प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका |सम्प्रेषण के प्रकार| Role of Communication in Effective management

प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका 
(Role of Communication in Effective management)
प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका  |सम्प्रेषण के प्रकार| Role of Communication in Effective management

 

प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका

20 वीं शताब्दी की प्रमुख घटना आधुनिक समाज का उदय है। जैसे-जैसे हमारी आवश्यकताओं में वृद्धि होती गयी हैवैसे-वैसे मानवीय संगठन व उपक्रम आस्तित्व में आने लगे हैं। इन संस्थओं / उपक्रमों में मानव शक्तितकनीकीमुद्राभौतिक संसाधनविचारों की सहायता से कार्य करने की कला ही प्रबंधन कहलाती है । परन्तु प्रबंधन को प्रभावशाली बनाने के लिए सम्प्रेषण एक आवश्यक तत्व है। प्रबंध में सम्प्रेषण का महत्व निम्नलिखित है:

 

I) नियोजन एवं सम्प्रेषण (Planning & Communication): 

नियोजन प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य है । इसमें प्रबंधक निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करता है। नियोजन में आपसी विचार विमर्श करके निर्णय लिया जाता है। सम्प्रेषण के माध्यम से क्या करना हैकब करना है और कैसे करना है आदि बातों पर निर्णय लिया जाता है। सम्प्रेषण ही एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से निर्धारित की गयी योजनाओं की जानकारी प्रबंधक अपने अधीनस्थों को देता है और उसे लागू करने का प्रयास करता है। सम्प्रेषण के अभाव में योजनायें सिर्फ सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहतीं है।

 

II) संगठन एवं सम्प्रेषण (Organization & Communication) :

संगठन विभिन्न कार्यों का एकीकरण करनेकार्यों का वितरण करने तथा सम्बंधित व्यक्तियों को उनके अधिकार व दायित्व सौपने की प्रक्रिया है। किसी संस्था में सम्प्रेषण तन्त्र जितना प्रबल एवं त्रुटि रहित होगासंगठन की प्रक्रिया को उतना बल मिलता है।

 

III) नेतृत्व एवं सम्प्रेषण (Leadership & Communication):

नेतृत्व एक गतिशील शक्ति है जिसके द्वारा प्रबंधक निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपने अधीनस्थों को प्रभावित करता है। नेतृत्व की सफलता सम्प्रेषण पर निर्भर करती है। जब तक प्रबंधक और अधीनस्थों के बीच स्वतंत्र सम्प्रेषण होता रहता है तब तक उन दोनों के बीच विश्वास की भावना प्रबल होती है और निर्देशित मार्ग द्वारा कार्य करने की अवस्थाएं उपस्थित रहतीं हैं। इसके माध्यम से जहाँ एक ओर प्रबंधक अपना प्रभाव अधीनस्थों पर डाल सकता है वहीँ दूसरी ओर वह अधीनस्थों से सुझावविचारमत आदि प्राप्त करके निर्देशों को अधिक कारगर बनाता है।

 

III) समन्वय एवं सम्प्रेषण ( Coordination & Communication): 

समन्वय से आशय सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सभी व्यक्तियों के कार्यों में ताल मेल रखने से होता है किन्तु समन्वय की सफलता के लिए सम्प्रेषण एक अनिवार्यता है मेरी कुशींग नील्स के शब्दों "समन्वय के लिए सम्प्रेषण की श्रेष्ठता बहुत आवश्यक है। संदेशों का आदान-प्रदान उपर-नीचे तथा इधर-उधर सभी दिशाओं में होता है अर्थात् विभिन्न स्तर के अधिकारियों या कर्मचारियों में सूचनाओं का आदान प्रदान चलता रहता है।"

 

V) नियंत्रण एवं सम्प्रेषण (Control & Communication) : 

नियंत्रण का तात्पर्य इस बात का मूल्याङ्कन करने से है कि संस्था के समस्त कार्य स्वीकृत की गयी योजनाओंदिए गए निर्देशों या निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं। इसका उद्देश्य कार्य की दुर्बलताओं व त्रुटियों को प्रकाश में लाना है जिससे यथा समय उनमें सुधार लाया जा सके और भविष्य में उसकी पुनरावृति रोकी जा सके । सम्प्रेषण के बिना नियंत्रण की कल्पना नहीं की जा सकती हैं।

 

VI) मनोबल का निर्माण (High morale) : 

