अन्तः प्रदव्ययी झिल्लिका तंत्र | Endoplasmic System in Hindi
अन्तः प्रदव्ययी झिल्लिका तंत्र
अंतः झिल्लिका तंत्र
झिल्लीदार अंगक कार्य व संरचना के आधार पर एक दूसरे से काफी अलग होते हैं, इनमें बहुत से ऐसे होते हैं जिनके कार्य एक दूसरे से जुड़े रहते हैं उन्हें अंतः झिल्लिका तंत्र के अंतर्गत रखते हैं। इस तंत्र के अंतर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका, गॉल्जीकाय, लयनकाय, व रसधानी अंग आते हैं। सूत्रकणिका ( माइटोकॉन्ड्रिया), हरितलवक व परऑक्सीसोम के कार्य उपरोक्त अंगों से संबंधित नहीं इसलिए इन्हें अंतः झिल्लिका तंत्र के अंतर्गत नहीं रखते हैं।
एण्डोप्लामिक जालिका ( Endoplasmic Retuculam)
कोशिका द्रव्य में फैला यह असंख्य शाखाओं वाली झिल्लियों का
एक जाल है। जाल की झिल्लियां दोहरी परत की बनी होती हैं और असंख्य नलिकाएं बनाती
हैं। इनके मुख्य कार्य हैं: कोशिका के अंदर कोशिका द्रव्य और केंद्रक द्रव्य में
विभिन्न पदार्थों का अन्तः कोशिकीय परिवहन (Intracellular transport), वसा संश्लेषण की
क्रिया में मदद तथा कोशिका विभाजन के समय-नई केंद्रक झिल्ली (Nuclear membrane) का निर्माण करना।
इसकी खोज पोर्टर ने 1945 में की थी।
अंतःप्रद्रव्य जालिका (Endoplasmic Recticulum):
ये नालिकनुमा खोखली रचनाएं होती हैं, जिसके अन्दर गाढ़ा
द्रव्य भरा होता है। ये विषाणु, जीवाणु, नील हरित शैवाल तथा स्तनधारियों के लाल रक्त कण (RBC) को छोड़कर सभी
अन्य कोशिकाओं में पाए जाते हैं।
अंतःप्रद्रव्य दो प्रकार है-
(i) खुरदरा ER- इनकी सतह पर
राइबोसोम पाए जाते हैं, प्रोटीन संश्लेषण
को लिए।
(ii) चिकना ER- इनकी सतह पर
राइबोसोम नहीं पाए जाते हैं, लिपिड संश्लेषण के लिए। राइबोसोम कोशिका द्रव्य में अलग से
भी पाए जाते हैं।
ER के मुख्य कार्य
1. प्रोटीन संचय करना,
2. ग्लाइकोजन उपापचय में
सहायता करना,
3. विभिन्न आनुवंशिक
पदार्थों को कोशिका के अंगों तक पहुँचाना।
गॉल्जी काय की संरचना तथा कार्य
गॉल्जी काय के अन्य नाम गॉल्जी सम्मिश्र (Golgi complex), गॉल्जीओसोम (Golgiosome), गॉल्जी बॉडीज (Golgi bodies), गॉल्जी उपकरण (Golgi apparatus), डाल्टन सम्मिश्र
(Dalton complex), लिपोकोन्ड्रिया (Lipochondria), डिक्टायोसोम (Dictyosome), ट्रोफोस्पोन्जियम
(Trophospongium), बेकर की बॉडी (baker’s body), इडियोसोम (Idiosome) है।
गॉल्जीकाय बहुरूपिय होती है, अर्थात भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाओं में
इसकी संरचना भिन्न-भिन्न होती है। केवल इसी कोशिकांग में निश्चित ध्रुवीयता पायी
जाती है।
बेकर ने इसे “सूडान ब्लैक अभिरंजक” से अभिरंजित किया और इसे विभिन्न स्राव से संबंधित होना
बताया। इसलिए इसको बेकर की बॉडी (baker’s body) भी कहते है।
गॉल्जी काय की संरचना (Structure of Golgi body)
इसकी संरचना में निम्न घटक दिखाई देते हैं-
1. सिस्टर्नी (Cisternae)
2. नलिकाएं (Tubules)
3. पुतिकाएँ (Vesicles)
1. सिस्टर्नी (Cisternae)
ये झिल्लीनुमा घुमावदार चपटी संरचना होते है ये एक-दूसरे के समानांतर व्यवस्थित
होती है। सामान्यतया इनकी संख्या 6-8 होती है। लेकिन गोल्जी काय में इनकी संख्याँ में विभिन्नता
