प्रबन्ध की प्रकृति या स्वभाव |प्रबंध की प्रकृति का कला या विज्ञान | Nature of Management
प्रबन्ध की प्रकृति या स्वभाव
प्रबन्ध की प्रकृति या स्वभाव
प्रबन्ध की विचारधारा उतनी ही प्राचीन एवं गतिशील है जितनी कि मानव की सभ्यता समय-समय पर प्रबन्ध की विचारधारा तथा प्रबन्ध की प्रकृति में व्यापक परिवर्तन होते गए-
1. प्रबन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है-
प्रबन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है, जो प्रत्येक संस्था में चाहे वह सामाजिक संस्था हो अथवा धार्मिक राजनीतिक हो अथवा व्यावसायिक समान रूप से सम्पन्न की जाती है। प्रबन्ध के सिद्धान्त समान रूप से किसी मंदिर, क्लव, श्रमसंघ, स्थानीय सं आदि पर लागू होते हैं।
2. प्रबन्ध की विषय वस्तु मनुष्य है
प्रवन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है, क्योकि प्रबन्ध के कार्य मौलिक रूप से मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित प्रबन्ध के द्वारा ही मानव क्रियाओं, नियोजित, संगठित, निर्देशित, समन्वित, प्रेरित तथा नियन्त्रित किया जाता है। चूँकि प्रवन्ध की विषय मनुष्य है अतः इसके सिद्धान्त निश्चित एवं अकाट्य नहीं बन सकते। प्रबन्ध के सिद्धान्त मूल रूप से व्यावहारिक सिद्धान्त हो और मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप बदलते रहते हैं।
3. प्रबन्ध के कुछ सामाजिक दायित्व भी हैं
अपने महत्व के कारण प्रबन्ध आज समाज का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। आज प्रबन्ध के वृहत सामाजिक दायित्व भी पैदा हो गये हैं और प्रबन्धक इनकी अवहेलना नहीं कर सकता। यह कहा जाने लगा है कि प्रवन्धक केवल नियोक्ता का प्रतिनिधि नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज का प्रतिनिधि है। प्रबन्ध के ग्राहकों कर्मचारियों, पूर्तिकर्ताओं, नियोक्ता, सरकार तथा समाज के प्रति अनेक उत्तरदायित्व होते है ।
4. व्यावसायिक क्षेत्र में प्रबन्ध का विशेष महत्व -
यद्यपि प्रवन्ध एक सार्वभौमिक क्रिया है लेकिन व्यावसायिक क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है इस सम्बन्ध में ड्रकर ने कहा है कि प्रबन्ध व्यवसाय का जीवन प्रदायक अवयव है और इसके बिना व्यवसाय में लगे "उत्पादन के साधन केवल साधन रह जाते हैं उत्पादन नहीं बन पाते।"
5. प्रबन्ध एक पेशा हैं-
अब अधिकांश विद्वान यह मानने लगे है कि प्रबन्ध एक पेशा है और इस रूप में इसका धीरे-धीरे विकास होता चला जरहा है।
6. प्रबन्ध एक कला तथा विज्ञान है-
प्रबन्ध की सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि वह कला एवं विज्ञान दोनों ही है। इसमें कला के तत्वों के साथ- साथ विज्ञान की विशेषताएँ भी पायी जाती है।
7. प्रबन्ध मानवीय तथा भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करता है-
कुशल प्रबन्धक मानव मशीन तथा अन्य साधनों को समन्वित कर एक प्रभावपूर्ण उपक्रम को जन्म देता है। तथा उनकी उत्पादकता में वृद्धि करता है कास्ट एवं रोजेविंग के अनुसार प्रबन्धकों की आवश्यकता मनुष्य, मशीन, माल, धन, समय और स्थान के असंगठित संसाधनों को एक उपयोगी तथा प्रभावपूर्ण उद्यम में बदलने के लिए पड़ती है।
8. प्रबन्ध संगठनात्मक पदसोपान के समस्त स्तरों पर पाया जाता है।'
9. प्रबन्ध में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की समय पर प्राप्ति अनिवार्य है।
10. प्रबन्ध की प्रकृति समग्रतावादी होती है अर्थात् वह समस्त उपव्यस्थाओं पर ध्यान करता है, किसी एक 'सेक्टर' पर नहीं।
प्रबंध की प्रकृति का कला या विज्ञान दृष्टिकोण
प्रबंध इतना ही पुराना है जितनी की सभ्यता । यद्यपि आधुनिक संगठन का उद्गम नया ही है लेकिन संगठित कार्य तो सभ्यता के प्राचीन समय से ही होते रहे हैं। वास्तव में संगठन को विशिष्ट लक्ष्य माना जा सकता है, जो सभ्य समाज को असभ्य समाज से अलग करता है। प्रबंध के प्रारंभ के व्यवहार, वे नियम एवं कानून थे जो सरकारी एवं वाणिज्यिक क्रियाओं के अनुभव से पनपे। व्यापार एवं वाणिज्य के विकास से क्रमशः प्रबंध के सिद्धांत एवं व्यवहारों का विकास हुआ।
