PEB Exam management notes in hindi प्रबंध का अर्थ परिभाषा उद्देश्य

 PEB Exam management notes in Hindi

PEB Exam management notes in hindi प्रबंध का अर्थ परिभाषा  उद्देश्य



PEB Exam management notes in Hindi



प्रबंध (Management) 


प्रबन्ध का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी की मानव सभ्यता क्योंकि स्वयं मानव सभ्यता के विकास में कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में प्रबन्ध का भी योगदान रहा है। इस प्रकार प्रबन्ध की अवधारणा मानवीय सभ्यता के साथ विकसित होती चली गयी जो आज आधुनिक प्रबन्ध के नाम से जानी जाती है।

 

प्रबन्ध आधुनिक व्यवस्थाओं, संगठनों को अपने लक्ष्य प्राप्ति की एक युक्ति है जिसके कुशल संचालन पर ही व्यवसाय की सफलता निर्भर करती है। इसलिए पीटर ड्रकर कहते हैं कि "प्रबन्धक ही प्रत्येक व्यापार का गतिशील एवं जीवनदायक तत्व होता है, उसके नेतृत्व के अभाव में उत्पादन के साधन केवल साधन मात्र रह जाते हैं. कभी उत्पादक नहीं बन पाते। "

 

प्रवन्ध से तात्पर्य 

प्रवन्ध से तात्पर्य है कि कोई भी कार्य कुशलता व मितव्ययिता पूर्वक कैसे किया जाये। वर्तमान जटिल व्यावसायिक युग में प्रबन्ध को अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। वास्तव में प्रबन्ध दूसरों से काम लेने की एक युक्ति है। किसी उपक्रम में श्रमिक कार्य करते हैं, इसमें प्रबन्ध को यह सोचना पड़ता है कि किस प्रकार श्रमिकों से अच्छे ढंग से काम लिया जा सकता है। प्रबन्ध को यह निर्णय लेना पड़ता है कि वास्तव में क्या करना है और उसको करने का उत्तम तरीका क्या है कुछ व्यक्तियों ने इसे संकीर्ण अर्थ में लिया है। जबकि बहुमान्य धारणा व्यापक अर्थ के पक्ष में है।


प्रबंध का अर्थ 

संकीर्ण अर्थ में प्रबन्ध दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराने की युक्ति है और वह व्यक्ति जो दूसरे व्यक्ति से कार्य करा सकता है, प्रबन्धक कहलाता हैं। विस्तृत अर्थ में प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है और यह निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न मानवीय प्रयासों से सम्बन्ध रखता है। जबकि थियो हेमेन ने प्रबन्ध को तीन अर्थों यथा प्रबन्ध अधिकारियों के अर्थ में, प्रबन्ध विज्ञान के अर्थ में एवं प्रबन्ध प्रक्रिया के अर्थ में प्रयुक्त किया है। "प्रथम दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का अभिप्राय सामान्यतः प्रबन्ध अधिकारियों से होता है। जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित इकाई में कार्य करने वाले लोगो के कार्यों पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है। द्वितीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का अभिप्रायः एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें व्यवसायिक नियोजन संगठन, संचालन, समन्वय, प्रेरणा, नियंत्रण आदि से संबंधित सिद्धांतों का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है। तृतीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का आशय एक प्रक्रिया से है। जिसके अन्तर्गत दूसरे लोगों के साथ मिल-जुलकर कार्य किया जाता है।" 


व्यवसाय एवं संगठन के संदर्भ में प्रबंधन (Management) का अर्थ है- उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबंधन के अंतर्गत आयोजन (नियोजन) (Planning), संगठन निर्माण (Organizing), स्टाफिंग (Staffing). नेतृत्व करना (Leading) या Directing) तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं।

 

प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित है जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं । संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं।


प्रबंध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया गया है। वैसे यह किसी भी उद्यम की विभिन्न क्रियाओं के लिए मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है। 


प्रबंध वह क्रिया है जो हर उस संगठन में आवश्यक है जिसमें लोग समूह के रूप में कार्य कर रहे हैं। संगठन में लोग अलग-अलग प्रकार के कार्य करते हैं, लेकिन वह अभी समान उद्देश्य को पाने के लिए कार्य करते हैं। प्रबंध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार से प्रबंध यह देखता है कि कार्य पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किए जाएँ (अर्थात् प्रभाव पूर्णता) कम से कम साधन एवं न्यूनतम लागत (अर्थात् कार्य क्षमता) पर हो. 

