विद्यालय प्रबन्धन एवं प्रशासन में शिक्षक की भूमिका । Role of teacher in school management and administration
विद्यालय प्रबन्धन एवं प्रशासन में शिक्षक की भूमिका
विद्यालय प्रबन्धन एवं प्रशासन में शिक्षक की भूमिका
वैसे तो यह सभी जानते हैं कि प्रधानाध्यापक का कार्य विद्यालय में सबसे मुख्य होता है। वह विद्यालय का मुखिया, नेता तथा प्रशासक होता है। परन्तु जैसे कि कहा जाता है कि अकेला चना भाढ़ नहीं फोड़ सकता उसी प्रकार प्रधानाध्यापक अकेला पूरे विद्यालय का कार्यभार नहीं सम्भाल सकता, उसे हर कार्य में विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों की सहायता लेनी पड़ती है। जिस प्रकार प्रधानाध्यापक शिक्षण तथा प्रशासनिक कार्यों का प्रतिनिधित्व करता है, उसी प्रकार शिक्षक भी प्रधानाध्यापक के आधीन रहकर विद्यालय के प्रशासन में अपना योगदान देता है। विद्यालय के प्रति उसकी भी जवाबदेही होती है, तथा उसे भी अपने कत्र्तव्यों तथा अपनी भूमिका निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करना होता है।
विद्यालय के प्रशासन तथा संचालन में शिक्षक की भूमिका को निम्नलिखित रूप से अभिव्यक्त किया जा सकता है।
गुरु ज्ञान का मूल है, और गुणों की खान ।
शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जानि ।
शिक्षक क्या है:-
शिक्षक वह व्यक्ति है जो अपने शिक्षण कार्य के द्वारा छात्र के व्यवहार मे परिवर्तन का प्रयास करता है। वह छात्र को पशुत्व से मनुष्यता की ओर और मनुष्यता से देवत्व की ओर ले जाता है। साथ ही वह छात्र का सर्वांगीण विकास करता है।
प्रबन्धक क्या है:
वह व्यक्ति जो अपने क्षेत्र या व्यवसाय को क्रमबद्ध रूप प्रदान करने के लिए योजनाओं का निर्माण कर व्यवस्था का प्रबन्ध करता है तथा सारी आवश्यकताओं की पूर्ती करते हुए संसाधनों का उचित प्रयोग करता है प्रबन्धक कहलाता है।
एक आदर्श शिक्षक में कलाकार, अभिभावक, पथ प्रदर्शक, मित्र, मनोवैज्ञानिक तथा संस्कृति के प्रतिनिधि होने का गुण विद्यमान है। एक आदर्श शिक्षक के गुणों के लिए बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। यहाँ पर समय तथा स्थानाभाव के कारण हम शिक्षक के केवल उन गुणों का संकेत मात्र करेंगे जिनके अभाव में शिक्षक, शिक्षक हो ही नहीं सकता।
आदर्श शिक्षक के गुण:-
अच्छे शिक्षक में निम्नलिखित गुण अनिवार्य रूप से होने चाहिए-
दूरदर्शिता ।
विश्वसनीयता ।
अनुशासन की भावना।
विषय का अच्छा ज्ञाता।
मृदु भाषी।
निर्णय लेने की क्षमता।
अच्छा नेता होना।
समायोजन की भावना ।
आत्मविश्वासी।
ऊपर की पंक्तियों में हम आदर्श शिक्षक के अनिवार्य गुणों की संक्षिप्त चर्चा कर चुके हैं किन्तु यहाँ पर हमारी चर्चा का विषय शिक्षक एक प्रबन्धक एवं प्रशासक' के रूप में है अतः यहाँ पर हमें एक आदर्श प्रबन्धक एवं प्रशासक के गुणों की चर्चा कर लेना भी अनिवार्य प्रतीत होता है। नीचे की पंक्तियों में एक आदर्श प्रबन्धक एवं प्रशासक के अनिवार्य गुणों की ओर संकेत किया गया है।
आदर्श प्रबन्धक एवं प्रशासक के गुण :
एक अच्छे प्रबन्धक एवं प्रशासक में निम्नलिखित गुण अनिवार्य रूप से होने चाहिए-
एक अच्छा योजनाकार ।
मृदु भाषिता ।
शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता।
सहयोग की भावना ।
संसाधनों का उचित प्रयोग करने की क्षमता।
दूरदर्शिता ।
नेतृत्व की क्षमता।
शिक्षक एवं प्रबन्धक को परिभाषित करते हुए हमने एक आदर्श शिक्षक, प्रबन्धक एवं प्रशासक के गुणों पर संक्षिप्त दृष्टिपात किया है। उपरोक्त चर्चा के पश्चात् हमारे लिए विद्यालय के प्रबन्धन एवं प्रशासन से सम्बन्धित शिक्षक के कार्यों को स्पष्ट करना सरल हो जायेगा।
प्रबन्धक एवं प्रशासक के रूप में शिक्षक के कार्य:-
शिक्षा देना:-
शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है छात्रों को अपने विषय का ज्ञान प्रदान करना तथा उन्हें इस प्रकार की शिक्षा देना कि उनके पूरे व्यक्तित्व का विकास हो सके।
संगठन करना:-