कर्मचारियों का उच्च मनोबल ही संस्था की मूल्यवान संपत्ति होती है। यह कार्य के प्रति स्वेच्छा से सहयोग करने की इच्छा एवं मनोदशा है। यह उत्साहतत्परताजोश व योगदान करने की ललक से परिपूर्ण मानसिक दशा है। सम्प्रेषण के माध्यम से कर्मचारीगण और प्रबंधक के मध्य विचारों का निरंतर आदान-प्रदान होता रहता है। यदि किसी कर्मचारी के मन में कोई संदेह या भ्रम उत्पन्न हो जाता है तब प्रबंधक आसानी से उसकी समस्या का समाधान कर लेता है। ऐसे मैत्रीपूर्ण माहौल में सदैव शांति रहती है और संघर्ष कोसों दूर रहतें हैं ।

 

VII) बाहरी पक्षों से सम्बन्ध (Relationship with external parties) 

वर्तमान युग प्रतियोगिताओं व स्पर्धा का दौर है । प्रत्येक संस्था अपने अनेक बाह्य पक्षों यथा जैसे समुदायआयोजकोंतकनीकी विशेषज्ञोंसलाहकारों आदि से जुड़ी रहती है। किसी संस्था को अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने के लिए अपने सभी पक्षकारों के साथ संपर्क बनाये रखना पड़ता है। यह कार्य बिना सम्प्रेषण के संभव नहीं है।

 

VIII) पूर्वानुमान में सहायक (Helpful in forecasting): 

किसी प्रबंधक को भविष्य की चुनौतियों एवं आने वाले मुश्किलों के सम्बन्ध में पूर्वानुमान करने पड़ते हैं ताकि वह अपनी संस्था / उपक्रम का विकास कर सके । उसे अनेक तरह की सूचनाओंतथ्योंमतोंप्रावधानों आदि को एकत्रित करना पड़ता है । इस तरह पूर्वानुमान में सम्प्रेषण का महत्व बढ़ जाता है।

 

IX ) मानवीय सम्बन्ध स्थापित करना (Establishing Human Relationship): 

प्रबंध का विषय मानव है और यह मूलतः मानवों के विकास से सम्बंधित है। अब वो दिन चले गए जब मानव को उत्पादन का साधन मात्र समझा जाता था। किसी संस्था / उपक्रम से जुडी मानव शक्ति की रुचियोंजरूरतोंअभिवृत्तियों,

 

मनोदशाओं आदि का भी ध्यान रखना प्रबंध का कार्य है। इन कार्यों को सम्पादित करने के लिए सम्प्रेषण आवश्यक हो जाता है। अधीनस्थों से बिना विचार-विमर्श किये उनकी समस्याओं को जाना नहीं जा सकता है सम्प्रेषण व्यवस्था से प्रबंधक अपनी नीतियों व विचारों को अधीनस्थों तक पहुँचाकर वास्तविक स्थिति से अवगत करातें हैं और अधीनस्थ अपनें सुझावशिकायतेंविचार आदि प्रबंधकों तक पहुँचाते रहतें हैं । X) संदेहों और अज्ञानता का निवारण (Eradication of Doubts and Ignorance): संदेह या भ्रम के कारण अधीनस्थों और प्रबंधकों बीच आपसी सम्बन्ध बिगड़ जातें हैं। नियमों और कार्यपद्धति की अज्ञानता भी अधीनस्थों के सहभागिता को प्रभावित करती है। जहाँ सम्प्रेषण व्यवस्था जितनी अधीनस्थों की कार्य बाधायें उतनी ही कम होंगी। दुरुस्त रहेगी

 

उपर्युक्त विवेचनाओं यह कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण किसी संस्था की जीवनदायिनी शक्ति होती होती है। प्रतिस्पर्धाविविधताविशिष्टीकरण नयी तकनीकी के इस दौर में प्रबंधक की चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। प्रबंधन को सभी कार्यों के लिए सम्प्रेषण की सहायता लेनी पड़ती है। सम्प्रेषण एक प्रणाली होती है जो कि सभी प्रकार के प्रबंधकीय कार्यों को गति प्रदान करती है ।

 

सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Communication) 

सम्प्रेषण के अनेक प्रकार होतें हैं। उनका वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया गया है।

 

  • माध्यम के आधार पर प्रकार (Types on the basis of media) 
  • संबंधों के आधार पर प्रकार (Types on the basis of relations) 
  • संदेशों के प्रवाह के आधार पर (Types on the basis of flow of communication)

 

माध्यम के आधार पर सम्प्रेषण

 

1) मौखिक सम्प्रेषण (Verbal Communication) : 

