पाठ्यचर्या के उद्देश्य विकास प्रक्रिया एवं सिद्धांत |Curriculum aim and Development Process

पाठ्यचर्या विकास प्रक्रिया एवं सिद्धांत

पाठ्यचर्या के उद्देश्य  विकास प्रक्रिया एवं सिद्धांत |Curriculum aim and Development Process


 

पाठ्यचर्या विकास प्रक्रिया एवं सिद्धांत प्रस्तावना

 

➽ पाठ्यचर्या शिक्षा का एक अभिन्न अंग है, पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। पाठ्यचर्या के द्वारा ही शिक्षक विभिन्न विषयों के पढ़ाने की तैयारी पूर्ण करता है शिक्षक पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, चारित्रिक, संवेगात्मक, राजनैतिक एवं सामाजिक विकास हेतु प्रयासरत रहता है। पाठ्यचर्या के बिना उसका शिक्षण कार्य उद्देश्य विहीन एवं तथ्यहीन हो जाता है तथा शिक्षक अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाता है। इसलिए शिक्षण कार्य में पाठ्यचर्या एक अभिन्न अंग के रूप में होता है। पाठ्यचर्या के द्वारा हमें कक्षा विशेष को कब क्या और कितना पढ़ाना है, यह निश्चित कर लेते हैं और छात्रों का भी एक लक्ष्य निर्धारित होता है। जिससे वह पठन पाठन में रुचि एवं एकाग्रता लाते हैं एवं आने वाले समय में जीवन कला में प्रशिक्षण के अवसर प्रदान होते हैं। पाठ्यचर्या का निर्धारण होने से हम अपने भावी राष्ट्र के विकास को गति प्रदान करते हैं। पाठयचर्या एक प्रकार से शिक्षक के बाद छात्रों का दूसरा पथ प्रदर्शक है। क्योंकि जब शिक्षक नहीं होता है तक छात्र उसी पाठ्यचर्या के आधार पर अपने ज्ञान को गति प्रदान करते हैं।

 

➽ पाठ्यचर्या की प्राचीन अवधारण में तथ्यों के ज्ञान की सीमा निश्चित करना सम्मिलित था, जबकि पाठ्यचर्या की आधुनिक धारणा विस्तृत एवं व्यापक है। यहां पर छात्र कक्षा के अन्दर जो भी ग्रहण करता है वह तो सम्मिलित है ही एवं यह भी शामिल किया गया है जो छात्र कक्षा के बाहर अनेक कार्य जैसे पढ़ाना लिखाना, शिल्प खेल, पुस्तकालयों एवं अन्य अनुभवों से प्राप्त करते हैं। पाठ्यचर्या एक ऐसा साधन है जो छात्र एवं शिक्षक को जोड़ने का कार्य करता है। पाठ्यचर्या के द्वारा ही शिक्षक छात्र को नवीन ज्ञान की दिशा देने का काम करता है। पाठ्यचर्या में नवीन अनुभवों एवं पुराने अनुभवों को शामिल किया जाना चाहिए जिसके द्वारा छात्र वर्तमान स्थिति को समझने में सक्षम बन सकें। सही अर्थ में पाठ्यचर्या ऐसा हो जिसमें सभी शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके, जिससे हमारे राष्ट्र का सर्वांगीण विकास हो.  


पाठ्यचर्या के उद्देश्य (Aims of Curriculum)

 

  • बालक को लोकतंत्र के लिए तैयार करना । 
  • शैक्षिक की प्राप्ति हेतु बालक को तैयार करना । 
  • छात्रों में ईमानदारी, निष्ठा और उनकी व्यक्ति क्षमता का विकास करना । 
  • आवश्यकता अनुसार पाठ्यचर्या का निर्माण करना । 
  • विद्यालयों के विषयों और विभिन्न क्रियाओं के बीच के अन्तर को समाप्त करना । 
  • ऐसे गुणों को बढ़ावा देना जिनसे मनुष्य में मानवता का विकास करना। 
  • बालकों को सांस्कृतिक, सभ्यता एवं मूल्यों के बारे में जानकारी प्रदान करना । 
  • ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिसमें बालक नवीन ज्ञान प्राप्त कर सके। 
  • राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय भावना का विकास करना । 
  • बालक का सर्वांगीण विकास करना एवं बालक को जीवन उपयोगी बनाना ।

 

पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया 

➽ पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया से पूर्व हमें अपने उद्देश्य देख लेने चाहिये कि हमारे लोकतांत्रिक देश में किस तरह की शिक्षा दी जाये जिससे हमारे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। पाठयचर्या बनाने के पूर्व हमें एक निश्चित प्रारूप तैयार कर लेना चाहिए। उस प्रारूप का स्वरूप हमारे बालक, शिक्षक, समाज, देश एवं राष्ट्रीय भावना को ध्यान में रख कर तैयार करना चाहिए। फलस्वरूप शिक्षाविदों एवं अनेक सामाजिक संगठनों से राय लेते हुए पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया शुरु की जानी चाहिए। 

