राज्य में शैक्षिक प्रशासन।शैक्षिक प्रशासन का ढांचा । State Education System in Hindi
राज्य में शैक्षिक प्रशासन ढांचा
राज्य में शैक्षिक प्रशासन प्रस्तावना
शिक्षा सभी मनुष्यों का जन्म सिद्ध अधिकार माना जाता है। आज के प्रगतिशील तथा आधुनिक समाज में शिक्षा की परिभाषा भी बदल गई है। प्रतियोगिता के इस युग में वास्तविक जीवन के अनुभवों को ही केवल शिक्षा नहीं माना जाता है। आज के युग में स्कूली शिक्षा का भी महत्व है। आज रोटी, कपड़ा और मकान की तरह स्कूली शिक्षा भी मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं का हिस्सा बन गई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए संविधान के निर्माताओं ने भारत के संविधान में शिक्षा को सभी भारतीय नागरिकों की मूलभूत आवश्यकता घोषित करते हुए इसे सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार माना है, तथा देश की सरकार को यह कार्य भी सौंपा है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी नागरिकों को समय तथा जरूरत के अनुसार उचित तथा पूरी शिक्षा सुनिश्चित हो ।
अब यह देश की सरकार के कत्र्तव्यों में
से एक है कि वह सभी नागरिकों को उचित स्कूली शिक्षा प्रदान करे तथा यह सुनिश्चित
भी करे कि इस क्रम में संसाधनों की कमी न हो तथा कोई भी नागरिक अपने इस अधिकार से
वंचित न रह जाये।
इस दिशा में आजादी के बाद से अब तक भारत पर शासन करने वाली प्रत्येक सरकार ने ठोस तथा सार्थक कदम उठाये हैं। आजादी के बाद से ही प्रत्येक सरकार इस कोशिश में लगी रही है कि भारतीय समाज के प्रत्येक नागरिक को उचित शिक्षा प्रदान की जा सके तथा समाज में व्याप्त निरक्षरता को समाप्त किया जा सके ।
परन्तु इतने बड़े देश में शिक्षा का
आयोजन करना सरल कार्य नहीं है। भारत सरकार ने अनेक संशोधनों, नीतियों, समितियों और सुधारों के माध्यम से शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने तथा
उसकी पहुँच को विस्तृत करने का प्रयत्न किया है। परन्तु इन संशोधनों तथा नीतियों
का क्रियान्वयन बिना कुशल प्रशासन तथा नियोजन के सम्भव नहीं है। केन्द्र में बैठी
सरकार के लिए इतने बड़े देश में शिक्षा का प्रशासन स्वयं करना सम्भव नहीं है, अतः कार्य का विभाजन करते हुए प्रत्येक
राज्य में शिक्षा का प्रशासन तथा संचालन राज्य सरकारों के कत्र्तव्यों में शामिल
किया गया है। केन्द्र सरकार समय तथा आवश्यकतानुसार शिक्षा नीतियों में बदलाव तथा
सुधार करती है, तथा यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती
है कि वह अपने राज्य में उन नीतियों का क्रियान्वयन सुनिश्चित करे ताकि शिक्षा का
संचालन तथा प्रसार सुचारू रूप से चलता रहे।
इस आर्टिकल में हम एक प्रदेश में शैक्षिक
प्रशासन के ढांचे तथा अलग-अलग स्तर पर उनके उत्तरदायित्वों तथा भूमिका के विषय में
अध्ययन करेंगे।
राज्य के शैक्षिक प्रशासन सम्बन्धी दायित्व
किसी भी राष्ट्र की दिशा, दशा एवं गति का निर्धारण शिक्षा करती
है। कोई राज्य किस दिशा में किस गति से आगे बढ़ेगा तथा अपने राष्ट्र एवं विश्व में
उसकी क्या स्थिति होगी यह उस राज्य की शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व
शिक्षा से सम्बन्धित होता है।
