कार्बोहाइड्रेट -
C, H व O से बने
पॉलीहाइड्रॉक्सी कार्बोनिल यौगिक अथवा उनसे बने बहुलक। शरीर के लिए ऊर्जा स्रोत
मोनोसैकेराइड- सरलतम
कार्बोहाइड्रेट जो आगे जल-अपघटित नहीं होते हैं। जल में विलेय व स्वाद में मीठे
हैं। जैसे-ग्लूकोस, फ्रक्टोस आदि ।
डाइसैकेराइड-जल-अपघटन
पर दो मोनो सैकेराइड इकाइयाँ देते हैं। स्वाद में मीठे व जल में विलेय हैं।
जैसे-सुक्रोस, मॉल्टोस आदि ।
पॉलीसैकेराइड-जल-अपघटन
पर बहुत सारी मोनोसैकेराइड इकाइयाँ मुक्त करते हैं। जैसे-स्टॉर्च, सेलुलोस आदि।
शर्करा -मोनोसैकेराइड डाइसैकेराइड कार्बोहाइड्रेट जो जल में विलेय
व स्वाद में मीठे होते हैं।
अशर्करा- पॉली सैकेराइड जो स्वादहीन व जल में अविलेय होते
हैं।
प्रोटीन
नाइट्रोजन युक्त जटिल कार्बनिक पदार्थ जो कोशिकाओं का प्रमुख व आवश्यक अवयव है। ऐमीनो अम्ल के बहुलक शरीर की वृद्धि, विकास टूट-फूट की मरम्मत, ऊर्जा स्रोत
ज्विटर आयन-द्विध्रुवी आयन जो एक ही समय धनायन
व ऋणायन हो।
समविभव बिन्दु -
ऐमीनो अम्ल का वह pH जिस पर विलेय के
कणों पर आवेश शून्य होता है।
आवश्यक ऐमीनो अम्ल (Essential amino acids) - वे α ऐमीनो अम्ल जो
हमारे शरीर में संश्लेषित न होते हों। यह भोजन में बाहर से जाते हैं; जैसे- आर्जीनीन, लाइसोन, हिस्टोडीन, वैलीन, ल्यूसीन, आइसोल्यूसीन, फेनिल ऐलानीन, थियोनीन, मेथियोनीन, ट्रिप्टोफेन
पेप्टाइड बन्ध-दो ऐमीनो अम्ल अणुओं के मध्य का ऐमाइड (-C-NH)- (कार्बन से डबल बांड के साथ ऑक्सीज़न) बन्धः।
प्रोटीन की
प्राथमिक संरचना- पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में विद्यमान ऐमीनो अम्ल एवं उनका क्रम
प्रोटीन की
द्वितीयक संरचना - पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का परस्पर कुण्डलित होकर एवं H-बन्धों द्वारा
बँधकर बनी त्रिविमीय संरचनाओं को आकृति। यह दो प्रकार की होती है- (i) - हेलिक्स एवं (ii) B- लहरियादार।
प्रोटीन की
तृतीयक संरचना विभिन्न द्वितीयक संरचनाओं का परस्पर एक-दूसरे पर अध्यारोपित होकर
बनी हुई त्रिविमीय गोलाकार संरचनाएँ।
प्रोटीन की
चतुष्क संरचना (Quaternary
structure)-प्रोटीन को घटक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं की एक-दूसरे के
प्रति आकाशीय व्यवस्था प्रोटीन की चतुष्क संरचना कहलाती है।
विकृतीकरण- ऊष्मा
के प्रभाव अथवा अम्ल, क्षार, लवण, विलयन की क्रिया
से प्रोटीन विलयन का स्कंदन होना।
एन्जाइम
नाइट्रोजन युक्त जटिल पदार्थ, विभिन्न जैविक क्रियाओं के उत्प्रेरक।
हॉर्मोन- वे जैव
अणु जो अन्तः स्रावी ग्रंथियों से उत्पन्न होकर अन्य स्थान पर अपनी दैहिक
क्रियाशीलता दर्शाते हैं। ये स्टेरॉयड व अस्टेरॉयड दो प्रकार के होते हैं।
विटामिन-भोजन में सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक वे कार्बनिक
पदार्थ जो कुछ शरीर क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं एवं शरीर को स्वस्थ रखने के
लिए निश्चित बीमारियों से रक्षा करते हैं, विटामिन कहलाते हैं। कुछ विटामिन वसा में विलेय (A, D, E व K) और कुछ जल में
विलेय (B एवं C) होते हैं।
न्यूक्लिक अम्ल- कोशिका को नाभिक में पाए जाने वाली अति आवश्यक अवयव (पॉलीन्यूक्लिओटाइड) जो
प्रोटीन के जैवसंश्लेषण तथा पैतृक गुणों को सन्तान में पहुँचाने का कार्य करते
हैं।
न्यूक्लिओटाइड-एक
पेन्टोस शर्करा इकाई, एक प्यूरीन या
पिरिमिडीन क्षारक व एक फॉस्फेट के संयोग से बना अणु । न्यूक्लिओटाइड परस्पर संयोग
करके पॉलीन्यूक्लिओटाइड (न्यूक्लिक अम्ल) का निर्माण करते हैं।
DNA- एक
पॉलीन्यूक्लिओटाइड जिसमें थायमीन क्षारक तो हो, किन्तु यूरेलिस क्षारक न हो इसमें डीऑक्सीराइबोस शर्करा तो
होती है, किन्तु राइबोस
शर्करा नहीं होती है। इसकी दोहरी कुण्डलीयुक्त संरचना होती है। ये जेनेटिक कोड
होते हैं।
RNA-एक पॉलीन्यूक्लिओटाइड जिसमें यूरेलिस क्षारक व राइबोस शर्करा उपस्थित हों, किन्तु थायमीन
क्षारक व डी-ऑक्सी राइबोस शर्करा अनुपस्थित होते हैं। एकल लड़ (single strand) संरचना प्रोटीन
संश्लेषण का निर्देशन।
न्यूक्लिक अम्लों के प्रमुख जैविक कार्य -
(1) प्रतिकृतित्व ( द्विगुणन, आनुवंशिकी
लक्षणों को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाना),
(ii) प्रोटीन का संश्लेषण एवं
(iii) DNA अणु में विद्यमान
विशिष्ट अनुक्रम वाले त्रियकों (triplets) के समूह जो प्रोटीन के लिए कोड का कार्य करते हैं. जीन
कहलाते हैं। आनुवांशिकी लक्षणों को वंशागति जीन पर निर्भर करती है।
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