जीवन के अणु या जैव-अणु |Bio-molecules , molecules of life in Hindi)
जीवन के अणु या जैव-अणु
जीवन के अणु (molecules of life) या जैव-अणु (bio-molecules)
- इस आर्टिकल में हम कुछ ऐसे कार्बनिक अणुओं का अध्ययन करेंगे जो अत्यधिक जटिल होते हैं तथा मानव-शरीर के निर्माण में सहायक होते हैं। ये अणु शरीर में होने वाली जैव-रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेते हैं तथा जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। अत: इन्हें जीवन के अणु (molecules of life) या जैव-अणु (bio-molecules) कहते हैं।
- जैव तन्त्र स्वयं वृद्धि करता है, कायम रहता है तथा अपना पुनर्जनन करता है। जैव तन्त्र अजैविक पदार्थों से बनता है। जैव तन्त्र जैव अणु, जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, अम्ल, लिपिड आदि से मिलकर बने होते हैं। जैव-अणु आपस में अन्योन्य क्रिया करते हैं तथा जैव प्रणाली व आण्विक आधार बनाते हैं।
कोशिका (The Cell )
- कोशिका सभी जीवितों की आधारभूत (fundamental) संरचनात्मक इकाई होती है। यह अत्यन्त सूक्ष्म आकार की होती है। इन्हें आँखों से देखना सम्भव नहीं होता है। इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। एक औसत कोशिका का व्यास लगभग 0.02mm होता है। जिस प्रकार ईंटों के द्वारा भवन का निर्माण होता है, उसी प्रकार कोशिकाओं के समूहों से विभिन्न अंग और विभिन्न अंगों से प्रौढ़ जीव वृद्धि, उपापचय आदि, कोशिका के अन्दर होती हैं। अतः कोशिका जीव बनता है। जीवन की सारी क्रियाएँ, जैसे श्वसन, उत्सर्जन, वृद्धि, उपापचय संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। प्रत्येक कोशिका जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक द्रव्यों (chemicals) का एक पैकेट होती है, जो एक कोशिका झिल्ली (cell membrane) के रूप में एक लिफाफे में बन्द रहती है। कोशिका का प्रमुख गुण अपनी वृद्धि करने और विभाजन द्वारा नयी कोशिका उत्पन्न करने की क्षमता है।
- प्रत्येक कोशिका के भीतर कणिकामय (granular), पारदर्शी अर्द्ध द्रव पदार्थ होता है, जिसे कोशिका द्रव्य (cytoplasm) कहते हैं। इसमें विभिन्न लवण, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि कोलॉइडी विलयन के रूप में विद्यमान होते हैं। कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में अनेक वस्तुएँ, जैसे - माइटोकॉण्ड्रिया, नाभिक, गॉल्जीकाय (golgibodies), साइटोसेल आदि उपस्थित हैं। कोशिका अनेक तत्वों से मिलकर बनी होती है, जिनमें से छ: तत्व C, H, N, O, P व S कोशिका का भारानुसार 90% भाग बनाते हैं। कोशिका में द्रव्यमान के अनुसार लगभग 70% जल होता है। जल के बाद प्रमुख स्थान कार्बन के यौगिकों का आता है (C = 18%) |
- कार्बन के ये यौगिक दो प्रकार के होते हैं। एक वर्ग छोटे अणुओं का है, जिनका आण्विक द्रव्यमान 100-1000 के बीच में होता है और इनमें कार्बन परमाणुओं की संख्या 30 तक होती है। ये मुक्त अवस्था में कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं।
- दूसरे प्रकार के अणु बृहद अणु (macro molecules) कहलाते हैं। इनका निर्माण छोटे अणुओं से होता है। इनके आण्विक द्रव्यमान अति उच्च होते हैं। कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल आदि कुछ बृहद अणु वाले यौगिक हैं। ये जीवन (life) के आधारभूत यौगिक हैं।
- कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन हमारे भोजन के मुख्य अवयव हैं। कार्बोहाइड्रेट का मुख्य कार्य शरीर की विभिन्न क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करना है। प्रोटीन नाइट्रोजन युक्त पदार्थ हैं, जो शरीर के समस्त भागों में पाये जाते हैं। त्वचा, माँसपेशियाँ (muscles), बाल, नाखून आदि सभी में अधिकांशत: प्रोटीन ही होती है।
- प्रोटीन इनका संरचनात्मक घटक है। प्रोटीन कोशिकाओं और जीवों का ढाँचा बनाते हैं। कुछ प्रोटीन तन्त्रिका आवेगों (nerve impulses) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते हैं, कुछ प्रोटीन एन्जाइम या जैव उत्प्रेरक होते हैं, जो शरीर के अन्दर जीन्स (genes) तथा कोशिका कला (cell membrane) में विद्यमान होते हैं, भूख के समय ये ऊर्जा के स्रोत के रूप में भी कार्य करते हैं।
- न्यूक्लिक अम्ल महत्वपूर्ण रासायनिक पदार्थ है, जो कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) और कोशिकाद्रव्य में पाये जाने वाले केन्द्रक (nucleus) में पाये जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-RNA व DNA | इनमें से DNA प्राय: केन्द्रक (nucleus) में ही सीमित रहता है। DNA (deoxyribo nucleic acid) किसी प्राणी की आनुवंशिक विशिष्टताओं (genetic characteristics) को संचित रखता है और उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचाने में सहायता करता है।
- जीवित प्राणियों में पाये जाने वाले वसा, तेलों तथा मोम जैसे पदार्थों को लिपिड (lipids) कहते हैं। ये ऊर्जा के भण्डार (store house) के रूप में कार्य करते हैं।
कार्बोहाइड्रेट [Carbohydrates ]
- कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने अत्यन्त महत्वपूर्ण पदार्थ हैं जो पेड़-पौधों में प्रचुरता से पाये जाते हैं, जैसे—ग्लूकोस (C6H12O6), फ्रक्टोस (C6H12O6), गन्ने की शक्कर (C12H22O11), स्टार्च [(C6H10O5)n] और सेलुलोस आदि। इनका सामान्य सूत्र Cx(H2O)y होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट जैसे- रैम्नोस (C6H12O5) आदि का सामान्य सूत्र यह नहीं होता है। आजकल पॉलीहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड, पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन और ऐसे वृहद् बहुलकीय अणु (polymeric macromolecules) जो जल-अपघटन पर पॉलीहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड या पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन देते हैं, कार्बोहाइड्रेट कहलाते हैं। इनका मुख्य स्रोत पेड़-पौधे हैं जिनका 70% भाग कार्बोहाइड्रेटों से बना होता है। इनका मुख्य कार्य पेड़-पौधों की संरचना को आधार ( support ) उपलब्ध कराना (सेलुलोस) और रासायनिक ऊर्जा को संचित करना (शर्कराएँ एवं स्टार्च) तथा प्राणियों को कार्य करने के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराना है।
कार्बोहाइड्रेटों के जैविक कार्य
(1) शरीर को ऊष्मा प्रदान करना।
(2) विभिन्न कार्यों के लिए शरीर को ऊर्जा प्रदान करना।
(3) कोशिका झिल्ली के निर्माण में ।
(4) पेड़-पौधों
का अधिकांश भाग ।
भौतिक गुणों के
आधार कार्बोहाइड्रेट को दो वर्गों में बाँटा गया है-
(1) शर्कराएँ (Sugars) - ये क्रिस्टलीय, मीठे तथा जल में घुलनशील होते हैं; जैसे-ग्लूकोस, फ्रक्टोस तथा चीनी या शर्करा ।
