शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण एवं आने वाली बाधाएँ | Communication and Obstacles in Educational Administration

सम्प्रेषण में आने वाली बाधाएँ तथा शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं को कम करने के उपाय

शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण एवं आने वाली बाधाएँ | Communication and Obstacles in Educational Administration


 

शैक्षिक सम्प्रेषण में आने वाली बाधाएँ प्रस्तावना 

शैक्षिक प्रशासन शैक्षिक संस्थाओं का प्रबंध जिसमे अध्यापन तथा अधिगम को ध्यान में रखा जाता है। चूकिं यह व्यवहारिक क्षेत्र है इसमे अन्य क्षेत्रों के प्रबंध जैसे सार्वजनिक प्रशासन, चिकित्सा प्रशासन, वाणिज्य प्रशासन आदि के कुछ समान तत्व पाये जाते हैं। शैक्षिक प्रशासन के विषयक्षेत्र के अंतर्गत विद्यार्थी, कर्मचारी, वित्त, पाठ्यक्रम, भौतिक सुविधाएं तथा जनसंबंध आते है। समाज द्वारा निर्धारित शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अध्ययन एवं अध्यापन का वातावरण तैयार करने में शैक्षिक प्रशासक को विभिन्न व्यक्तियों, वस्तुओं तथा संसाधनों के बीच समन्वय, व्यवस्थापन, तथा एकीकरण आदि कार्य करने होते हैं। इन समस्त कार्यों की सफलता प्रभावशाली सम्प्रेषण पर निर्भर करती है। शैक्षिक प्रशासन के अंतर्गत भी सम्प्रेषण सामान्य बाधाएँ प्रभाव डालती हैं। प्रस्तुत इकाई में शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण में आने वाली बाधाओं को दूर करने के उपाय पर चर्चा की जाएगी।


शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण 

सर्वप्रथम हम यह समझने का प्रयास करेंगे की शैक्षिक प्रशासन क्या है ? स्टीफन जे नेजविक के अनुसार 


शैक्षिक प्रशासन संगठनात्मक कार्यों का एक ऐसा विशिष्ट समूह है जिसका मुख्य उद्देश्य युक्तिसंगत शैक्षिक सेवाओं का उचित एवं प्रभावशाली सम्पादन एवं नियोजन, निर्णयन एवं नेतृत्व संबंधी व्यवहार के द्वारा वैधानिक नीतियों का कार्यान्वयन करना है तथा जो संस्था को पूर्वनिरधारित उद्देश्योन पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए बाध्य करता है, जो संसाधनो का अनुकूलन, आवंटन एवं बुद्धिमतापूर्ण देखभाल करने का प्रावधान करता है ताकि उनका अधिकतम उत्पादक प्रयोग हो सके, जो समनूगत सामाजिक तंत्र एवं वांछित संगठनात्मक परिवेश उत्पन्न करने के लिए व्यवसायिक एवं अन्य कार्मिक वर्ग का समन्वय करता है तथा विद्यार्थियों एवं समाज की भविष्य में उत्पन्न होने वाली आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए आवश्यक परिवर्तनों के निश्चयीकरण के लिए सुविधा प्रदान करता है।

 

रसैल टी ग्रेग ने प्रशासन को ऐसी प्रक्रिया माना है जिसके सात कार्य हैं- विनिश्चयीकरण, नियोजन, व्यवस्थापन, सम्प्रेषण, प्रभावीकरण (Influencing), समन्वयन एवं मूल्यीकरण (Evaluating)। ये सात कार्य प्रशासनिक प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों के रूप में लिए जाने चाहिए परंतु साथ में यह भी याद रखना आवश्यक है कि ये एकाँकी क्रियाएँ नहीं हैं। वे परस्पर व्याप्त रहते हैं एवं सदैव संयुक्त रूप से परिणाम देते हैं।

 

आइए अब हम विभिन्न कार्यों को अलग से समझने का प्रयास करें-

 