 

➽ पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया में शिक्षाविदों, शिक्षा समितियों के माध्यम से विद्यालयों का भ्रमण एवं समाज के हर क्षेत्र वर्ग एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कार्य किया जाना चाहिए। शिक्षकों के लिए गोष्ठियां, कार्यशाला सेमीनारों का आयोजन किया जाता है। हमें चाहिए कि उन शिक्षकों से भी राय ली जानी चाहिए जो इस प्रकार की कार्यक्रम में भाग लेते रहते हैं। पाठयचर्या निर्माण की प्रक्रिया में हमारे संस्कार, संस्कृति एवं भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है; इसके अभाव में हमारे पाठ्यचर्या की प्रक्रिया नगण्य हो जायेगी, अतः हमें चाहिए कि समाज की आवश्यकताओं पूर्ति एवं राष्ट्रहित की भावना से पाठ्यचर्या की प्रक्रिया को आगे बढाना है। यह भी ध्यान रखा जाये कि पाठ्यचर्या किस तरह का है। यदि वह उच्चस्तरीय है तो राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीयता का ध्यान में रख कर प्रक्रिया का संचालन किया जाना चाहिए। हमारी प्रक्रिया गतिशील, लचीली एवं परिवर्तनशील हो। क्योंकि यदि पाठयचर्या निर्माण की प्रक्रिया जटिल होगी तो उसमें समाज एवं बालक की आवश्यकता अनुसार समय पर बदलाव नहीं हो पाते हैं। जिससे समाज, छात्र, शिक्षक आदि सभी लोग प्रभावित होते हैं। जो हमारे प्रजातांत्रिक देश के हित में नहीं है। हमारी प्रक्रिया में सभी विषयों के शिक्षकों को स्थान या उनकी राय रखी जानी चाहिए। पाठयचर्या निर्माण प्रक्रिया के उपरान्त नमूने के तौर पर कुछ विद्यालयों में प्रशिक्षण स्वरूप देखा जाये, जिससे कि हम यह जान सकें कि पाठयचर्या की प्रक्रिया वर्तमान स्वरूप के अनुकूल है या नहीं अतः हमें चाहिए कि हम अपने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास हेतु पाठ्यचर्या प्रक्रिया को संचालित करें। पाठ्यचर्या की प्रक्रिया बहुत ही जटिल है। पाठ्यचर्या को सरल एवं प्रगतिशील बनाना होगा, जिससे बालक में राष्ट्रीय भावना एवं समाज की आवश्यकता अनुसार बदलाव किया जा सके। जिससे हमारी शिक्षा, देश की संस्कृति एवं सभ्यता भी प्रभावित हो रही है। आज हमें देखने में आ रहा है कि हमारे देश के पाठ्यचर्या केवल ज्ञान का प्रसार करने तक ही सीमित है। जिन विषयों एवं तथ्यों का पाठ्यचर्या में चयन है वह वर्तमान में मानव जीवन के लिए सफल व उपयोगी नहीं दिख रहा है, इसलिए हमें चाहिए कि हम पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया को सरल एवं परिवर्तनशील बनाए, जिसके लिए हमें निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना होगा-

 

सर्वप्रथम ध्यान देना होगा कि पाठयचर्या का निर्माण किस कक्षा के लिए किया जा रहा है। 

जिस स्तर के बालकों के लिए पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाना है, उनका पूर्व ज्ञान का स्तर क्या है? 

पाठ्यचर्या को ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक पक्षों में बांटकर निर्धारण किया जाना चाहिए। 

छात्रों की वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर मनोवैज्ञानिक स्तर पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 

समाज, संस्कृति, सभ्यता, राष्ट्रीयता एवं अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया की जानी चाहिए। 

पाठ्यचर्या के निर्माण में विविध सिद्धान्तों एवं शिक्षा के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर कार्य किया जाना चाहिए। 

पाठ्यचर्या की प्रक्रिया में तथ्यों, प्रसंगों एवं विचारकों के मतों का वर्णन करना चाहिए। 

पाठ्यचर्या के निर्माण में वैधता, विश्वसनीयता, मानकीकरण का निर्धारण शैक्षिक उद्देश्यों के अनुरूप होना चाहिए। 

शिक्षक के लिए शिक्षण संकेत का निर्माण करना। 

• बालक के सर्वांगीण विकास के लिए पाठ्यचर्या में पर्याप्त क्रियाओं को स्थान दिलाने के लिए मूल्यांकन पद्धति को अपनाना चाहिए।

 

