बाद होशंगशाह अधिक समय तक होशंगाबाद में ही रहा।

 

होशंगशाह अन्तिम दिनों में मधुमेह से ग्रस्त हो गया था। इस रोग के कारण वह माण्डू के लिए चल पड़ा। अपना अन्तिम समय जान कर उसने मार्ग में दरबार लगवाया और अपने वरिष्ठ पुत्र गजनी खाँ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सुल्तान ने महमूद खाँ और स्वामिभक्त अमीरों से वचन ले लिया कि वे उसके निर्णय का पालन करेंगे। माण्डू के निकट पहुँचते ही होशंगशाह की 6 जुलाई 1435 ई. को मृत्यु हो गई। माण्डू में मदरसे में एक कब्र में उसे दफना दिया गया। वर्तमान में माण्डू में जो होशंगशाह का मकबरा हैउसे महमूद खिलजी ने अपने राज्य काल में बनवाया था । 

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.