 

प्रभावी अथवा कार्य को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभिप्रायः दिए गए कार्य को संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कार्य करने, क्रियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, इसका कार्य अंतिम परिणाम प्राप्त करना है, लेकिन मात्र कार्य को संपन्न करना ही पर्याप्त नहीं है इसका एक और पहलू भी है और वह है कार्यकुशलता अर्थात् कार्य को कुशलतापूर्वक करना ।

 

कुशलता का अर्थ 

कुशलता का अर्थ है कार्य को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। इसमें एक प्रकार का लागत-लाभ विश्लेषण एवं आगत तथा निर्गत के बीच संबंध होता है। यदि कम साधनों (आगत) का उपयोग कर अधिक लाभ (निर्गत) प्राप्त करते हैं तो हम कहेंगे कि क्षमता में वृद्धि हुई है। क्षमता में वृद्धि होगी यदि उसी लाभ के लिए अथवा निर्गत के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाता है एवं कम लागत व्यय की जाती है।

 

किम्बॉल एवं किम्बॉल के शब्दों में,प्रबन्ध का आशय

 "व्यापक रूप में प्रबन्ध का आशय उस कला से है। जिसके द्वारा किसी उद्योग में मानव और माल को नियंत्रित करने के लिए अधिक सिद्धान्तों को व्यवहार में लाया जाता है।"

 

 

जेम्स एवं लुण्डी के अनुसार प्रबन्ध

"प्रबन्ध मुख्य रूप से विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दूसरों के प्रयत्नों को नियोजित, समन्वित प्रेरित तथा नियंत्रित करने का कार्य है।" संगठन करना,

 

हेनरी फेयोल के अनुसार प्रबन्ध

"प्रबन्ध को एक प्रक्रिया मानते हुए कहते हैं कि प्रबन्ध से आशय पूर्वानुमान लगाना, योजना बनाना, आदेश देना, समन्वय करना व नियंत्रण स्थापित करना आदि है।"

 

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि प्रबन्ध का आशय उस कला से है जिसके द्वारा प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित किया जाता है तथा सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय क्रियाओं का निर्देशन, संचालन, नेतृत्व तथा नियंत्रण किया जाता है।"

 

प्रबंध की विशेषताएँ 

प्रबंध की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित है-

 

1. प्रबंध एक उद्देश्यपूर्वक प्रक्रिया है- 

किसी भी संगठन के कुछ मूलाधार उद्देश्य होते हैं जिनके कारण उसका अस्तित्व है। यह उद्देश्य सरल एवं स्पष्ट होने चाहिए । प्रत्येक संगठन के उद्देश्य भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिए एक फुटकर दुकान का उद्देश्य बिक्री बढ़ाना हो सकता है, लेकिन 'दि स्पास्टिकस सोसाइटी ऑफ इंडिया' का उद्देश्य विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करना है। प्रबंध संगठन के विभिन्न लोगों के प्रयत्न को इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक सूत्र में बाँधता है।

 

2. प्रबंध सर्वव्यापी है- 

संगठन चाहे आर्थिक हो या सामाजिक या फिर राजनैतिक प्रबंध की क्रियाएँ सभी में समान हैं। एक पेट्रोल पंप को प्रबंध की उतनी ही आवश्यकता है जितनी की एक अस्पताल अथवा एक विद्यालय की है। भारत में प्रबंधकों का जो कार्य है वह यू.ए.एस.जर्मनी अथवा ज में भी होगा। वह इन्हें कैसे करते हैं यह भिन्न हो सकता है। यह भिन्नता भी उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज एवं इतिहास की भिन्नता के कारण हो" सकती है।

 

