विश्व जनसंख्या दिवस 2023 : थीम (विषय)इतिहास उद्देश्य महत्व |World Population Day 11th July Details in Hindi
विश्व जनसंख्या दिवस 2023 : थीम (विषय)इतिहास उद्देश्य महत्व
विश्व जनसंख्या दिवस 2023 : थीम (विषय)इतिहास उद्देश्य महत्व
प्रतिवर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में आबादी से जुड़े मुद्दों पर लोगों की जागरूकता बढ़ाना है। विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालन परिषद ने किया था। दिसंबर 1990 में एक प्रस्ताव पारित कर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जनसंख्या से जुड़े मुद्दों और पर्यावरण तथा विकास पर इसके प्रभाव के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व जनसंख्या दिवस जारी रखने का फैसला किया। यह दिवस 11 जुलाई, 1990 को 90 से अधिक देशों में मनाया गया।
विश्व जनसंख्या दिवस 2023 की थीम
2023 Theme: Unleashing the power of
gender equality: Uplifting the voices of women and girls to unlock our world’s infinite
possibilities
2023 थीम: लैंगिक
समानता की शक्ति को उजागर करना: हमारी दुनिया की अनंत संभावनाओं को अनलॉक करने के
लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को ऊपर उठाना
विश्व जनसंख्या दिवस 2022 की थीम हैः
"आठ अरब का संसार - सबके लिये समायोजी भविष्य की ओर- अवसरों का लाभ उठाना और
सबके अधिकार सुनिश्चित करना"।
विश्व जनसंख्या दिवस इतिहास
वर्ष 1989 में संयुक्त
राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
ने सिफारिश की कि
11 जुलाई को
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाया जाए, जिसका उद्देश्य
जनसंख्या के मुद्दों की तात्कालिकता और महत्त्व पर ध्यान केंद्रित करना है।
UNDP जनहित और
जागरूकता से प्रेरित था जिसे 11 जुलाई, 1987 को "पाँच अरब
दिवस" (जब विश्व की आबादी 5 अरब तक पहुँच गई थी) द्वारा सृजित किया गया था।
इस आशय का एक
प्रस्ताव पारित किया गया था और इस दिन को पहली बार 11 जुलाई, 1990 को चिह्नित किया गया था।
संयुक्त राष्ट्र
जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी, उसी वर्ष संयुक्त
राष्ट्र महासभा ने घोषणा की कि "माता-पिता को स्वतंत्र रूप से और ज़िम्मेदारी
के साथ अपने बच्चों की संख्या एवं उनके बीच अंतर निर्धारित करने का विशेष अधिकार
है।
वर्ष 2021 के लिये थीम:
राइट्स एंड चॉइसेस आर द आंसर: चाहे बेबी बूम हो या बस्ट, प्रजनन दर में
बदलाव का समाधान सभी लोगों के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को प्राथमिकता देना
है।
विश्व जनसंख्या के विषय में:
विश्व की
जनसंख्या लगभग 7.7 बिलियन है और इसके
वर्ष 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, वर्ष 2050 में 9.7 बिलियन तथा वर्ष
2100 में 10.9 बिलियन तक बढ़ने
की संभावना है।
वृद्धि का कारण:
यह नाटकीय वृद्धि
बड़े पैमाने पर प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या और साथ ही
प्रजनन दर में बड़े बदलाव,
शहरीकरण में
वृद्धि तेज़ी से हो रहे प्रवासन से प्रेरित है।
आने वाली पीढ़ियों के लिये इन प्रवृत्तियों के
दूरगामी प्रभाव होंगे।
प्रभावित
क्षेत्र:
ये आर्थिक विकास, रोज़गार, आय वितरण, गरीबी और सामाजिक
सुरक्षा को प्रभावित करते हैं।
ये स्वास्थ्य
देखभाल, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक
सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं।
भारत में जनसंख्या संबंधी मुद्दे:
वृहद् आकार:
भारत में विश्व
का केवल 2% भूभाग है और
यहाँ की आबादी वैश्विक जनसंख्या का 16% है।
भारत दुनिया का
सर्वाधिक आबादी वाला देश बनने की कगार पर है और चीन (China) से भी आगे निकल
जाएगा।
तीव्र विकास :
जन्म और मृत्यु
दर में इस बेमेल अंतर के परिणामस्वरूप पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या में तेज़ी से
वृद्धि हुई है।
हालाँकि भारत की
कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट दर्ज
की गई। नवीनतम सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में कुल प्रजनन दर
2.2 प्रति महिला है, जो 2.1 की प्रतिस्थापन
दर के करीब है।
TFR प्रजनन अवधि के
दौरान (15-49 वर्ष) एक महिला
द्वारा पैदा किये वाले बच्चों की औसत
संख्या को इंगित करती है।
शिक्षा और जनसंख्या वृद्धि:
जनसंख्या विस्फोट में गरीबी और अशिक्षा का
व्यापक योगदान है।
हालिया आँकड़ों के
अनुसार, देश में कुल
साक्षरता दर लगभग 77.7% है।
अखिल भारतीय स्तर
पर पुरुष साक्षरता दर महिलाओं की अपेक्षा अधिक है यहाँ 84.7% पुरुषों के
मुकाबले 70.3% महिलाएँ ही
साक्षर हैं।
ग्रामीण
क्षेत्रों में बच्चों को संपत्ति के रूप में माना जाता है, जो बुढ़ापे में
माता-पिता की देखभाल करेंगे, साथ ही अधिक बच्चों का अर्थ है, अधिक कमाई करने
वाले हाथ।
महिलाओं की
शिक्षा के स्तर का सीधा प्रभाव प्रजनन क्षमता पर पड़ता है, क्योंकि यह
स्पष्ट है कि निरक्षर महिलाओं की प्रजनन दर साक्षर महिलाओं की तुलना में अधिक होती
है।
शिक्षा का अभाव
महिलाओं को गर्भ निरोधकों के उपयोग तथा अधिक बच्चों को जन्म देने से पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी
में बाधक है।
बेरोज़गारी:
भारत की उच्च
युवा बेरोज़गारी भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसांख्यिकीय आपदा में बदल रही
है।
इस युवा क्षमता को अक्सर 'जनसांख्यिकीय लाभांश' के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि यदि देश में उपलब्ध युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से लैस है तो उन्हें न केवल उपयुक्त रोज़गार मिलेगा बल्कि वे देश के आर्थिक विकास में भी प्रभावी योगदान दे सकते हैं।
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