शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकार के कार्य |Functions of the state government at different levels of education
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकार के कार्य
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकार के कार्य प्रस्तावना
यदि हम मानव सभ्यता के विकास पर दृष्टि डालें तो हम पायेंगे कि आरम्भ में मानव तथा अन्य प्राणियों के व्यवहार में कोई विशेष अन्तर नहीं था । किन्तु धीरे-धीरे मानव के बौद्धिक विकास ने उसे आविष्कारक बना दिया तथा वह अन्य प्राणियों की अपेक्षा उन्नत होता चला गया। मानव के बौद्धिक विकास में शिक्षा की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
हमें शिक्षा का
व्यवस्थित इतिहास वैदिक काल से प्राप्त होता है। वैदिक कालीन शिक्षा व्यवस्था
स्वतन्त्र थी। ब्राह्मणों (अत्यन्त विद्वान व्यक्तियों) को गुरूकुल चलाने की
स्वतन्त्रता थी । गुरूकुल प्रायः प्रकृति के सानिध्य में बनाये जाते थे।
विद्यार्थी गुरूकुल में रहकर ही विद्या अध्ययन करते थे। गुरूकुल में विद्यार्थी
केवल विद्यार्थी होता था। वहां राजा और रंक में कोई भेद नहीं था। शिक्षा पर राज्य
का कोई नियन्त्रण नहीं था और न ही राजा गुरूकुल की व्यवस्था में किसी प्रकार का
हस्तक्षेप करते थे। वैदिक काल में शिक्षक समाज का सर्वाधिक सम्मानित (राजा से भी
अधिक) नागरिक होता था।
बौद्ध काल में
शिक्षा के क्षेत्र में राज्य की भूमिका आरम्भ हो गई थी। राज्य की ओर से मठों को
आर्थिक सहायता व दिशा निर्देश प्रदान किये जाने लगे थे। मुगल काल में राज्य ने
शिक्षा पर पूर्ण नियन्त्रण कर लिया था। उसी समय में अध्यापकों को वेतन मिलना भी
आरम्भ हुआ। अंग्रेजों के द्वारा भारत में विधिवत् राज्य स्थापित कर लेने के पश्चात
शिक्षा राज्य का दायित्व हो गया व सरकार के नियमो अधिनियम के द्वारा शिक्षा
व्यवस्था संचालित होती रही।
स्वतन्त्र भारत में 1976 तक शिक्षा राज्य का विषय रही। 1976 में संविधान संशोधन के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र सरकार को दखल देने का अधिकार मिल गया। शिक्षा को समवर्ती सूची में सम्मिलित कर लिया गया। शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र सरकार का दखल हो जाने से राज्य सरकार की भूमिका पर केवल इतना सा प्रभाव पड़ा कि किसी विषय पर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा बनाये गये नियमों में मतभेद होने की दशा में केन्द्र सरकार का नियम / निर्णय मान्य होगा।
प्राथमिक स्तर पर राज्य सरकार के शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
प्राथमिक शिक्षा, जैसा कि नाम से
ही स्पष्ट है सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था का आधार है तथा इसे सर्वाधिक प्राथमिकता दी
जानी चाहिये जैसा कि आप जानते ही हैं कि स्वतन्त्र भारत में संविधान लागू होने के
साथ संविधान के अनुच्छेद 45 में 14 वर्ष तक की आयु
के बच्चों के किये निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया। इस कार्य
के लिये 10 वर्ष की समय सीमा
निर्धारित की गई । यद्यपि अपनी समय सीमा में केन्द्र व राज्य सरकारें इस लक्ष्य को
प्राप्त न कर सकीं तथापि इस दिशा में सरकारों ने पर्याप्त प्रयास किये। प्राथमिक
शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिये 1957 में "अखिल भारतीय प्रारम्भिक शिक्षा परिषद् " का
गठन किया गया। इस परिषद् के संगठन में राज्य सरकारें भी भागीदार होती हैं। इस
परिषद् के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं पर शोध कार्य किया जाता
है तथा उन समस्याओं का निदान करने का प्रयास किया जाता है।