3. प्रबंध बहुआयामी है- 

प्रबंध एक जटिल क्रिया है जिसके तीन प्रमुख परिमाण हैं, जो इस प्रकार है- 

(i) कार्य का प्रबंध 

सभी संगठन किसी न किसी कार्य को करने के लिए होते हैं। कारखानें में किसी उत्पादक का विनिर्माण होता है तो एक वस्त्र भंडार में ग्राहक की किसी आवश्यकता की पूर्ति की जाती है, जबकि अस्पताल में एक मरीज का इलाज किया जाता है। प्रबंध इन कार्यों को प्राप्य उद्देश्यों में परिवर्तित कर देता है तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के मार्ग निर्धारित करता है। इनमें सम्मलित हैं समस्याओं का समाधान, निर्णय लेना, योजनाएँ बनाना, बजट बनाना, दायित्व निश्चित करना एवं अधिकरों का प्रत्यायोजन करना । 


(ii) लोगों का प्रबंध 

मानव संसाधन अर्थात् लोग किसी भी संगठन की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं तकनीक में सुधारों के बाद भी लोगों से काम करा लेना आज भी प्रबंधक का प्रमुख कार्य है। लोगों के प्रबंधन के दो पहलू हैं- 

(a) अलग आवश्यकताओं एवं व्यवहार वाले व्यक्तियों के रूप में प्रथम तो यह कर्मचारियों को अलग मानकर व्यवहार करता है। 

(b) दूसरा यह लोगों के साथ उन्हें एक समूह मानकर व्यवहार करता है। (प्रबंध लोगों की ताकत को प्रभावी बनाकर एवं उनकी कमजोरी को अप्रासंगिक बनाकर उनसे संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम कराता है।

 

4. परिचालन का प्रबंध 

संगठन कोई भी क्यों न हो इसका आस्तित्व किसी न किसी मूल उत्पाद अथवा सेवा को प्रदान करने पर टिका होता है। इसके लिए एक ऐसी उत्पादन प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जो आगत माल को उपभोग के लिए आवश्यक निर्गत में बदलने के लिए आगत माल एवं तकनीक के प्रवाह को व्यवस्थित करती है। यह कार्य के प्रबंध एवं लोगों के प्रबंध दोनों से जुड़ी होती है। 


5. प्रबंध एक सामाजिक प्रक्रिया है- 

प्रबंध एक सामाजिक प्रक्रिया इस रूप में है कि किसी संगठन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व मानव संसाधन होते हैं। इन मानवीय संसाधनों द्वारा ही भौतिक संसाधनों को गतिशीलत बनाया जाता है और उनका कुशल व प्रभावी उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त, प्रबंध एक सामाजिक प्रक्रिया इसलिए भी है कि यह समाज से आगतों (Inputs) को प्राप्त करता है और उन्हें अपने निर्गतों (Outputs) को प्रदान करता है।

 

6. प्रबंध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है- 

प्रबंध की प्रक्रिया सार्वभौमिक या सर्वव्यापी है। प्रबंध की प्रक्रिया के तत्व नियोजन, संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन और नियंत्रण किसी भी देश या संस्कृति में सभी स्तरों पर सभी संगठनों में समान रूप से देखे जा सकते हैं। प्रत्येक प्रकार के संगठन चाहे वह सरकारी, सैन्य, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, चिकित्सकीय या व्यावसायिक हों, इन सभी संगठनों के प्रबंधकों द्वारा इन प्रबंधकीय कार्यों का संपादन करना पड़ता है।

 

7. संगठित क्रिया- 

प्रबंध संगठित क्रियाओं की प्रक्रिया है। जब भी किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति हेतु व्यक्ति समूह के रूप में साथ-साथ काम करते हैं, प्रबंध की आवश्यकता महसूस होती है। क्रियाओं को संगठित रूप से करने के लिए विस्तृत रूप से संगठन संरचना बनाई जा सकती है अथवा मोटे तौर पर समूह बनाया जा सकता है। यह एक बड़ी कंपनी हो सकती है अथवा एक स्थानीय सामाजिक क्लब हो सकता है, लेकिन इन सभी प्रकार के संगठनों में एक चीज सामान्य है कि वे अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कुशलतापूर्वक करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें व्यक्तियों के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना पड़ता है। यह सिर्फ प्रबंध की प्रक्रिया द्वारा ही संभव है।

 

