कोशिका जैव- झिल्ली अभिगमन | BIO-MEMBRANE TRANSPORT in Hindi
जैव- झिल्ली अभिगमन
- कोशिका झिल्ली समेत अन्य जब झिल्लियाँ कई तरह के कार्यों, जैसे-रक्षण, यांत्रिक सहारा, अवशोषण, उत्सर्जन आदि कार्य संपन्न करती हैं। परन्तु इनका सबसे प्रमुख कार्य अभिगमन (Transport) है। वह क्रिया जिसके द्वारा बाहर के पदार्थ प्लाज्मा झिल्ली से होकर अन्दर तथा कोशिका के अन्दर का पदार्थ बाहर जाते हैं, कोशिकीय अभिगमन कहलाती है।
- कोशिका झिल्ली से वस्तुओं का आना-जाना झिल्ली की पारगम्यता (Permeability) पर निर्भर करता है। पारगम्यता वह गुण है जिसके द्वारा कोई पदार्थ झिल्ली के अंदर-बाहर आ-जा सकता है।
पारगम्यता के आधार पर झिल्ली तीन प्रकार की हो सकती हैं-
1. अपारगम्य (Impermeable) -
ये वे झिल्लियाँ हैं, जिनसे होकर विलेय एवं विलायक दोनों आर-पार Solvent molecule नहीं जा सकते।
2. पारगम्य (Permeable ) —
इन झिल्लियों से विलेय एवं विलायक दोनों आर-पार जा सकते हैं।
3. अर्धपारगम्य (Semipermeable ) —
इन झिल्लियों से विलायक तो आर-पार जा सकते हैं, परन्तु विलेय के कण अभिगमन नहीं कर सकते। परन्तु वास्तव में झिल्लियाँ अर्धपारगम्य नहीं होतीं क्योंकि विलायक के साथ कुछ छोटे परिमाण के विलेय अणु भी झिल्लयों के आर-पार अभिगमन करते हैं। अतः इन झिल्लियों को विभेदकीय पारगम्य (Selective or Differ- entially permeable) कहते हैं।
परासरण (Osmosis)—
- ''वह क्रिया जिसमें विलायक (Solvent) के अणु अर्धपारगम्य झिल्ली से होकर कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जाते हैं।"
- जीवों के शरीर में एकमात्र विलायक जल होता है। इस क्रिया के फलस्वरूप जल का विसरण एवं अवशोषण जीवों में होता है।
- परासरण क्रिया का प्रदर्शन एक सरल प्रयोग द्वारा किया जा सकता है। एक बिसिल कीप के चौड़े सिरे पर मछली के आमाशय, मेढक के मूत्राशय अथवा अण्डे की बाहरी सफेदी झिल्ली को कसकर बाँध देते है। ये झिल्लियाँ अर्धपारगम्य झिल्ली की तरह कार्य करती हैं। कीप के अन्दर एक निश्चित स्तर तक शक्कर अथवा नमक का गाढ़ा घोल भर देते हैं। एक साफ बीकर में साफ जल लेकर थिसिल कीप के चौड़े भाग को इसमें डुबो देते हैं।
- पानी में विलेय (शक्कर अथवा ननक) की सान्द्रता शून्य होती है जबकि यह थिसिल कीप में काफी सान्द्र होता है। कुछ समय बाद परासरण क्रिया के फलस्वरूप बीकर का पानी झिल्ली से होते हुये थिसिल कीप के अन्दर जाने लगता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक झिल्ली के दोनों तरफ के भील को सान्द्रता बराबर न हो जाये। पानी के अन्दर आने के कारण बिसिल कीप में एक दबाव उत्पन्न होता है जिसे हम परासरण दाब (Osmotic pressure) कहते हैं।
- परासरण दाब की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है। "वह दाब जो किसी कोशिका या विलयन के अन्दर अर्धपारगम्य झिल्ली से अलग करने के बाद विलायक को बाहर से अन्दर आने से रोक दें, परासरण दाब कहलाता है।"
