पाठ्यचर्या प्रारूप: अर्थ एवं परिभाषा तत्व |Curriculum Design: Meaning and Definition Elements
पाठ्यचर्या प्रारूप: अर्थ एवं परिभाषा तत्व
पाठ्यचर्या प्रारूप प्रस्तावना
शिक्षा एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है, जिसमें शिक्षक, शिक्षार्थी एवं
पाठयचर्या शामिल हैं। यूँ तो शिक्षण प्रक्रिया के ये तीनों ध्रुव महत्वपूर्ण हैं
लेकिन इन तीनों में पाठयचर्या सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि समस्त शिक्षण
प्रक्रिया इसी पाठयचर्या रुपी धुरि के चारों तरफ चक्कर काटती है। अतः
विद्यार्थियों को पाठ्यचर्या के संदर्भ में जानकारी होना आवश्यक है। पुनः
पाठ्यचर्या निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है। इसके तहत कई सारी उप प्रक्रियाएँ शामिल
होती हैं तथा कई सारे तथ्य भी शामिल होते हैं। पाठ्यचर्या प्रारूप उसके तत्व, उसके स्रोत, पाठ्यचर्या
निर्माण के सिद्धांत, पाठ्यचर्या संगठन
आदि कई ऐसे तथ्य हैं जिनके विषय में विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनों को जानकारी होना
आवशयक है। एक अच्छा पाठ्यचर्या ही शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाता है। अतः
पाठ्यचर्या संबंधी ये सारे तत्व महत्वपूर्ण हो जाते हैं। प्रस्तुत इकाई की रचना
इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर की गई है।
पाठ्यचर्या प्रारूप: अर्थ एवं परिभाषा
पाठ्यचर्या प्रारुप शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द करिकुलम
डिजाइन का हिन्दी रुपांतर है। डिजाइन शब्द का प्रयोग क्रिया की तरह या संज्ञा की
तरह किया जाता है। जब इसका प्रयोग क्रिया की तरह किया जाता है तो यह एक प्रक्रिया
को इंगित करता है, जैसे- पाठ्यचर्या
निर्माण की प्रक्रिया। जब इसका प्रयोग संज्ञा की तरह किया जाता है तो यह उस
प्रक्रिया के परिणामस्वरुप आए उत्पाद को इंगित करता है, जैसे- पाठ्यचर्या
प्रारूप । करिकुलम यानि पाठ्यचर्या को जब डिजाइन शब्द के साथ जोड़ा जाता है तो यह
मुख्य रुप से संज्ञा की तरह ही प्रयुक्त होता है। इस प्रकार साधारण शब्दों में
पाठ्यचर्या प्रारूप को पाठ्यचर्या की एक व्यस्थित रुपरेखा कहा जाता है, जिसमें उसके
निर्माण एवं मूल्यांकन तक की सारी प्रक्रिया का क्रमवार विवरण होता है। प्रारूप को
निम्न शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है- यह निश्चित समयावधि के लिए निश्चित
अनुदेशात्मक खंडों की एक प्रस्तावित रुपरेखा होती है, साथ ही इसमें उन
अनुदेशात्मक खंडों को कैसे अनुपालित किया जाए इसका भी निर्देश होता है।
एक अच्छे पाठ्यचर्या प्रारूप की विशेषताएँ
एक अच्छे पाठ्यचर्या प्रारुप की निम्नलिखित विशेषतएँ होती
हैं:
1. एक अच्छा पाठ्यचर्या प्रारुप उद्देश्यपूर्ण होता है- पाठ्यचर्या प्रारूप सिर्फ विषयवस्तु का एक क्रमवार संकलन ही नहीं होता है बल्कि यह एक स्पष्ट उद्देश्यों के साथ विषयवस्तु का क्रमवार संकलन होता है ताकि पाठयचर्या अभ्यासकर्ता इसका प्रभावपूर्ण प्रयोग कर सके;
2. एक अच्छा पाठ्यचर्या प्रारुप सुव्यस्थित एवं सुनियोजित होता है- पाठयचर्या प्रारूप, निर्माणकर्ता के एक सुव्यस्थित प्रयास का परिणाम होता है। इसमें क्या करना है? कब करना है? और किसे करना है? इन सब बातों का स्पष्ट उल्लेख होता है;