राज्य में
प्राथमिक शिक्षा का कार्य मुख्य रूप से बेसिक शिक्षा मंत्री का उत्तरदायित्व है।
कुछ राज्यों में मंत्री अथवा राज्य मंत्री के स्तर पर प्राथमिक शिक्षा राज्य
मंत्री की नियुक्ति अलग से भी की जाती है। इसी प्रकार शिक्षा सचिवालय एवं शिक्षा
निदेशालय में शिक्षा सचिव एवं शिक्षा निदेशक की सहायतार्थ शिक्षा उपसचिव प्राथमिक
अथवा शिक्षा उप निदेशक प्राथमिक की नियुक्ति भी अलग से की जा सकती है। राज्य में
प्राथमिक शिक्षा का प्रशासकीय ढाँचा
निम्नांकित
रेखाचित्र के माध्यम से हम राज्य में प्राथमिक शिक्षा के प्रशासकीय ढाँचे को
भलीभाँति समझ सकते हैं।
केन्द्र सरकार
राज्य सरकार
सह समन्वयक गणित
सह समन्वयक सामाजिक विज्ञान
सह समन्वयक अंग्रेजी
नगर पंचायत स्तर पर संकुल प्रभारी -
गांव स्तर पर
प्रधानाध्यापक अध्यापक
प्रशासकीय ढाँचे
के रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि प्राथमिक शिक्षा हेतु राज्य में एक शिक्षा
निदेशक होता है जिसकी सहायतार्थ मण्डल जिला, नगर,
ब्लाक और न्याय
पंचायत स्तर पर अनेक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। थोड़े-बहुत परिवर्तन के
साथ भारत के प्रायः प्रत्येक राज्य में उपरोक्त व्यवस्था लागू है।
प्राथमिक शिक्षा
के लिये राज्य सरकार प्रत्येक विद्यालय में अध्यापकों की व एक प्रधानाध्यापक की
नियुक्ति करती है। नियुक्ति का कार्य राज्य सरकार "जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण
संस्थान" के माध्यम से करती है। जिला प्रशिक्षण संस्थान अध्यापकों को
नियुक्ति से पूर्व पूर्णकालिक प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।
एक न्याय पंचायत
क्षेत्र की सीमा में आने वाले सभी प्रधानाध्यापकों के ऊपर एक न्याय पंचायत संसाधन
केन्द्र समन्वयक होता है जो प्रायः क्षेत्र के सबसे बड़े जूनियर हाईस्कूल का
प्रधानाध्यापक होता है। इसकी नियुक्ति जिला प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान द्वारा
की जाती है। उक्त समन्वयक अपने क्षेत्र के विद्यालयों में जाकर “आदर्श पाठ” प्रस्तुत करता है
तथा “शैक्षिक
गुणवत्ता" में सुधार के उपाय करता है।
इसी प्रकार
नगर/ब्लाक स्तर पर हिन्दी,
अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान व गणित
विषय के आदर्श पाठ प्रस्तुत करने व शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के उपाय करने के
लिये 5 सहायक ब्लाक
संसाधन केन्द्र समन्वयक होते हैं। उक्त सभी “खण्ड शिक्षा अधिकारी" के लिए उत्तरदायी होते हैं जो
अपने खण्ड में शैक्षिक गुणवत्ता के सुधार के लिये समय-समय पर निरीक्षण करता रहता
है। खण्ड शिक्षा अधिकारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी' के लिये उत्तरदायी होता है। जिला बेसिक शिक्षा
अधिकारी अपने जिले में बेसिक शिक्षा से सम्बन्धित समस्त कार्यों का उत्तरदायित्व
निर्वाह करता है। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सहायक / उप शिक्षा निदेशक के प्रति
उत्तरदायी होते हैं जो आगे चलकर शिक्षा निदेशक बेसिक के लिये उत्तरदायी होते हैं।
राज्य सरकार अपने
उपरोक्त अधिकारियों, स्थानीय निकाय
एवं समाज के साथ मिलकर प्राथमिक शिक्षा के लिये शिक्षकों की नियुक्ति करती है, धन की व्यवस्था
करती है; निर्माण कार्य का
निरीक्षण करती है; अध्यापकों को
प्रशिक्षण देती है; शिक्षा में
सामुदायिक सहभागिता सुनिश्चित करती है, केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित मध्याहन भोजन की व्यवस्था
करती है तथा बालिका शिक्षा एवं समेकित शिक्षा पर ध्यान देती है।
प्राथमिक शिक्षा परिषद् के कार्य :-
प्रत्येक राज्य