- यह विलयन की सान्द्रता पर निर्भर करता है। विलयन की सान्द्रता जितनी अधिक होगी इसका विसरण दाब भी उतना ही अधिक होगा। जीवित कोशिका के चारों ओर हमेशा कोई-न-कोई माध्यम होता है। उदाहरण के रूप में रुधिर कणिकाओं के चारों ओर रुधिर प्लाज्मा होता है। तालाब में पाये जाने वाले एककोशिकीय जीव के चारों ओर तालाब का जल होता है एवं मिट्टी के अन्दर पाये जाने वाले मूलरोम के चारों ओर मृदा जल (Soil water) पाया जाता है।
सान्द्रता के आधार पर कोशिका के चारों ओर पाया जाने वाला माध्यम या विलयन निम्न प्रकार का हो सकता है-
(i) अल्प परासरी विलयन (Hypotonic solution) -
ऐसे विलयन की सान्द्रता कोशिका के जीवद्रव्य की सान्द्रता से कम होती है। ऐसी स्थिति में विलायक अथवा जल बाहरी माध्यम से कोशिका के अन्दर प्रवेश करता है।
(ii) अतिपरासरी विलयन (Hypertonic solution)-
जब विलयन की सान्द्रता कोशिका के जीवद्रव्य की सान्द्रता से अधिक होतो है तो विलयन को अतिपरासरी कहते हैं। ऐसे विलयन में रखे जाने पर कोशिका के अंदर का जल बाहर निकलने लगता है।
(iii) समपरासरी विलयन (Isotonic solution)-
यदि किसी विलयन की सान्द्रता कोशिका के जीवद्रव्य की सान्द्रता के बराबर होती है तो ऐसे विलयन को समपरासरी कहते हैं। ऐसे विलयन में रखे जाने पर जल न ही कोशिका के अंदर आता है और न ही बाहर निकलता है। नमक का 0-87% घोल एवं ग्लूकोज का 5% घोल जोवित कोशिकाओं का समपरासरी होता है।
कोशिका से विलायक अणुओं में गति की दिशा के आधार पर परासरण निम्न प्रकार का होता है-
(b) अन्त: परासरण
(a) बाह्य परासरण (Exosmosis) –
जब किसी कोशिका को अतिपरासरी विलयन में रखा जाता है तो जल के अणु परासरित होकर कोशिका से बाहर जाने लगते हैं। इस क्रिया को बाह्य परासरण कहते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप जीवद्रव्य संकुचित हो जाता है इस क्रिया को जीवद्रव्य संकुचन (Plasmolysis) कहते हैं। अतः इसे हम निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं। " किसी अति परासरी विलयन में रखे जाने पर कोशिका के जीवद्रव्य का कोशिका भित्ति से सिकुड़ने की क्रिया जीवद्रव्य संकुचन कहलाती है।" इस क्रिया को चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
अन्तःपरासरण (Endosmosis)
किसी कोशिका को यदि शुद्ध जल में रखा जाये तो जल अर्धपारगम्य झिल्ली से होकर कोशिका के अन्दर प्रवेश करने लगता है। इस क्रिया को अन्तःपरासरण कहते हैं। लगातार अन्त: परासरण के कारण जन्तु कोशिकाएँ, जैसे-R.B.C. आदि फट जाती है। पादप कोशिकाओं के चारों ओर मोटी कोशिका भित्ति पाये जाने के कारण ऐसा नहीं होता।
2. विसरण (Diffusion)
उच्च सान्द्रता वाले क्षेत्र से कम सान्द्रता वाले क्षेत्र की ओर किसी भी प्रकार के अणुओं के अभिगमन की विसरण कहते हैं। उदाहरण के लिये गहरे बैंगनी (Voilet) रंग के पोटेशियम परमैंगनेट के रखे को यदि शुद्ध जल से भरे भीकर में रखा जाता है तो इसके अणु जल में विसरित होने लगते हैं। इस क्रिया को आसानी से देखा जा सकता है। प्लाज्मा झिल्ली में के अनेक छिद्र पाये जाते हैं। इसमें जल भरा होता है। इन्हीं से होकर जल एवं अन्य पदार्थ के सूक्ष्म अणु एवं आयन विसरित होकर कोशिकाव्य के अंदर या बाहर आते-जाते हैं।
3. परिग्रहण (Endocytosis)
