शैक्षिक नियोजन: अर्थ एवं परिभाषा विशेषताएँ |Educational Planning: Meaning and Definition Features
शैक्षिक नियोजन: अर्थ एवं परिभाषा विशेषताएँ
शैक्षिक नियोजन प्रस्तावना
वर्तमान
गत्यात्मक अर्थव्यवस्थाओं के परिवेश में नियोजन की आवश्यकता किसी भी संस्था के
संगठन, संचालन, नियंत्रण एवं
विकास हेतु महत्वपूर्ण स्थान रखती है। शाब्दिक अर्थ में नियोजन से तात्पर्य है, किसी भी कार्य को
कैसे करना है, क्या करना है, कब करना हैं एवं
किसके द्वारा किया जाना है,
इसकी रूपरेखा
पहले से ही तैयार कर लेना । चूंकि वर्तमान परिवेश में अर्थव्यवस्थाओं में बहुत ही
शीघ्रता से परिवर्तन होते रहते हैं, इसलिए इन परिवर्तनों के अनुरूप संस्थाओं के कुशल संगठन, संचालन एवं
नियंत्रण हेतु नियोजन अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। नियोजन भविष्य
में किये जाने वाले कार्यों के लिए पहले से तैयार की जाने वाली रूपरेखा है, ताकि अधिकतम
संभावित साधनों के द्वारा कुछ विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके। अतः हम कह
सकते हैं कि नियोजन भावी कार्यों की बुद्धिमत्तापूर्ण तैयारी है। एक कुशल प्रबंधक
की कुशलता इस बात पर निर्भर करती है, कि वह भविष्य में होने वाले परिवर्तनों एवं आने वाली
समस्याओं का पूर्वाभास करके उनसे निपटने हेतु आवश्यक क्रियाओं की योजना पहले से ही
बना ले। प्रबंधन के क्षेत्र में नियोजन प्रथम महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। संगठन
चाहे छोटा हो अथवा बड़ा उसमें नियोजन की आवश्यकता होती है। बिना इसके संगठन के
किसी भी कार्य को सुचारू ढंग से संचालित नहीं किया जा सकता और न ही कर्मचारियों की
क्रियाविधि को नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार नियोजन प्रबंधन प्रक्रिया का
महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें प्रबंधन
के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निश्चित कार्य प्रणाली पूर्व में ही तैयार कर ली
जाती है, ताकि लक्ष्यों को
सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सके।
शैक्षिक नियोजन: अर्थ एवं परिभाषा
वर्तमान वैश्विक
में जहाँ शिक्षा को भी एक सेवा प्रविधि (Service process) माना जा रहा है नियोजन एक महत्वपूर्ण
केंद्रबिंदू बन गया है। विशेषतः विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में
शैक्षिक नियोजन आवश्यक है क्योंकि शैक्षिक प्रबंधन प्रक्रिया का यह प्रारंभिक चरण
है।
शिक्षा में
नियोजन अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि यह शिक्षा में परिणामस्वरूप एवं गुणात्मक सुधार के
कार्यक्रमों को आधार प्रदान करती है। शैक्षिक नियोजन को अधिक स्पष्ट रूप से समझने
के लिए नियोजन का अर्थ एवं महत्व जान लेना अत्यन्त आवश्यक है, जो कि अग्रलिखित
है-
शैक्षिक नियोजन (Educational Planning):
शैक्षिक नियोजन
एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का अधिक से
अधिक लाभ उठाने हेतु किस प्रकार उपयोग किया जाय, का विवरण निहित होता है। शैक्षिक नियोजन ऐसे
प्रयासों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है, जिनके माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक से लेकर
उच्च स्तर तक, तकनीकी से
वैज्ञानिक स्तर तक, बालक से वृद्ध तक
सभी लिए शिक्षा की व्यवस्था करने एवं शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति करना संभव हो
पाता है।
शैक्षिक नियोजन
वर्तमान समय में भविष्य में प्राप्त किये जाने वाले शैक्षिक लक्ष्यों की तैयारी
है। इसके माध्यम से शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त कर उनके
समाधान हेतु आवश्यक तैयारियाँ की जाती हैं। शिक्षा परिवर्तन का एक प्रमुख साधन है
अतः इसके नियोजन के माध्यम से उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम सम्भाव्य उपयोग करके
विकास की गति को बढ़ावा दिया जा सकता है, सामाजिक बुराइयों में कमी लाकर समाज के पुनर्निर्माण एवं
सांस्कृतिक विकास के उच्च स्तर पर पहुँचाकर सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त मार्ग
प्रशस्त किया जा सकता है। भारत में शैक्षिक नियोजन का प्रारंभ 1854 के कुछ