3. एक अच्छा पाठ्यचर्या प्रारुप सृजनात्मक होता है- स्पष्ट उद्देश्य एवं सुव्यवस्थित पाठ्यवस्तु के विवरण के साथ-साथ एक पाठयचर्या प्रारुप सृजनात्मक भी होता है। यह सिर्फ सुपरिभाषित विधियों, जिन्हें विभिन्न चरणों में संपादित करना होता है का ब्योरा ही नहीं होता है बल्कि इसमें हरेक पड़ाव पर नवाचार के अवसर होते हैं; तथा
4. एक अच्छा
पाठ्यचर्या प्रारुप को लोचशील होना चाहिए- लोचशीलता से आशय उस गुण से है जो समय
एवं परिस्थिति की माँग के अनुसार परिवर्तन का आदेश देती है। एक पाठ्यचर्या प्रारूप
को लोचशील भी होना चाहिए ताकि समय एवं परिस्थिति के अनुसार समाज की बदलती हुई माँग
के अनुकूल पाठ्यचर्या को सामंजित किया जा सके।
पाठ्यचर्या प्रारुप के तत्व
पाठ्यचर्या प्रारूप के पाँच प्रमुख तत्व या घटक है:
1. शिक्षार्थी एवं समाज के विषय में मानयताओं का एक संरचनात्मक ढाँचा
2. लक्ष्य एवं उद्देश्य
3. विषयवस्तु का चयन, उसका क्षेत्र विस्तार एवं उसका क्रम
4. क्रियान्वयन की
5. मूल्यांकन
अब आप बारी-बारी से एक-एक का अध्ययन करेंगे।
1. शिक्षार्थी एवं समाज के विषय में मान्यताओं का एक संरचनात्मक ढाँचा -
कोई भी पाठ्यचर्या समाज एवं
उसमें रहनेवाले व्यक्तियों से संबधित मान्यताओं के साथ प्रारंभ होता है।
पाठ्यचर्या निर्माणकर्ताओं का पहला कार्य शिक्षार्थी की योग्यता, आवश्यकता, रुचि, अभिप्रेरणा एवं
किसी सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषयवस्तु को सीखने की क्षमता का निर्धारण करना होता
है। उपर्युक्त तथ्यों के संदर्भ में विभिन्न विषयों जैसे कि मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, समाजशास्त्र, शिक्षास्शास्त्र
आदि में अनेक शोधकार्य हुए हैं। उपर्युक्त शोध कार्यों में प्रमुख रुप से
शिक्षार्थी क्या आत्मसात कर सकता है? किस परिस्थिति में कर सकता है? और उसके परिणाम
क्या होंगे? आदि प्रश्नों के
उत्तर देने के प्रयास किए गए हैं। इनसे हमें पाठ्यचर्या प्रारूप के तत्व की
जानकारी मिलती है।
2. लक्ष्य एवं उद्देश्य-
पाठ्यचर्या प्रारूप का दूसरा प्रमुख तत्व पाठयचर्या के लक्ष्य एवं उद्देश्य होते हैं। चूँकि पाठ्यचर्या के उद्देश्य विषयवस्तु एवं मूल्यांकन प्रक्रिया के चयन के आधार होते हैं; अतः, ये सुपरिभाषित एवं सुव्यवस्थित होने चाहिए। पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के बजाय, शिक्षार्थी की रुचि, आवश्यकता, आदि को ध्यान में रखकर नवीन उद्देश्यों का निर्माण होना चाहिए। इन उद्देश्यों के निर्धारण में ज्ञान, कौशल, मूल्य, अभिक्षमता एवं आदतों के विकास जो कि शिक्षण प्रक्रिया के वांछित परिणाम को प्रभवित करते हैं, को भी ध्यान में रखना चाहिए। उद्देश्य एवं लक्ष्य शिक्षक के लिए, शिक्षण अधिगम के क्षेत्र को भी चित्रांकित करते हैं। उद्देश्य एवं लक्ष्य, समाज एवं अधिगमकर्ता के दार्शनिक मान्यताओं को प्रतिबिंबित करते हैं। ये वैश्विक या विशिष्ट भी हो सकते हैं। ये अधिगमकर्ता में किसी विशिष्ट व्यवहार को विकसित करने वाले हो सकते हैं या व्यवहार के सामान्य प्रारुप को विकसित करनेवाले। ये गतिशील होते हैं अर्थात समाज में परिवर्तन के साथ ये भी परिवर्तित हो जाते हैं। इन दोनों प्रकार के परिवर्तनों अर्थात सामाजिक परिवर्तन तथा उद्देश्य एवं लक्ष्य में परिवर्तन के बीच सांमजस्य एक अच्छे पाठ्यचर्या प्रारुप की आवश्यक शर्त है लेकिन समस्त विश्व में इस प्रकर के सांमजस्य का अभाव है।
3. विषयवस्तु क्ला चयन, उसका क्षेत्र विस्तार एवं उसका क्रम