में प्राथमिक शिक्षा के लिये प्राथमिक शिक्षा परिषद् मिलते जुलते नाम का गठन किया
जाता है जिसके द्वारा राज्य सरकार निम्नांकित कार्य सम्पन्न करती है
• राज्य में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करना।
• प्राथमिक शिक्षकों के लिये शिक्षक प्राशिक्षण की व्यवस्था करना ।
• राज्य सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त करना।
• परीक्षा आदि की व्यवस्था करना।
• विद्यालयों का
निरीक्षण करना ।
माध्यमिक स्तर पर राज्य सरकार के शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
'माध्यमिक शिक्षा' शिक्षा की
महत्वपूर्ण कड़ी है । यह'
प्राथमिक शिक्षा' और' उच्च शिक्षा' को जोड़ने का
कार्य करती है। प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति की अवस्था में बालक के कोई संस्कार नहीं
होते और उच्च शिक्षा प्राप्ति की स्थिति में बालक के संस्कार दृढ़ हो चुके होते
हैं। किन्तु माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करते समय बालक किशोरावस्था से युवावस्था की
ओर बढ़ रहे होते हैं। इस समय में उनमें संस्कारों को दृढ़ करने की आवश्यकता होती
है, अतः माध्यमिक
शिक्षा प्राप्ति काल बालक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल है।
माध्यमिक स्तर पर शिक्षा का प्रशासन:-
जैसा कि हमें
विदित ही है कि प्रत्येक राज्य में शिक्षा की व्यवस्था देखने के लिये शिक्षा
मंत्री का एक पद होता है। कुछ राज्यों में माध्यमिक शिक्षा के लिये अलग मंत्री का
पद भी सृजित किया जा सकता है, कुछ राज्यों में माध्यमिक शिक्षा के लिये राज्य मंत्री की
नियुक्ति की जाती है और कुछ राज्यों में शिक्षा मंत्री ही शिक्षा की समस्त
व्यवस्था को देखता है। अगले पृष्ठ पर हम राज्य में माध्यमिक शिक्षा के प्रशासनिक
ढाँचे को समझने का प्रयास करेंगे।
माध्यमिक स्तर पर
राज्य सरकार के कार्य :-
शिक्षकों की नियुक्ति: :-
माध्यमिक शिक्षा
के लिए शिक्षक उपलब्ध कराना राज्य सरकार का महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए राज्य
सरकार शिक्षा सेवा आयोग का गठन करके विज्ञापन, लिखित परीक्षा, साक्षात्कार आदि के द्वारा योग्य एवं श्रेष्ठ शिक्षकों का
चयन करती है। शिक्षकों को नियुक्ति देने से पूर्व राज्य सरकार उन्हें सेवा शर्तों
से अवगत करातीं हैं। कार्य प्रारम्भ करने के पश्चात् शिक्षकों को एक निश्चित समय
तक परिवीक्षा पर रखा जाता है। परिवीक्षा अवधि कार्य एवं कार्य प्रणाली से सन्तुष्ट
होने पर ही उन्हें नियमित किया जाता है।
नये विद्यालयों को मान्यता प्रदान करना :-
जैसा कि आप जानते
ही हैं कि राज्य में दो प्रकार के माध्यमिक विद्यालय संचालित किये होते हैं।
सरकारी एवं प्रबंधतंत्रीय। यदि समाज के किसी क्षेत्र में समाज सेवी लोगों द्वारा
विद्यालय चलाया जा रहा है और वे राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो
राज्य सरकार निर्धारित मानकों पर खरे उतरने वाले विद्यालयों को मान्यता प्रदान
करती है।
मान्यता प्राप्त विद्यालयों का उच्चीकरण:-
यदि हाईस्कूल की
मान्यता प्राप्त कोई विद्यालय अपने यहां इण्टर की कक्षाएं संचालित करना चाहता है
तो सरकार निर्धारित मानकों के अनुसार उस विद्यालय को उच्च कक्षाओं की मान्यता
प्रदान करती है।
विद्यालयों का निरीक्षण करना :-
जिला विद्यालय
निरीक्षक के माध्यम से राज्य सरकार समय-समय पर मान्यता प्राप्त विद्यालयों का
निरीक्षण करती रहती है। निरीक्षक के माध्यम से वह विद्यालयों में विसंगतियां आने
से रोकती है। निरीक्षण के समय शिक्षण कार्य, भौतिक संसाधन, कार्यालय, वित्त एवं लेखा आदि सभी का निरीक्षण किया जाता है।
पाठ्यक्रम निर्धारित करना :-
राज्य में