मौखिक सम्प्रेषण का आशय है कि प्रेषक द्वारा किसी सूचना / संवाद को मुख से उच्चारण करके प्राप्त करता को प्रेषित करने से है। इस तरह से सम्प्रेषण में प्रेषक और प्राप्तकर्ता आमने-सामने होते हैं। ऐसे सम्प्रेषण में अनेक साधनों का प्रयोग किया जाता है जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमसाक्षात्कारसंयुक्त विचार-विमर्शसभाएंसम्मलेनआदि ।

 

मौखिक सम्प्रेषण गुणः 

• यह सम्प्रेषण का सबसे प्रभावशाली तरीका है। 

• इसमें समयधन और श्रम की बचत होती है। 

• सन्देश / सूचना को शीघ्र ही प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जा सकता है। 

• यह आसानी से समझ में आ जाता है । यदि दुर्भाग्य से भ्रम पैदा हो भी जाये तो उसका तत्काल निवारण भी किया जा सकता है 

• यह लिखित सम्प्रेषण की तुलना में लोचनीय होता है। इसमें प्रेषित सन्देश में आसानी से परिवर्तन एवं संशोधन किया जा सकता है। 

• यह पारस्परिक सद्भाव व सद्विश्वास में वृद्धि होती है । 

• इससे व्यक्तियों में वाक्चातुर्यव्यवहारिक कुशलता आदि का विकास होता है जिससे उसकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।

 

मौखिक सम्प्रेषण दोष: 

• मौखिक सम्प्रेषण के लिए दोनों पक्षों का उपस्थित होना आवश्यक है। यदि किसी समय इन दोनों में से कोई भी अनुपस्थित हो तो सम्प्रेषण संभव नहीं होता है। 

• मौखिक सम्प्रेषण लम्बी सूचनाओं के लिए अनुपयुक्त होता है क्योंकि प्राप्तकर्ता द्वारा सूचना को याद रख पाना असंभव होता है। 

• इसमें प्रेषित की गयी सूचनाओं का कोई लिखित साक्ष्य नहीं होता है। 

• जो सूचनाये किसी संस्था में भावी सन्दर्भ के लिए आवश्यक होतीं हैंवे मौखिक रूप में अनुपयुक्त होतीं हैं। 

• यह अन्य साधनों की तुलना में खर्चीला भी है। सूचनाओं का प्रेषण टेलीफ़ोन से करने पर काफी व्य हो जाता है जबकि यही सन्देश डाक द्वारा भेजा जाये तो कम खर्च होता है।

इसमें प्रेषक को सोचने का अधिक समय नहीं मिलता है जिससे कि सूचनाओं में त्रुटि की संभावना बढ़ जाती है।

 

II) लिखित सम्प्रेषण (Written Communication): 

लिखित सम्प्रेषण से आशय उन सूचनाओं से है जो लिख कर भेजी जाती हों । बुलेटिनहैण्ड बुकमैगजीनसमाचार पत्रसंगठन पुस्तिकायेंसंगठन अनुसूचियाँनीति पुस्तिकायेंकार्य विधि पुस्तिकायें आदि इसके उदाहरण हैं।

 

लिखित सम्प्रेषण गुण: 

• लिखित प्रेषण की देशा में दोनों पक्षों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है । 

विस्तृत एवं जटिल सूचनाओं के प्रेषण के लिए यह उपयुक्त है। 

• यह साधन कम खर्चीला है क्योंकि डाक द्वारा सन्देश भेजना दूरभाष पर बात करने की अपेक्षा सा होता है। 

• सूचनाएं लिखित होने के कारण प्रमाण पत्र का कार्य करतीं हैं और उनका उपयोग भविष्य सन्दर्भ के लिए किया जा सकता है। 

• जब दो पक्षों के बीच अच्छे संबंधों का अभाव हो या परस्पर अविश्वास हो तब लिखित सम्प्रेषण ही एक मात्र साधन रह जाता है। 

• गश्ती पत्रों (Circular Letters) के द्वारा अलग- अलग स्थानों पर रहने वाले लोगों को एक ही सूचना भेजी जा सकती है।

 

लिखित सम्प्रेषण दोष: 

• प्रत्येक सूचना चाहे छोटी हो या बड़ीउसे लिखकर भेजने में स्वभावतः बहुत समय लगता है। 

• प्रत्येक छोटी सूचना को हमेशा लिखकर भेजना संभव नहीं हो पाता है। फिर यदि लिखित सूचना में 

  कोई बात गलती से छूट जाये तो उसे पुनः लिख कर भेजना संभव नहीं हो पाता है । • अशिक्षित लोगों के लिए सम्प्रेषण का तरीका कारगर नहीं है। 

