पाठ्यचर्या विकास के दार्शनिक आधार |Philosophical Foundations of Curriculum Development
पाठ्यचर्या विकास के निर्धारक-पाठ्यचर्या विकास के दार्शनिक आधार
पाठ्यचर्या विकास के निर्धारक
शिक्षा एक सोद्देश्य प्रक्रिया है तथा शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु पाठ्यचर्या का निर्माण जाता है। पाठ्यचर्या वह समग्र परिस्थिति अथवा परिस्थितियों का समूह होता है जिसके माध्यम से शिक्षक तथा विद्यालय प्रशासक उन अनेक बालकों एवं तरुणों के व्यवहार में परिवर्तन लाते हैं जो विद्यालय शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। पाठ्यचर्या में केवल ज्ञानात्मक पक्ष का ही समावेश नही किया ता है अपितु कौशल एवं रुचियों, मनोवृतियों आदि व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का समावेश होता है। अब आप के मन में यह प्रश्न होगा कि पाठ्यचर्या निर्माण के आधार क्या हैं? प्रमुख रूप से तीन शास्त्र पाठ्यचर्या के आधार निश्चित करते हैं। प्रथम आधार दर्शन शास्त्र द्वारा निर्धारित किया जाता है। शिक्षा के लक्ष्य, ज्ञान की प्रकृति, शिक्षा में मूल्यों का समावेश, इन सबका निर्धारण दर्शनशास्त्र द्वारा किया जाता है। शैक्षिक लक्ष्यों को व्यावहारिक शब्दावली में प्रस्तुत करने का कार्य मनोविज्ञान करता है। कितना और किस प्रकार का ज्ञान किस कक्षा स्तर, आयु स्तर के बालकों के लिए उपयुक्त है? व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर पाठ्यचर्या निर्माण करने में भी शिक्षा मनोविज्ञान मदद करता है। मनोविज्ञान का सबसे अधिक प्रभाव शिक्षण विधियों पर पड़ता है। शिक्षण विधियों को भी पाठ्यचर्या का अंग माना जाता है। इस प्रकार मनोविज्ञान पाठ्यचर्या निर्माण का दूसरा प्रमुख आधार माना जाता है। मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने के नाते उससे कुछ सामाजिक अपेक्षाएँ होती हैं। सामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन व विश्लेषण समाजशास्त्र द्वारा किया जाता है। शिक्षा के लक्ष्य सामाजिक परिस्थितियों द्वारा प्रभावित होते हैं और इस प्रकार समाजशास्त्र शिक्षा के लक्ष्यों का निर्धारण करने में सहायक होता है। इस प्रकार पाठयचर्या विकास के प्रमुख निर्धारक दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र हैं जिनके द्वारा ही सार्थक एवं प्रभावशाली पाठ्यचर्या निर्मित किया जाता है।
पाठ्यचर्या विकास के निर्धारक
अब आप उन कारकों के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे जो पाठ्यचर्या विकास के प्रमुख आधार हैं अर्थात जो पाठ्यचर्या विकास के प्रमुख निर्धारक हैं। पाठयचर्या विकास के प्रमुख आधारों- दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र की चर्चा निम्नलिखित है-
1 पाठ्यचर्या विकास के दार्शनिक आधार
शिक्षा क्यों दें? किसको दें ? कैसे दें ? कब दें ? तथा शिक्षा कैसी हो? आदि आधारभूत प्रश्नों पर आप विचार कीजिये? पाठ्यचर्या निर्माताओं को इन आधारभूत प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक होता है। पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन के फलस्वरूप प्राप्त परिवर्तित व्यवहार की वांछनीयता अथवा उचित - अनुचित के निर्धारण में भी दर्शन की शाखा मूल्यमीमांसा दिशा प्रदान करती है। दर्शनशास्त्र मूलतः जीवन की आधारभूत समस्याओं के उत्तर प्राप्त करने और मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए किए जाने वाले अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