➽ अतः हमें पाठयचर्या निर्माण की प्रक्रिया को सरल बनाना होगा जिससे समयानुसार एवं बालकों तथा समाज की आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सके, क्योंकि यदि समय पर बदलाव नहीं किया जाए तो निश्चित रूप से वह पाठ्यचर्या हमारे लोकतांत्रिक देश के हितों में नहीं होगा और हम उसी घिसे पिटे पाठ्यचर्या के अनुसार कार्य करते रहेंगे। हमें सर्वप्रथम पाठ्यचर्या की प्रक्रिया में बदलाव लाकर उन शैक्षिक उद्देश्यों, मूल्यों, लोकतांत्रिक सिद्धान्तों एवं राष्ट्रीय स्तर को ध्यान में रखकर काम करने की आवश्यकता है। हमें बालक के सर्वांगीण विकास हेतु पाठ्यचर्या निर्माण प्रक्रिया में सहयोगात्मक दृष्टि को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए। साथ ही छात्र को सैद्धान्तिक रूप के साथ व्यावहारिक रूप में भी पाठ्यचर्या बताया जाना चाहिए। पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। पाठ्यचर्या निर्माण प्रक्रिया के उपरान्त ही पाठ्यचर्या अपने वास्तविक स्वरूप को धारण करती है।

 

पाठ्यचर्या का विकास 

➽ पाठ्यचर्या का सीधा सम्बन्ध शिक्षा के उद्देश्यों से होता है और पाठ्यचर्या का विभाग का भी उन शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाना है जो वर्तमान बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। बदलते समय में नए पाठ्यचर्या की आवश्यकता महसूस की जा रही है। पाठयचर्या के विकास के बिना हम बालक के जीवन को सरलता और सहजता नहीं प्रदान कर सकते हैं। उद्देश्यों के अनुसार पाठ्यचर्या का विकास किया जाना चाहिए जिससे बालक के साथ साथ समाज को लाभ प्राप्त हो सके। स्वतंत्रता के पूर्व हमारे देश में शिक्षा के उद्देश्य सीमित थे परन्तु स्वतंत्रता के बाद देश में समाज को जागरूक करने हेतु शैक्षिक उद्देश्यों की स्थापना की गई जिसे हम पाठ्यचर्या के माध्यम से समाज एवं बालक तक पहुंचाने का काम कर रहे है। हमें ऐसे पाठ्यचर्या का विकास करना जिससे बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके जिसके द्वारा भविष्य में बालक एक विद्वान व्यक्तियों का निर्माण कर उनमें ज्ञान की सीमाओं का विस्तार कर सके उन शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति तभी की जा सकती जब बालक मानसिक, शारीरिक, चारित्रिक, संवेगात्मक आदि गुणों से परिपूर्ण होगा।

 

➽ वर्तमान समय को देखते हुए नए पाठ्यचर्या की आवश्यकता महसूस की जा रही है। नए पाठ्यचर्या में सामाजिक जीवन को ध्यान में रखकर विकास किया जाना चाहिए इसके लिए हमें अपने पूर्व पाठ्यचर्या का गहन अध्ययन एवं मूल्यांकन करना होगा साथ लोकतांत्रिक देश की आवश्यकताओं, उपयोगिता, मानवीय मूल्यों आदि को आधार मानकर नवीन ज्ञान एवं अनुसंधान का सहारा लेते हुए पाठ्यचर्या का विकास करना होगा, जिससे देश के नौनिहालों के भविष्य को नवीन दिशा दी जा सकती है। पाठ्यचर्या का विकास इस उद्देश्य से किया जाना चाहिए कि बालक का विकास उसकी रुचि एवं परिवर्तनशील वातावरण के अनुकूल हो साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा 1986 में कहा गया है कि पाठयचर्या संविधान में दर्शाए गए मूल्यों को आधार मानकर विक किया जाना चाहिए। सामाजिक एवं सांस्कतिक दृष्टि से उपयोगी तत्वों को पाठयचर्या में महत्त्व दिया जाना चाहिए ।

 

पाठ्यचर्या विकास की प्रक्रिया अत्यंत जटिल है। इसमें प्रत्येक पग पर सावधानी अपेक्षित है। पाठ्यचर्या विकसित करते समय सर्वप्रथम निम्नलिखित पक्षों पर ध्यान देना आवश्यक होता है-

 

पाठ्यचर्या का विकास किस कक्षा के लिए किया जा रहा हैं। 

जिस कक्षा के लिए पाठ्यचर्या विकसित किया जा रहा है। उसके छात्रों की पूर्व जानकारी का स्तर क्या है। 

छात्रों की वर्तमान आवश्यकता, रुचि किन क्षेत्रों से सम्बंधित है। इसमें छात्रों के मनोवैज्ञानिक पक्षों पर भी ध्यान दिया जाता है। जैसे व्यक्तिगत भिन्नता, रुचि, बाल-विकास की अवस्था, परिपक्वता, बुद्धि, सृजनात्मकता आदि ।

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