शिक्षा पर्यवेक्षण का परम्परागत एवं आधुनिक प्रत्यय | Concept of education supervision
शिक्षा पर्यवेक्षण का परम्परागत प्रत्यय
शिक्षा पर्यवेक्षण का परम्परागत प्रत्यय
शिक्षा - प्रशासन का स्वरूप सैदव से एक ही स्थिति में नहीं रह सका। आज तो पर्यवेक्षण का प्रत्यय पर्याप्त आधुनिक, परिष्कृत एवं महत्वपूर्ण दिखाई पड़ता है। परन्तु पूर्व समय में पर्यवेक्षण का परम्परागत रूप अत्यन्त संकीर्ण, सुझाव रहित तथा आधिकारिक था। इस प्रकार के प्रत्यय से सम्बन्धित कुछ बातों का उल्लेख आवश्यक है।
शिक्षा पर्यवेक्षण का परम्परागत प्रत्यय
शिक्षा पर्यवेक्षण के प्राचीन रूप को ही परम्परागत प्रत्यय के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है। वास्तव में यह “पर्यवेक्षण" निरीक्षण ही था। सरकार द्वारा नियुक्त निरीक्षक एक साधारण व्यक्ति होता था जिसका मुख्य कर्तव्य सरकार द्वारा दिये गये अनुदानों का निरीक्षण करना था। निरीक्षक के प्राचीन तथा परम्परागत विचारों के अनुसार ही शिक्षा का कार्य संचालित होता था। निरीक्षण कार्य में शासक तथा शासित भावना प्रबल होती थी। निरीक्षक का ध्यान शिक्षक की त्रुटियों को खोजने की ओर होता था, छात्रों के विकास कार्य के प्रति उसका लगाव नहीं होता था। वास्तव में यह स्थिति केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व के सभी देशों में व्याप्त थी। आई तथा नेटजर ने इस परम्परागत निरीक्षक के विषय में अपना मत प्रकट करते हुए कहा है कि-
“निरीक्षण का मुख्य सम्बन्ध विद्यालय प्रशासन तथा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार आवश्यकताओं की पूर्ति लिये सभाएं करने से अधिक होता हथा । शिक्षण सामग्री की उन्नति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं था।”
परम्परागत शिक्षा पर्यवेक्षण के दोष
परम्परागत पर्यवेक्षण में केवल दोष अधिक थे। इसके अन्तर्गत निरीक्षक अपनी तानाशाही प्रवृत्ति को अपनाकर शिक्षण संस्थाओं में दुरत गति से कार्य करते थे तथा अपने मिथ्या अहं की सन्तुष्टि करके ही निरीक्षक के उत्तरदायित्व को पूरा करना समझते थे। इस प्रकार के निरीक्षण के दोषों का संक्षेप में इस प्रकार उल्लेख किया जा सकता है.
1. परमपरागत पर्यवेक्षण में जनतान्त्रिक सिद्वान्तों का उल्लंघन किया जाता था।
2. शिक्षाधिकारियों का ध्यान शासन भावना की ओर अधिक तथा छात्रों की सीखने की प्रवृत्ति में वृद्धि करने की ओर कम ध्यान होता था।
3. प्राचीन विचारों से पोषित निरीक्षकों के रूढिगत विचारों से शिक्षा प्रक्रिया प्रभावित होती थी जिसमें विकास प्रक्रिया लुप्त ही रहती थी।
4. शिक्षकों को परम्परागत शिक्षा प्रणाली को अपनाने के लिये विवश किया जाता था तथा उन्हें नवीन सुझावों तथा सुधारों से वंचित ही रखा जाता था ।
5. परम्परागत निरीक्षण का कुप्रभाव शिक्षकों की सम्मान भावना पर आघात करने वाला था।
6. शिक्षकों को शैक्षिक कार्यों में पहल करने के लिये किसी प्रकार की प्रेरणा नही दी जाती थी।
7. परम्परागत निरीक्षण की व्यवस्था मानवीय सम्बन्धों की श्रेष्ठता में बाधक होती थी।
8. इस प्रकार के परम्परागत निरीक्षण में सर्वत्र अपर्याप्त, असुरक्षा, निराशा, तथा आशंका व्याप्त होती है। वस्तुतः यह दशा मानसिक स्वास्थ्य के सिद्धान्तों के प्रतिकूल थी।
9. परम्परागत पर्यवेक्षण के अन्तर्गत शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिशु मनोविज्ञान आदि कि पूर्ण अवहेलना की जाती थी।
