स्मारक मित्र योजना क्या है | स्मारक मित्र योजना की जानकारी | Smarak Mitra Yojna
स्मारक मित्र योजना क्या है , स्मारक मित्र योजना की जानकारी
स्मारक मित्र योजना:
- स्मारक मित्र' शब्द 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' परियोजना के तहत सरकार के साथ भागीदारी करने वाली इकाई को संदर्भित करता है।
- इसे पहले पर्यटन मंत्रालय के तहत लॉन्च किया गया था और फिर इसे संस्कृति मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया।
- इस परियोजना का उद्देश्य कॉर्पोरेट संस्थाओं, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों या व्यक्तियों को 'अपनाने' के लिये आमंत्रित करके पूरे भारत में स्मारकों, विरासत और पर्यटन स्थलों को विकसित करना है।
विरासत का क्या अर्थ होता है ?
विरासत का मतलब
उन इमारतों, कलाकृतियों, संरचनाओं, क्षेत्रों और
परिसरों से है जो ऐतिहासिक,
सौंदर्यवादी, वास्तुशिल्प, पारिस्थितिक या
सांस्कृतिक महत्त्व के हैं।
यह स्वीकार किया
जाना चाहिये कि किसी विरासत स्थल के आसपास का 'सांस्कृतिक परिदृश्य' स्थल इसकी निर्मित विरासत की व्याख्या के लिये महत्त्वपूर्ण
है और इस प्रकार इसका एक अभिन्न अंग है।
तीन प्रमुख
अवधारणाएँ जिनके आधार पर यह निर्धारित करने पर विचार किया जा सकता है कि किसी
संपत्ति को विरासत के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है या नहीं:
- ऐतिहासिक महत्त्व
- ऐतिहासिक अखंडता
- ऐतिहासिक संदर्भ
भारतीय विरासत
में पुरातात्त्विक स्थल, अवशेष, खंडहर शामिल हैं।
देश में 'स्मारक और स्थलों' के प्राथमिक
संरक्षक, यानी भारतीय
पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)
और समकक्ष उनकी
रक्षा करते हैं।
महत्त्व:
भारतीय इतिहास के
कहानीकार: विरासत भौतिक और अमूर्त हैं जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं, संरक्षित हैं और
निरंतर आगे बढ़ रही हैं।
विरासत
आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और
राजनीतिक महत्त्व के साथ भारतीय समाज के ताने-बाने में बुनी गई हैं।
विविधता को
अपनाना: भारत की विरासत अपने आप में विभिन्नता, समुदायों, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धर्मों, संस्कृतियों, विश्वासों, भाषाओं, जातियों एवं सामाजिक व्यवस्थाओं का संग्रहालय है।
आर्थिक योगदान:
भारत में विरासत स्थलों का अत्यधिक आर्थिक महत्त्व है।
ये स्थल हर साल
लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जो आवास, परिवहन और स्मारिका बिक्री जैसी पर्यटन संबंधी गतिविधियों
के माध्यम से सरकार तथा स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व उत्पन्न करते हैं।
भारत में विरासत प्रबंधन से संबंधित मुद्दे:
विरासत स्थलों के
लिये केंद्रीकृत डेटाबेस का अभाव: भारत में विरासत संरचना के राज्यवार वितरण के
साथ एक पूर्ण राष्ट्रीय स्तर के डेटाबेस का अभाव है।
हालाँकि ‘इंडियन नेशनल
ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (INTACH) ने 150 शहरों में लगभग 60,000 इमारतों को सूचीबद्ध किया है, लेकिन यह मामूली
प्रयास ही माना जा सकता है।
धरोहर स्थलों पर
अतिक्रमण: कई प्राचीन स्मारकों का स्थानीय निवासियों, दुकानदारों और
स्मारिका विक्रेताओं द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है।
इन संरचनाओं और
स्मारकों या आसपास की स्थापत्य शैली के बीच कोई सामंजस्य नहीं है।
दृष्टांत के लिये
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की 2013 की रिपोर्ट के
अनुसार, ताजमहल परिसर
खान-ए-आलम बाग के निकट अतिक्रमण का शिकार पाया गया।
मानव संसाधन की
कमी: स्मारकों की देखभाल और संरक्षण गतिविधियों के लिये कुशल एवं सक्षम मानव
संसाधन की कमी ASI जैसी एजेंसियों
के सामने सबसे बड़ी समस्या है।
धरोहर संरक्षण से संबंधित सरकार की प्रमुख पहलें:
राष्ट्रीय स्मारक
और पुरावशेष मिशन (National
Mission on Monuments and Antiquities- NMMA), 2007
प्रोजेक्ट मौसम
भारत में विरासत
स्थलों को कैसे नया रूप दिया जा सकता है?
‘स्मार्ट सिटी, स्मार्ट हेरिटेज’: सभी बड़ी
अवसंरचना परियोजनाओं के लिये धरोहर प्रभाव आकलन (Heritage Impact Assessment ) पर विचार करना
आवश्यक है।
धरोहर पहचान और
संरक्षण परियोजनाओं (Heritage
Identification and Conservation Projects) को शहर के मास्टर
प्लान से जोड़ने तथा स्मार्ट सिटी पहल के
साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
संलग्नता बढ़ाने
के लिये अभिनव रणनीतियाँ: ऐसे स्मारक जो बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित नहीं
करते हैं और सांस्कृतिक/धार्मिक रूप से संवेदनशील नहीं हैं, सांस्कृतिक एवं
विवाह कार्यक्रमों आदि के आयोजन स्थल के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं, जो निम्नलिखित
दोहरे उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं:
संबंधित अमूर्त
धरोहर का प्रचार।
ऐसे स्थलों पर
आगंतुकों की संख्या को बढ़ाना।
जलवायु कार्रवाई
के साथ धरोहर संरक्षण को संबद्ध करना: धरोहर स्थल जलवायु संचार और शिक्षा के
अवसरों के रूप में कार्य कर सकते हैं। इसके साथ ही बदलती जलवायु स्थितियों के
संबंध में पिछली प्रतिक्रियाओं को समझने के लिये ऐतिहासिक स्थलों एवं अभ्यासों पर
शोध से अनुकूलन तथा शमन योजनाकारों को ऐसी रणनीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती
है जो प्राकृतिक विज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करती हैं।
उदाहरण के लिये
माजुली द्वीप के समुदायों जैसे- तटीय और नदीवासी समुदाय सदियों से बदलते जल स्तर
के साथ रह रहे हैं और इसके अनुकूल बन रहे हैं।
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