विश्वविद्यालय का गठन (संरचना) एवं कार्य | University work and formation in hindi

 विश्वविद्यालय का गठन (संरचना) एवं कार्य 

विश्वविद्यालय का गठन (संरचना) एवं कार्य | University work and formation in hindi



विश्वविद्यालय क्या होता है ? 

किसी भी राज्य की वास्तविक शक्ति उसकी उच्च शिक्षा होती है। उच्च शिक्षा तक आते-आते छात्र के संस्कार दृढ़ हो चुके होते हैं। प्रायः छात्र अपने लिये ज्ञान की एक निश्चित धारा का चयन करने में सक्षम होता है उस धारा का चयन माध्यमिक स्तर पर ही कर चुका होता है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात विद्यार्थी यथा सामथ्र्य स्वयं एवं राष्ट्र की उन्नति हेतु कार्य करता है। उच्च शिक्षा विश्वविद्यालयों के माध्यम से दी जाती है। प्रत्येक राज्य में अनेक प्रकार के विश्वविद्यालय होते हैं जिनमें प्रमुख प्रकार निम्नांकित हैं।

 

विश्वविद्यालय के प्रमुख प्रकार:- 

जैसा कि हम ऊपर की पंक्तियों में स्पष्ट कर चुके हैं कि यहाँ पर विश्वविद्यालयों के कतिपय प्रमुख प्रकारों की ही चर्चा की जा रही है इसके अतिरिक्त भी विश्वविद्यालयों के अनेक प्रकार हो सकते हैं।

 

सम्बद्धक विश्वविद्यालय:- 

ऐसे विश्वविद्यालय से अनेक महाविद्यालय समबद्ध होते हैं तथा विश्वविद्यालय उनसे सम्बन्धित समस्त प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन करता है। 


सम्बद्धक एवं शिक्षण विश्वविद्यालय:- 

इन विश्वविद्यालयों से अनेक महाविद्यालय तो सम्बद्ध होते ही हैं किन्तु साथ ही विश्वविद्यालय परिसर में भी कतिपय विशिष्ट स्तर की कक्षाएं लगती हैं।

 

आवासीय विश्वविद्यालय:- 

ये विश्वविद्यालय एकल होते हैं। इनसे कोई अन्य महाविद्यालय सम्बद्ध नहीं होता। विद्यार्थी को इस प्रकार के विश्वविद्यालय में रहकर अध्ययन करने की सुविधा उपलब्ध होती है।

 

विश्वविद्यालय का संगठन:- 

प्रत्येक राज्य विश्वविद्यालय का संगठन प्रायः एक समान होता है। निम्नांकित पदाधिकारी विश्वविद्यालय के संगठन के अन्तर्गत आते हैं-

 

कुलाधिपति:- 

राज्यपाल राज्य के प्रत्येक विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होता है। वह उपस्थित रहने की दशा में दीक्षान्त समारोह की अध्यक्षता करता है तथा विश्वविद्यालय के प्रशासन से सम्बन्धित सर्वोच्च शक्तियाँ उसके अधीन होती हैं।

 

कुलपति:- 

यह विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होता है। इसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। इसकी कार्यावधि 3 वर्ष की होती है तथा यह कुलाधिपति के लिये उत्तरदायी होता है।

 

प्रति कुलपति:- 

यह प्रायः विश्वविद्यालय का वरिष्ठतम आचार्य होता है। कार्य परिषद् अपने विवेक से किसी अन्य आचार्य को भी यह दायित्व सौंप सकती है। प्रति कुलपति कुलपति की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का निर्वहन करता है तथा यह कुलपति के प्रति ही उत्तरदायी होता है।

 

वित्त अधिकारी:- 

वित्त अधिकारी भी पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होता है। इसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यह विश्वविद्यालय के वित्त से सम्बन्धित समस्त कार्यों के लिये उत्तरदायी होता है।

 

कुलसचिव:- 

यह भी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त पूर्णकालिक वैतनिक अधिकारी होता है। यह कार्य परिषद् का पदेन सचिव होता है तथा कुलपति की ओर से कार्यों का संचालन करता है। विश्वविद्यालय के समस्त प्रशासनिक कार्य का अधिकांश भार कुलसचिव पर होता है।

 