(2) अशर्कराएँ (Non-sugars) – ये अक्रिस्टलीय, स्वादहीन और जल में अविलेय होते हैं; जैसे-स्टार्च, सेलुलोस आदि
रासायनिक गुणों (जल-अपघटन) और आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है-
(1) मोनोसैकेराइड (Monosaccharides) –
- ये सबसे सरल कार्बोहाइड्रेट हैं जिनका जल-अपघटन नहीं होता है। ये स्वाद - में मीठे तथा जल में घुलनशील होते हैं; जैसे-ग्लूकोस और फ्रक्टोस (C6H12O6)। ये दो प्रकार के होते हैं : (i) ऐल्डोस, और (ii) कीटोस। ऐल्डोस पॉलीहाइड्रॉक्सी ऐल्डिहाइड और कीटोस पॉलीहाइड्रॉक्सी कीटोन होते हैं।
- इनका सामान्य सूत्र (CH2O)n होता है। कार्बन परमाणुओं की संख्या के आधार पर इन्हें ट्राइओस, टेट्रोस आदि में और आगे वर्गीकृत किया गया है, जैसे-ग्लिसरिल ऐल्डिहाइड और डाइहाइड्रॉक्सी ऐसीटोन (n = 3) सबसे सरल ऐल्डो एवं कीटो ट्राइओस (trioses) हैं।
(2) ओलिगोसैकेराइड-
ये जल-अपघटन पर 2 से 10 मोनोसैकेराइड इकाइयाँ देते हैं। इनके द्वारा
जल अपघटन पर उत्पन्न हुई मोनोसैकेराइड इकाइयों के आधार पर इन्हें और आगे
डाइसैकेराइड, ट्राइसैकेराइड आदि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
उदाहरणार्थ-
डाइसैकेराइड - स्यूक्रोस, माल्टोस, लैक्टोस आदि (C12H22O11)
ट्राइसैकेराइड-रेफिनोस (C18H22O16)
टेट्रासैकेराइड - स्टैक्यिोस ( Stachyose - C24H42O21)
(3) पॉलीसैकेराइड (Polysaccharides) –
ये भी जल-अपघटित हो जाते हैं और जल-अपघटन पर ये मोनोसैकेराइडों की अनेक इकाइयाँ (100 से 1000) उत्पन्न करते हैं। जैसे-स्टार्च, सेलुलोस, ग्लाइकोजन आदि ।
(C6H10O5) + nH2O → nC6H1206
पॉलीसैकेराइडों को पुनः निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-
(i) समपॉलीसैकेराइड (Homopolysaccharides) - ये जल-अपघटन पर एक ही प्रकार के मोनोसैकेराइड देते हैं, जैसे - स्टार्च, सेलुलोस ।
(ii) विषमपॉलीसैकेराइड (Heteropolysaccharides) – ये जल-अपघटन पर एक से अधिक प्रकार के मोनोसैकेराइड देते हैं, जैसे- ग्लाइकोजन ।
कुछ प्रमुख मोनोसैकेराइड
ग्लूकोस, द्राक्ष-शर्करा या डेक्सट्रोस (C6H12O6)
ग्लूकोस, फ्रक्टोस के साथ
मीठे फलों, शहद और कुछ पौधों की जड़ों में पाया जाता है। पके हुए
अंगूरों (द्राक्ष) में प्रचुर मात्रा (20–30%) में पाया
जाता है इसलिए इसे द्राक्ष-शर्करा भी कहते हैं। मधुमेह के रोगियों के रक्त और
मूत्र में भी यह क्रमशः 0-30% और 10% तक पाया जाता है।
फ्रूक्टोज़, फल शर्करा, लेवुलोस
यह ग्लूकोस के साथ मुक्त अवस्था में अनेक मीठे फलों और शहद में 50% तक पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में ईख शर्करा तथा इनुलिन पॉलिसैकेराइड में उपस्थित रहता है। यह चीनी से भी 1.75 गुना मीठा शर्करा है। इसमें तीन असममित कार्बन परमाणु होते हैं इसलिए यह आठ समावयवी रूपों में पाया जाता है।
डाइसैकेराइड्स [Disaccharides]
वे कार्बोहाइड्रेट जो जल-अपघटन पर समान अथवा भिन्न मोनोसैकेराइडों के दो अणु देते हैं, डाइसैकेराइड कहलाते हैं। जैसे- सुक्रोस, माल्टोस, लैक्टोस आदि। अतः डाइसैकेराइडों का निर्माण मोनोसैकेराइडों से होता है। मोनोसैकेराइडों के दो अणु जल का एक अणु खोकर ऑक्साइड आबन्धन के द्वारा परस्पर जुड़ जाते हैं। ऑक्सीजन परमाणु के द्वारा दो मोनोसैकेराइड इकाइयों के मध्य इस प्रकार के लिंकेज को ग्लाइकोसिडिक लिन्केज या ग्लाइकोसिडिक बंधनी (glycosidic linkage) कहते हैं।