'प्रबंध' शब्द आज कई अर्थों में प्रयुक्त होता है जो इसकी प्रकृति के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। प्रबंध के अध्ययन का विकास बीते समय में आधुनिक संगठनों के साथ-साथ हुआ है। यह प्रबंधकों के अनुभव एवं आचरण तथा सिद्धांतों के संबंध समूह दोनों पर आधारित रहा है। बीते समय में इसका एक गतिशील विषय के रूप में विकास हुआ है। जिसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं, लेकिन प्रबंध की प्रकृति से दो दृष्टिकोण प्रचलित है, कि संबंधित प्रबंध विज्ञान है या कला है या फिर दोनों है ? इसका उत्तर देने के लिए विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताओं का अध्ययन आवश्यक है
प्रबंध एक कला
कला क्या है ? कला इच्छित परिणामों को पाने के लिए वर्तमान ज्ञान का व्यक्तिगत एवं दक्षतापूर्ण उपयोग है। इसे अध्ययन,अवलोकन एवं अनुभव से प्राप्त किया जा सकता है। अब क्योंकि कला का संबंध ज्ञान के व्यक्तिगत उपयोग से है इसलिए अध्ययन किए गए मूलभूत सिद्धांतों को व्यवहार में लाने के लिए एक प्रकार की मौलिकता एवं रचनात्मकता की आवश्यकता होती है।
कला के आधारभूत लक्ष्य इस प्रकार हैं-
सैद्धांतिक ज्ञान का होना
कला यह मानकर चलती है कि कुछ सैद्धांतिक ज्ञान पहले से है। विशेषज्ञों ने अपने-अपने क्षेत्रों में कुछ मूलभूत सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, जो एक विशेष प्रकार की कला में प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए नृत्य, अन संबोधन/भाषण अथवा संगीत पर साहित्य सर्वमान्य है।
व्यक्तिगत योग्यतानुसार उपयोग-
इस मूलभूत ज्ञान का उपयोग व्यक्ति, व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होता है कला, इसलिए अत्यंत व्यक्तिगत अवधारणा है। उदाहरण के लिए दो नर्तक, दो वक्ता, दो कलाकार अथवा दो लेखकों की अपनी कला के प्रदर्शन में भिन्नता होगी।
व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारित
सभी कला व्यावहारिक होती हैं। कला वर्तमान सिद्धांतों के ज्ञान का रचनात्मक उपयोग है। हम जानते हैं कि संगीत सात सुरों पर आधारित है, लेकिन किसी संगीतकार की संगीत रचना विशिष्ट अथवा भिन्न होती है यह इस बात पर निर्भर करती है कि इन सुरों का किस प्रकार से संगीत सृजन में प्रयोग किया गया है, जो कि उसकी अपनी व्याख्या होती है।
प्रबंध एक कला है क्योंकि यह निम्न विशेषताओं को पूरा करती है।
एक सफल प्रबन्धक प्रबंध काल का उधम के दिन प्रतिदिन प्रबंध में उपयोग करता है, जो कि अध्ययन अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है। प्रबंध के विभिन्न क्षेत्र है जिनसे सबंधित पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है ये क्षेत्र हैं विपणन वित्त एवं मानव संसाधन जिनमें को विशिष्टता प्राप्त करनी होती है। इनके सिद्धांत पहले से ही विद्यमान है।
प्रबंध के विभिन्न सिद्धांत है जिनका दिन कई विचारको ने दिया है तथा जो कुछ सर्वव्यापी सिद्धांतों को अधिकृत करते हैं कोई भी प्रबंधक इन वैज्ञानिक पद्धति एवं ज्ञान का दी गई परिस्थिति मामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विशिष्ट तरीके से प्रयोग करता है। एक अच्छा प्रबन्धक वह है जो व्यवहार का कल्पना शक्ति पहल क्षमता आदि को मिलाकर कार्य करता है। एक प्रबंधक एक लंबे अभ्यास के पश्चात् संपूर्णता को प्राप्त करता है।
एक प्रबंध एक प्राप्त ज्ञान का परिस्थितिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्तिनुसार एवं दक्षतानुसार उपयोग करता है। यह संगठन की गतिविधियों में लिप्त रहता है नाजुक परिस्थितियों का अध्ययन करता है एवं अपने सिद्धातों का निर्माण करता है जिन्हें दी गई परिस्थितियों के अनुसार उपयोग में लाया जा सकता है। इससे प्रबंध की विभिन्न शैलियो का जन्म होता है। सर्वश्रेष्ठ प्रबन्धक वह होते हैं जो समर्पित है, जिन्हें उच्च प्रशिक्षण एवं शिक्षा प्राप्त है, उनमें उत्कृष्ट आकांक्षा स्वयं प्रोत्साहन सृजनात्मकता एवं कल्पनाशीलता जैसे व्यक्तिगत गुण है तथा वह स्वयं एवं संगठन के विकास की रखता है।