एक राज्य में शैक्षिक प्रशासन के ढाँचे
पर चर्चा करने से पूर्व हम उस राज्य के शिक्षा सम्बन्धी उत्तरदायित्वों को समझने
का प्रयास करेंगे।
हम भली-भाँति जानते हैं कि भारत में
शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है यद्यपि शिक्षा के क्षेत्र में अन्तिम अधिकार
केन्द्र का है तथापि सामान्य परिस्थितियों में केन्द्र इस क्षेत्र में बहुत कम दखल
करता है।
किसी भी राज्य के शिक्षा से सम्बन्धित
दायित्वों को हम मुख्य रूप से चार भागों में बाँट सकते हैं-
- वित्त से सम्बन्धित दायित्व ।
- नियम निर्माण से सम्बन्धित दायित्व ।
- निरीक्षण से सम्बन्धित दायित्व ।
- नियुक्ति से सम्बन्धित दायित्व ।
- पाठ्यक्रम से सम्बन्धित दायित्व ।
1 वित्त से सम्बन्धित दायित्व
राज्य की समस्त व्यवस्थाओं के संचालन
में वित्त की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। वित्त के अभाव में किसी भी प्रकार की
व्यवस्था का संचालन सम्भव नहीं है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार के
वित्तीय दायित्व सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
राज्य की शिक्षा व्यवस्था प्रायः तीन
स्तरों में विभाजित होती है-
प्राथमिक स्तर
माध्यमिक स्तर
उच्च स्तर
उपरोक्त तीनों स्तरों की शिक्षा
व्यवस्था के लिए राज्य अनेक प्रकार से वित्तीय प्रबन्ध करता है। वित्त की व्यवस्था
के लिए राज्य सरकार अपने संसाधनों के अतिरिक्त प्रमुख रूप से तीन प्रकार के
स्रोतों का उपयोग करती है-
- केन्द्रीय अनुदान
- स्थानीय निकाय
- निजी संस्थायें या व्यक्ति
प्रत्येक राज्य को केन्द्र सरकार के द्वारा पर्याप्त मात्रा में अनुदान मिलते हैं यह अनुदान देने के लिए केन्द्र सरकार की अनेक संस्थायें कार्य करती हैं। वर्तमान में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था केन्द्र सरकार के अनुदान से लागू की जा रही है। इसी प्रकार UGC उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्यों को भारी अनुदान प्रदान करता है।
2 नियम निर्माण से सम्बन्धित दायित्व:-
राज्य की शिक्षा व्यवस्था को चलाने के लिए नियमों एवं कानूनों की आवश्यकता पड़ती है। समय- समय पर इन नियमों में परिवर्तन भी करना पड़ता है। राज्य सरकार आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर नियमों का निर्धारण एवं उनमें संशोधन करती रहती है।
3 निरीक्षण से सम्बन्धित दायित्व:-
राज्य में शिक्षा की विभिन्न संस्थायें
ठीक प्रकार से कार्य कर रही हैं या नहीं यह जानने के लिए राज्य सरकार को निरीक्षण
की व्यवस्था करनी होती है। राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों, वि0वि0 आदि का निरीक्षण कराया जाता रहता है।
4 नियुक्ति से सम्बन्धित दायित्व:-
प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च स्तर तक स्थायी नियुक्तियों का दायित्व राज्य सरकार का है। अपने इस दायित्व की पूर्ति के लिए वह विभिन्न समितियों अथवा आयोगों को माध्यम बनाती है।
5 पाठ्यक्रम से सम्बन्धित दायित्व:-
यद्यपि उच्च स्तर पर पाठ्यक्रम
निर्धारण का दायित्व राज्य सरकार ने विश्वविद्यालयों को दे रखा है तथापि प्राथमिक