सुक्रोस (Sucrose) (C12 H22 O11)
सुक्रोस को इक्षुशर्करा (canesugar) भी कहते हैं। यह गन्ने में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह अनापचायक (non-reducing) होता है किन्तु जल-अपघटन पर यह ग्लूकोस व फ्रक्टोस देता है जो अपचायक होते हैं।
मालटोज माल्ट शर्करा C12H22O11
यह अंकुरित जौ
में उपस्थित एन्जाइम डायास्टेस (diastase) के द्वारा
स्टार्च के आंशिक जल-अपघटन से प्राप्त होता है।
लैक्टोस (दुग्ध शर्करा), C12H22O11
यह दूध में पाया जाता है। यह जल-अपघटन पर ग्लूकोस और गैलेक्टोस देता है। यह एक अपचायक शर्करा है जिसका निर्माण β-D-ग्लूकोस और β-D-गैलेक्टोस इकाइयों के आपस में जुड़ने से होता है। ग्लूकोस इकाई लैक्टोस के अपचायक अर्द्ध-भाग और गैलेक्टोस इकाई अनापचयी अर्द्ध-भाग (non-reducing half) बनाती है। β-गैलेक्टोस इकाई का C1β-ग्लूकोस इकाई के C4 से संयोजित रहता है। दोनों इकाइयाँ पाइरेनोस रूप में होती हैं।
पॉलीसेकेराइड [Polysaccharides]
ये अनेक मोनोसैकेराइड इकाइयों के परस्पर ग्लाइकोसाइडिक बन्ध (linkage) के द्वारा बँधने से बनते हैं। जाते हैं और जल-अपघटन पर ये मोनोसैकेराइड के अनेक (n) अणु देते हैं, जैसे-स्टार्च, सेलुलोस, ग्लाइकोजन आदि ।
ये एक प्रकार से मोनोसैकेराइडों के बहुलक हैं। पॉलीसैकेराइडों को पुनः निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है :
(1) समपॉलीसैकेराइड (Homopolysaccharides) – यह जल-अपघटन पर एक ही प्रकार से मोनोसैकेराइड देते हैं, - स्टार्च, सेलुलोस ।
(2) विषमपॉलीसैकेराइड (Heteropolysaccharides) - यह जल-अपघटन पर एक से अधिक प्रकार के मोनोसैकेराइड हैं, जैसे- ग्लाइकोजन ।
सेलुलोस (C6 H10 O5 )n
यह पेड़-पौधों का मुख्य संरचनात्मक (Structural) घटक है। पेड़-पौधों की कोशिका भित्तियाँ आधे से अधिक सेलुलोस की बनी होती हैं। कपास, कागज, बाँस, जूट, सन (hemp) आदि सेलुलोस के मुख्य स्रोत हैं। रुई और फिल्टर पत्र लगभग 100% सेलुलोस हैं। सेलुलोस β-ग्लूकोस इकाइयों से बना एक रेखीय (linear) बहुलक है। बहुलकीय श्रृंखलाएँ हाइड्रोजन आबन्धों द्वारा परस्पर जुड़ी रहती है ।
स्टार्च (C6H10 O5) n
यह α-ग्लूकोस का बहुलक है। इसका अणु α-ग्लूकोस की अनेक इकाइयों से मिलकर बना होता है। ये इकाइयाँ ऑक्सीजन परमाणु द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं। यह हरे पौधे में प्रचुरता से पाया जाता है और जड़ों तथा बीजों में संचित भोज्य पदार्थ (reserve food material) के रूप में उपस्थित रहता है। आलू, चावल, मक्का और साबूदाना इसके महत्वपूर्ण स्रोत है। पौधों के संचित भोज्य पदार्थ स्टार्च के समान प्राणियों में ग्लाइकोजन अल्पकालिक संचित भोज्य पदार्थ के रूप में उपस्थित रहता है।
ग्लाइकोजन (Glycogen)
प्राणी शरीर में कार्बोहाइड्रेट, ग्लाइकोजन के रूप में संग्रहित रहता है। चूँकि इसकी संरचना ऐमिलोपेक्टिन के समान होती है, अतः इसे प्राणी स्टार्च भी कहा जाता है एवं यह ऐमिलोपेक्टिन से अधिक शाखित होता है। यह यकृत, माँसपेशियों तथा मस्तिष्क में उपस्थित रहता है। जब शरीर को ग्लूकोस की आवश्यकता होती है, एन्जाइम, ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में तोड़ देते हैं। ग्लाइकोजन यीस्ट तथा कवक में भी मिलता है।
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