गुजरात के अधीन मालवा | Malwa History Under Gujrat Rules
गुजरात के अधीन मालवा
गुजरात के अधीन मालवा
मालवा को गुजरात में मिलाये जाने के बाद बहादुरशाह का मुख्य कार्य सिलहदी की शक्ति को कुचलने का था सिलहदी के अधिकार में भिलसा से रायसेन तक क्षेत्र था। बाबर द्वारा चन्देरी की विजय और मेदिनीराय की मृत्यु के बाद सिलहदी मालवा में सबसे शक्तिशाली राजपूत था ।
सिलहदी ने अपनी मुसलमान रखैलों को भी लौटाने से इन्कार कर दिया था। बहादुरशाह ने जनवरी 1532 ई. में रायसेन के किले को घेर लिया। सिलहदी ने देखा कि रायसेन के पतन के बाद वह और हजारों राजपूत परिवार नष्ट हो जाएँगे, इसलिये उसने इस्लाम धर्म स्वीकार करने का प्रस्ताव बहादुरशाह के समक्ष रखा। बहादुरशाह ने यह प्रस्ताव मान लिया। सिलहदी ने राजपूत परिवारों को किले से निकाल कर उन्हें सुरक्षित चित्तौड़ की ओर भेज दिया ।
बहादुरशाह और सिलहदी के बीच उपरोक्त समझौता माण्डू में हुआ था किंतु सिलहदी की माँ ने रायसेन के दुर्ग से बाहर आने से इन्कार कर दिया उसने कहा जब तक स्वयं सिलहदी उन्हें किले से निकालकर सुरक्षित स्थान पर न पहुँचा दे। बहादुरशाह ने सिलहदी को रायसेन के किले में जाने दिया ताकि किला पूरी तरह से खाली होकर उसके अधिकार में आ सके।
रायसेन पहुँचने पर सिलहदी उसके पुत्र लक्ष्मण, रानी दुर्गावती और ताज खाँ ने परामर्श किया कि वे किला बहादुरशाह को ऐसे ही समर्पण नहीं करेंगे। हमारी स्त्रियाँ और बच्चे जौहर करेंगे और हम दुर्ग की रक्षा मृत्युपर्यन्त करेंगे। योजना के अनुसार जौहर की अग्नि में रानी दुर्गावती, लगभग सात सौ सुन्दर स्त्रियाँ जिनमें मुसलमान भी थीं। बच्चों के साथ आग में भस्म हो गई। सिलहदी, ताजखाँ और लक्ष्मण और लगभग सौ सैनिकों के साथ दुर्ग के बाहर निकल आये और गुजरात की सेना पर टूट पड़े, बहुत ही भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिलहदी, ताज खाँ और लक्ष्मण अपने सैनिकों के साथ वीरता से लड़ते हुए मारे गये। इस प्रकार मई 1532 ई. में रायसेन पर गुजरात का अधिकार हो गया। बहादुरशाह ने अपने अमीरों और व्यक्तियों को मालवा के विभिन्न स्थानों पर नियुक्त कर गुजरात लौट गया।
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