एवं माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम निर्धारण का दायित्व राज्य सरकार ने अपने पास ही
रखा है। इसके लिए राज्य सरकार विशेषज्ञों की विभिन्न समितियाँ बनाती है।
राज्य में शैक्षिक प्रशासन का ढांचा
राज्य में शैक्षिक प्रशासन तीन स्तरों
में विभाजित होता है।
- मंत्रालय स्तर
- सचिवालय स्तर
- निदेशालय स्तर
1 मंत्रालय स्तर:-
राज्य शिक्षा मंत्रालय का मुख्य शिक्षा मंत्री होता है। यह एक केबिनेट स्तर का मंत्री होता है। इसकी सहायता के लिये शिक्षा राज्य मंत्री तथा उप मंत्री होते है। शिक्षा मंत्री जनता का प्रतिनिधि होता है, तथा राज्य विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भी होता है। शिक्षा मंत्री की अनुपस्थिति में शिक्षा राज्य मंत्री या उप मंत्री उसके कार्यों की देखभाल करते हैं। शिक्षा मंत्री समग्र राज्य के शिक्षा विभागों तथा संस्थाओं का मुखिया होता है।
शिक्षा मंत्री के कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया जा सकता है-
1. वह समस्त राज्य की शिक्षा व्यवस्था का नेता होता है। राज्य की शिक्षा के लिये नेतृत्व प्रदान करना उसका उत्तरदायित्व होता है।
2. वह विधानसभा में उत्तरदायी होता है। शिक्षा के सम्बन्ध में पूछे गये प्रश्न चाहे वह संचालन या प्रशासन से सम्बन्धित हों या नीति निर्धारण से का उत्तर शिक्षा मंत्री को देना होता है।
3. राज्य में शिक्षा के प्रसार तथा शिक्षा के स्तर को ऊंचा बनाने के लिये विधान मण्डल को नीति निर्धारण तथा अन्य मामलों में सुझाव देने का कार्य भी शिक्षा मंत्री का होता है।
4. समस्त राज्य में शिक्षा का समन्वयन करना भी शिक्षा मंत्री का कार्य होता है। यह शिक्षा मंत्री का उत्तरदायित्व होता है कि वह शिक्षा के लिये उचित संसाधनों का प्रबन्ध करे तथा यह भी सुनिश्चित करे कि सभी संसाधनों का प्रयोग उचित रूप से हो सके।
5. राज्य के शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रभावीपन का मूल्यांकन करना भी शिक्षा मंत्री का ही कत्र्तव्य होता है।
6. इसके अतिरिक्त राज्य के स्थानीय
निकायों तथा निजी शिक्षा संस्थाओं को हर प्रकार की सहायता प्रदान करना भी शिक्षा
मंत्री का ही कत्र्तव्य होता है।
7. शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं का
समाधान तथा शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा सहयोग करना भी
शिक्षा मंत्री का ही कत्र्तव्य होता है।
शिक्षा मंत्री तथा शिक्षा मंत्रालय के कार्यों के क्रियान्वयन में उनकी सहायता के लिये राज्य में दो अन्य अभिकरण भी होते हैं-
2 शिक्षा सचिवालय:-
शिक्षा सचिवालय राज्य शिक्षा विभाग की
नीति निर्माण के लिये गठित की गई शाखा होती है। यह शिक्षा मंत्री को नीतियों के
निर्माण में सहायता प्रदान करती है। इसका मुख्य अधिकारी शिक्षा सचिव होता है। इसके
अधीन कुछ उप-सचिव तथा सहायक सचिव होते हैं। शिक्षा सचिव का सीधा सम्पर्क शिक्षा
मंत्री से होता है। जैसे कि बताया जा चुका है कि शिक्षा सचिवालय का गठन हर राज्य
में शिक्षा से सम्बन्धित नीति निर्माण से सम्बन्धित कार्यों के लिये किया जाता है, अतः केन्द्र की नीतियों तथा आदेशों को
ध्यान में रखते हुए राज्य के लिए शिक्षा नीति का निर्माण करना तथा नीति निर्माण