शिक्षक को कक्षा के स्तर पर शिक्षा का संगठन सुनिश्चित करना होता है। कक्षा के छात्रों के लिये विषय के अनुसार पुस्तकों की व्यवस्था, शिक्षण गतिविधियों का संचालन, प्रतियोगिताओं का आयोजन, पाठ्य- सहगामी क्रियाओं का आयोजन तथा शिक्षण सामग्री की उचित व्यवस्था का ध्यान रखना होता है। इसके अतिरिक्त कक्षा में चल तथा अचल संसाधनों की पूरी व्यवस्था तथा उसकी देख-रेख शिक्षक का ही उत्तरदायित्व होता है।
निरीक्षण करना :-
शिक्षक को छात्रों के दैनिक शिक्षण कार्यों का निरीक्षण करना होता है। उनका दैनिक गृह कार्य, कक्षा का कार्य, प्रतिदिन की उपस्थिति तथा समय से विद्यालय में आवागमन इन सब बातों का ध्यान शिक्षक को ही रखना होता है। इसके अतिरिक्त छात्रों के लिये प्रयोगशालाओं का आयोजन करना तथा अन्य सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिविधियों का आयोजन कर छात्रों के व्यक्तित्व विकास का निरीक्षण करना भी शिक्षक का कार्य होता है।
अनुशासन:-
विद्यालय में अनुशासन बनाये रखना प्रत्येक शिक्षक का कत्र्तव्य होता है। इस कार्य में वह प्रधानाध्यापक को अपना पूरा सहयोग देता है तथा कक्षा में शिक्षण कार्य अनुशासित रूप से पूर्ण हो सके इस बात का पूरा रखता है।
मूल्यांकन तथा अभिलेख रखना:-
छात्रों की शैक्षिक प्रगति तथा योग्यता का मूल्यांकन करना भी शिक्षक का कार्य होता है। इसके लिये वह समय-समय पर कक्षाओं में विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का आयोजन करता है।
परीक्षाओं के आयोजन तक ही शिक्षक का कार्य समाप्त नहीं होता है, उसे इस मूल्यांकन का नियमित अभिलेख भी रखना होता है। इस प्रकार उसको छात्रों के बारे में, उनकी रूचियों, भावनाओं और सफलताओं का काफी ज्ञान हो जाता है। इसके अतिरिक्त उसे छात्रों की उपस्थिति का रजिस्टर, अन्य क्रियाओं सम्बन्धी रजिस्टर तथा छात्रों के प्रवेश लेने तथा छोड़ने का रजिस्टर भी शिक्षक को रखना होता है।
मार्गदर्शन:-
शिक्षक को छात्रों की बुद्धि तथा उनकी मानसिक योग्यता के आधार पर न केवल विद्यालय के पाठ्यक्रम को समझने अपितु भविष्य के लिये उपयुक्त विषय चुनने तथा अपने लिये भविष्य की योजनाएँ तैयार करने हेतु सहायता प्रदान करनी होती है।
शिक्षक मूल्यांकन के माध्यम से कक्षा के सभी छात्रों की बुद्धि तथा उनकी शारीरिक तथा मानसिक क्षमताओं का ज्ञान प्राप्त करता है। तत्पश्चात इसी ज्ञान का उपयोग कर मनोवैज्ञानिक विधियों की सहायता से वह छात्रों को पाठ्यक्रम को समझने के लिये अनेक गतिविधियों का प्रयोग करता है। इसके अतिरिक्त वह छात्रों का मार्गदर्शन कर आगे की कक्षाओं के लिये विषय चुनने तथा भविष्य में उन्हें व्यवसाय चुनने में भी सहायता प्रदान करता है।
आयोजन:-
वैसे तो यह कार्य मुख्यतः प्रधानाध्यापक का होता है, परन्तु प्रधानाध्यापक अपनी सहायता हेतु इस कार्य का विभाजन शिक्षकों के मध्य कर उनका निरीक्षण करता है।
आयोजन के अन्तर्गत शिक्षक के निम्नलिखित हैं- प्रमुख
(1) अध्यापक को पाठ्यक्रम की ठीक ढंग से व्यवस्था करनी होती है। उसे पाठ्यक्रम को महीनों तथा हफ्तों में बाँटकर पढ़ाना होता है।
(2) उसे श्रव्य-दृश्य साधनों और अध्यापन विधियों के प्रयोग करने की व्यवस्था करनी होती है। उसे मनोवैज्ञानिक रूप से इन सब विधियों का प्रयोग शिक्षण कार्य में सभी छात्रों की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखकर करना होता है।
(3) इसके अतिरिक्त उसे विद्यालय में आयोजित होने वाली पाठ्य सहगामी क्रियाएँ तथा अन्य क्रियाओं तथा प्रतियोगिताओं में भी अपना योगदान देना होता है।
इस प्रकार हमने देखा कि एक प्रधानाध्यापक तथा शिक्षक सभी मिलकर विद्यालय के सफल संचालन तथा प्रशासन में अपना योगदान देते हैं तथा अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं । प्रधानाध्यापक जहाँ विद्यालय का प्रतिनिधित्व करता है, सभी शिक्षक उसके अधीनस्थ रहकर अपना कार्य करते हैं।
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