10. इस प्रकार के पर्यवेक्षण में निरीक्षकों द्वारा शिक्षकों के छिद्रान्वेषण कार्य को ही अधिक महत्व दिया जाता था।
11. परम्परागत शैक्षिक पर्यवेक्षण में स्वतंन्त्रता, अग्रदर्शिता तथा मौलिकता के सिद्धान्तों का हनन करके अनेक स्थान पर दमन, नियन्त्रण तथा मानसिक दासता की नीतियों का अधिक रूप में अपनाया जाता था।
व्यापक दृष्टिकोण का प्रारम्भ
परम्परागत पर्यवेक्षण के दोषों की ओर धीरे-धीरे जनता तथा शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित होता गया। शैक्षिक सुधार, छात्र व्यक्तित्व विकास, शिक्षक तथा शिक्षण कार्यों में सुधार करने के लिये योजनाएं बनाई जाने लगी। पर्यवेक्षण को शिक्षा का विकास करने वाली प्रक्रिया समझा जाने लगा तथा शिक्षकों को शिक्षण कला में दक्ष बनाने के सम्बन्ध में विचार किया जाने लगा। इस सम्बन्ध मे जॉन ए बर्रकी ने सुझाव दिया -
“क्योंकि सम्पूर्ण पर्यवेक्षण ही प्रकृतिवश शिक्षण प्रक्रिया से सम्बन्धित है, अतएव विद्यालय पर्यवेक्षक को भी शिक्षकों का शिक्षक समझा जाने चाहिए।"
इन सभी सुधारों तथा सुझावों का स्वागत करने के उपरान्त भी अभी तक शैक्षिक पर्यवेक्षण का क्षेत्र उन्नत नहीं हो पाया था। इसका मुख्य कारण चिकित्सिक साधनों का अभाव था। पर्यवेक्षण के अभावों की खोज तो हो चुकी थी अर्थात् इस ओर ध्यान नहीं दिया गया था। विश्व के सभी देशों में पर्यवेक्षण के रूप में नवीनता तथा आधुनिकता लाने के लिये भरपूर प्रयास किया जाने लगा। नीचे की पंक्तियों में आधुनिक विशेषताओं से युक्त शैक्षिक पर्यवेक्षण के सम्बन्ध में प्रकाश डाला जा रहा है-
शिक्षा पर्यवेक्षण का आधुनिक प्रत्यय
शैक्षिक पर्यवेक्षण के आधुनिक प्रत्यय में सहयोग की भावना तथा सामुहिक प्रयास को अधिक महत्व दिया जाता है। केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र अमरीका आदि देशों में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक सुधार हुए। इन सुधारों में पर्यवेक्षण के क्षेत्र में भी आशाजनक सुधार करने पर ध्यान आकर्षित किया गया। इन सुधारों की आवश्यकता भी परिस्थितिवश ही प्रतीत हुई तथा भारतवर्ष की स्वतंन्त्रता प्राप्ति के साथ- साथ शैक्षिक सुविधाओं में भी विस्तार किया गया। छात्र संख्या में भी वृद्धि हुई तथा शिक्षा के प्रति जन- जागरण भी अधिक होने लगा। सरकारी सहायता से विद्यालय भवनों का निर्माण किया गया तथा शिक्षकों की नियुक्ति में भी वृद्धि की गयी। शिक्षा के क्षेत्र में पाठ्यक्रम, शिक्षा के उद्देश्य तथा शिक्षक-प्रशिक्षण को भी विकसित किया गया। इन सभी बातों का प्रभाव यह हुआ कि वर्तमान युग में शैक्षिक प्रशासन तथा पर्यवेक्षण को एक ऐसी प्रक्रिया समझा जाने लगा जो विद्यालयों की दशा को उत्तम बनाने में सहायक हो सकती है।
शिक्षा के प्रमुख आधारों में समाजशास्त्रीय आधार को प्रमुख रूप में स्वीकार किया जाता है। इसी विचार के अनुसार शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का साधन भी माना गया है। बालकों के सर्वांगीण विकास में अध्यापक, प्रधानाचार्य तथा विद्यालय का प्रमुख हाथ होता है। अनेक विचार गोष्ठियों के परिणाम स्वरूप् पर्यवेक्षण का कार्य विद्यालय की उन्नति में निश्चित रूप से सहायक होता है। शिक्षा-शास्त्रियों तथा उच्च कोटि के विचारकों ने पर्यवेक्षण के सम्बन्ध में नये ढंग से विचार करना आरम्भ किया। पर्यवेक्षण को प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों के मिले-जुले प्रयास का परिणाम ही अधिक समझा जाने लगा। सन् 1956 में मद्रास में प्रधानाचार्या की एक प्रमुख गोष्ठी में पर्यावरण पर गम्भीर विचार करते हुए यह मत स्पष्ट किया गया कि प्रभावशाली पर्यवेक्षण के अन्तर्गत आलोचना की अपेक्षा निर्देशन देना अधिक होता है, उसमें रचनात्मक सुझावों को अधिक महत्व दिया जाता है, प्रधानाचार्य का आदर्श एवं अनुकरणीय चरित्र ही अध्यापकों को प्रभावित करने में अत्यधिक सक्षम सिद्ध हो सकता है।