पायी जाती है। (कीट में सिस्टर्नी की संख्याँ 30 तक)।
गॉल्जी काय की सिस्टर्नी में चार संरचनात्मक घटक होते हैं-
• सीस गॉल्जी (Cis Golgi)
• अन्तः गॉल्जी (Endo Golgi)
• मध्य गॉल्जी (Medial Golgi)
• ट्रांस गॉल्जी (Trans Golgi)
2. नलिकाएँ (Tubules)
ये छोटी, शाखित, नलिकाकार संरचना होती है। ये शाखाओं के द्वारा आपस में
जुड़ी होती है। ये सिस्टर्न के किनारों पर बनती है।
3. पुटीकाएँ (Vesicles)
ये छोटी तथा थैलीजैसी संरचना है इनका निर्माण नलिकाओं से
होता हैं। पुटीकाएँ निम्न प्रकार की होती है:
संक्रमण पुटीकाएँ (Transitional vesicles)
गॉल्जी काय अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) के साथ मिलकर काम
करता है। जब अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) में कोई प्रोटीन बनाया
जाता है, तो एक संक्रमण
पुटिकाओं का निर्माण होता है। जिसमें प्रोटीन भरा रहता है। यह पुटिका या थैली
कोशिका द्रव्य के माध्यम से गॉल्जी तंत्र में प्रवेश करती है, और अवशोषित हो
जाती है।
स्रावी पुटीकाएँ (Secretory vesicles)
गॉल्जी उपकरण में
संक्रमण पुटीकाओं के अवशोषित होने के बाद, स्रावी पुटिकाएँ बनाई जाती है जिनको कोशिका द्रव्य में छोड़
दिया जाता है। जहाँ से ये पुटिकाएँ कोशिका झिल्ली तक जाती है, और पुटिका या
थैली में उपस्थित अणुओं को कोशिका से बाहर निकाल दिए जाते है।
क्लैथ्रिन-लेपित पुटीकाएँ (Clathrin-coated vesicles)
ये पुटीकाएँ कोशिका के अन्दर ही विभिन्न प्रकार के उत्पादों
के यातायात में सहायता करता हैं।
गॉल्जीकाय का सिस और ट्रांस भाग (Cis and Trans face of Golgi)
गॉल्जी काय केन्द्रक की ओर का भाग सिस भाग या निर्माण भाग (cis or forming face) कहलाता है कोशिका
झिल्ली को ओर का भाग ट्रांस भाग या परिपक्व भाग (trans or maturing face) कहलाता है।
ER से बनने वाले
प्रोटीन सिस भाग से गॉल्जी काय में प्रवेश करते है जिनकी पैकेजिंग करके ट्रांस भाग
से पुटीकाओं को रूप में निकाला जाता है तथा इस प्रोटीन को आवश्यक भाग में भेजा
जाता है।
गॉल्जी काय का कार्य (Functions of Golgi Body)
1. स्राव करना (Secretion)
- गॉल्जी तंत्र अपने सिस भाग के माध्यम से एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम से विभिन्न पदार्थ प्राप्त करता है।
- इन पदार्थों को रासायनिक रूप से एंजाइम ग्लाइकोसल ट्रांसफ़ेज़ (Glycosyl transferease) द्वारा संशोधित किया जाता है। जिसे प्रोटीन और लिपिड का ग्लाइकोसिलेशन (Glycosylation) कहते है।
2. लाइसोसोम का
निर्माण करना
- लाइसोसोम गॉल्जी काय के परिपक्व भाग (maturing face) द्वारा निर्मित होते हैं, जो एसिड फॉस्फेट से भरपूर होता है।
3. प्रोटीन की छँटाई
करना (Protein sorting)
- सभी स्रावी प्रोटीन को सबसे पहले गॉल्जीकाय में ले जाया जाता है। फिर गॉल्जीकाय इनको अपने गंतव्य स्थानों जैसे लाइसोसोम, प्लाज्मा झिल्ली तक भेजता है।
4. जटिल
पॉलीसेकेराइड का संश्लेषण (Synthesis of complex polysaccharide)
- पौधों में गॉल्जी काय पौधों की कोशिका भित्ति में काम आने वाले के जटिल पॉलीसेकेराइड को संश्लेषित करता हैं।
5. O-लिंक्ड