विभिन्न विषयों का पाठ्यक्रम निर्धारित करने का कार्य राज्य सरकार करती है। इसके
लिये वह विशषज्ञों की एक समिति बनाती है तथा उस समिति के सदस्य विचार मन्थन करके
विभिन्न विषयों का पाठ्यक्रम निर्धारण अथवा उनमें अपेक्षित परिवर्तन करते हैं।
पाठ्य पुस्तकें तैयार करना:-
कुछ राज्यों में
पाठ्य पुस्तक तैयार करने का कार्य निजी प्रकाशकों को दे दिया जाता है। वे राज्य
सरकार द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार पाठ्य पुस्तकें तैयार करते हैं।
किन्तु अधिकांश राज्यों में पाठ्य पुस्तक तैयार करने के लिये राज्य सरकार अपनी
प्रेस तथा विषय विशेषज्ञों का एक मण्डल बनाती है जो मिलकर पाठ्य पुस्तकों के लेखन
और सम्पादन का कार्य करते हैं।
अनुदान देना :-
राज्य में जितने भी गैर सरकारी विद्यालय चल रहे हैं उन विद्यालयों को समय-समय पर भवन निर्माण, भौतिक संसाधन तथा अन्य व्यवस्थाओं के लिए राज्य सरकार अनुदान प्रदान करती है।
राजकीय विद्यालयों का संचालन :-
राज्य में चल रहे समस्त राजकीय इण्टर कालेज व हाई स्कूल के संचालन का पूर्ण उत्तरदायित्व राज्य सरकार का है ।
छात्रवृत्ति प्रदान करना :-
सामाजिक न्याय की
दृष्टि से राजकीय व गैर सरकारी विद्यालयों में अध्ययनरत प्रतिभाशाली, निर्धन, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति
व कुछ अन्य विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रदान करने का कार्य राज्य सरकार करती
है।
परीक्षा :-
राज्य में
संचालित सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों में हाईस्कूल व इण्टर की परीक्षाऐं
संचालित करने का कार्य राज्य सरकार करती है। इस कार्य के लिये राज्य सरकार राज्य
में एक बोर्ड के माध्यम से परीक्षाऐं संचालित करती है।
अधिनियम:-
राज्य में शिक्षा
व्यवस्था को सुव्यवस्थित एवं सुचारू रूप से संचालित करने के लिये राज्य सरकार
विभिन्न प्रकार के अधिनियम बनाने का कार्य भी करती है।
अनुसंधान एवं प्रशिक्षण :-
शिक्षा के
क्षेत्र में अनुसंधान एवं 'सेवा पूर्व' तथा 'सेवा कालीन' शिक्षक प्रशिक्षण
का कार्य भी राज्य सरकार का है। इसके लिये राज्य मे "राज्य शैक्षिक अनुसंधान
एवं प्रशिक्षण परिषद्” का गठन किया जाता
है तथा राज्य सरकार उसके माध्यम से अनुसंधान एवं प्रशिक्षण से सम्बन्धित कार्य
संपन्न करती है।
अन्य कार्य :-
राज्य सरकार के
शिक्षा से सम्बन्धित कार्यों की सूची कभी समाप्त नहीं होती, क्योंकि राज्य
में शिक्षा का सम्पूर्ण दायित्व राज्य सरकार का है तथापि उपरोक्त कार्यों के
अतिरिक्त राज्य सरकार राज्य में कृषि, उद्योग, वाणिज्य आदि की शिक्षा व्यवस्था भी करती हैं। इसके अतिरिक्त
विद्यालयों का शैक्षिक विकास शैक्षिक योजना बनाना, शैक्षिक परिवीक्षण करना आदि कार्य भी राज्य
सरकार ही विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से सम्पन्न करती है।
उच्च स्तर पर राज्य सरकार के शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
भारत में वैदिक काल
से ही उच्च शिक्षा की उत्तम व्यवस्था रही है। उच्च स्तर पर व्यावहारिक विषयों का
उत्तम ज्ञान देना भारतीय शिक्षा की प्राचीनतम विशेषता है। सम्पूर्ण विश्व में उच्च
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य 'सत्य की खोज' है।
माध्यमिक शिक्षा
प्राप्त करने के बाद पहले अधिकांश छात्र किसी न किसी व्यवसाय अथवा जीविकोपार्जन के
अन्य साधनों में व्यस्त हो जाते थे। केवल मुट्ठी भर छात्र जिनमें ज्ञान की ललक
होती थी उच्च शिक्षा की ओर आते थे। किन्तु, अब स्थिति भिन्न है। माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के