करते समय राज्य की आवश्यकता तथा संसाधनों की उपलब्धता का ध्यान रखना यह कार्य
शिक्षा सचिवालय का ही होता है। शिक्षा सचिव आई०ए०एस० स्तर का अधिकारी होता है।
शिक्षा मंत्री को शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं पर सलाह देना, सरकारी नियमों के अधीन कार्य कराना, शिक्षा विभाग के अधिकारियों की अनुशासन
सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाना, यह
सभी कार्य शिक्षा सचिव के कत्र्तव्यों के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। राज्य
सरकार के सभी आदेश उसी के नाम से निकलते हैं।
3 शिक्षा निदेशालय :-
शिक्षा निदेशालय राज्य शिक्षा विभाग की
कार्यपालिका संस्था है। जहाँ एक ओर शिक्षा सचिवालय राज्य के लिये नीति निर्माण का
कार्य करता है, वहाँ शिक्षा निदेशालय, सचिवालय द्वारा निर्मित नीतियों को
लागू करने का कार्य करता है। यह सचिवालय तथा राज्य के विद्यालयों को जोड़ने वाली
कड़ी का काम करता है। राज्य निदेशालय का सर्वोच्च अधिकारी शिक्षा निदेशक होता है।
शिक्षा निदेशक शिक्षा के क्षेत्र में राज्य की प्रमुख कार्यपालिका शक्ति होता है।
वह राज्य की प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा के विकास के लिये भी
उत्तरदायी ह है। राज्य के निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले संगठनों, स्थानीय निकायों की शिक्षा समस्याओं
तथा उ समाधान के लिये वही उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त राज्य में शिक्षा की
प्रगति का मूल्यांकन कर शैक्षिक आवश्यकताओं की सूचनाएँ राज्य सरकार तक पहँ ुचाना
तथा राज्य में प्रचलित शैि क्रियाकलापों तथा इन पर जन साधारण की प्रतिक्रिया की
जानकारी सरकार को प्रदान करना यह सभी व शिक्षा निदेशक के कार्य क्षेत्र के
अन्तर्गत सम्मिलित किये जा सकते हैं। इन सभी कार्यों का निर्वहन उचित से करने के
लिये संयुक्त निदेशक, उप शिक्षा निदेशक, शिक्षा अधिकारी आदि शिक्षा निदेशालय
में नि किये जाते हैं। इस प्रकार राज्य स्तर पर शैक्षिक प्रशासन का निम्नलिखित रूप
से सारांश सकता है- प्रस्तुत किया
अभी तक हमने यह देखा कि किस प्रकार
राज्य में उचित शैक्षिक प्रशासन के लिए तीन प्रशासनिक इकाई बनायी जाती हैं। परन्तु
राज्य भी अपने आप में एक विस्तृत क्षेत्र होता है, तथा राज्य के शैक्षिक प्रशासन लिये राज्य को पुनः छोटे-छोटे खण्डों
में विभाजित किया गया है,
तथा प्रत्येक खण्ड में एक प्रशासनिक
ढां तैयार किया गया है, जो अपने क्षेत्र में शैक्षिक संचालन के
लिये उत्तरदायी होता है।
स्थानीय शिक्षा प्रशासन:-
यह बात तो सभी को ज्ञात है कि
प्रशासनिक स्तर पर राज्य की व्यवस्था मण्डल, जिला
तथा ब्लाक विभाजित की गई है। शिक्षा भी राज्य सरकार की जिम्मेदारी है तथा इसका
संचालन और प्रसार भी इन प्रशासनिक इकाईयों में विभाजित हैं। अब हम शिक्षा के
स्थानीय प्रशासन का अध्ययन करेंगे।
विभिन्न राज्यों में स्थानीय निकायों
के भिन्न-भिन्न रूप हैं। कई राज्यों में शहरी शिक्षा का दायि नगरपालिकाओं के अधीन
है, कुछ राज्यों में मात्र बड़ी
नगरपालिकाओं का तथा शेष में शहरी शिक्षा सी राज्य सरकार के अधीन है, और वह उसका नियन्त्रण जिला शिक्षा