8. उद्देश्यों की विद्यमानता-

संगठित समूह की गतिविधियों को निर्दिष्ट दिशा में अग्रसर बनाने के लिए कोई उद्देश्य या उद्देश्यों का समुच्चय होना जरुरी हैं प्रत्येक मानवीय संगठन के उद्देश्य का होना एक मूलभूत कसौटी है, क्योंकि सभी संगठनों की संरचना सोच-समझकर उद्देश्यपूर्ण ढंग से की जाती है इन उद्देश्यों को लेकर संगठन या समूह के सदस्यों में सहमति होनी चाहिए। संगठनात्मक उद्देश्य उन गन्तव्यों को प्रदर्शित करते हैं जिनकी संगठन द्वारा प्राप्ति की

 

9. प्रबंध एक विधा- 

विधा के रूप में प्रबंध संगठित ज्ञान का वह समूह है जिसका शिक्षण प्रशिक्षण किया जा सकता है। इस रूप में प्रबंध अन्य समाज विज्ञानों की भांति ही अध्ययन का ऐसा क्षेत्र है जिसकी अनन्त सीमाएँ हैं। 10. प्रबंध अदृश्य है कुछ विद्वानों के मत में प्रबंध एक अदृश्य शक्ति है। किसी संगठन में प्रबंध की जानकारी इसके द्वारा प्राप्त किये गये परिणामों से होती है। यदि वांछित परिणामों की प्राप्ति होती है तो उसे कुशल एवं प्रभावी प्रबंध कहा जाता है और इसके विपरीत प्रबंधहीनता, कुप्रबंध या अकुशल प्रबंध होने की बात कही जाती है।

 

11. प्रबंध बहुविधात्मक है- 

प्रबंध मूल रूप से बहुविधात्मक या बहु-विषयक है। इसका आशय है कि यद्यपि प्रबंध विषय का विकास एक विशिष्ट और पृथक विषय के रूप में हुआ है तथापि इसने समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र आदि विभिन्न विषयों से बहुत-सी अवधारणाओं और सिद्धांतों को अपनाया है। प्रबंध ने इन विषयों से विचारों व अवधारणाओं को ग्रहण कर इन्हें एकीकृत करके नवीन परिवेश में प्रस्तुत किया है, ताकि संगठनों के प्रबंधन में व्यावहारिक सहायता मिल सके। 12. प्रबंध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है- प्रबंध प्रक्रिया निरंतर, एकजुट लेकिन पृथक-पृथक कार्यों नियोजन, संगठन, निर्देशन नियुक्तिकरण एवं नियंत्रण की एक श्रृंखला है। इन कार्यों को सभी प्रबंध, सदा साथ-साथ ही निष्पादित करते हैं। तुमने ध्यान दिया होगा फैवमार्ट में सुहासिनी एक ही दिन में कई अलग-अलग कार्य करती है। किसी दिन तो वह भविष्य में प्रदर्शन की योजना बनाने पर अधिक समय लगाती हैं तो दूसरे दिन वह कर्मचारियों की समस्याओं को सुलझाने में लगी होती है। प्रबंधक के कार्यों में कार्यों की श्रृंखला समवित है जो निरंतर सक्रिय रहती है।

 

13. प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है- 

संगठन भिन्न-भिन्न आवश्यकता वाले अलग-अलग प्रकार के लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक व्यक्ति संगठन में किसी न किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्मिलित होता है, लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करते हैं। इसके लिए एक टीम के रूप में कार्य करना होता है एवं व्यक्तिगत प्रयत्नों में समान दिशा में समन्वय की आवश्यकता होती है। । इसके साथ ही आवश्यकताओं एवं अवसरों में परिवर्तन के अनुसार प्रबंध सदस्यों को बढ़ने एवं उनके विकास को संभव बनाता है।

 

14. प्रबंध एक गतिशील कार्य है- 

प्रबंध एक गतिशील कार्य होता है एवं इसे बदलते पर्यावरण में अपने अनुरूप ढालना होता है। संगठन वाह्य पर्यावरण के संपर्क में आता है जिसमें विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक तत्व सम्मिलित होते हैं सामान्यता के लिए संगठन को, अपने आपको एवं अपने उद्देश्यों को पर्यावरण के अनुरूप बदलना होता है। शायद आप जानते हैं कि फास्टफूड क्षेत्र के विशालकाय संगठन मैकडोनल्स ने भारतीय बाजार में टिके रहने के लिए अपनी खानपान सूची में भारी परिवर्तन किए। 15. प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है- प्रबंध एक अमूर्त शक्ति है, जो दिखाई नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कार्यों के रूप में जिसकी उपस्थिति को अनुभव किया जा सकता है। संगठन में प्रबंध के प्रभाव का भान योजनाओं के अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ति, प्रसन्न एवं संतुष्ट कर्मचारी के स्थान पर व्यवस्था के रूप में होता है।