विषयवस्तु को चयनित कर, शिक्षक एवं शिक्षार्थी के प्रयोग के लिए, एक क्रम में
व्यवस्थित किया जाता है। विषयवस्तु या पाठ्यवस्तु को निम्नलिखित तीन रूपों में
समझा जा सकता है:
1. एक वर्षीय पाठ्यचर्या के लिए विषयों की सूची;
ii. एक अनुशासन (जैसे- विज्ञान, गणित आदि); तथा
iii. एक विशिष्ट विषय
(जैसे- जीव विज्ञान, भौतिकि आदि)
विषयवस्तु के चयन में तीन मुख्य तत्वों को ध्यान में रखा
जाता है:
i. ज्ञान
ii. प्रक्रिया/कौशल; तथा
iii. प्रभाव
विषयवस्तु के चयन के लिए निकष-
i. - विषयवस्तु वर्तमान समय के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं तकनीकि आवश्यकताओं के 'अनुकूल' होना चाहिए।
ii. संतुलन- शिक्षा के दोनों ध्रुवों अर्थात क्या स्थायी है? और क्या परिवर्तनशील है ? को समझकर उनके मध्य संतुलन स्थापित करना पड़ता है।
iii. विषयवस्तु की वैधता विषयवस्तु को वास्तविक रुप से उन्हीं अधिगम अनुभवों को प्रदान करनेवाला होना चाहिए जिनके लिए उन्हें चयनित किया गया है।
iv. शिक्षार्थी केन्द्रित विषयवस्तु का चयन शिक्षार्थी के विकास की अवस्था के अनुकूल होना चाहिए।
V. सहजता विषयवस्तु समय, मानवीय, भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों की दृष्टि से सहज होना चाहिए।
4. क्रियान्वयन की
दशाएँ - पाठ्यचर्या प्रारुप के एक तत्व के रुप में क्रियान्वयन की दशाओं का आशय
विषयवस्तु को शिक्षार्थियों तक पहुँचाने की विभिन्न विधियों से है। ये पाठ्यचर्या
प्रारूप का एक मुख्य तत्व है क्योंकि यह शिक्षार्थी के परिणाम को निर्धारित करता
है। यह शिक्षार्थी के अभिरुचि एवं विषयवस्तु पर उसके स्वामित्व को प्रभावित करता
है साथ ही साथ शिक्षक के व्यवहार को भी प्रभावित करता है। पहले, क्रियान्वयन की
दशाएँ शिक्षक- केन्द्रित हो या विद्यार्थी केन्द्रित, इस बात पर बहुत
ध्यान दिया जाता था लेकिन कालांतर में विषयवस्तु के विद्युतीय प्रस्तुतीकरण, जैसे कि
स्मार्टबोर्ड, पॉवरप्वायंट
प्रस्तुतीकरण आदि के विकास के कारण शिक्षक की भूमिका में बदलाव आया है। पुनः
क्रियान्वयन की दशाओं को प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दो भागों में बाँटा जा सकता है।
ये बँटवारा पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन में शिक्षक एवं शिक्षार्थी की भागीदारी की
मात्रा के आधार पर किया जाता है । पाठयचर्या प्रारुप के विभिन्न तत्वों में से जिस
तत्व पर सबसे ज़्यादा शोध कार्य किया जाता है, वो क्रियान्वयन की दशाएँ हैं।
5. मूल्यांकन -
पाठ्यचर्या प्रारुप के तत्व के रुप में मूल्यांकन के कई आयाम होते हैं। समेकि रुप में मूल्यांकन शिक्षार्थी को उसके निष्पादन के विषय में बताता है तथा विषयवस्तु को अगले चरण की ओर निर्देशित करता है। इस प्रकार मूल्यांकन विषयवस्तु के क्रम एवं पाठयक्रम के क्रियान्वयन को निर्देशित करते हैं। मूल्यांकन का दूसरा आयाम शिक्षार्थी के अधिगम के संबंध में वो सूचना प्राप्त करना है जो विद्यार्थी को चयनित एवं निरस्त, उतीर्ण एवं अनुतीर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं तथा इस संदर्भ में कि विद्यालय राष्ट्रीय नीति का कितने अच्छे तरीके से अनुपालन कर रहे हैं, आँकड़े एकत्रित करना या प्रदान करना है (वॉकर,1976)। इस प्रकार मूल्यांकन शिक्षार्थी एवं शिक्षक के लिए पृष्ठपोषण का कार्य करता है ( ऐश, 1974)।
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