अधिकारी के माध्यम से करती है।
ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा के लिये
जिला परिषद् स्थानीय निकाय के रूप में कार्य करते हैं। मुख्यतः राज्यों में इन तीन
स्तरों की व्यवस्था है। यह तीन स्तर हैं- ग्रामीण स्तर पर ग्राम पंचायत, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति जिला स्तर
पर जिला परिषद् ।
इस आधार पर शिक्षा के स्थानीय
प्रशासनिक ढाँचे को हम निम्न रूप में चित्रित कर सकते हैं -
शिक्षा का स्थानीय प्रशासनिक ढाँचा
- जिला परिषद् / नगर पालिका
- पंचायत समिति
- ग्राम पंचायत
स्थानीय शिक्षा प्रशासन का कार्य क्षेत्र:-
वैसे तो शिक्षा की प्रशासनिक इकाई होने
के कारण इनका मुख्य कार्य अपने क्षेत्र या कार्य-क्षेत्र में शिक्षा का उचित
प्रशासन करना कहा जा सकता है, परन्तु
इनके कार्यों तथा उत्तरदायित्वों को विस्तृत रूप से इस प्रकार वर्णित किया जा सकता
है-
- अपने क्षेत्र के विद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों को मान्यता प्रदान करना ।
- मान्यता प्राप्त सरकारी तथा गैर सरकारी विद्यालयों को आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु अनुदान देना ।
- विद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले शैक्षिक पाठ्यक्रम का निर्माण तथा निर्धारण करना ।
- इस पाठ्यक्रम के आधार पर पाठ्य-पुस्तकें स्वीकार करना तथा सरकारी विद्यालयों में इन पाठ्य पुस्तकों की आपूर्ति सुनिश्चित करना ।
- प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों का चयन, उनका वेतन, कार्य करने की शर्ते तथा नियम, स्थानांतरण, उनकी संख्या इन सभी बातों की जिम्मेदारी स्थानीय शैक्षिक प्रशासन की होती है। इसके अतिरिक्त विद्यालय के अन्य कर्मचारियों के चयन, नियुक्ति तथा वेतन से सम्बन्धित क्रियाकलाप भी स्थानीय प्रशासन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित होते हैं।
- इसके अतिरिक्त सरकारी विद्यालयों की वार्षिक अवकाश सूची तैयार करना भी स्थानीय प्रशासन का कार्य होता है।
अब तक आपने राज्य में अलग-अलग स्तरों
पर शैक्षिक प्रशासन के बारे में अध्ययन किया। आपने देखा कि किस प्रकार राज्य में
विभिन्न स्तरों पर तथा विभिन्न प्रशासनिक इकाईयों में अनेक अधिकारी कार्यरत होते
हैं।
वैसे तो शिक्षा के प्रसार तथा उचित
संचालन के लिये शासन ने राज्य स्तर पर एक मजबूत प्रशासन व्यवस्था का निर्माण किया
है।
आजादी के बाद से ही शिक्षा के प्रसार तथा गुणवत्ता को बढ़ाने के लिये भारत में अनेक प्रयत्न किये गये परन्तु फिर भी शिक्षा के प्रसार के लक्ष्य को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं किया जा सका। इसमें मुख्य रूप से प्राथमिक शिक्षा का प्रसार शामिल है। भारत के सभी राज्यों में कम से कम प्राथमिक शिक्षा का उचित रूप से प्रसार किया जा सके, इसके लिये बेसिक शिक्षा प्रशासन अलग से स्थापित किया।
राज्य स्तर पर प्राथमिक शिक्षा के लिये 'बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री भी नियुक्त किया गया। इसका उत्तरदायित्व राज्य की बेसिक शिक्षा का प्रबन्धन एवं प्रशासन करना है।
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