घोषणापत्र से माना जाता है। 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय
नियोजन समिति (National
Planning Committee) द्वारा भी नियोजन की अवधारणा दी गई।
केन्द्रीय शिक्षा
सलाहकार परिषद (Central
Advisory Board of Education) का नाम भी नियोजन के क्षेत्र में उल्लेखनीय है।
1950 से नियोजन आयोग
(Planing Committee) अनेक पंचवर्षीय
योजनाओं तथा वार्षिक योजनाओं के माध्यम से शैक्षिक नियोजन के कार्य को पूर्ण कर
रहा है।
शैक्षिक नियोजन की विशेषताएँ :
शैक्षिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
शैक्षिक नियोजन वर्तमान में भविष्य की तैयारी है।
इसके माध्यम से शैक्षिक समस्याओं, उनके कारणों एवं समाधानों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
1. शैक्षिक नियोजन एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें पूर्व और पश्च योजनाएँ एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं।
2. शैक्षिक नियोजन शैक्षिक समस्याओं के समाधान के साथ-साथ सांस्कृतिक उत्थान एवं समाज के पुनर्निर्माण में भी सहायक होता है।
3. शैक्षिक नियोजन परिमाणात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार की शैक्षिक उपलब्धि में सहायक होता है।
4. इसमें तात्कालिक एवं दीर्घकालिक दोनों प्रकार की योजनाओं का समावेश होता है, ताकि निम्न गम्भीरता वाली समस्याओं के समाधान के साथ-साथ अधिक गम्भीर समस्याओं का भी समाधान किया जा सके।
5. शैक्षिक नियोजन
परिवर्तन के प्रबंधक के रूप में भी कार्य करता है।
नियोजन: अर्थ, परिभाषाएँ:
वेब्स्टर (webster) के
अंतर्राष्ट्रीय शब्द कोश ने नियोजन को योजनाओं को बनाने, क्रियान्वयन के
कार्य अथवा प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है। नियोजन संगठन के लक्ष्यों की
प्राप्ति हेतु अपनायी जाने वाली क्रियाओं की भविष्यवाणी है। यह पूर्वनिर्धारित
क्रियाविधि है। यह भविष्य की क्रियाओं का वर्तमान में प्रक्षेपण है। दूसरे शब्दों
में नियोजन भविष्य में की जाने वाली क्रियाओं की एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है, ताकि एक निश्चित
समय में निश्चित लागत पर,
निश्चित परिणाम
की प्राप्ति की जा सके।
विशेषज्ञों एवं
विद्वानों द्वारा नियोजन को निम्नलिखित दो रूपों में परिभाषित किया जा सकता है-
भविष्य आधारित (Based on Futurity)- "नियोजन भविष्य को बाँधने वाला एक जाल है।” -एलेन
“नियोजन, भविष्य में क्या किया जाना है, इसकी पूर्वधारणा है।" - कून्ट्ज
“नियोजन पूर्वनिर्धारित विनिश्चयीकरण है।" - आर०ल0 एकाफ
“नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा भविष्य में किये जाने वाले कार्यों के लिए निर्णयों के समुच्चय को तैयार किया जाता है जो साधनों के द्वारा लक्ष्य प्राप्त की ओर निर्देशित होते है।" ड्रार
"The Planning is the process of preparing a set of decisions for action in the future directed at acting goals by optional means." Dror
चिंतन प्रकार्य (As a thinking function):
“नियोजन बुद्धिमत्ता पूर्ण क्रियाओं हेतु एक चिंतन प्रक्रिया, एक संगठित भविष्यवाणी एवं सत्य एवं अनुभवों पर आधारित दूरदर्शिता है।" (अलफ्रेड एवं बेट्टी)
उपरोक्त
परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि भविष्य में क्या किया जाना है, इसे वर्तमान में
निश्चित करना ही नियोजन है। यह करने से पहले सोचने की प्रक्रिया है। यह एक निश्चित, लिखित अवधारणा है, जिसमें एक उद्देश्य
एवं एक क्रिया कथन समाहित होता है। उद्देश्य साध्य हैं एवं क्रिया कथन उस साध्य की
प्राप्ति हैं। दूसरे शब्दों में, उद्देश्य प्रबंधन को लक्ष्य प्रदान करते हैं और क्रिया कथन
उस लक्ष्य को प्रकार सुनिश्चित ढंग से निर्मित योजना कब, क्या, कहाँ, कैसे करना है, इसका वर्णन करती
है।
नियोजन प्रक्रिया के चरण (Steps in the Planning Process) :
नियोजन वृहद रूप से प्रबंधकीय क्रिया है। इसके लिये
नियोजनकर्ता को बहुत सारा समय देना एवं प्रयास करना पड़ता है। उन्हें ऐसी
युक्तियों को अपनाने की आवश्यकता होती है, जो त्रुटियों एवं महंगी गल्तियों को न के बराबर कर सकें
