गोंड राज्य का इतिहास: नरहरिशाह के उपरांत गोंड राजवंश | Gond Rajya Ka Itihaas - Part 06
गोंड राज्य का इतिहास: नरहरिशाह के उपरांत गोंड राजवंश
नरहरिशाह के उपरांत गोंड राजवंश
नरहरिशाह के उपरांत गोंड राजवंश के इतिहास का जहाँ तक सम्बन्ध है, लक्ष्मणकुँवरि सागर से प्राप्त पेंशन से नर्बदाबख्श का लालन-पालन और अपना जीवन यापन करती रही। 1797 ई. में नर्बदाबख्श कहीं भाग गया और कुछ दिनों के बाद ही भोंसला के शासन के समय उसकी पेंशन कम कर दी गई। अंग्रेजी शासन 1818 ई. में प्रारम्भ होने के बाद भी रानी की पेंशन नहीं बढ़ाई गई। सौ रुपया प्रति माह की पेंशन में रानी का काम मुश्किल से ही चलता था।
उधर सुमेरशाह ने 1804 ई. में अपना राज्य पुनः पाने हेतु होल्कर के एक अधिकारी नागोजी की सहायता से प्रयास किया किन्तु उसे असफलता मिली और नागपुर के राजा के प्रोत्साहन से सिंधिया के एक अधिकारी ने उसे मार डाला। उसका पुत्र शंकरशाह कुछ समय तो मीर खाँ के साथ रहा। बाद में वह अपने पिता की सागर स्थित जागीर में रहने लगा।
नर्बदाबख्श जब कई वर्ष तक न आया तो उसे मृत समझकर रानी लक्ष्मणकुँवर ने शंकरशाह के पुत्र रघुनाथशाह को 1829 ई. में गोद लेकर अपना वारिस बना लिया। इसी बीच 1841 ई. में नर्बदाबख्श लौट कर आ गया तो रानी ने उसे स्वीकार कर लिया। 1842 ई. में रानी की मृत्यु के बाद रघुनाथशाह और नर्बदाबख्श में रानी की सम्पत्ति को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ। निर्णय में जबलपुर के न्यायाधीश कैप्टेन होड ने नर्बदाबख्श को उत्तराधिकारी घोषित किया और जबलपुर के पास के दो गाँव -पुरवा और कौगवाँ उसे मिले। जब 1857 ई. का विप्लव हुआ तो अंग्रेजों ने शंकरशाह और रघुनाथशाह के विरुद्ध विद्रोहात्मक कार्यवाहियों का आरोप लगाकर उन्हें जबलपुर में तोप से उड़ा दिया गया। रघुनाथशाह की पत्नी का नाम मानकुँवरि और पुत्र का नाम लालजू था। डा. हीरालाल के अनुसार रघुनाथशाह के पुत्र का नाम लक्ष्मणशाह था, जो दमोह जिले (म. प्र.) के सिलापुरी ग्राम में रहने लगा था। 1919 ई. में रायबहादुर हीरालाल ने जब सिलापरी गाँव का भ्रमण किया था तब लक्ष्मणशाह के दो पुत्र कंकनशाह और खलकशाह अत्यंत दरिद्रता में अपने दिन गुजार रहे थे।
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