पश्चात् अधिकांश छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। ज्ञान की ललक न होने
पर भी सरकारी अनुदान प्राप्त करने का लालच अनेक नौकरियों में न्यूनतम योग्यता
स्नातक, राजनीतिक
महत्वाकांक्षा तथा इसी प्रकार के अन्य कारणों से उच्च शिक्षा बढ़ती जा रही है।
इतना ही नहीं निजी क्षेत्रों के उच्च शिक्षा में प्रवेश के बाद भी महाविद्यालयों
में भीड़ कम नहीं हो रही है। आगे के पृष्ठों में हम राज्य में उच्च शिक्षा के
प्रशासन पर चर्चा करेंगे।
राज्य में उच्च शिक्षा का प्रशासन:-
उच्च शिक्षा का कार्य केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर करते हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आर्थिक सहायता देने के लिये केन्द्र ने 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का गठन किया है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार के कार्य
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकार के अग्रकित बिन्दुओं के अन्तर्गत राज्य सरकार के उच्च शिक्षा से सम्बन्धित कार्यों की चर्चा की जा सकती है।
- उच्च स्तरीय शिक्षण संस्थानों में प्राध्यापकों, प्राचार्यों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु मार्गदर्शक सिद्धान्त तैयार करना।
- उक्त नियुक्तियों हेतु आवश्यकतानुसार परीक्षा, साक्षात्कार आदि आयोजित करना। तथा उक्त कार्य के लिये विशेषज्ञों की नियुक्ति करना।
- राज्य के विभिन्न महाविद्यालयों में प्राध्यापकों तथा अन्य कर्मचारियों की संख्या निर्धारित करना तथा उन पदों पर निश्चित प्रक्रिया के माध्यम से नियुक्ति प्रदान करना।
- उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों को वेतन व अन्य भत्ते प्रदान करना।
- शिक्षक तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की सेवा शर्तों का निर्धारण करना।
- उच्च शिक्षा संस्थानों के अभिलेख आदि का निरीक्षण करना।
- महाविद्यालयों को शिक्षणेत्तर गतिविधियों से सम्बन्धित निर्देश प्रदान करना।
- केन्द्र सरकार के निर्देशानुसार राज्य में उच्च शिक्षा नियोजन और समन्वय हेतु 'राज्य उच्च शिक्षा परिषद्' का गठन व संचालन करना ।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त अनुदान को प्राप्त करना व नियमानुसार उक्त अनुदान को व्यय करना।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी मार्गदर्शक सिद्धान्तों के अनुसार उच्च शिक्षा के कार्यक्रम तैयार करना तथा उन्हें लागू कराना।
- उच्च शिक्षा के विकास के लिये योजना बनाना।
- राज्य में नए महाविद्यालय आरम्भ करने के लिये दिशा निर्देश जारी करना ।
- नियमानुसार खोले गए महाविद्यालयों को मान्यता एवं सम्बद्धता प्रदान करना।
- पहले से चल रहे महाविद्यालयों में क्षेत्र की आवश्यकता एवं नियमों का अनुपालन करते हुए नए विषयों को मान्यता प्रदान करना।
- सेवारत प्राध्यापकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंधन
- उच्च शिक्षा में अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहित करना व इसके लिये अनुदान प्रदान करना।
- शिक्षाविदों को विभिन्न पुरष्कार प्रदान करना।
- केन्द्र से अनुदान प्राप्त करना व उपयुक्त रीति से प्राप्त अनुदान का वितरण करना ।
इसके अतिरिक्त वे सभी कार्य जो राज्य में उच्च शिक्षा के उन्नयन व संवर्धन के लिये आवश्यक हों, राज्य सरकार के कार्य कहे सकेंगे।
उक्त सभी कार्य
राज्य सरकार उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, उच्च
शिक्षापरिषद्, विश्वविद्यालयों के कुलपति तथा उच्च शिक्षा के लिये नियुक्त
विभिन्न पदाधिकारियों के माध्यम से सम्पन्न करती है।
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