बेसिक शिक्षा परिषद्, माध्यमिक शिक्षा परिषद् का गठन (संरचना) एवं कार्य | Shiksha Parishad Gathan Evam Karya
बेसिक शिक्षा परिषद्, माध्यमिक शिक्षा परिषद् एवं विश्वविद्यालय के कार्य संरचना
प्रस्तावना
भारत के प्रत्येक राज्य में शिक्षा व्यवस्था प्रायः तीन भागों में विभक्त है। प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च। तीनों प्रकार की शिक्षा व्यवस्था को देखने के लिये राज्य सरकार ने अलग-अलग संस्थाओं का गठन किया है जो शिक्षा व्यवस्था से सम्बद्ध समस्त क्रियाकलापों को देखती है। इस यूनिट में हम शिक्षा परिषद् बोर्ड आफ स्कूल एजूकेशन एवं विश्वविद्यालय के कार्यों की चर्चा करेंगे।
बेसिक शिक्षा परिषद्
भारत के प्रायः प्रत्येक राज्य में प्राथमिक शिक्षा के
संचालन के लिये 'बेसिक शिक्षा
परिषद का गठन किया गया है। प्राथमिक शिक्षा से सम्बद्ध अधिकांश कार्य उक्त परिषद
के माध्यम से ही संपन्न होते हैं।
1 बेसिक शिक्षा परिषद् का गठन:-
राज्य की बेसिक शिक्षा परिषद् में थोड़े बहुत परिवर्तन के
साथ प्रायः निम्नांकित सदस्य होते हैं -
शिक्षा अध्यक्ष
क्षेत्र पंचायत / जिला पंचायत के अध्यक्षों में से काई दो सदस्य राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट
एक नगर प्रमुख - राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट ।
वित्त विभाग का सचिव।
राज्य शिक्षा संस्थान का प्रधानाचार्य ।
माध्यमिक शिक्षा परिषद् का सचिव
प्राथमिक शिक्षा संघ का अध्यक्ष ।
राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट दो शिक्षाविद् ।
शिक्षा उप निदेशक- सचिव
प्रायः प्रत्येक राज्य मे उक्त सदस्य मिलकर बेसिक शिक्षा परिषद के समस्त कार्यों को संचालित करते हैं।
बेसिक शिक्षा परिषद् के कार्य:-
- अध्यापको को प्रशिक्षण प्रदान करना।
- प्रशिक्षण के लिये साहित्य रचना अथवा साहित्य का चयन करना ।
- बेसिक तथा जूनियर हाईस्कूल की परीक्षाओं का संचालन करना ।
- उत्तीर्ण परीक्षार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान करना।
- प्राथमिक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना के लिये मानकों का निर्धारण करना।
- राज्य शिक्षा संस्थान का पर्यवेक्षण व नियन्त्रण करना ।
- प्राथमिक शिक्षा में अनुसन्धान को प्रोत्साहित करना तथा इस हेतु अनुदान का अनुमोदन करना।
- राज्य सरकार से अनुदान अथवा आर्थिक सहायता प्राप्त करना ।
- प्राथमिक शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न संस्थाओं को समय-समय पर निर्देश प्रदान करना । आवश्यकतानुसार विभिन्न कार्यों के सम्पादन के लिये उप समितियों का गठन करना।
- ऐसे सभी कार्य जो राज्य में प्राथमिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार अथवा राज्य के कल्याण के लिये अनिवार्य है तथा परिषद् के अधिकार क्षेत्र में आते हैं अथवा राज्य सरकार ने अस्थायी रूप से परिषद् के अधिकार क्षेत्र में प्रदान किये हैं; सम्पादित करना ।
माध्यमिक शिक्षा परिषद
माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक और उच्च शिक्षा को जोड़ने वाली
कड़ी है। माध्यमिक शिक्षा छात्र जीवन को दिशा प्रदान करती है। वास्तव में राष्ट्र
का भविष्य निर्माण करने का महत्वपूर्ण कार्य माध्यमिक शिक्षा ही सम्पादित करती है।
प्रत्येक राज्य में माध्यमिक शिक्षा परिषद् की स्थापना की गई है। भारत के अनेक
राज्यों में तो स्वतन्त्रता से पूर्व ही माध्यमिक शिक्षा परिषद् की स्थापना कर दी
गई थी। मद्रास में 1911, बंगलौर में 1913, नागपुर तथा
उत्तर-प्रदेश में 1922, दिल्ली में 1926 तथा अजमेर में 1925 में ही माध्यमिक
