पाठ्यचर्या विकास के मनोवैज्ञानिक आधार |Psychological Basis of Curriculum Development
पाठ्यचर्या विकास के मनोवैज्ञानिक आधार
पाठ्यचर्या विकास के मनोवैज्ञानिक आधार
शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृति ने शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण पद्धति, पाठ्यचर्या, शिक्षा के संगठन, अनुशासन की अवधारणा, शिक्षक की भूमिका आदि सभी क्षेत्रों को नया आयाम प्रदान किया है। मनोविज्ञान के विकास ने पाठ्यचर्या रचना को कई प्रकार से प्रभावित किया है। पाठ्यचर्या की पृष्ठभूमि में मनोवैज्ञानिक दृष्टि सर्वत्र व्याप्त रहती है फिर भी इसके पाठ्यचर्या निर्माण के निर्धारक निम्नलिखित है-
1. परिपक्वता एवं विकास (Maturity and Development)
2. व्यक्तिगत भिन्नता (Individual Differences)
3. अभिरुचि (Interest)
4. अभिप्रेरणा (Motivation)
5. अधिगम प्रक्रिया एवं अधिगम का स्थानांतरण (learning Process and Transfer of learning)
परिपक्वता, विकास तथा पाठ्यचर्या (Maturity, Development Curriculum)
मनुष्य की आयु में वृद्धि के साथ समुचित ढंग से होने वाले शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों को मनोविज्ञान में परिपक्वता की संज्ञा दी जाती है। बालक का शारीरिक विकास शिक्षाक्रम को निश्चित रूप से प्रभावित करता है अतः अधिगम स्थितियों का चयन बालक के विकास की दृष्टि से ही किया जाना चाहिए। इसीलिए पेस्टोलोजी ने पाठ्यचर्या निर्माण में विकास के सिद्धांत को प्रमुखता प्रदान की है।
व्यक्तिगत भिन्नता एवं पाठ्यचर्या ( Individual Differences and Curriculum)
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो किन्हीं भी दो व्यक्तियों के बीच तो अंतर होता ही है, साथ ही व्यक्ति के अंदर विभिन्न प्रकार की क्षमताओं के विभिन्न स्तर भी होते है। वर्तमान समय मे विभिन्न आयु वर्ग के बालकों की आवश्यकताएँ भिन्न- 2 होती है तथा इन बालकों के लिए अलग-2 पाठ्यक्रमों का ढंग उपयोग में लाया जा रहा है किन्तु एक ही आयु वर्ग में व्यक्तिगत भिन्नता के कारण उनके पाठ्यक्रमों में विविधता की भी आवश्यकता हैं।
अभिरुचि एवं पाठ्यचर्या (Interest and Curriculum)
अभिरुचि का तात्पर्य किसी वस्तु या विषय के प्रति लगाव का होना है। बालकों में जन्मजात अभिरुचियों की संख्या बहुत कम होती है तथा काव्यात्मक, कलात्मक एवं संगीत संबंधी अभिरुचियों को छोड़ कर अधिकतर अभिरुचियाँ बालक वातावरण से अर्जित करते हैं। इसके लिए पाठ्यचर्या निर्माताओं को विविध अधिगम अनुभवों के साथ-2 उचित अभिप्रेरकों, निर्देशन तथा पुनर्बलन की व्यवस्था की ओर भी ध्यान देना चाहिए। इसलिए पाठ्यचर्या निर्माण में रुचि के सिद्धांत का अपना विशेष महत्व है।
अभिप्रेरणा एवं पाठ्यचर्या (Motivation and Curriculum)
अभिप्रेरणा से प्राणी की अनुक्रिया की शक्ति में वृद्धि होती है। अभिप्रेरणा द्वारा किसी क्रिया को सीखने के लिए उत्साह उत्पन्न किया जा सकता है अतः एक कुशल शिक्षक विद्यालय मे अभिप्रेरणा का सकारात्मक उपयोग करके बालकों को नवीन तथ्यों के विषय में रुचि उत्पन्न कर सकता है तथा पाठ्यचर्या निर्माणकर्ता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की निश्चित तथ्यों के पश्चात अभिप्रेरणा की व्यवस्था की गयी हो।
अधिगम प्रक्रिया एवं पाठयचर्या (learning and Curriculum) पाठ्यचर्या -
नियोजकों के लिए अधिगम प्रक्रिया के सैद्धांतिक पक्ष की अपेक्षा इसका व्यवहारिक एवं शैक्षिक पक्ष अधिक महत्वपूर्ण है, मनोविज्ञान के विकास के साथ ही साथ अडिगम- मनोविज्ञान भी बहुत विकसित हो चुका है। अधिगम का क्षेत्र - सिद्धांत उद्दीपन एवं अनुक्रिया के बीच होने वाली प्रक्रियाओं की संकल्पना पर आधारित है। अतः पाठ्यचर्या नियोजकों एवं शिक्षकों कों S R संबंध स्थापित करते समय उनकी मध्यवर्ती क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं के प्रति भी सजग रहने की होती है।