पाठ्यचर्या का मेरुदंड ही दर्शन है। क्या पढ़ाया जाय? क्या न पढ़ाया जाय? इस प्रश्न का उत्तर व्यक्ति और समाज अपनी दार्शनिक मान्यता के आधार पर देता है। प्रत्येक दार्शनिक विचारधारा का पाठ्यचर्या पर अवश्य प्रभाव पड़ता है। रस्क महोदय ने कहा है कि “दर्शन पर पाठ्यचर्या का संगठन जितना आधारित है उतना शिक्षा का कोई अन्य पक्ष नहीं।
देश और काल के अंतराल से अभी तक जिन विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का अभ्युदय हुआ है, उनमें से प्रमुख विचारधाराएँ निनलिखित -
2. प्रकृतिवाद (Naturalism)
3. प्रयोजनवाद (Pragmatism)
4. यथार्थवाद (Realism)
5. अस्तित्ववाद (Existentialism)
आदर्शवाद और पाठ्यचर्या (Idealism and Curriculum)
आदर्शवाद भौतिक जगत की तुलना में आध्यात्मिक जगत को अधिक महत्तव देता हैं तथा वस्तु की अपेक्षा विचार को अधिक महत्वपूर्ण मानता हैं। इसलिये शिक्षा के उद्देशय- आत्मानुभूति अथवा व्यक्तित्व का उन्नयन करना है। इसलिये आदर्शवादी पाठ्यचर्या की रचना आदर्शो, विचारों एवं शाशवत मूल्यों के आधार पर होती हैं और पाठ्यचर्या में प्रमुख विषयों- धर्मशास्त्र, अध्यात्मशास्त्र, भाषा, साहित्य, समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल, कला एवं संगीत आदि को शामिल करने पर बल देता है तथा शारीरिक शिक्षा, विज्ञान, गणित आदि को गौण विषय मानता है।
प्रकृतिवाद और पाठ्यचर्या (Naturalism and Curriculum)
प्रकृतिवाद के अनुसार प्रकृति ही सब कुछ है, ईश्वर के अस्तित्व की मान्यता नहीं है विचारधारा ने पदार्थ, भौतिक जगत एवं प्रकृतिक नियमों को सर्वाधिक महत्त्व दिया। प्रकृतिवादी मनुष्य की मूल प्रवृतियों का शोधन एवं मार्गांतिकरण कर जीवन संघर्ष के लिए तैयार करना, वातावरण से अनुकूलन को शिक्षा का मूल उद्देश्य मानते हैं। प्रकृतिवादी पाठयचर्या की रचना बालक की प्रकृति एवं रुचियों, योग्यताओं के आधार पर की जाती हैं। इस पाठ्यचर्या में वैज्ञानिक विषयों को प्रमुख तथा मानवीय विषयों को गौण स्थान दिया जाता है। प्रकृतिवादियों के अनुसार मुख्य विषय खेलकूद, शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, वनस्पति विज्ञान एवं गणित आदि । इन्होने भाषा, साहित्य, सामाजिक विज्ञान, कला, संगीत आदि विषयों को कम महत्व देने की वकालत की।
प्रयोजनवाद और पाठ्यचर्या (Pragmatism and Curriculum)
प्रयोजनवादी दार्शनिक ईश्वर एवं आध्यात्मिक तत्व के स्थान पर व्यक्ति में विश्वास करते हैं तथा मानव की शक्ति के महत्व को स्वीकार करता है । इनके अनुसार मूल्य पूर्व निर्धारित नहीं होते हैं बल्कि निर्माण की अवस्था में हैं। इन्होने मानवीय एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को अधिक महत्व दिया। प्रयोजनवादियों के अनुसार शिक्षा के कोई पूर्व निर्धारित उद्देश्य नहीं होते बल्कि उद्देश्य व्यक्तियों के होते हैं तथा देश, काल एवं परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं। शिक्षा का कार्य ऐसे गतिशील एवं लचीले मस्तिष्क का निर्माण करना है जो अज्ञात भविष्य में नवीन मूल्यों की रचना कर सके। प्रयोजनवादी पाठ्यचर्या उपयोगिता, रुचि, अनुभव तथा एकीकरण के सिद्धान्त पर आधारि होता है। पाठ्यचर्या के प्रमुख विषय स्वास्थ्य विज्ञान, शारीरिक विज्ञान, इतिहास, भूगोल, विज्ञान, गणित, गृह विज्ञान तथा कृषि शिक्षा आदि हैं।
