पाठ्यचर्या का अर्थ उद्देश्य प्रकार |Curriculum Definition Meaning Types and Aim in Hindi

पाठ्यचर्या का अर्थ उद्देश्य प्रकार

पाठ्यचर्या का अर्थ उद्देश्य प्रकार |Curriculum Definition Meaning Types and Aim in Hindi


 

पाठ्यचर्या प्रस्तावना

 

पाठ्यचर्या की प्राचीन अवधारणा में तथ्यों के ज्ञान की सीमा निश्चित करना सम्मिलित था। समाज की भौतिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा शास्त्री विद्यालयी विषयों में देश, काल, समय की आवश्यकता के अनुसार सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में शिक्षा के लक्ष्य निर्धारित करते हैं। शिक्षक शिक्षा शास्त्री द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाठ्यचर्या के माध्यम से मूर्त रूप देता है। निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सुनियोजित व्यवस्था को पाठ्यचर्या कहा जा सकता है। पाठयचर्या लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन मात्र है। निश्चित पाठ्यचर्या के अभाव में लक्ष्यों की प्राप्ति असम्भव है।

 

किसी भी पाठ्यचर्या की वैज्ञानिकता एवं उसके उद्देश्यों को जानने के पश्चात हमें यह निर्णय करना होता है कि उसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कौन सी और कितनी विषय वस्तु पढ़ाई जानी चाहिए, साथ ही इस विषय वस्तु का चयन एवं संगठन किस प्रकार किया जाए जिससे हमारे लक्ष्य की प्राप्ति हो सके।

 

पाठ्यचर्या द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। यह एक ऐसा साधन है जो छात्र तथा अध्यापक को जोड़ता है। अध्यापक पाठ्यचर्या के माध्यम से छात्रों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक विकास के लिए प्रयास करता है। पाठ्यचर्या द्वारा छात्रों को "जीवन" कला में प्रशिक्षण के अवसर मिलते हैं अध्यापकों को दिशा निदक्रश प्राप्त होता है। छात्रों के लिए लक्ष्य निर्धारित होने से उनमें एकाग्रता आती है। 

 

पाठ्यचर्या का अर्थ (Meaning of Curriculum)

 

कुरीकुलम शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के एक शब्द क्यूररे Currere से हुई है जिसका अर्थ है Race Course दौड़ का मैदान। इस प्रकार पाठयचर्या वह दौड़ का मैदान है, जिस पर विद्यार्थी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दौड़ता है।

 

पाठ्यचर्या की आधुनिक अवधारणा के अन्तर्गत हम कह सकते हैं कि किसी भी कक्षा शिक्षण के अन्तर्गत सैद्धान्तिक और क्रियात्मक दोनों प्रकार का ज्ञान एक निश्चित सीमा में छात्रों को दिया जाता है। उसे पाठ्यचर्या कहते हैं।

 

मुनरो के अनुसार- " पाठ्यचर्या में वे समस्त अनुभव निहित है जिनको विद्यालय द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोग में लिया जाता है

 

"Curriculum embodies all the experiences which are utilized by the school to attain the aim of education." Munroe

 

माध्यमिक शिक्षा आयोग पाठयचर्या का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालय में परम्परागत ढंग से पढ़ाए जाते हैं, वरन् इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता निहित है जिसको छात्र विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, वक्रशाप, प्रयोगशाला और खेल के मैदान तथा शिक्षकों एवं शिष्यों के अगणित अनौपचारिक सम्पर्का से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है। जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर सकता है। और उनके सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।

 

माध्यमिक शिक्षा आयोग द्वारा बताई गई परिभाषा से आपको स्पष्ट हो गया होगा कि पाठयचर्या का अर्थ मात्र कक्षा शिक्षण से नहीं है अपितु इसका सम्बन्ध सम्पूर्ण क्रियाकलापों से है।

 

पाठ्यचर्या के उद्देश्य objectives

 

विद्यालय में विभन्न स्तरो के लिए पृथक पृथक पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है। पाठ्यचर्या निर्धारण के समय कुछ विशेष उद्देश्यों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है । पाठयचर्या बना समय छात्रों केजीवन से सम्बंधित विभिन्न बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाना अति आवश्यक है। एक अच्छे और आदर्श पाठ्यचर्या में कुछ उद्देश्यों का होना अति आवश्यक है। जैसे-

 

1. पाठ्यचर्या ऐसा हो जो कि छात्रों का बहुमुखी विकास कर सके। 

2. पाठयचर्या का उद्देश्य छात्रों की रुचियों, क्षमताओं तथा योग्यताओं को जागृत करना हो । 

3. पाठ्यचर्या छात्रों की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास कर सके। 

4. पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों में सामाजिक गुणों का विकास करना हो। 

5. पाठ्यचर्या ऐसा होना चाहिए जिससे छात्रों में कर्तव्य पालन की भावना का विकास हो सके। 

6. पाठ्यचर्या का एक मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों में प्रजातन्त्र की भावना का विकास करना हो। जिससे वह भविष्य में एक आदर्श नागरिक बन सके। 

7. पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्रों की कल्पना शक्ति, चिन्तन, निर्णयन तथा तक्र शक्ति का विकास करना होना चाहिए। 

8. पाठयचर्या ऐसा हो जिससे छात्र अपने जीवन के मूल्यों का निर्माण करना स्वयं सीख सकें। अतः उपरोक्त के सन्दर्भ में कह सकते हैं कि पाठ्यचर्या का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना है।

 

पाठ्यचर्या के प्रकार Types of Curriculum

 

पाठ्यचर्या वह शिक्षा धुरी है जिसके द्वारा बालक को नियोजित तरीके से शिक्षक द्वारा अनुसरण किया जाता है। विद्यालय में शैक्षिक अनुभवों को चुनने एवं कार्यान्वित रूप में लाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से उन सीखने की क्रियाओं को शिक्षक द्वारा अनुसरण किया जाता है। पाठ्यचर्या आयोजन वह संरचना एवं ढांचा है जिसको अपनाकर अनुभवों के आधार पर निर्मित किया जाता है। 

पाठ्यचर्या को निम्न प्रमुख प्रकारों के द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है

 

1. कोर पाठ्यचर्या 

2. समेकित पाठ्यचर्या 

3. सैद्धान्तिक पाठ्यचर्या 

4. क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या 

5. पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या

 

कोर पाठ्यचर्या 

कोर पाठ्यचर्या वह है जिसमें बालक को कुछ विषय अनिवार्य रूप से पढ़ने होते हैं। तो कुछ विषयों का विविध विषयों में से चुनाव करना पड़ता है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में कोर पाठ्यचर्या को अधिक महत्व दिया है। पाठ्यचर्या इस बात पर बल देता है कि विद्यालय अधिक सामाजिक दायित्वों को ग्रहण करे और सामाजिक रूप से कुशल क्षमतावान कर्तव्यपरायण व्यक्तियों का निर्माण करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में वर्णित है कि हमारा भारतीय समाज अनेक वगाक्रं, सम्प्रदायों, जातियों, संस्कृतियों, सभ्यताओं, प्रथाओं, मान्यताओं, भौगोलिक स्थितियों तथा विविध भाषाओं में बटा हुआ है। इसलिए पाठ्यचर्या का सृजन स्थानीय भाषायी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। कुछ विषय अनिवार्य एवं कुछ क्षेत्रीयता या भाषायी विषयों ऐच्छिक रूप में होना चाहिए। जिससे हम अपने भारतीय समाज में कर्तव्यनिष्ठ एवं परिश्रमी व्यक्तियों का निर्माण कर सके। इसके द्वारा हमारे समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं का अन्त हो सके। कोर पाठ्यचर्या व्यक्ति को सामाजिक जीवनयापन करने पर जोर देता है। कोर पाठ्यचर्या बालक के सामान्य विकास पर केन्द्रित है। इसलिए भारतीय समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुछ विषयों को ध्यान में रखना जरूरी है। जैसे लोकतंत्र, भारतीय स्वतंत्रता का इतिहासत्र सभी वगाक्रं में समानता, स्थानीय भाषाओं का ज्ञान, सामाजिक समता, धर्म निरपेक्षता, पर्यावरण संरक्षण, जनसंख्या, मानवाधिकार, संस्कृति एवं सभ्यता, राष्ट्रीयता की भावना को ध्यान में रखकर अनिवार्य एवं ऐच्छिक विषय का चयन किया जाना चाहिए। क्योंकि कोर पाठ्यचर्या उपयोगिता की दृष्टि से पाठ्यचर्या का एक अहम हिस्सा बन चुका है। इसका प्रमुख कारण आधुनिक युग की सामाजिक अव्यवस्था है। हमें बालक को विद्यालय में सामाजिक दायित्वों को ग्रहण कराना है, जिससे वह कुशल व्यक्तियों का निर्माण करें। शिक्षण में एक मुख्य पाठयचर्या अथवा अध्ययन का कोर्स होता है। जिसकी भूमिका को केन्द्रीय माना जाता है तथा जिसे आमतौर पर एक स्कूल या स्कूल पद्धति के सभी छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से लागू किया जाता है। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के लिए कोई स्कूल संगीत संबंधी कक्षा को अनिवार्य कर सकता है। लेकिन छात्र यदि आकक्रस्टा, बैंड, कोरस जैसे किसी प्रदर्शन करने वाले समूह में भाग लेते हैं तो इससे बाहर रहने का चुनाव कर सकते हैं। प्रमुख कोर पाठ्यचर्या को अक्सर प्राथमिक तथा माध्यमिक सतर पर स्कूली बोर्ड, शिक्षा विभाग या शिक्षा का कार्य देखने वाली अन्य प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा स्थापित कर दिया जाता है।