उद्देश्यीकरण (Purposing)- 

शैक्षिक प्रशासन एक सेवा कार्य है अतः प्रत्येक प्रशासनिक क्रिया शिक्षा के मुख्य एवं महान उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में होनी चाहिए। ये लक्ष्य समाज द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा के उद्देश्यों को भिन्न रूप में देखता है लेकिन प्रशासन का कार्य उनको सभी के लिए समान बनाना है। शैक्षिक प्रक्रिया तभी सफल हो सकती है जबकि क्रिया में संलग्न सभी व्यक्ति इन उद्देश्यों के साथ अपना आत्मिकरण कर लें। सम्प्रेषण आत्मीकरण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

 

नियोजन(Planning)- 

उद्देश्यों को कार्यरूप में परिवर्तित करने के लिए नियोजन की आवश्यकता होती है। नियोजन अनेक विकल्पों में से एक अच्छी कार्य-प्रणाली का चुनाव करना है। नियोजन की उपयोगिता इसलिए है क्योंकि यह इस बात का स्पष्टीकरण करता है कि क्या किया जाना है? अच्छे प्रशासक अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर योजना बनाते हैं क्योंकि योजना में उनकी सहभागिता उनको तादात्म्य स्थापित करने एवं सफल कार्य की ओर अग्रसर करती है। एक अच्छा प्रशासक बिना सामूहिक निर्णयों एवं कार्यकलापों को नियंत्रित किए सामूहिक नियोजन को प्रेरित करता है। सहयोगियों के साथ मिलकर योजना बनाने के लिए सम्प्रेषण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

 

व्यवस्थापन (Organizing)- 

व्यवस्थापन में तंत्र की संरचना एवं प्रक्रिया दोनों शामिल हैं। संरचना के रूप में यह सम्बन्धों का एक स्वरूप है। व्यवस्थापन से तात्पर्य व्यक्तियों, स्थानों एवं वस्तुओं को इस प्रकार से व्यवस्थित करना तथा उनको कर्तव्य एवं दायित्व सौंपना ताकि स्वतंत्र रूप से कार्य किया जा सके। व्यवस्थापन के अंतर्गत ही व्यक्तियों को प्रयोग में आने वाले साधनों एवं संसाधनों से परिचित कराया जाता है। व्यवस्थापन का कार्य व्यक्तियों के मध्य एवं कार्यों के मध्य सम्बन्धों को दिशा प्रदान करना एवं नियंत्रित करना है। उपरोक्त कार्यों का सम्पादन सम्प्रेषण प्रक्रिया के बिना नहीं हो सकता है।

 

परिचालन (Operating)-

 

योजनाओं को व्यावहारिक एवं कार्य रूप में परिणत करना ही परिचालन है। इस महत्वपूर्ण कार्य को संपादित करने में प्रशासन को अन्य कार्यों के साथ-साथ कुछ कार्य जैसे- उत्तरदायित्व निदेशन, समन्वयन एवं नियंत्रण करने होते हैं।

 

(अ) निदेशन ( Direction)- 

निदेशन परिचालन का ही एक अंग है। यह कार्य के प्रारम्भ के साथ ही प्रारम्भ होता है। यह बताता है कि क्या किया जाना है। निदेशन केवल मार्गदर्शन नहीं है यदि कार्य अपूर्ण होता है तो कार्य को पूरा करने के विवश करना भी है। अच्छे परिणामों के लिए आवश्यक है कि प्रशासक अपने सहकर्मियों एवं अधीनस्थ कर्मचारियों की विशेषताओं का सम्मान करे तथा उनकी गरिमा को ध्यान में रखकर आदेश प्रदान करे। निदेशन एक प्रकार से सम्प्रेषण ही है जिसमें प्रशासक अपने विचार संबन्धित व्यक्तियों तक पहुंचता है।

 

(ब) समन्वयन ( coordination)- 

समन्वयन से तात्पर्य सभी वस्तुओं, क्रियाओं एवं गतिविधियों को जोड़ कर रखने वाली प्रक्रिया है । इनको इस प्रकार जोड़ने से कार्य अधिक प्रभावशाली तरीके से होता है। समन्वय प्रशासन के सभी अंगों एवं सभी क्षेत्रों जैसे- नियोजन, व्यवस्थापन में है। समन्वय कार्मिक वर्ग, विद्यार्थियों, अभिभावक एवं पाठ्यक्रम में विभिन्न साधनों जैसे- नियम, परिनियम तथा प्रथा के द्वारा किया जाता है। समन्वयन का प्रयोग प्रारम्भ में गतिरोध को रोकने के लिए एवं प्रक्रिया के दौरान विरोधों को दूर करने के लिए किया जाता है। उपरोक्त बातों से आप आसानी से समझ सकते हैं कि सम्प्रेषण की समन्वयन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। 


