ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) के बारे में जानकारी |Sea Horse GK in Hindi
ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) के बारे में जानकारी
ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) के बारे में जानकारी
सी-हॉर्स, समुद्र की छोटी मछलियाँ हैं जिनका नाम उनके सिर के आकार के कारण रखा गया है, जो एक छोटे घोड़े के सिर जैसा दिखता है। उन्हें मछलियों की एक प्रजाति जीनस हिप्पोकैम्पस (Genus: Hippocampus) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
विश्व भर में
सी-हॉर्स की 46 प्रजातियाँ पाई
जाती हैं। भारत के तटीय पारिस्थितिक तंत्र के तहत इंडो-पैसिफिक में पाई जाने वाली 12 में से 9 प्रजातियाँ
शामिल हैं।
ये लगभग 52° उत्तर – 45° दक्षिण अक्षांशों के मध्य उथले तटीय जल में पाई जाती हैं।
भारत के विविध
महासागरीय पारिस्थितकी तंत्र जैसे- प्रवाल भित्तियाँ, मैक्रो-एगल बेड, समुद्री घास और
मैंग्रोव में सी-हॉर्स की आबादी पाई जाती है।
ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) का भारत में वितरण:
लक्षद्वीप, अंडमान और
निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर ये नौ प्रजातियाँ गुजरात से ओडिशा तक आठ राज्यों और
पाँच केंद्रशासित प्रदेशों के समुद्र तटों पर पाई जाती हैं।
सुस्त तैराक:
ये तैरते समय
अपने शरीर को एक ऊर्ध्वाधर स्थिति में बनाए रखते हैं और अपने कोमल पृष्ठीय पंखों
का उपयोग करते हुए आगे बढ़ते हैं।
ये राफ्टिंग के
माध्यम से चलते हैं और मैक्रोशैवाल या प्लास्टिक अपशिष्ट जैसी तैरने वाली
सामग्रियों से चिपके रहते हैं ताकि समुद्र की धाराएँ उन्हें बाहर की ओर फैला सकें।
विशेष प्रजनन प्रथा:
मादा अपने अंडों
को नर की पूँछ के आधार पर एक ब्रूड थैली में जमा करती है, जहाँ उन्हें बाद
में एक अंडाकार (अंडवाहिनी) का उपयोग करके निषेचित किया जाता है, तभी नर संतान को
जन्म देता है।
ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) संरक्षण स्थिति:
IUCN स्थिति-
असुरक्षित/ कमज़ोर
CITES: परिशिष्ट II
ग्रेट सी-हॉर्स (समुद्री घोड़े) के पतन और प्रवासन
के क्या कारण हैं?
ग्रेट सी-हॉर्स की संख्या इसके अतिदोहन के परिणामस्वरूप घट रही है:
पारंपरिक चीनी
दवाओं के कारण
मछलियों की सजावट
के माध्यम से
अत्यधिक मछली
पकड़ने से
मत्स्य पालन के
माध्यम से।
यह सी-हॉर्स की
आबादी पर अत्यधिक दबाव बनाता है, जिनकी अपने व्यापक और लंबे जीवन के ऐतिहासिक लक्षणों को
बनाए रखने के लिये स्थानीय आवासों पर उच्च निर्भरता है।
पाक की खाड़ी और मन्नार की खाड़ी से लेकर ओडिशा तक ग्रेट सी-हॉर्स का 1,300 किमी. उत्तर की ओर प्रवास भारत के दक्षिणी तट के आसपास व्यापक मत्स्यन गतिविधियों का परिणाम है।
प्रवासन संबंधी
चुनौतियाँ:
उपयुक्त आवासों की कमी:
चिल्का क्षेत्र को छोड़कर ओडिशा तट में प्रवाल भित्तियों और समुद्री घास के मैदानों का अभाव है जिससे उपयुक्त आवासों का निर्माण नहीं हो पाता है।
इस प्रकार जब तक
बॉटम ट्रॉलिंग जैसी मत्स्यन के तरीकों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है या उन्हें
पकड़ने वाले मत्स्यन जालों को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है, तब तक यह
प्रजातियों हेतु चुनौतीपूर्ण होगा।
संरक्षण उपायों का अभाव:
यह पूर्वी तट पर भारत के तटीय पारिस्थितिक तंत्र की निगरानी की कमी को
उज़ागर करता है और शेष समुद्री आबादी के बेहतर संरक्षण एवं प्रबंधन की आवश्यकता की
मांग करता है।
Post a Comment