शैक्षिक पर्यवेक्षण के आधुनिक प्रत्यय का मूल उद्देश्य शिक्षक की सहायता करना ही है। इसके अतिरिक्त कक्षा भवन का पर्यवेक्षण, पाठयक्रम विस्तार, मूल्यांकन एवं परीक्षा, बालक का मनोवैज्ञानिक अध्ययन आदि कार्यों में सुधार करना भी वर्तमान पर्यवेक्षण का मुख्य कार्य है। आधुनिक प्रत्यय की सर्वाधिक विशेषता सहयोग की भावना है। इस सम्बन्ध में एन0ई0आर0टी0 दिल्ली (1966) की एक रिपोर्ट में भी संकेत किया गया।
"पर्यवेक्षण शिक्षकों की वैयक्तिक योग्यताओं की अभिवृद्धि में सहायक होता है। यह ऐसी विशिष्ट सेवा है जो छात्रों को समझने तथा छात्रों का चहंमुखी विकास करने में सहायक सिद्ध होती है। "
वास्तव में शैक्षिक पर्यवेक्षण का आधुनिक प्रत्यय शिक्षण सामग्री की उन्नति करने की प्रक्रिया से ही प्रारम्भ होता है। तथा इसके अनतर्गत शिक्षकों की कार्यक्षमता की अभिवृद्धि की ओर अधिकाधिक ध्यान आकर्षित किया जाता है। आधुनिक शैक्षिक पर्यवेक्षण की कुछ ऐसी विशेषताए हैं जिन्हें स्पष्ट करना आवश्यक प्रतीत होता है।
आधुनिक पर्यवेक्षण की विशेषताएँ-
आधुनिक पर्यवेक्षण की विशेषताएं जनतान्त्रिक प्रणाली के अनुकूल है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण द्वारा छात्रों की तथा अध्यापकों के व्यक्तित्व का अधिक विकास किया जा सकता है। कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. सहयोग की भावना-
आधुनिक पर्यवेक्षण में सहयोग की भावना पर बल दिया जाता है। इसके अन्तर्गत शिक्षक एवं प्रधानाचार्य तथा अनय पर्यवेक्षक मिल-जुल कर समस्या का समाधान करते हैं। इस प्रक्रिया से कार्यकर्त्ताओं में आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। पर्यवेक्षण द्वारा शिक्षकों को सहयोग देने के लिये उत्साहित किया जाता है।
2. अधिक जनतान्त्रिक तथा अभिवृत्यात्मक-
जनतन्त्र के मुख्य सिद्धान्त “समानता, स्वतन्त्रता, भ्रातृभाव" " आदि हैं। आधुनिक पर्यवेक्षण में समानता तथा स्वतन्त्रता के अवसर प्रदान किये जाते हैं। वास्तव में यह पर्यवेक्षण भयमुक्त तथा आशंकामुक्त होता है। इसके अन्तर्गत पर्यवेक्षक का रूप भयावह तथा आतंककारी न होकर सौहार्दपूर्ण होता है। यह पर्यवेक्षण आधुनिक प्रवृतियों पर आधारीत हैं। विद्यालय को आजकल एक "लघु समाज" कहा जाता है। विद्यालय रूपी समाज में जनतन्त्रात्मक प्रणाली के अनुरूप पर्यवेक्षण सजग रहता है। आधुनिक पर्यवेक्षण में सहयोगात्मक भावना व्याप्त होने के कारण छात्रों तथा शिक्षकों की विभिन्न प्रवृतियों का अधिकाधिक विकास करना, पर्यवेक्षण के स्वस्थ दृष्टिकोण के अनुकूल शिक्षण विधि में परिवर्तन करना, आदि की ओर आधुनिक पर्यवेक्षण सजग रहता है। आधुनिक पर्यवेक्षण में सहयोगात्मक भावना व्याप्त होने के कारण छात्रों तथा शिक्षकों की विभिन्न प्रवृतित्तयों को उचित रूप में विकसित करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते है।
3. वैज्ञानिक विधि-