(स) नियंत्रण (Control)- 

नियंत्रण कर्मचारियों को उनके कार्य के प्रति उत्तरदायी बनाए रखने के लिये सत्ता का प्रयोग है । नियंत्रण किसी क्रिया को दिशा प्रदान करता है, उसका निदेशन करती है एवं उसका मूल्यांकन भी करती है। नियंत्रण शैक्षिक प्रक्रिया के सभी क्षेत्रों जैसे उद्देश्य, अध्यापक, विद्यार्थी, अनुदेशन, सामग्री, वित्त में आवश्यक होता है। नियंत्रण परिचालन का अभिन्न अंग है। नियंत्रण में सत्ता एवं युक्तियों दोनों का प्रयोग किया जाता है। शैक्षिक प्रक्रिया से जुड़े सभी व्यक्तियों पर वांछनीय नियंत्रण बिना सम्प्रेषण के संभव नहीं है। सम्प्रेषण प्रक्रिया द्वारा ही इन व्यक्तियों तक शैक्षिक प्रशासको के निर्देश, विचार पहुचते है। 


मूल्यांकन (Evaluation) 

प्रक्रिया के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति को प्रोत्साहित करने के लिये मूल्यांकन किया जाता है। प्रशासनिक प्रक्रिया के कमियों को ढूँढना तथा प्रक्रिया में परिवर्तन कर इन कमियों को दूर करना है। अच्छे प्रशासक को ये चाहिए की ऐसा वातावरण तैयार करे जिसमे सभी कर्मचारी स्वपरिक्षण एवं स्वमूल्यांकन के लिये प्रोत्साहित हो सके तथा संस्था के विकास में अपने व्यक्तिगत योगदान की गुणवत्ता एवं मात्रा का मूल्यांकन प्रशासक को मूल्यांकन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए की मूल्यांकन का कर्मचारियों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, मूल्यांकन व्यक्ति एवं समूह की उन्नति के लिये हो तथा उनको मनोवैज्ञानिक सुरक्षा मिल सके। मूल्यांकन हेतु विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित की जाती है जो कि व्यक्ति या समूह के कार्यों की उपलब्धि/ परिणाम के बारे में होती है। उन परिणामों को सर्वाधिक वांछनीय कसौटी से तुलना करके उद्देश्यों की प्राप्ति में संस्था की सहायता करना चाहिए। मूल्यांकन के उपरोक्त सभी कार्य सम्प्रेषण के बिना असंभव है।

 

शैक्षिक प्रशासन में सम्प्रेषण में आने वाली बाधाएँ: 

सम्प्रेषण प्रक्रिया में कभी-कभी बाधाएँ आ जाने से सम्प्रेषण प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है जिसके फलस्वरूप प्रेषित संदेश या तो गलत हो जाता है या अपूर्ण रूप से ग्रहण किया जाता है। सम्प्रेषण में आने वाली बाधाएँ निम्न प्रकार की होती है- 

(अ) भौतिक बाधाएँ 

(ब) भाषा की बाधाएँ 

(स) मनोवैज्ञानिक बाधाएँ 

(द) पृष्ठभूमि की बाधाएँ इसके अतिरिक्त हम सम्प्रेषण की बाधाओं को तीन भागों में विभाजित कर सकते है जो इस प्रकार 

(1) सम्प्रेषण प्रेषणकर्ता से संबन्धित बाधाएँ। 

(2) संदेश प्रसारण संबंधी बाधाएँ । 

(3) सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता से संबन्धित बाधाएँ ।

 

सम्प्रेषण प्रक्रिया में भौतिक बाधाएँ (Physical Barriers): 