अन्यथा ये सम्पूर्ण उद्यम को हानि पहुँचा सकती हैं। इस प्रकार की युक्तियों में
निम्नलिखित चरण सम्मिलित होते हैं-
(1) उद्देश्य निर्धारण:
नियोजन प्रक्रिया का प्रथम चरण है-संगठन के लक्ष्य की पहचान करना ।
उद्देश्य निर्धारण से पूर्व संगठन को प्रभावित करने वाली आन्तरिक एवं बाह्य
गतिविधियों एवं परिस्थितियों का सूक्ष्मता से परीक्षण करना आवश्यक होता है।
उद्देश्य स्पष्ट रूप से ये निर्देशित करने वाले होने चाहिए कि क्या प्राप्त करना
है, किन क्रियाओं के
माध्मय से प्राप्त करना है,
किसके द्वारा
प्रदर्शन करना है, कैसे और कब उनकी
प्राप्ति सम्भव है? दूसरे शब्दों में, प्रबंधक द्वारा
संगठन में किये जाने वाले प्रयासों के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा निर्देश दिया जाना
चाहिए ताकि सभी क्रियाएँ सही दिशा में सम्पन्न हो सकें।
(2) रूपरेखा निर्धारण:
उद्देश्य निर्धारण के बाद नियोजन की रूपरेखा का निर्धारण आवश्यक होता है
। रूपरेखा वातावरण के सन्दर्भ में पूर्वमान्यताएँ होती हैं जिनमें योजनाएँ निर्मित
एवं क्रियान्वित की जाती हैं। इसके साथ ही उपलब्ध आवश्यक संसाधनों की जानकारी, उनकी उपयोगिता की
जाँच एवं उनकी कार्य प्रणाली का विश्लेषण एवं मूल्यांकन भी आवश्यक होता है।
(3) विकल्पों का चयन एवं मूल्यांकनः
उद्देश्य निर्धारण एवं नियोजन की रूपरेखा निर्धारण के पश्चात् वैकल्पिक क्रियाओं की पहचान की आवश्यकता होती है। नियोजन में चयन एक महत्वपूर्ण अवस्था होती हैं जिसमें उद्देश्य प्राप्ति हेतु की जाने वाले क्रियाओं हेतु उपलब्ध संभावित विकल्पों की जाँच कर उपयोगी विकल्पों का चयन किया जाता है। जिनकें संचालन के उपरान्त अभीष्ठ लक्ष्य की प्राप्ति संभव हो सकती है।
(4) चयनित विकल्पों का क्रियान्वयन :
विभिन्न उपलब्ध विकल्पों के मूल्यांकन एवं उपयोगी विकल्प के चयन के पश्चात् उनके क्रियान्वयन की अवस्था आती है। उपयोगी विकल्पों में से भी कुछ का क्रियान्वयन योजना की प्रारम्भिक अवस्था में किया जाता है और कुछ को भविष्य हेतु सुरक्षित रख लिया जाता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनका क्रियान्वयन किया जा सके। यही चयनित विकल्प उद्देश्य प्राप्ति में सहायक होते हैं, और योजना की दिशा निर्धारित करते हैं।
(5) सहयोगी योजनाओं का निर्माण :
नियोजन प्रक्रिया में मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उद्देश्यों की भी प्राप्ति आवश्यक होती है, बिना इनके मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति संभव नहीं हो पाती। अतः योजना कुछ सहायक निर्माण के समय कुछ छोटी-छोटी सहायक योजनाओं का भी निर्माण किया जाता है। उदाहरण स्वरूप किसी उद्यम में एक आधारभूत उत्पादन योजना के संचालन में बहुत सी अन्य चीज़ों जैसे मशीनों और प्लान्ट की उपस्थिति, कर्मचारियों का प्रशिक्षण, वित्त सम्बन्धी प्रावधान आदि की आवश्यकता होती है। मौलिक योजना की सफलता के लिए इन सहयोगी योजनाओं का सही क्रम में एवं सही समय पर पूरा होना आवश्यक होता है।
(6) सहयोग एवं सहभागिता :
किसी भी योजना की सफलता कर्मचारियों की पूर्ण सहभागिता पर निर्भर करती है। इस सन्दर्भ में प्रबंधक को अपने कर्मचारियों को योजना निर्माण प्रक्रिया में सम्मिलित करना चाहिए। सलाह, शिकायत, आलोचना आदि के माध्यम से प्रबन्धक को योजना को उसके प्रारम्भिक स्तर पर ही सुधारने का मौका मिल जाता है और चूंकि योजना निर्माण में उनकी सहभागिता रहती है तो योजना के क्रियान्वयन में उनमें आपसी सहयोग बना रहता है और फलस्वरूप योजना सफलतापूर्वक संचालित हो सकती है।
(7) योजना का मूल्यांकन एवं पृष्ठपोषण :
नियोजन का अन्तिम चरण क्रियान्वित योजना का मूल्यांकन करना होता है। योजना के क्या लाभ रहे हैं एवं उसमें क्या कमियां पायी गयीं, इसकी जाँच की जाती है। इस प्रक्रिया में कर्मचारियों, निवेशकों एवं क्षेत्र विशेषज्ञों से पृष्ठपोषण लिया जाता है। योजना की प्रभावशीलता के लिए उसकी निरन्तर जाँच होनी आवश्यक है। इस प्रकार के मूल्यांकन से प्रबंधन को क्रियान्वित योजना की कमियाँ पता चल जाती हैं और उसके लिए सुधारात्मक उपाय अपनाने में देर नहीं होती है।
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