 

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में कोर पाठ्यचर्या 

संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉमन कोर स्टेट स्टैंडर्ड इनीशिएटिव एक सरकार पहल राज्यों को एक प्रमुख पाठ्यचर्या अपनाने और उसका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस समन्वय उद्देश्य राज्यों समान पाठ्यपुस्तकों के अधिक उपयोग और न्यूनतम स्तर की शिक्षा प्राप्त अधिक समानता को बढ़ावा देना है। 2009-2010 में राज्यों को इन मानकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में संघ के रेस टू दी टॉप कार्यक्रम से धन मुहैया करवाने की संभावना का आश्वा दिया गया।

 

उच्च शिक्षा में कोर पाठ्यचर्या - 

कई कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन एवं फैकल्टी कभी-कभी स्नातक स्तर पर कोर पाठ्यचर्या को अनिवार्य कर देते हैं। विशेष रूप से लिबरल आर्ट्स में छात्रों द्वारा अध्ययन किए जा रहे प्रमुख विषयों की गहराई तथा अधिक विशेषज्ञता के कारण उच्च शिक्षा के एक सामान्य कोर पाठ्यचर्या में हाईस्कूल अथवा प्राथमिक स्कूल की अपेक्षा छात्रों के अध्ययन संबंधी कार्यों को काफी कम मात्रा में निर्धारित किया जाता है।

 

इसके अलावा जैसे -जैसे बीसवीं सदी में कई अमेरिकी स्कूलों के कोर पाठ्यचर्या में कमी आ लगी, कई छोटी संस्थायें ऐसे कोर पाठ्यकम अपनाने के लिए तैयार हो गईं जिनमें छात्रों की लगभग पूरी स्नातक शिक्षा को समाहित किया जाता था। संयुक्त राज्य अमेरिका का सेंट जॉन कॉलेज इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है।

 

कोर पाठ्यचर्या का उद्देश्य 

1. कोर पाठ्यचर्या का परम उद्देश्य (Ultimate goal of Core Curriculum) व्यक्तिगत गणना और नागरिक जीवन में शामिल होने के लिए तैयारी के रूप में, उदार कला शिक्षा के शास्त्रीय आदर्श में एक संबंधों के साथ अन्य आधुनिक क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षण के आदर्श और अधिक बाल केन्द्रित हों। विषयों में कोर पाठ्यचर्या के प्राथमिक उद्देश्य के विषयों के लिए एक सामान्य परिचय नहीं होना चाहिए। लेकिन एक परिचय का प्रस्ताव विषयों की सहूलियत अंक-दुनिया में जो हमारे छात्रों को सेवा के लिए कहा जाता है। इतिहास में कोर पाठ्यचर्या का मुख्य उद्देश्य है अपने परिणाम विधियों और दृष्टिकोण जो छात्रों को ऐतिहासिक एजेंट के रूप में भाग लेने के लिए कहा जाता है। वर्तमान गठन की जांच उन विचारां, विषयों, संस्थाओं और प्रथाओं कि दोनों की पहचान और समाज की निवास के आकार का है।

 

यदि दर्शन में एक कोर पाठ्यचर्या देखें तो दार्शनिकों का मन लगे हुए मिश्रण में जा सकते हैं। एक सेमेस्टर के दर्शन में परिचयात्मक पाठयचर्या भाषाई संदर्भ, दुनिया पहचान के मॉडल समस्या, अवधारणात्मक चेतना की प्रारंभिक आधुनिक सिद्धान्तों के कारण सिद्धान्तों को उद्देश्य बनाया जा सकता है।

 

मुख्य पाठ्यचर्या के उद्देश्य के रूप में यह एक शिक्षा के व्यापक लक्ष्य तथा लोगों को प्रभावी ढंग से समकालीन समाज में रहने के लिए सक्षम होने के लक्ष्य से सम्बन्धित है। एक प्रमुख उद्देश्य हमारे छात्रों को अपने चुने हुए पेशे में जीवन जीने के लिए सक्षम होना चाहिए। यह उन्हें इतिहास, संरचना, विषयों, मद्दों और भीतर और व्यावहारिक जीवन के इन विभिन्न लोगों के बीच बातचीत की एक बुनियादी समक्ष के साथ प्रदान करना होना चाहिए। यह छात्रों में व्यापक प्रसार तथा प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार करना सुनिश्चित करता है।