आधुनिक पर्यवेक्षण प्राचीन तथा परम्परागत विधियों में विश्वास नहीं रखता। इसके अन्तर्गत जो विधि अथवा नवीन पद्धति अपनाई जाती है वह पूर्णतया परीक्षित तथा विश्वसनीय होती है। आधुनिक पर्यवेक्षण में वैज्ञानिक विधि को अपनाया जाता है। पर्यवेक्षण के विभिन्न कार्यक्रमों में “समस्या का चयन, तथ्यों का संकल्न तथा वर्गीकरण, सम्भावित विधियों का चयन, परिकल्पना का निमार्ण, व्याख्या तथा सामान्यीकरण” आदि वैज्ञानिक विधि के सोपानों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
4. रचनात्मक-
आधुनिक पर्यवेक्षण का किसी एक ही व्यक्ति के आदेष पर संचालन नहीं किया जाता है। इस प्रकार के पर्यवेक्षण में सुधार पर ध्यान दिया जाता है जिसके लिये सभी सम्बन्धित व्यक्तियों का परामर्श लिया जाता है, उनकी मौलिकता तथा रचनात्मकता को विकसित करने के लिये स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। शिक्षण विधि तथा शिक्षण सामग्री में नवीन प्रयोगों को करने के लिये शिक्षकों को उत्साहित किया जाता है। शिक्षकों की अन्तर्निहित क्षमताओं का विकास करने के लिये आधुनिक पर्यवेक्षण पूर्ण सहयोग प्रदान करता है।
5.नेतृतव की क्षमताओं के विकास में सहायक-
आधुनिक पर्यवेक्षण दमन नीति से दूर होता है। इसीलिये यह पर्यवेक्षण शिक्षकों तथा छात्रों की नेतृत्व शक्ति के विकास में सहायक होता है। मुख्य पर्यवेक्षण अपनी सहायता के लिये अन्य पर्यवेक्षण की नियुक्ति करता है। जिससे अन्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व का भी विकास होता है। विद्यालयों में उप प्रधानाचाय, क्रीडाध्यक्ष, पुस्तकालयाध्यक्षक, पाठ्येतर विभिन्न कार्यक्रमों “वाद- विवाद, संगीत, नाटक" आदि के अध्यक्ष नियुक्त किये जाते हैं। इन कार्यक्रमों का संचालन सभी व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुकूल स्वतन्त्र वातावरण में करते हैं जिससे उन्हें नेतृत्व शक्ति को विकसित करने का प्रशिक्षण भी मिलता है। छात्रों को भी अनेक कार्यों के प्रति उत्तरदायी बना कर उन्हें नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रकार आधुनिक पर्यवेक्षण शक्ति के विकास में पूर्णरूपेण सहायक होता है।
6. वस्तुनिष्ठ तथा अधिक प्रभावशली-
आधुनिक पर्यवेक्षण के समस्त कार्यक्रमों में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया जाता है। इसलिये इस पर्यवेक्षण के कार्यक्रमों में अधिक वस्तुनिष्ठता एवं विश्वनीयता होती है। सभी व्यक्तियों का आधुनिक पर्यवेक्षण के प्रति आधिक लगाव तथा अपनापन होता है। यह पर्यवेक्षण छात्रों तथा शिक्षकों के हृदय पर शीघ्र तथा स्थायी प्रभाव डालता है। विचार स्वतन्त्रता, सहयोग, समन्वय, रचनात्मक आदि गुणों के कारण भी आधुनिक पर्यवेक्षण अधिक प्रभावकारी होता है।
7. नवीन विधि, अनुसन्धान एवं आयाम हेतु सहायक-
आधुनिक पर्यवेक्षण की विधियाँ परम्परागत पर्यवेक्षण की विधियों से सर्वथा पृथक हैं। इसमें आकस्मिक निरीक्षण, छिद्रान्वेषण, व्यक्तित्व प्रदर्शन के स्थान पर अनौपचारिक निरीक्षण, परामर्श तथा शिक्षक-सम्मान को अधिक उतसाहित किया जाता है। पर्यवेक्षण आज "चोर सिपाही” के खेल जैसा न होकर सहयोगी, आशंका रहति तथा सीखने वाला अधिक होता हैं, उन्हें प्रोत्साहन दिया जाता है तथा उनके निष्कर्षों को अपनाने का प्रयास किया जाता है। विज्ञान तथा तकनीकी द्वारा आविष्कृत नवीन आयामों को भी आधुनिक पर्यवेक्षण में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इन सभी नवीन प्रयोगों तथा आयामों को अपनाकर आधुनिक पर्यवेक्षण