यथार्थवाद तथा पाठ्यचर्या (Realism and Curriculum)
यथार्थवादी दर्शन पूर्णत वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित है। यह स्थूल जगत को महत्व देता है तथा कारण- परिणाम के वैज्ञानिक नियम को सर्वव्यापी एवं सर्वमान्य मानता है तथा व्यक्ति एवं समाज दोनों में विश्वास करता है। यथार्थवादी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य सुखी एवं वास्तविक जीवन की तैयारी हेतु ज्ञानेन्द्रियों का विकास एवं प्रशिक्षण करना है तथा बालक को प्रकृति एवं सामाजिक वातावरण से परिचित कराकर उसे व्यावसायिक कुशलता प्रदान करना है। यथार्थवादी पाठ्यचर्या उपयोगिता तथा आवश्यकता के सिद्धान्त पर आधारित होता है। पाठ्यचर्या में दैनिक जीवन मे उपयोगी विषयों को सम्मिलित किया जाता है। प्राकृतिक विज्ञान, भौतिकी, रसायन, स्वास्थ्य रक्षा, व्यायाम, भ्रमण, गणित, नक्षत्र विज्ञान, इतिहास, भूगोल आदि विषयों को शामिल किया गया है।
अस्तित्ववाद और पाठ्यचर्या (Existentialism and Curriculum)
अस्तित्ववाद विचारधारा पाठ्यचर्या की प्रस्तावना में आस्था नहीं रखते है। इस विचारधारा के पाठ्यचर्या का चयन छात्र स्वयं अपनी आवश्यकता, योग्यता एवं जीवन की परिस्थितियों के अनुकूल करता है। इस विचारधारा के अंतर्गत वैज्ञानिक विषयों की अपेक्षा मानवीय अध्ययनों पर विशेष बल दिया गया है। इस अध्ययनों के माध्यम से दुख, चिंता, मृत्यु, घृणा आदि का ज्ञान प्राप्त करना। इसके अंतर्गत कला, संगीत, साहित्य, धर्म, नैतिक सिद्धान्त व्यक्तिक चयन, चिंतन, स्व- उतरदायित्व विषयों को शामिल किया जाता है।
भारतीय दर्शन एवं पाठयचर्या (Indian Philosophy and Curriculum)
भारतीय दर्शनिक विचारधारा के अनुसार ज्ञान हमारी आत्मा मे निहित रहता है तथा शिक्षा द्वारा इसे प्रकाश मे लाया जाता है। यह मानव को विवेकयुक्त प्राणी मानता है। चार पुरुषार्थों के रूप में चार भारतीय मूल्य है- अर्थ, कम, धर्म और मोक्ष। जीवन के विभिन्न पक्षों की जड़ धर्म ही है अतः जो धर्म का लक्ष्य है वही शिक्षा का भी लक्ष्य है। भारतीय दार्शनिक पाठ्यचर्या में यही धर्मशास्त्र, अध्यात्मशस्त्र, नीतिशास्त्र, प्राचीन भाषाएँ, गणित, तर्कशास्त्र आदि विषयों को पढ़ाने का समर्थन करतें हैं।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक दार्शनिक विचारधारा अपने दार्शनिक सिद्धांतों एवं मूल्यों के आधार पर विषयों को पढ़ाये जाने का समर्थन करती है तथा किसी समाज में पाठयचर्या विषयों का निर्धारण उस समाज, काल, परिस्थिति में प्रचलित एवं मान्य दार्शनिक विचारधारा के आधार पर होता है। इस प्रकार आप जान गए होंगे कि किस प्रकार दर्शनशास्त्र पाठ्यचर्या निर्माण हेतु एक निर्धारक के रूप में कार्य करता है।
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