 

2. पाठ्यचर्या का आसन्न उद्देश्य (Proximate Purpose of Core Curriculum) अच्छी तरह से डिजाइन एक कोर पाठ्यचर्या के लिए संरचनात्मक प्रयोजनों के अध्ययन का एक अनुशासनात्मक प्रसाद का एक संग्रह व्यावहारिक प्रासंगिकता की कसौटी द्वारा ही प्रभावी हो सकता है।

 

कोर पाठ्यचर्या के आसन्न प्रयोजनों के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

 

1. शैक्षणिक कार्य के प्रारंभिक दौर में आश्वस्त करना कि छात्रों को उनके बाद के अध्ययनों में प्रगति बनाने के लिए अच्छी तरह तैयार कर रहे है। इस अर्थ में मुख्य पाठ्यचर्या मूलभूत होगा।

 

2. एकीकृत मानदण्ड स्थापित करना कि विषयों से प्राप्त ज्ञान को विशेष रूप से सम्बन्धित कर सकें। इस अर्थ में मुख्य पाठ्यचर्या प्रासंगिक होगा।

 

3. एक शैक्षणिक समुदाय है कि विभाग के प्रमुख या कार्यक्रम के दायरे से परे फैली शताक्र को बनाने के लिए इस अर्थ में मुख्य पाठयचर्या केन्द्रीय होगा।

 

4. यह कोर के अध्ययन के क्रम में अनुक्रमण प्रदान करते हैं। कि यह महत्वपूर्ण विषयों और कौशल विकास में छात्रों के स्तर के अनुसार बौद्धिक परिपक्वता के निर्माण पाठ्यक्रमों के साथ मुख्य पाठ्यचर्या सम्बद्ध हो जाएगा।

 

हम ज्ञान, कौशल और गुण के व्यापक क्षेत्रों में कोर पाठ्यचर्या की सामग्री विभाजित करते हैं । शैक्षणिक समुदाय बनाने के लिए और बड़े पैमाने पर पाठ्यचर्या को कोर पाठ्यचर्या की सम्पन्नता के लिए कोर पाठ्यचर्या में इन तत्वों की भूमिका पर मुख्य पाठयचर्या के प्रस्ताव में काम किया गया है। 

पाठ्यचर्या की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

 

इससे शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है तथा छात्रों एवं समस्याओं को हल करने का अनुभव प्राप्त होता है। 

इसमें विषय वस्तु की पारम्परिक विभाग एवं खण्ड समाप्त कर दिए जाते हैं तथा कई विषयों को एक साथ मिलाकर पढ़ाया जाता है। 

यह पाठ्यचर्या सभी छात्रों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है। 

इसमें समय विभाग चक्र लचीला होता है। तथा कालांश बड़े होते हैं। इसमें छात्रों में शिक्षकों के सम्बन्ध अधिक घनिष्ठ होते हैं तथा अध्ययन अध्यापन के साथ- साथ परामर्श भी चलता है। 

यह पाठ्यचर्या मनोवैज्ञानिक एवं बाल केन्द्रित होता है। 

इसमें विभिन्न प्रकार के अधिगम अनुभव प्रयुक्त किए जाते हैं। 

इसके अंतर्गत व्यापक निदक्रशन कार्यक्रम की व्यवस्था रहती है। 

यह पाठ्यचर्या सबसे अधिक प्रचलित है।

 

समेकित पाठ्यचर्या Inclusive Curriculum 

शताब्दी में मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक नये प्रयोग हुए तथा अधिगम के अनेक सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए इस प्रकार के वाद के अनुसार मस्तिष्क एक इकाई है। मस्तिष्क ज्ञान को छोटे- छोटे टुकड़ों में प्राप्त नहीं करता है। बल्कि उसे पूर्ण रूप में ग्रहण करता है। वही वस्तु या विचार मस्तिष्क में स्थिर होता है। जो पूर्ण अर्थ देता है।

 

इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिकी विद्यालयों में एकीकृत पाठ्यचर्या का विकास हुआ। एकीकृत पाठ्यचर्या एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है जिसके अनुसार कोई विचार तथा क्रिया तभी प्रभावशाली एवं उपयोगी होती है। जब उसके विभिन्न भागों या पक्षों में एकता होती है। अतः एकीकृत पाठ्यचर्या से हमारा तात्पर्य उस पाठ्यचर्या से है जिसमें उसके विभिन्न विषय एक दूसरे से इस प्रकार सम्बन्धित होते हैं कि उनके बीच कोई अवरोध नहीं होता, बल्कि उनमें एकता होती है। इस प्रकार पाठ्यक्रमों के विभिन्न विषयों के ज्ञान को विभिन्न खण्डों में प्रस्तुत न करके सब विषय मिलकर ज्ञान को एक इकाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