 

प्रबंध के उद्देश्य 

प्रबंध कुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कार्य करता है। उद्देश्य किसी भी क्रिया के अपेक्षित परिणाम होते हैं। इन्हें व्यवसाय के मूल प्रयोजन से प्राप्त किया जाना चाहिए। किसी भी संगठन के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं तथा प्रबंध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से पाना होता हैं। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

 

1. संगठनात्मक उद्देश्य 

प्रबंध संगठन के लिए उद्देश्यों के निर्धारण एवं उनको पूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है। इसे सभी क्षेत्र के अनेक प्रकार के उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तथा सभी हितार्थियों जैसे अंशधारी, कर्मचारी, ग्राहक, सरकार आदि के हितों को ध्यान में रखना होता है। किसी भी संगठन का मुख्य उद्देश्य मानव एवं भौतिक संसाधनों के अधिकतम संभव लाभ के लिए उपयोग होना चाहिए जिसका तात्पर्य है व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करना। ये उद्देश्य है- अपने आपको जीवित रखना, लाभ अर्जित करना एवं बढ़ोत्तरी । 

(a) जीवित रहना 

किसी भी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्तित्व को बनाए रखना होता है। प्रबंध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए संगठन को पर्याप्त धन कमाना चाहिए जिससे कि लागतों को पूरा किया जा सके। 

(b) लाभ व्यवसाय के लिए इसका बने रहना ही पर्याप्त नहीं है। प्रबंध को यह सुनिश्चित करना होता है कि संगठन लाभ कमाए। लाभ उद्यम के निरंतर सफल परिचालन के लिए एक महत्वपूर्ण प्रोत्साहन का कार्य करता है। लाभ व्यवसाय की लागत एवं जोखिमों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है। 

(c) बढ़ोत्तरी दीर्घ अवधि में अपनी संभावनाओं में वृद्धि व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है। इसके लिए व्यवसाय का बढ़ना बहुत महत्व रखता है। उद्योग में बने रहने के लिए प्रबंध को संगठन विकास की संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। व्यवसाय के विकास को विक्रय आवर्त, कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि या फिर उत्पादों की संख्या या पूँजी के निवेश में वृद्धि आदि के रूप में मापा जा सकता है। 


2. सामाजिक उद्देश्य 

समाज के लिए लाभों की रचना करना है। संगठन चाहे व्यावसायिक है अथवा गैर व्यावसायिक समाज के अंग होने के कारण उसे कुछ सामाजिक दायित्वों को पूरा करना होता है। इसका अर्थ है समाज के विभिन्न अंगों के लिए अनुकूल आर्थिक मूल्यों की रचना करना । इसमें सम्मिलित है- उत्पादन के पर्यावरण भिन्न पद्धति अपनाना, समाज के लोगों से वंचित वर्गों को रोजगार के अवसर प्रदान करना एवं कर्मचारियों के लिए विद्यालय, शिशुगृह जैसी सुविधाएँ प्रदान करना । 


3. व्यक्तिगत उद्देश्य - 

संगठन उन लोगों से मिलकर बनता है जिनसे उनका व्यक्तित्व, पृष्ठभूमि, अनुभव एवं उद्देश्य अलग-अलग होते हैं। ये सभी अपनी विविध आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु संगठन का अंग बनते हैं। यह प्रतियोगी वेतन एवं अन्य लाभ जैसी वित्तीय आवश्यकताओं से लेकर साथियों द्वारा मान्यता जैसी सामाजिक आवश्यकताओं एवं व्यक्तिगत बढ़ोत्तरी एवं विकास जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं के रूप में अलग-अलग होती है। प्रबंध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्तिगत उद्देश्यों का संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है।

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