शिक्षा परिषद् की स्थापना कर दी गई थी। शेष राज्यों में स्वतंन्त्रता प्राप्ति के
पश्चात् माध्यमिक शिक्षा परिषद् की स्थापना की गई।
माध्यमिक शिक्षा परिषद् का गठन:-
राज्यों में माध्यमिक शिक्षा परिषद् का गठन करते समय प्रायः
निम्नांकित सदस्यों को स्थान दिया जाता है -
निदेशक-अध्यक्ष
राज्य सरकार द्वारा पोषित शिक्षा संस्थाओं के दो प्रधान जिनके नाम राज्य सरकार निर्देशित करे।
राज्य सरकार द्वारा संचालित विद्यालय अथवा विद्यालयों के दो अध्यापक जिनके नाम राज्य सरकार निर्देशित करे।
राज्य प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान का निदेशक।
राज्य शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशिक्षण संस्थान का निदेशक।
पत्राचार शिक्षा का निदेशक।
व्यावसायिक शिक्षा का निदेशक ।
विज्ञान शिक्षा का निदेशक
मनोविज्ञान ब्यूरो का निदेशक।
राज्य सरकार द्वारा निर्देशित शिक्षा से सम्बन्धित दो व्यक्ति ।
राज्य सरकार द्वारा निर्देशित शिक्षा से सम्बन्धित दो
महिलायें।
माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद् का सचिव राज्य सरकार द्वारा
निर्देशित एक जिला विद्यालय निरीक्षक राज्य सरकार द्वारा निर्देशित एक क्षेत्रीय
संयुक्त शिक्षा निदेशक माध्यमिक शिक्षा की केन्द्रीय परिषद् का क्षेत्रीय अधिकारी | राज्य सरकार
द्वारा निर्देशित एक महाविद्यालीय शिक्षक । राज्य सरकार द्वारा निर्देशित
इंजीनियरिंग कालेज का शिक्षक । राज्य सरकार द्वारा निर्देशित कृषि विश्वविद्यालय
का शिक्षक । राज्य सरकार द्वारा निर्देशित मेडिकल कालेज का एक शिक्षक ।
माध्यमिक शिक्षा परिषद् के उक्त सदस्य (पदेन सदस्यों को
छोड़कर) सामान्यतः तीन वर्ष की अवधि के लिये अपने पद पर रह सकेंगे। राज्य सरकार छः
माह के लिये उनकी पदावधि को बढ़ा सकती है जो अधिकतम दो बार अथवा एक वर्ष के लिये
हो सकती है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद् के कार्य :-
पाठ्यक्रम निर्माण:-
हाईस्कूल व इण्टर की कक्षाओं के लिये माध्यमिक शिक्षा
परिषद् विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम का निर्माण करती है। इसके लिये वह विषय के
विद्वान शिक्षकों की एक समिति गठित करती है तथा यह समिति सम्बन्धित विषय का
पाठ्क्रम निर्धारित करती है।
पाठ्य पुस्तक लेखन:-
पाठ्यक्रम निर्धारण के उपरान्त 'माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' का दूसरा
महत्वपूर्ण कार्य पाठ्य पुस्तक का लेखन करवाना है। इस कार्य के लिये परिषद्
विभिन्न विषयों के विद्वानों की एक समिति बनाकर उनको लेखन कार्य का दायित्व सौंपती
है।
पाठ्य पुस्तक प्रकाशन:-
पाठ्य पुस्तक लेखन के उपरान्त 'माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' उनके प्रकाशन व
मुद्रण का कार्य भी स्वयं की देखरेख में ही करती है। इसके लिये परिषद् राजकीय
मुद्रणालय का प्रयोग करती है। कार्याधिक्य के कारण माध्यमिक शिक्षा परिषद् राज्य
के प्रकाशकों व मुद्रकों को भी यह कार्य सौंप सकती है; किन्तु पुस्तक का
आकार, छपाई का प्रकार, कागज एवं पुस्तक
के मूल्य पर परिषद् का ही नियन्त्रण होता है।
पाठ्यक्रम / पाठ्य पुस्तक में संशोधन :-
‘माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' समय-समय पर
पाठ्यक्रम एवं पाठ्य पुस्तकों का अवलोकन करती रहती है तथा आवश्यकतानुसार विभिन्न
विषयों के पाठ्यक्रम एवं पाठ्य पुस्तकों में संशोधन अथवा परिवर्तन का अधिकार रखती
है।
शिक्षण संस्थाओं को मान्यता प्रदान करना:-
‘माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' हाईस्कूल व इण्टर
की कक्षाएं संचालित करने के लिये शिक्षण संस्थाओं को मान्यता भी प्रदान करती है।