 

शिक्षा का उद्देश्य बालकों को ज्ञान की एकता से परिचित कराना है। यह उद्देश्य विषयों को अलग- अलग रूप में पढ़ाने से पूर्ण नहीं हो सकता अर्थात यह कार्य तभी सम्पन्न हो सकता है, जब विषयों को एक दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाये। इसके लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न विषयों को इस प्रकार परस्पर सम्बन्धित किया जाए कि उनके बीच किसी प्रकार की दीवार न हो। यह दायित्व शिक्षक का ही है। वह पाठ्यचर्या के सभी विषयों को सम्बन्धित करे, पाठ्यचर्या की सामग्री का जीवन से सम्बन्ध स्थापित करे ताकि प्रत्येक विषय सामग्री में भी सह-सम्बन्ध स्थापित करे। इस प्रकार जो पाठ्यचर्या उक्त सभी प्रकार के सम्बन्धों से युक्त हो, उसे ही एकीकृत पाठ्यचर्या की संज्ञा दी जाएगी।

 

इस प्रकार का पाठ्यचर्या उन अनुभवों को देता है जिन्हें एकीकरण की प्रक्रिया के लिए सुविधाजनक समझा जाता है। तथा जिससे बालक उस पाठ्यवस्तु को सीखते है जो अनुभवों को समझने में एवं उनके पुनर्निमाण में सहायक होती है।

 

उद्देश्य इस पाठ्यचर्या के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

 

इस पाठ्यचर्या की सफलता के लिए शिक्षक को पर्याप्त एवं व्यापक अध्ययन की आवश्यकता होती है। 

इसमें बालकों को जीवनोपयोगी शिक्षा मिलती है। 

इसके माध्यम से छात्र विभिन्न विषयों का ज्ञान एक साथ प्राप्त करते हैं। 

इस पाठ्यचर्या में ज्ञान को समग्र रूप में प्रस्तुत किया जाता है। 

इस पाठ्यचर्या में शिक्षकों का उत्तरदायित्व एवं कार्यभार बढ़ जाता है। 

इस पाठ्यचर्या का उद्देश्य पाठयचर्या को अनुभव केन्द्रित बनाना होता है। 

इसमें छात्रों की रुचियों को महत्व दिया जाता है। 

इसमें छात्रों के ज्ञान से नवीन ज्ञान को सम्बंधित करने में आसानी होती है। 

इस पाठ्यचर्या का उद्देश्य बालकों को ज्ञान की एकता परिचित कराना है। यह उद्देश्य विषयों को अलग-अलग पढ़ाने से पूर्ण नहीं हो सकता अर्थात यह कार्य तभी सम्पन्न हो सकता है जबकि विषयों को एक दूसरे से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाये।

 

सैद्धान्तिक पाठ्यचर्या (Theoretical Curriculum) 

यह पाठ्यचर्या में एक निश्चित सवाल क्या एक पाठ्यचर्या हैऔर कैसे पाठ्यचर्या में अस्तित्व आता हैयह ज्ञान की प्रबोधक स्थानान्तरण के सिद्धान्त को एक परिचय के रूप में करने का कार्य करता है। यह शिक्षात्मक सिद्धान्त के Aforementioned केन्द्रीय समस्याओं की भावना बनाने की कोशिश करता है।

 

"एक पाठ्यचर्या क्या है" पाठ्यचर्या और पाठ्यचर्या विकास के सामाजिक गतिविधि की धारणा में पहला सवाल है एक पाठ्यचर्या क्या है?' इस सवाल पर सावधानी से विचार पूर्ण तक्र के लायक है, प्रबोधक सिद्धान्त ।

 

इस शिक्षण प्रणाली में यह एक भाग की बात नहीं करता है। यह केवल शिक्षकों को शामिल नहीं करता और छात्रों की टेक्स्ट बुक्स और होमवर्क से बहुत आगे है। किसी भी सामाजिक संस्था की तरह यह एक पूर्ण रूप में समाज के साथ अपने संबंधों के रख रखाव के लिए भाग लेने के लिए तनुसार यह एक हिस्सा उचित शिक्षण व्यवस्था के बीच संबंध की देखरेख में एक विशेषज्ञ की तरह कार्य करता है। यह सामाजिक जीवन के एक सामान्य आवश्यकता है। जो कोई भी संस्था प्राप्त कर सकती है।

 