परीक्षा नियंत्रक :- 

कुलसचिव तथा वित्त अधिकारी की ही भाँति परीक्षा नियन्त्रक की नियुक्ति भी राज्य सरकार द्वारा पूर्णकालिक वैतनिक अधिकरी के रूप में की जाती है। यह विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति का पदेन सचिव होता है।

 

कार्य परिषद्:- 

कार्य परिषद् विश्वविद्यालय प्रशासन का केन्द्र होती है इसका गठन कुलपतिप्रति कुलपति शिक्षा संचालकसीनेट के प्रतिनिधिसंकयाध्यक्ष तथा प्राचार्य आदि को सदस्यता प्रदान कर किया जाता है।

 

विद्या परिषद् :- 

यह विश्वविद्यालय की सर्वोच्च प्रशासकीय संस्था है। कार्य परिषद् की ही भाँति इसमें भी विश्वविद्यालय एवं समाज के गणमान्य लोगों का प्रतिनिधित्व रहता है इसमें राज्य सरकार द्वारा नामित सदस्य भी होते है यह विश्वविद्यालय के नीतिगत निर्णय लेने के लिये भी अधिकृत है।

 

वित्त समिति:- 

कुलपति तथा वित्त अधिकारी सहित अनेक सदस्यों वाली यह समिति विश्वविद्यालय के वित्त से सम्बन्धित समस्त विषयों में निर्णय लेने के लिये अधिकृत है।

 

परीक्षा समिति:- 

कुलपतिपरीक्षा नियन्त्रक तथा अन्य सदस्यों से युक्त यह समिति विश्वविद्यालय की समस्त सामान्य व विशेष परीक्षाओं के संचालन से सम्बन्धित उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है।

 

विश्वविद्यालय के कार्य:- 

विश्वविद्यालय के कार्यों को सामान्यतः हम निम्न प्रकार से अभिव्यक्त कर सकते हैं-

 

1. सम्बद्ध विभागों एवं महाविद्यालयों के कार्यकलापों पर नियन्त्रण रखना। 

2. प्रवेश के नियम बनाना व प्रवेश लेना। 

3. शिक्षा सत्र को समुचित रीति से संचालित करना।, 

4. विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न कक्षाओं का पाठ्यक्रम निर्धारित करना व उसके लिये पाठ्य- पुस्तकों का प्रकाशन / अनुमोदन करना। 

5. सम्बद्ध विभागों एवं महाविद्यालयों में परीक्षाओं का आयोजन करना। 

6. विषय विशेषज्ञों द्वारा उत्तर-पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करवाना। 

7. परीक्षा परिणाम तैयार करना । 8. परीक्षा परिणाम घोषित करना। 

9. परीक्षा में सम्मिलित परीक्षार्थियों को सक्षम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित अंकतालिका प्रदान करना। 

10. दीक्षान्त समारोह का आयोजन करना । 

11. सफल परीक्षार्थियों को उपाधि प्रदान करना। 

12. सम्बद्ध विभागों व महाविद्यालयों से प्रवेशपरीक्षा आदि विभिन्न मदों में शुल्क वसूलना। 

13. सम्बद्ध विभागों एवं महाविद्यालयों को अनुदान अथवा आर्थिक सहायता प्रदान करना। 

14. सम्बद्ध विभागों एवं महाविद्यालयों की विभिनन गतिविधियों का निरीक्षण करना। 

15. सम्बद्ध महाविद्यालयों के प्राचार्यों की बैठक बुलाना तथा आवश्यकतानुसार उन्हें निर्देशित करना। 

16. शिक्षकोंकर्मचारियों तथा प्राधिकारियों को समय-समय पर आवश्यकतानुसार विभिन्न मदों भुगतान करना। 

17. पुराने महाविद्यालयों में नए विषयों को पढ़ाने की अनुमति प्रदान करना। 

18. नए महाविद्यालयों को सम्बद्धता प्रदान करना। 

19. अनुसन्धान कार्य करना तथा इसके लिये सम्बद्ध विभागों / महाविद्यालयों को प्रोत्साहित करना व उन्हें आवश्यक सुविधाऐं प्रदान करना। 

20. ऐसे सभी कार्य सम्पादित करना जो शैक्षिक हित में हों तथा विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

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