• इसमें प्रत्येक सूचना को लिखने में समयधन व श्रम का अपव्यय होता है। 

• प्रेषक और प्राप्तकर्ता के मध्य संपर्क का अभाव होने के कारण सूचना के सम्बन्ध में प्रेषक प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया को जान नहीं पाता है। 

• लिखित सूचनाएं अगर किसी अन्य के हाथ में पड़ जाये तो उनकी गोपनीयता चली जाती है। 

• लिखित सम्प्रेषण का एक दोष यह भी है कि इससे लालफीताशाही को बढ़ावा मिलता है। जो लिखकर देनी होती है उसके लिए अनेक औपचारिकताओं का पालन करना पड़ता है। जैसे पहले सूचना ड्राफ्ट तैयार करनाअधिकारी से उसे स्वीकृत करानाटाइपिस्ट से टाइप करवाना तथा डाक द्वारा उसे भेजने की व्यवस्था करना।

 

संबंधों के आधार पर सम्प्रेषण  

I) औपचारिक सम्प्रेषण (Formal Communication): 

जब प्रेषक और प्राप्तकर्ता के मध्य औपचारिक सम्बन्ध तब उनके मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान औपचारिक संप्रेषण कहलाता है। इस सम्प्रेषण का मार्ग संगठन के ढांचे में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार होता है। यह विशेष पद या स्थिति में रह कर किया गया सम्प्रेषण है । यह व्यक्तियों के बीच न होकर पदों के बीच होने वाला सम्प्रेषण होता है। कौन किससे आदेश और निर्देश प्राप्त करेगाकिस व्यक्ति को समस्या समाधान के लिए किसके पास जाना है आदि का निर्धारण पहले से ही होता है।

 

औपचारिक सम्प्रेषण गुण: 

  • सूचनाओं का आदान-प्रदान पूर्व-निर्धारित मार्गों द्वारा होता है 
  • सूचनाओं का स्वरुप व सीमायें पूर्व निर्धारित होने के कारण विकृति की संभावना कम हो जाती है। 
  • इससे विभिन्न पदों के बीच समन्वय आसान हो जाता है। 
  • सूचनाओं में क्रमबद्धता और निरंतरता बनी रहती है। 
  • सूचनाओं के लिए उत्तरदायित्वों का निर्धारण सुगम हो जाता है।

 

औपचारिक सम्प्रेषण दोष 

  • पूर्व निर्धारित मार्ग होने की वजह से सूचनाओं के सामान्य प्रवाह में बाधा उपस्थित होती है । 
  • इससे कार्य में देरी हो सकती है। 
  • विभिन्न स्तरों पर सूचनाओं के विकृत होने की संभावना बढ़ जाती है 
  • प्रेषक और प्राप्तकर्ता के बीच स्थिति सम्बन्धी अवरोध (Status Barrier) से सूचनाओं का अर्थ प्रभावित होने की संभावना रहती है।


II) अनौपचारिक सम्प्रेषण (Informal Communication): 

जब प्रेषक और प्राप्तकर्ता के मध्य अनौपचारिक सम्बन्ध होतें हैं तब उनके मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को अनौपचारिक सम्प्रेषण कहतें हैं। इसमें मार्ग निर्धारित नहीं होतें हैं बल्कि स्वतः बनतें और परिवर्तित होतें हैं। इस प्रकार के सम्प्रेषण को जनप्रवाद या ग्रेपवाइन (Grapevine) भी कहतें हैं। सामान्यतः जनप्रवाद द्वारा कही सुनी बातोंसुनी-सुनायी सूचनाओंआपसी चर्चाओंअनुमाओंतोड़े-मरोड़े गए तथ्योंतीखी चटपटी खबरोंअर्धसत्योंमिथ्या प्रचारोंगुत्थियों आदि का प्रसारण होता है।

 

अनौपचारिक सम्प्रेषण के मार्गों को निम्न चार भागों में विभक्त किया जा सकता है।

 

1. एकल लड़ (Single Strand) 

2. गपशप (Gossip) 

3. गुच्छा (Cluster)

 

प्रभावशाली प्रबंधन में सम्प्रेषण की भूमिका  |Role of Communication in Effective management


चित्र संख्या 2 के गपशप में एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को सूचनाएं देता है अर्थात् व्यक्ति A, B, C, D, E, F, G आदि को गैर चयनित आधार पर सूचनाएं देता है।

 

चित्र संख्या 3 के गुच्छा में एक व्यक्ति अन्य उसी व्यक्ति के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है जिसमें उसका विश्वास होता है। A, C, D एवं के साथ सम्प्रेषण करता है। अपने विश्वास के व्यक्तियों अर्थात् एवं के साथ तथा अपने विश्वास पात्र के साथ सम्प्रेषण करता है।