सर्वप्रथम हम सम्प्रेषण में आने वाली भौतिक बाधाओं की चर्चा करेंगे। भौतिक बाधाओं के अंतर्गत शोर, अदृश्यता, वातावरण एवं भौतिक असुविधाएँ, बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य, ध्यान का केन्द्रित न हो पाना प्रमुख हैं। शोर या अत्यधिक आवाज के कारण कभी-कभी संदेश सही रूप में सुनाई नहीं दे पाता और गलत तरह से संदेश ग्रहण कर लिया जाता है। जब संदेश के माध्यम के रूप में चित्रों, आकृतियों, संकेतों, मुख- मुद्राओं एवं चक्षु-संपर्क का उपयोग किया जाता है तब कभी-कभी प्रकाश के अभाव या किसी अन्य कारण से इस संदेश को देखकर समझने में परेशानी होती है। सम्प्रेषण की प्रक्रिया में संदेश भेजने वाले तथा संदेश ग्रहणकर्ता का अच्छा स्वास्थ्य बहुत ही आवश्यक है। यदि संदेश भेजने वाले का स्वास्थ्य खराब होगा तो वह न तो संदेश अच्छे से तैयार कर पाएगा और न ही उचित तरीके से संदेश भेज पाएगा। यदि संदेश ग्रहण करने वाले का स्वास्थ्य खराब होगा तो वह संदेश उचित तरीके से ग्रहण नहीं कर पाएगा। भौतिक असुविधाएं जैसे संदेश तैयार करने, भेजने एवं ग्रहण करने से संबन्धित वस्तुएं / सामग्री गुणवत्तापूर्ण हो । 

सम्प्रेषण प्रक्रिया में भाषा की बाधाएँ (Language Barriers ): 

भाषा के बाधाओं के अंतर्गत अस्पष्ठ शब्द, अनावश्यक शब्द, शब्दों को गलत तरीके से बोलना, गलत उच्चारण, अस्पष्ठ ग्राफिक तथा संकेत आते है। अस्पष्ठ शब्दों, अनावश्यक शब्दों, शब्दों को गलत तरीके से बोलने, गलत उच्चारण, अस्पष्ट ग्राफिक तथा संकेत के कारण संदेश अपना वांछित प्रभाव डालने में सफल नहीं हो पाता है। संदेश भेजने वाले को संदेश को तैयार करते समय शब्दों का चयन एवं उनका उच्चारण करते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि एक शब्द में कई बार अनेक अर्थ होते हैं। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते समय उनका संदर्भ स्पष्ट करना चाहिए। संदर्भ स्पष्ट न होने की वजह से संदेश ग्रहण करने में अनेक भ्रांतियाँ संभव हैं।

 

सम्प्रेषण प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक बाधाएँ (Psychological Barriers): 

यदि सन्देश भेजने वाला या सन्देश ग्रहण करने वाला किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो सन्देश की वस्तुनिष्ठता प्रभावित होती है। सन्देश भेजने वाले तथा संदेशग्रहणकर्ता की सम्प्रेषण प्रक्रिया में यदि रुचि नहीं होगी तथा वे ध्यान नहीं देंगे तो सम्प्रेषण प्रक्रिया पूरी नहीं होगी इसके साथ 2 गलत प्रत्यक्षीकरण, इसके अलावा जरूरत से ज्यादा चिन्ताएँ भी सम्प्रेषण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है। 


सम्प्रेषण प्रक्रिया में पृष्ठभूमि की बाधाएँ (Background Barriers) : 

सन्देश स्रोत एवं सन्देश ग्रहण कर्ता पूर्व अनुभव के आधार पर सन्देश को समझने का प्रयास करते है ये अनुभव हमारी पृष्ठभूमि से संबन्धित होते है, पूर्व पृष्ठभूमि से तात्पर्य पूर्व अधिगम, संस्कृति तथा पूर्व कार्यस्थिति तथा पूर्व कार्य का वातावरण है। पृष्ठभूमि के अनुभव सन्देश की एंकोडिंग या डिकोंडींग करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । पृष्ठभूमि के पूर्व अनुभव, आवश्यकताएँ तथा मूल्यों के संदर्भ प्राप्त सन्देश को समझने में कभी तो बहुत सहायक होते है तथा कभी-2 सन्देश का अर्थ समझने में बाधा के रूप में अपनी भूमिका निभा है .

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