प्लाज्मा झिल्ली द्वारा खाद्य पदार्थों अथवा अन्य बाह्य पदार्थों के बड़े कणों को ग्रहण करने की क्रिया को परिग्रहण (Endocytosis) कहते हैं। पदार्थों की प्रकृति के आधार पर यह दो प्रकार का होता है-
(i) कोशिकापायन (Pinocytosis) एवं
(ii) भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) ।
कोशिकापायन (Pinocytosis) -
कोशिका झिल्ली द्वारा तरल पदार्थों के अन्तग्रहण की क्रिया को कोशिकापायन कहते है। यह क्रिया प्रोटीन आदि बड़े आकार वाले अणुओं के लिए अत्यन्त लाभकारी होती है क्योंकि ऐसे अणु सामान्य विसरण एवं परासरण द्वारा कोशिकाओं के अंदर नहीं जा सकते। यही पदार्थ यदि घोल के में होते हैं तो कोशिकापायन द्वारा कोशिकाओं में अन्तर्ग्रहित हो जाते हैं। इस क्रिया में सर्वप्रथम कोशिका झिल्ली में एक आशय (Vesicle) बन जाता है जिसके अन्दर पदार्थ के घोल को बूंद आ जाती है। तत्पश्चात् यह आशय आकार में बड़ी हो जाती है और अन्त में कोशिका झिल्ली से अलग होकर कोशिकाद्रव्य में आ जाता है। कोशिकाद्रव्य में पाये जाने वाले इस आशय को पीनोसोम (Pinosome) कहते हैं। इस विधि द्वारा अन्तर्ग्रहित पदार्थ लाइसोसोम द्वारा पचा लिये जाते हैं। पचने के बाद ये कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाते हैं। कोशिकापायन द्वारा कोशिकीय पदार्थ को कोशिका से बाहर भी निकाला जाता है। ऐसी स्थिति में ऊपर वर्णित क्रिया के विपरीत क्रिया होती है। यह क्रिया थायरॉइड ग्रन्थि में देखो जाती है।
भक्षकाणु क्रिया (Phagocytosis) -
कोशिका द्वारा प्लाज्मा झिल्ली से होकर ठोस पदार्थ के कर्णों के अंतर्ग्रहण की क्रिया को भक्षकाणु क्रिया कहते हैं। इस विधि द्वारा जीवाणु एवं अन्य छोटी कोशिकाएँ भी बड़ी कोशिकाओं द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। उदाहरण के लिये जन्तुओं के रुधिर में पाया जाने वाला W.B.C. भक्षकाणु क्रिया द्वारा अनेक जीवाणुओं का भक्षण करता है। प्रोटोजोआ संघ के सदस्यों में भोजन का अन्तर्ग्रहण इसी विधि द्वारा होता है। जब कोई ठोस पदार्थ प्लाज्मा झिल्ली के सम्पर्क में आता है तो उस स्थान पर झिल्ली अन्तर्वलित हो जाती है। इस प्रकार ठोस पदार्थ भी कोशिका के अन्दर पहुँच जाता है। ठोस पदार्थ को धारण किये हुए कोशिका झिल्ली के इस अन्तर्वलित भाग को जो जीवद्रव्य में पहुँच जाती है, फैगोसोम (Phagosome) कहते हैं। वह जीवद्रव्य में लाइसोसोम से मिल जाता है। लाइसोसोम में उपस्थित एन्जाइम द्वारा गोसोम में पाये जाने वाले पदार्थ का पाचन होता है। बाद में अपचित पदार्थ कोशिका से बाहर निकाल दिया जाता है।
पिनोसायटोसिस व फैगोसायटोसिस में अंतर
पिनोसायटोसिस (Pinocytosis)
1. यह एक पोषण संबंधी प्रक्रिया है।
2. इसके द्वारा बाह्य कोशिकीय तरल बूंदों तथा मैक्रोमाली- क्यूल्स ग्रहण किये जाते हैं।
3. एण्डोसाइटोटिक वेसिकल्स 0 से 1um तक चौड़ी होती है।
फैगोसायटोसिस (Phagocytosis)
1. यह एक पोषण तथा रक्षात्मक प्रक्रिया है।
2. इसके द्वारा बाह्य कोशिकीय कणों का ग्रहण ( Intake ) होता है।
3. फैगोसाइटिक वेसिकल्स 1 से 2pm तक चौड़ी होती है।
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