सैद्धान्तिक पाठ्क्रम के गठन के सवाल पर तीन प्रकार के परिवर्तन आमतौर पर लागू किया जाना चाहिए। ठोस पाठ्यचर्या का एक मिश्रण के परिणामों, कारकों तथा इसके विपरीत पाठ्यचर्या विकास दोनों एक सिद्धान्त और एक सामाजिक आदर्शों के साथ एक निश्चित सीमा तक सामाजिक परिवर्तन के अधिकार को स्वीकार्य करते हैं।

 

इस संदर्भ में सैद्धान्तिक शिक्षा की ओर व्यक्तिगत समग्र बुद्धि का मतलब संज्ञानात्मक, रचनात्मक, सौन्दर्य, नैतिकता, एकीकरण और मानवीय लक्ष्यों और इंसान के व्यावसायिक आयाम जो लोगों के  विकास की समकालीन बाधाओं को पार कर सकते हैं, इस पाठ्यचर्या के लिए केन्द्रीय है।

 

छात्रों को विकसित करने के लिए स्वतंत्र है। और स्वयं अपना निर्धारण करने में सक्रिय है। व्यक्तिगत समस्याओं, विकास का स्तर लक्ष्यों, अंतर का आधार पर पाठयचर्या अवधारणाओं का निर्धारण करने में है।

 

उद्देश्य इस पाठ्यचर्या के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-  

यह पाठ्यचर्या शिक्षा के प्रति परम्परागत तथा सैद्धान्तिक दृष्टिकोण रखता है। इसमें आदर्श जीवन के सिद्धान्त एवं नैतिक जीवन के सैद्धान्तिक रूप से सम्बन्धित करके उसके विकास पर बल दिया जाता है।

 

प्राचीन काल के स्कूलों तथा भरतीय गुरुकुलों ने इस पाठ्यचर्या का सूत्रपात किया तथा इसके अंतर्गत भाषाओं, दर्शन, ज्योतिष, गणित, व्याकरण, अध्यात्मशास्त्र, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया। 

इस प्रकार के पाठयचर्या का आज भी प्रचलन है परन्तु दिन-प्रतिदिन इसकी उपयुक्तता पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। अतः इसकी उपयुक्तता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। 

इसके अन्तर्गत व्यक्ति, व्यक्ति के सम्बन्धों, सामूहिक सम्बंधों तथा अंतः सामूहिक सम्बंधों के विकास से सम्बंधित स्थितियों को सम्मिलित किया जाता है। जिससे सामाजिक सहभागिता के विकास को सैद्धान्तिक पाठ्यचर्या से जोड़ा जा सके। 

इसके अन्तर्गत स्वास्थ्य, बौद्धिक शक्ति, सौन्दर्यात्मक अभियक्ति, मूल्यांकन तथा नैतिक शक्तियों के विकास से सम्बंधित स्थितियों को स्थान दिया जाता है। 

इस पाठ्यचर्या के अंतर्गत स्वास्थ्य, नागरिकता, व्यावसाकि ज्ञान, गृहसदस्यता तथा अवकाशकालीन क्रियोओं को विशेष महत्व दिया जाता है। 

वातावरण से सम्बंधित कारणों एवं शक्तियों के प्रतिक्रिया क्षमता से सम्बंधित स्थितियां जैसे प्राकृतिक घटनाओं, प्रौद्योगिकी से प्राप्त साधनों, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्थितियों को स्थान दिया जाता है। 

यह पाठ्यचर्या बालकों की तात्कालिक आवश्यकताओं एवं हितों पर आधारित है। ये आवश्यकतायें एवं हित जीवन की स्थायी स्थितियों के क्षेत्र में निहित है।

 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या Activity Based Curriculum 

पाठ्यचर्या के विभिन्न प्रकारों में क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या भी विशेष महत्व रखता है। शैशवास्था में बालक क्रिया प्रधान कार्य करके शिक्षा प्राप्त करने में विशेष रुचि लेता है। अतः प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है। जिससे बालक में क्रियात्मकता, सृजनात्मकता का विकास किया जा सके। क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या क्रिया या कार्य को आधार बनाता है। इसके अंतर्गत कक्षा कार्य के लिए अन्तर्वस्तु का चयन शिक्षार्थियों की अभिरुचियों, आवश्यकताओं, समस्याओं तथा अनुभव के आधार पर किया जाता है। यह पाठ्यचर्या विषय आधारित पाठ्यचर्या की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप विकास में आया है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसका सूत्रपात प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री पेस्टालॉजी तथा रूसो ने किया है। परन्तु इसके वास्तविक प्रणेता प्रसिद्ध अमेरिकी शिक्षाविद् जॉन डीवी थे। डीवी ने जो शिक्षा योजना अपने प्रयोगत्मक विद्यालय में कार्यान्ति की उसे विषय या अंतर्वस्तु पर आधारित करने के स्थान पर उसमें बालकों की चार प्रमुख अभिवृत्तियों को अवसर प्रदान किए-