मान्यता प्रदान करने से पूर्व परिषद् यह सुनिश्चित कर लेती है कि प्रस्तावित
संस्था उसके द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा कर रही है अथवा नहीं।
निरीक्षण:-
शिक्षण संस्थाओं को मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से तथा
मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं का मानक, लेखा परीक्षा आदि का निरीक्षण करने के उद्देश्य से परिषद्
निरीक्षकों की नियुक्ति करती है तथा उनके माध्यम से शिक्षण संस्थाओं का निरीक्षण
करती है।
शुल्क वसूलना:-
'माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' अपनी शिक्षण
संस्थाओं के माध्यम से उसमें अध्ययनरत् विद्यार्थियों से विभिन्न शुल्क प्राप्त
करती है। इसके अतिरिक्त विधि सम्मत अन्य अनेक शुल्क भी प्राप्त करने का कार्य
परिषद् करती है।
परीक्षा का आयोजन करना माध्यमिक शिक्षा परिषद् का अति
महत्वपूर्ण दायित्व है। परिषद् द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में नियमित
व व्यक्तिगत रूप से अध्ययनरत् छात्र-छात्राओं के लिये माध्यमिक शिक्षा परिषद्' परीक्षाओं का
आयोजन करती है। इसके अन्तर्गत परीक्षा प्रश्न पत्र तैयार करना, उन्हें सुरक्षित
परीक्षा केन्द्रों तक पहुँचाना, परीक्षा केन्द्रों पर केन्द्राध्यक्ष एवं कक्ष निरीक्षकों
की व्यवस्था करना, परीक्षा के
उपरान्त उत्तर पुस्किाऐं सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना आदि अनेक कार्य आते हैं।
मूल्यांकन:-
परीक्षा कार्य संपन्न हो जाने के पश्चात् माध्यमिक शिक्षा
परिषद् का महत्वपूर्ण दायित्व आरम्भ होता है और वह है उत्तर-पुस्तिकाओं का
मूल्यांकन । परिषद् विषय के विशेषज्ञ योग्य शिक्षकों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाओं का
मूल्यांकन कार्य संपन्न कराती है। इसके लिये वह उन्हें पारिश्रमिक भी देती है।
परीक्षा परिणाम:-
परीक्षा तथा मूल्यांकन कार्य विधिवत संपन्न हो जाने के
पश्चात् 'माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' का महत्वपूर्ण
कार्य आरम्भ होता है 'परीक्षा परिणाम
घोषित करना। परिषद् विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से तथा इन्टरनेट के द्वारा
परीक्षा परिणाम पूरी सावधानी एवं तत्परता के साथ घोषित करती है।
प्रमाण पत्र प्रदान करना:-
जिन परीक्षार्थियों ने 'माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा आयोजित परीक्षाओं में
प्रतिभाग किया होता है उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन तथा परीक्षा परिणाम की
घोषणा के उपरान्त परिषद उन्हें सक्षम प्राधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित प्रमाण पत्र
प्रदान करती है जिसमें छात्र-छात्रा की कक्षा विषय, प्राप्तांक, जन्म तिथि आदि का विवरण दिया होता है। परिषद् द्वारा
प्राप्त प्रमाण पत्र प्रामाणिक दस्तावेज की तरह प्रयुक्त होता है।
बजट बनाना:-
'माध्यमिक शिक्षा
परिषद्' वर्ष पर्यन्त
स्वयं द्वारा सम्पादित किये जाने वाले कार्यों पर होने वाले व्यय का आकलन करके
वार्षिक बजट तैयार करती है। तथा आवश्यकतानुसार राज्य सरकार से अनुदान, ऋण आदि प्राप्त
करती है।
अन्य कार्य:-
इसके अतिरिक्त 'माध्यमिक शिक्षा परिषद्' कुछ अन्य कार्यों का सम्पादन भी करती है जैसे समय-समय पर पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकों का पुनरावलोकन, परीक्षा आयोजन के लिये संस्थाओं को मान्यत प्रदान करना, समय-समय पर राज्य सरकार को स्वयं के कार्य क्षेत्र से सम्बन्धित विचार प्रेषित करना, अंशकालिक अध्यापकों का सेवायोजन आदि।
Post a Comment