के शिक्षा स्तर को ऊपर उठाने के लिये अधिकाधिक उपयोगी बनाया जाता है। वस्तुतः इस पर्यवेक्षण को अधिक प्रविधि युक्त कहा जा सकता है। शिक्षण कौशल की वृद्धि में विभिन्न तकनीकियों के निरन्तर प्रयोग में आधुनिक पर्यवेक्षण विश्वास रखता है। आधुनिक पर्यवेक्षण यह मानकर ही अधिक परिश्रम करता है कि शिक्षण कार्य इतना सुलभ नहीं है जिसे साधारण योग्यता वाले व्यक्ति भी सफलता पूर्वक कर सकते हैं योग्यतम तथा प्रभावशाली शिक्षक बनाने में आधुनिक पर्यवेक्षण सहायक होता है।
8.‘“शिक्षण सेवा” पर आधारित-
आधुनिक पर्यवेक्षण का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों का केवल मूल्यांकन करना नहीं अपितु शिक्षकों की सेवा करना हैं इस पर्यवेक्षण में सेवा भावना तथा भ्रातृ भावना पर अधिक ध्यान दिया हैं। इस प्रकार आधुनिक पर्यवेक्षण को शिक्षण-सेवा के लिये महत्वपूर्ण समझा जाता है।
9. अधिकाधिक एकीकृत तथा समन्वयकारी-
आधुनिक पर्यवेक्षण अकेला होकर कार्य करने की प्रणाली में विश्वास नहीं है। शैक्षिक उन्नति के लिये सभी व्यक्तियों तथा सभी स्थानों से सहायता प्राप्त करने, कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य करने तथा उपयोगी व्यक्तियों को एक साथ जोड़ने के लिये आधुनिक पर्यवेक्षण अद्भुत प्रयास करता है। एक विद्यालय की गतिविधियों से दूसरे विद्यालय का सम्बन्ध जोड़ने तथा सामूहिक रूप में कार्यक्रमों का आयोजन करने का भी प्रयास किया जाता है। शिक्षक एवं छात्र एक दूसरे के गुणों से प्रभावित होकर अपना शैक्षिक स्तर ऊँचा उठा सकें इसके लिये आधुनिक पर्यवेक्षण अधिक जागरूक तथा प्रयत्नशील रहता है।
10. समस्या समाधान हेतु अधिक जागरूक-
आधुनिक पर्यवेक्षण से समस्या समाधान के प्रति सुप्त कदापि नहीं होता। "शिक्षण-प्रक्रिया, शिक्षा सुविधा, छात्र विकास" के मार्ग में उपस्थित कठिनाइयों का शीघ्र निवारण करने के लिये आधुनिक पर्यवेक्षण सदैव तत्पर रहता है। समस्या समाधान के लिये सभी सम्बन्धित व्यक्तियों का परामर्श लेकर आधुनिक पर्यवेक्षण में जनतात्रिक प्रणाली से कार्य किया जाता है। पर्यवेक्षण जानबूझकर भी कुछ प्रमुख समस्याओं को शिक्षकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। जिससे उनकी रचनात्मक योग्यताओं का अधिकाधिक लाभ उठाया जा सकता है। सारांश यह है कि समस्त शैक्षिक कार्यक्रमों में उत्तम दशा उत्पन्न करने के प्रमुख उत्तदायित्व का आधुनिक पर्यवेक्षण द्वारा कुशलता पूर्वक निर्वाह किया जाता है।
शैक्षिक पर्यवेक्षण का लक्ष्य कार्य संचालन और उसका सुधार करना ही नहीं होता है अपितु समस्यायें कार्य संचालन में ही उत्पन्न होती हैं इसलिए पर्यवेक्षण से समस्याओं की पहचान करके समाधान भी किया जाता है।
वस्तुतः परम्परागत तथा आधुनिक पर्यवेक्षण में एक महत्वपूर्ण अन्तर यह भी है कि परम्परागत पर्यवेक्षण का व्यक्तित्व ही प्रधान होता है। अन्य कर्मचारी उसी के आदेशों की प्रतीक्षा करते हैं परन्तु आधुनिक पर्यवेक्षण में शिक्षक प्रत्येक कार्य को करने के लिये आगे आते हैं तथा पर्यवेक्षण का व्यक्तित्व परामर्शदाता के रूप में पीछे होता है।
परम्परागत तथा आधुनिक पर्यवेक्षण के सम्बन्ध में पूर्व पृष्ठों में पर्याप्त उल्लेख किया जा चुका है। जिसके आधार पर दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध को और भी अधिक स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है।
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