 

i. सामाजिक 

ii. रचनात्मक 

iii. गवेष्णात्मक एवं प्रयोगात्मक 

iv. अभिव्यक्तिजन्य तथा कलात्मक

 

संयुक्त राज्य अमेरिका में इस दिशा में विशेष प्रयास हुए। इस दिशा में एच0जी0 केशबेल ने नेतृत्व प्रदान किया । इन्होंने हरबर्ट स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित पाँच जीवन क्षेत्रों (आत्मरक्षा जीवन सुरक्षा, वृद्धि एवं शिशुपालन, सामाजिक एवं राजनैतिक अवकाश का उपयोग) से प्रेरणा लेकर इन जीवन क्षेत्रों का समन्वय इस पाठ्यचर्या से किया

 

इस प्रकार क्रिया प्रधान पाठ्यचर्या में बालकों के लिए ऐसे कार्यों का आयोजन किया जाता है। जिनका कुछ सामाजिक मूल्य हो तथा जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक हो। इन कार्यों का चुनाव शिक्षक और छात्रों के परस्पर सहयोग से किया जाता है। तथा इसमें छात्रों की रुचियों एवं आवश्यकताओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। डीवी महोदय क्रियाशील पाठयचर्या के प्रमुख समर्थक हैं। उन्होंने बालकों को ऐसे कार्यों द्वारा शिक्षा देने का सुझाव दिया है, जिनके सीखने पर भविष्य में समाजोपयोगी कार्य करने के योग्य बन सके। डीवी महोदय के अनुसार ज्ञान, क्रिया का परिणाम है न कि उसका मार्गदर्शक। उनके अनुसार क्रिया अथवा कार्य ही ज्ञान का स्रोत है। क्रिया, अनुभव से पूर्व होती है। अतः अनुभव, ज्ञान एवं अधिगम आदि सभी क्रिया के ही परिणाम हैं। इस प्रकार डीवी ज्ञान एवं अनुभव में कोई विशेष अंतर नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि ज्ञान अनुभव से प्राप्त होता है। अनुभव क्रिया द्वारा उत्पन्न होता है। इसीलिए इस पाठ्यचर्या को अनुभव प्रधान पाठ्यचर्या के नाम से भी जाना जाता है। नन महोदय के अनुसार पाठ्यचर्या में समस्त मानवजाति अनुभवों को सम्मिलित करना चाहिए। व्यक्तित्व के विकास के लिए तथा सफल जीवन के लिए वर्तमान अनुभवों के साथ-साथ पूर्व अनुभव भी बहुत अधिक उपयोगी होते हैं।

 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या की विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या अनुभव प्रधान है। 

यह छात्रों को जीवन की व्यावहारिकता से अवगत कराने पर बल देता है। 

इसमें विद्यार्थी प्रमुख है और शिक्षण गौण रूप में विद्यमान होता है। 

इसमें छात्र मस्तिष्क प्रधान होता है। 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या करके सीखने पर बल देता है। 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या का उद्देश्य छात्र को व्यक्तिगत जीवन की आवश्यकता की व्यवस्था में समर्थ है। 

क्रिया केन्द्रित पाठ्यचर्या विद्यार्थी केन्द्रित है। 

इस योजना के अंतर्गत विकसित अधिगम अनुभवों की इकाईयाँ बालकों के लिए - महत्वपूर्ण एवं सार्थक होती हैं। 

इसमें अन्तर्वस्तु का चयन वर्तमान उपयोगिता एवं महत्व को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। 

इसमें शिक्षा के अधिक व्यापक क्षेत्रों को समाहित करना सम्भव होता है, क्योंकि अधिगम- अनुभवों में पर्याप्त विविधता होती है। 

इसमें जीवन की नवीन स्थितियों में अधिगम के उपयोग की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं। 

इस पाठ्यचर्या में अधिगम अनुभवों की विभिन्न इकाईयों का एकीकरण सुविधाजनक ढंग से किया जा सकता है। 

बालकों की आवश्यकताओं एवं रुचियों पर आधारित होने के कारण इस प्रकार के पाठ्यचर्या को वे पसंद करते हैं। 

मानव की प्रगति में क्रियाशीलता सर्वाधिक महत्व रखती है। इससे इस पाठ्यचर्या की उपयुक्तता स्वयंसिद्ध है।

 

पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या - ( Reconstructivistic Curriculum) 