 

चित्र संख्या 4 के संभाव्यता (Probability) में व्यक्ति संभाव्यता के सिद्धांत के आधार पर यदा-कदा ही एक दूसरे को सूचनायें प्रदान करता है। चित्र 4 के अनुसार A, D एवं को ही सूचनाएं प्रदान करता है और B, C और को छोड़ देता है। इसी प्रकार भी G, D एवं के साथ ही सम्प्रेषण करता है और एवं के साथ नहीं ।

 

अनौपचारिक सम्प्रेषण गुणः 

• इसमें सूचनाएं स्वतंत्रतापूर्वक भेजी जातीं हैं। इसमें पद और स्थिति बाधक नहीं होती है। 

• औपचारिक संबंधों की आवश्यकता नहीं होती है।  

• तत्काल सूचनाएं प्रेषित होने के कारण समय व्यर्थ नहीं होता है। 

• यह प्रबंधकीय निर्णयों और कार्यों में सहायक होता है। 

• यह प्रबंधकीय बाधाओं को दूर करने में सक्षम होता है। 

• यह विचारों की स्वंत्र अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करता है।

 

अनौपचारिक सम्प्रेषण दोष: 

• इसमें सम्प्रेषण का श्रोत ढूँढना कठिन होता है। अतः उत्तरदायित्वों का निर्धारण कठिन होता है। 

• इसमें विश्वसनीयता की सीमा निर्धारित करना कठिन होता है। 

• ये सन्देश अर्धसत्य या विकृत तथ्यों के रूप में हो सकतें हैं। 

• इन पर नियंत्रण रखना और इनके आधार पर निर्णय लेना कठिन होता है। 

• ये प्रबंधकों के लिए भ्रम और कठिनाई उत्पन्न करके प्रबंधकीय कार्य कुशलता पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

 

संदेशों के प्रवाह के आधार पर सम्प्रेषण : 

I) अधोगामी सम्प्रेषण (Downward Communication) : 

जब सूचनाओं का प्रवाह उपर से नीचे की उपर की ओर होता है अर्थात् प्रबंधक से अधीनस्थों की ओर होता है तब अधोगामी सम्प्रेषण कहा जाता है। इसमें प्रायः निम्नलिखित प्रकार की सूचनायें होतीं है:

 

• कार्य के सम्बन्ध में आदेशनिर्देश व दायित्व 

• नीतियोंनियमोंकार्य पद्धतियोंलक्ष्यों आदि के बारे में सूचनाएं 

• कार्य निष्पादन के बारे में प्रतिपुष्टि 

• संस्था के भावी कार्यक्रमों के बारे में सूचनायें 

• प्रशंसाआलोचनाएँ 

• अधीनस्थों से कार्य सम्बन्धी प्रश्न

 

II) उर्ध्वगामी सम्प्रेषण (Upward Communication): 

जब सूचनाओं का प्रवाह उच्च पदों से निम्न पदों की ओर होता है अर्थात् जब सूचनायें अधीनस्थों से प्रबंधक की ओर जातीं हैं तब उर्ध्वगामी सम्प्रेषण होता है। इसमें प्रायः निम्न प्रकार की सूचनायें होतीं है:

 

• अधीनस्थों के कार्य प्रतिवेदन 

• अधीनस्थों की कार्य समस्यायें 

• आदेशों-निर्देशों पर आपत्तियाँ 

• अधीनस्थों के विचारमत एवं सुझाव 

• अधीनस्थों की व्यक्तिगत समस्यायें 

• कार्य सम्बन्धी कठिनाईयाँ व शिकायतें 

• अधीनस्थों की प्रतिक्रियायें

 

III) समतल सम्प्रेषण (Horizontal Communication): 

ब सामान स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों के सूचनाओं का आदान प्रदान होता है तो इसे समतल सम्प्रेषण कहतें हैं। किसी में परियोजना दलकार्य बलआव्यूह या समितिओं का गठन इस प्रकार के सम्प्रेषण के रूप होतें हैं यह संप्रेषण समन्वयात्मक प्रकृति का होता है तथा कार्यों के विशिष्टीकरण के कारण इनकी आवश्यकता होती है। यह सम्प्रेषण लिखित या मौखिक दोनों ही प्रकारों का हो सकता है। इसमें निम्न प्रकार का सम्प्रेषण शामिल रहता है:

 

• एक की कार्य समूह या विभाग में सामान स्तर के कर्मचारियों के बीच सम्प्रेषण । 

• सामान संस्थागत स्तर पर कार्यशील विभागों के मध्य अथवा उसके अंतर्गत समतलीय सम्प्रेषण ।

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