प्रबन्ध का महत्व
आधुनिक युग में पन्ध का अत्यधिक महत्व है। अच्छे प्रबन्धन के अभाव में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता. समाज का आर्थिक कल्याण कुशल पवना पर ही निर्भर है, यह उद्योग रूपी शरीर का मस्तिष्क एवं प्राण है जिसके बिना उद्योग का संचालन असंभव है तथा प्रबन्ध संगठन की क्रियात्मक शक्ति है। अतः व्यावसायिक क्षेत्र में सुप्रबन्ध का न होना वालू में मकान बनाने के समान है। संक्षेप में प्रबन्ध के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते है-
1. प्राकृतिक साधनों का उपयोग
हमारे देश में यद्यपि प्राकृतिक साधनों का बाहुल्य है लेकिन उनका दोहन न हो पाने के कारण राष्ट्रीय आय कम है। प्रबन्ध की कुशल एवं वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा प्राकृतिक साधनों का विदोहन करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि की जा सकती है।
2. न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन-
आधुनिक प्रबन्ध की प्रणालियों के अध्ययन द्वारा हमें यह मालूम हो जाता है कि मानव मशीन एवं माल में कैसे उचित समन्वय स्थापित किया जाये जिससे न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन किया जा सके।
3. औद्योगिक विकास की गति में तीव्रता
उद्योगों की उत्पादन क्षमता तथा साधनों का पूर्ण उपयोग करने, उत्पादन लागत घटाने, वस्तुओं की किस्म में सुधार करने, अन्ततः औद्योगिक विकास की गति में वृद्धि करने के सन्दर्भ में कुशल व्यावसायिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
4. आर्थिक योजना की सफलता
कुशल प्रबन्ध के द्वारा आर्थिक विकास की योजनाओं को सफल बनाया जा सकता है। वास्तव में आर्थिक नियोजन की सफलता बहुत कुछ कुशल प्रबन्ध पर निर्भर करती है।
5. बेरोजगारी की समस्या का समाधान
बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने में भी कुशल प्रबन्ध से काफी मदद मिलती है। देश में जो नवीन उद्योग धंधे खुले हैं उनका संचालन कुशल प्रबन्धकों द्वारा ही किया जाता है।
6. संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति-
किसी भी नवीन उपक्रम की स्थापना कुछ निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जाती है। कुशल प्रबन्धकों का संस्था के निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में विशेष महत्व होता है।
7. व्यक्तियों की योग्यता का विकास
प्रबन्ध दूसरों से काम कराने की एक कला है। प्रबन्ध से एक तरफ व्यक्तियों की कार्य कुशलता में वृद्धि होती है, दूसरी तरफ उनके मनोबल में भी वृद्धि की जाती है। इस प्रकार प्रबन्ध के कारण व्यक्तियों की योग्यता का विकास होता है।
8. सामाजिक जीवन स्तर में सुधार
अच्छा एवं कुशल प्रबन्ध रोजगार के साधनों में वृद्धि करके प्रति व्यक्ति आय तथा उत्पादन बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है। इससे सामाजिक जीवन स्तर में सुधार होता है।
9. गलाकाट प्रतियोगिता का सफलता से सामना
आज के युग में बाजार के विस्तार के साथ-साथ प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती जा रही है। इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सफलता से सामना वही उत्पादक कर सकता है जिसके उत्पादों की लागत कम से कम होने के साथ किस्म भी अच्छी हो। प्रशासन एवं प्रबन्ध विज्ञान के सिद्धान्तों का प्रयोग कर लागत में काफी कमी लायी जा सकती है।
10. नवीन परिवर्तनों को उपक्रमों में लागू करना
समय के साथ-साथ व्यावसायिक एवं औद्योगिक जगत में अनेक नवीन परिवर्तन हो रहे हैं। इस नवीन परिवर्तनों को संस्था में लागू करना बहुत जरूरी होता है। यह कार्य कुशल प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है। ढंग से