विद्यालयों का पाठ्यचर्या पुस्तकीय ज्ञान पर अधिक बल देता है तथा इसमें व्यावहारिक क्रियाओं एवं अनुभवों को कम महत्व प्रदान किया जाता है। इसके साथ पाठयक्रम का निर्माण परीक्षा की दृष्टि से किया जाता है। चूँकि भारतीय विद्यालयी पाठयचर्या में कौशलों के विकास तथा उचित अभिरुचियों, अभिवृत्तियों एवं मूल्यों के प्रतिपादन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। अतः यह आधुनिक ज्ञान एवं आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सफल नहीं हो सका उनकी तुलना में हमारे देश में इस ओर बहुत ही कम ध्यान दिया गया। अतः भारतीय स्कूली पाठयचर्या को विकसित करने, उसे उन्नत करने तथा उसमें उपयुक्त सुधार करने की नितान्त आवश्यकता है।

 

पाठ्यचर्या पुनर्संरचना का प्रथम व्यापक प्रयास गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा के माध्यम से प्रारंभ तो हुआ परन्तु ब्रिटिश काल में कोई प्रभावशाली कार्य न हो सका। इसके अन्तर्गत हस्तकला को केन्द्र मानकर सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान करने का प्रयास किया गया। हस्तकला के साथ साथ भौतिक एवं सामाजिक पर्यावरण को भी पाठ्यचर्या में स्थान दिया गया। अध्ययन के द्वारा विभिन्न विषयों में सह-सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया गया।

 

वर्तमान में निम्न कमियों को बताया गया है-

 

i. सार्थक अर्न्तवस्तुओं के अभाव के बाद भी यह बोझिल है।  

ii. यह पूर्णतया सैद्धान्तिक तथा पुस्तकीय है। 

iii. उसमें व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए व्यवहारिक एवं अन्य क्रियाओं का पर्याप्त समावेश नहीं किया गया है। 

iv. इसमें व्यावहारिक विषयों एवं तकनीकि का समावेश नहीं किया गया है। जो देश को औद्योगिक एवं आर्थिक विकास हेतु बालकों को प्रशिक्षित करने के लिए नितान्त आवश्यक 

V. इसमें किशोरों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति तथा उनकी क्षमताओं का उपयोग नहीं हो पाता है। 

vi. वर्तमान का पाठ्यचर्या बहुत संकुचित तथा बोझिल है एवं इसमें परीक्षाओं पर अधिक बल दिया जाता है।

 

अतः माध्यमिक शिक्षा आयोग ने स्वतंत्र लोकतांत्रिक भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रचलित पाठ्यक्र में व्यापक सुधार लाने हेतु कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-

 

माध्यमिक स्तर सामान्य पाठ्यचर्या 

व्यावहारिक तथा तकनीकि शिक्षा की आवश्यकता की पूर्ति हेतु बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना। 

शिक्षा की अवधि में परिवर्तन लाने की आवश्यकता।

 

पाठ्यचर्या निर्माण हेतु कुछ सिद्धान्तों के अनुपालन पर भी बल दिया गया है-

 

विविधता एवं लचीलेपन का सिद्धान्त। 

अनुभवों की पूर्णता का सिद्धान्त। 

सामुदायिक जीवन से सम्बन्ध स्थापित करने का सिद्धान्त । 

विषय वार सम्बन्ध सिद्धान्त । 

सामान्य विषयों के सांमजस्य का सिद्धान्त ।

 

पुनर्संरचनात्मक पाठ्यचर्या के उद्देश्य

 

माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या का उद्देश्य मानवीय ज्ञान एवं अभिरुचि के व्यापक क्षेत्र के बारे में बालकों को अति सामान्य ढंग से परिचित कराना होता है। यह स्तर विशिष्टता के लिए नहीं होता है, बल्कि इस स्तर पर ज्ञान के व्यापक एवं सार्थक क्षेत्रों से बालकों को सामान्य परिचित कराना चाहिए। इस दृष्टि से मिडिल स्तर के पाठ्यचर्या में व्यापकता का संक्षिप्त समावेश होना चाहिए। जिससे बालक मानवीय ज्ञान एवं सभ्यता के प्रमुख तत्वों की जानकारी प्राप्त कर सकें तथा बाद में अध्ययन हेतु ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्र का चयन कर सके। जिसमें मुख्य उद्देश्य निम्नवत हैं-

 

  • सामान्य विज्ञान का अध्ययन। 
  • भाषाओं का अध्ययन । 
  • समाजिक अध्ययन । 
  • कला एवं संगीत । 
  • हस्तकला । 
  • शारीरिक शिक्षा आदि

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