अधिगम स्थानांतरण एवं पाठयचर्या (learning Transfer and Curriculum)
अधिगम या प्रशिक्षण के स्थानांतरण से तात्पर्य एक परिस्थिति या क्षेत्र में अर्जित ज्ञान, प्रशिक्षण और आदतों का दूसरी परिस्थिति या क्षेत्र में उपयोग किया जाना है। अधिगम के स्थानांतरण को ध्यान में रखते हुए पाठ्यचर्या नियोजकों को पाठ्यचर्या का निर्धारण छात्रों के आवश्यकता के अनुकूल होना चाहिए। पाठ्यचर्या के माध्यम से भावी जीवन के आवश्यकताओं का भी परिचय कराया जाना चाहिए।
पाठ्यचर्या नियोजकों के लिए उपयोगी अधिगम संबंधी सामान्य तथ्य
विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर अधिगम संबंधी जिन तथ्यों की पुष्टि हो चुकी है, उनमें से प्रमुख इसप्रकार है-
• अधिगम जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है तथा ये शिक्षार्थी की परिपक्वता से संबन्धित होती है।
• अधिगम बालक की शारीरिक, मानसिक, एवं संवेगात्मक विकास की दशाओं से प्रभावित होती है।
• अधिगम में शिक्षार्थी की सक्रिय सहभागिता आवश्यक होती है तथा अधिगम तभी प्रभावी होगा जब शिक्षार्थी का लक्ष्य स्पष्ट होगा।
• प्रभावशाली अधिगम के लिए अभिप्रेरणा का होना आवश्यक है तथा अधिगम के लिए मुक्त वातावरण सहायक होता है।
• अधिगम-तत्परता शिक्षार्थी के हैं।
• अनुभव, अभिरुचियों एवं अभिवृतियों पर निर्भर करती तत्काल पुनर्बलन अधिगम की गति को बढ़ाता है, जबकि पुनर्बलन का आभाव अधिगम में बाधक होता है।
• प्रस्तुत अधिगम - अनुभवों का क्षेत्र जितना आधिक व्यापक होता है, सामान्यीकरण एवं विभेदीकरण उतना ही अधिक अच्छा होता है।
• एक ही परिस्थिति के प्रति बालकों की प्रतिक्रिया भिन्न-2 हो सकती है, क्योंकि अधिगम व्यक्तिक मूल्यों, लक्ष्यों एवं विचारों पर आधारित होता है।
पाठ्यचर्या - नियोजकों के लिए अधिगम संबंधी कुछ सुझाव अधिगम संबंधी समान्य तथ्यों की जानकारी के साथ-साथ पाठ्यचर्या नियोजकों को मनोवैज्ञानिक प्रवृति संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातों पर भी ध्यान रखना आवश्यक है, जो इसप्रकार है-
• पाठ्यचर्या का संबंध बालक प्रकृति एवं जीवन की वास्तविकता से होना चाहिए।
• विद्यालयों में प्रदान किया जाने वाला अनुभव बालकों की स्वाभाविक क्रियाओं एवं अभिरुचियों पर आधारित होना चाहिए।
• अधिगम प्रक्रिया में "क्रिया द्वारा सीखना" अर्थात करके सीखने को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।
• यथासंभव पाठ्यचर्या के लिए विषय सामाग्री का चयन वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से ही करना चाहिए।
• पाठ्यचर्या में बालकों को अभिप्रेरित करने के अधिक-से-अधिक अवसर सुलभ होने चाहिए जिससे वे विभिन्न क्रियाओं, चर्चाओं एवं रचनात्मक कार्यों में सक्रिय भाग ले सकें तथा उन्हें विभिन्न प्रकार के कौशलों एवं ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता का अनुभव भी हो सके।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक मनोवैज्ञानिक विचारधारा अपने मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों एवं आवश्यकताओं के आधार पर विषयों को पढ़ाये जाने पर बल देती है तथा मनोविज्ञान ने शिक्षा के हर पक्ष को प्रभावित किया है। मनोविज्ञान के विकास के परिणामस्वरूप अनेक देशों में बालकों की आवश्यकताओं के आधार पर पाठ्यचर्या निर्माण का प्रयास किया जा रहा है इस प्रकार आप जान गए होंगे कि किस प्रकार मनोविज्ञान विषय पाठ्यचर्या निर्माण हेतु एक निर्धारक के रूप मे कार्य करता है।
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