11. श्रम समस्याओं का समाधान करना
श्रम की कुशलता में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि उसकी समस्याओं का सन्तोषजनक समाधान किया जाये तथा श्रम - पूँजी के अन्तर को पाटा जाये। यह कार्य कुशल प्रबन्धक ही कर सकते हैं।
12. वस्तुओं एवं सेवाओं के विक्रय की आधुनिक पद्धतियों का विकास-
प्रशासन एवं प्रबन्ध विज्ञान हमें यह भी बताता है कि शहरों एवं गाँवों के अन्तिम उपभोक्ताओं को वस्तुएँ किस पद्धति से बेची जा सकती हैं ? आजकल वस्तुएँ बेचने के लिए विक्रय की अनेक आधुनिक रीतियों का प्रयोग किया जाता है।
13. सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करना-
प्रबन्धकों को व्यवसाय की स्थापना करने, उसके संचालन करने के अलावा अनेक सामाजिक उत्तरदायित्वों को भी पूरा करना पड़ता है। इस दृष्टि से भी प्रबन्ध का काफी महत्व है।
प्रबंध एक विज्ञान के रूप में
प्रबंध एक क्रमबद्ध ज्ञान समूह है किन्हीं सामान्य सत्य अथवा सामान्य सिद्धांतों को स्पष्ट करता है विज्ञान की मूलभूत विशेषताएँ निम्न हैं-
क्रमबद्ध ज्ञानसमूह
विज्ञान, ज्ञान का क्रमबद्ध समूह है। इसके सिद्धांत कारण एवं परिणाम के बीच में संबंध आधारित है। उदाहरण के लिए पेड़ से रोव का टूटकर पृथ्वी पर आने की घटना गुरुलाकर्षण के सिद्धांत को जन्म देती है।
परीक्षण पर आधारित सिद्धांत-
वैज्ञानिक सिद्धांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है और फिर नियंत्रित परिस्थितिय में बार-बार परीक्षण कर उसकी जाँच की जाती है।
व्यापक वैधता-
वैज्ञानिक सिद्धांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सार्वभौमिक होते हैं।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं प्रबंध विज्ञान के रूप में कुछ विशेषताओं को धारण करता है-
प्रबंध भी क्रमबद्ध ज्ञान है इसके अपने सिद्धांत एवं नियम हैं जो समय- समय पर विकसित हुए हैं, लेकिन ये अन्य विषय जैसे- समाजशास्त्र, मनोविज्ञान शास्त्र एवं गणित से भी प्रेरित होता है। अन्य किसी भी संगठित क्रिया के समान प्रबंध की भी अपनी शब्दावली एवं अवधारणाओं क शब्दकोश है। प्रबंधकों को भी एक-दूसरे से संवाद करते समय समान शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए तभी वह अपने कार्य की स्थिति को समग्र रूप मे समझ पाएँगे ।
प्रबंध के सिद्धांत विभिन्न संगठनों मे वारवार के परीक्षण एवं अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं। चूँकि प्रबंध का संबंध मनुष्य एवं मानवी व्यवहार से है, इसलिए इन परीक्षणों की न तो सही भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही यह प्रतिध्वनित होते हैं। इन सीमाओं के होते हुए भी प्रबंध के विद्वान प्रबंध के सामान्य सिद्धांतों की पहचान करने में सफल रहे हैं। एफ. डब्ल्यू. टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत एवं हेनरी फेयोल के कार्यात्मक प्रबंध के सिद्धांत इसके उदाहरण हैं।
प्रबंध के सिद्धांत विज्ञान के सिद्धांतों के समान विशुद्ध नहीं होते हैं और न ही उनका उपयोग सार्वभौमिक होता है। इनमें परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जाता है, लेकिन यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं जिन्हें भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में लाया जा सकता है । इन सिद्धांतो के प्रबंधकों को प्रशिक्षण एवं उनके विकास के लिए भी उपयोग किया जाता है।
इस प्रकार निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि प्रबन्ध विज्ञान भी है और कला भी। हाँ, यह अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति उतना निश्चित विज्ञान नहीं है। इसका कारण इसमें जड़ तत्वों का अध्ययन न किया जाकर मानवीय पहलुओं का अध्ययन किया जाना है। हाँ, यह एक व्यावहारिक विज्ञान आवश्य है। इसमें विज्ञान के रूप में विशिष्ट प्रबन्धकीय समस्याओं के लिए निरन्तर नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित भी किये जा रहे हैं, परन्तु प्रबन्धकीय समस्याओं के हल के लिए मात्र नियमों व सिद्धान्तों की आवश्यकता न होकर उन्हें प्रयोग में लाने हेतु व्यावहारिक कुशलता, निर्णयन शक्ति व अनुभव की भी आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से प्रबन्ध एक कला हो जाती है।
स्पष्ट है कि प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताएँ लिए हुए है। प्रबंध का उपयोग कला है, लेकिन प्रबंधक और अधिक श्रेष्ठ कार्य कर सकते है यह वह प्रबंध के सिद्धांतों का उपयोग करें। कला एवं विज्ञान के रूप में प्रबंध एक-दूसरे से भिन्न नहीं है, बल्कि पूरक हैं।
प्रबंध एक पेशे के रूप में
सभी प्रकार की संगठन प्रक्रियाओं का प्रबंधन आवश्यक है और संगठनों को उनका प्रबंध करने के लिए कुछ विशिष्ट योग्यताओं एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। एक ओर तो व्यवसाय निगमित स्वरूप में वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर व्यवसाय के प्रबंध पर अधिक जोर दिया जा रहा है। गत कुछ दशकों से विश्व में प्रबन्ध की एक पेशे के रूप में मान्यता मिलने लगी है और उद्योगों में पेशेवर प्रबन्ध का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। क्या इसका अर्थ यह हुआ कि प्रबंध एक पेशा है ? इसके लिए पेशे की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन करना आवश्यक है। पेशे की निम्न विशेषताएँ हैं-
1. भलीभांति परिभाषित ज्ञान का समूह
सभी पेशे भली-भांति परिभाषित ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे शिक्षा से अर्जित किया जा सकता है।
2. अवरोधित प्रवेश
पेशे में प्रवेश परीक्षा अथवा शैक्षणिक योग्यता के द्वारा सीमित होती है। उदाहरण के लिए भारत में यदि किसी को चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना है तो उसे भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेष परीक्षा को पास करना होगा।
3. पेशागत परिषद् -
सभी पेशे किसी न किसी परिषद् सभा से जुड़े होते हैं, जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं कार्य करने के लिए प्रमाण पत्र जारी करते हैं एवं आधार संहिता तैयार करते हैं तथा उसको लागू करते हैं। भारत में वकालत करने के लिए वकीलों को बार काउंसिल का सदस्य बनना होता है जो उनके कार्यों का नियमन एवं नियंत्रण करता है।
4. नैतिक आचार संहिता-
सभी पेशे आचार संहिता से बंधे हैं जो उनके सदस्यों के व्यवहार को दिशा देते हैं। उदाहरण के लिए जब डॉक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपने कार्य नैतिकता की शपथ लेते हैं।
5. सेवा का उद्देश्य
पेशे का मूल उद्देश्य निष्ठा एवं प्रतिबद्धता है तथा अपने ग्राहकों के हितों की साधना है। एक वकील यह सुनिश्चित करता है कि उसके मुवक्किल को न्याय मिले। प्रबंध पेशे के सिद्धांतों को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है। फिर भी इसमें कुछ विशेषताएँ होती हैं, जो निम्न हैं-
पूरे विश्व में प्रबंध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्थित समूह पर आधारित है जिसके परिभाषित - सिद्धांत हैं जो व्यवसाय की विभिन्न स्थितियों पर आधारित है। इसका ज्ञान विभिन्न महाविद्यालय एवं पेशेवर संस्थानों में पुस्तकों एवं पत्रिकाओं के माध्यम से अर्जित किया जा सकता है। प्रबंध को विषय के रूप में विभिन्न संस्थानों में पढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ संस्थानों की स्थापना केवल प्रबंध की शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई है जैसे भारत में भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) इन संस्थानों में प्रवेश साधारणयतः प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है।
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