ग्लाइकोसिलेशन (O-linked
glycosylation)
- गॉल्जी कॉम्प्लेक्स प्रोटीन का में ओ-लिंक्ड ग्लाइकोसिलेशन (O-linked glycosylation) होता है। जिसमें आमतौर पर प्रोटीन के थ्रेओनीन और सेरीन एमिनो अम्ल के साथ ग्लूकोज को जोड़ा जाता है।
6. एक्रॉसोम का
निर्माण (Formation of
acrosome)
- गॉल्जी काय में रूपांतरण से शुक्राणु का एक्रॉसोम बनता है।
7. फ्रेग्मोप्लास्ट
का निर्माण (Phragmoplast
Formations)
- पादप कोशिका विभाजन के दौरान फ्रेग्मोप्लास्ट का गठन गॉल्जी काय की पुटिकाओं के संलयन से होता है।
8. कोर्टिकल कणिकाओं
का निर्माण (Formation of
cortical granules)
- गॉल्जी काय अंडे के कोर्टिकल कणिकाओं के निर्माण में मदद करता है।
9. प्रोटीन यातायात
(Protein Trafficing)
- गॉल्जी काय विभिन्न प्रकार के प्रोटीन या अन्य अणुओं को पुटीकाओं के माध्यम से आवश्यक स्थानों तक पहुँचाता है इसलिए इसको कोशिका के अणुओं के यातायात का निर्देशक (director of macromolecular traffic in cell), कोशिका का मध्यवर्ती (middle man of cell) या कोशिका का ट्रैफिक पुलिस (traffic police of cell) कहा जाता है।
- गॉल्जी काय के चारों ओर कोशिका द्रव्य के विभिन्न कोशिकांग जैसे राइबोसोम, माइटोकॉन्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट आदि दुर्लभ या अनुपस्थित होते हैं। इसे बहिष्करण का क्षेत्र (Zone of exclusion) कहा जाता है।
लाइसोसोम का निर्माण तथा कार्य
लाइसोसोम (Lysosome)
- Lysosome शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Lyso तथा Soma से बना है। लाइसो का अर्थ पाचक तथा सोमा का अर्थ काय है यानि Lysosome का अर्थ पाचक काय या लयन काय है।
- लाइसोसोम की खोज डी डवे (De Duve) ने की थी। एलेक्स नोविकॉफ़ (Alex Novikoff ) ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा कोशिका में लाइसोसोम को देखा तथा इसे लाइसोसोम नाम दिया।
- यह एकल झिल्ली आबंध कोशिकांग है, जिसमें प्रचुर मात्रा में अम्लीय हाइड्रॉलेज एंजाइम पाए जाते है जो सभी प्रकार के जैविक बहुलक यानी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, और न्यूक्लिक अम्लों का पाचन है।
- अम्लीय हाइड्रॉलेज एंजाइम को कार्य के लिए अम्लीय वातावरण (pH~5) की आवश्यकता होती है। जो H+ ATPase द्वारा प्रदान की जाती है। Lysosome में V प्रकार ATPase पंप होते है।
- कोशिका और परिपक्व आरबीसी को छोड़कर सभी कोशिकाओं में पाया जाता है। भक्षकाणु कोशिकाओं में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- उच्च श्रेणी पादपों में यह कम पाया जाता है।
लाइसोसोम का निर्माण (Formation of Lysosome)
- अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) और गॉल्जी काय (Golgi body) के द्वारा लाइसोसोम का निर्माण के द्वारा होता है।
- अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) के द्वारा लाइसो सोम के एंजाइमों का निर्माण होता है। तथा चारों ओर की झिल्ली का निर्माण गॉल्जी काय द्वारा होता है।
लाइसो सोम के प्रकार (Types of Lysosome)
सामान्तया लाइसोसोम के चार प्रकार होते हैं: –
1. प्राथमिक लाइसो सोम (Primary lysosome)
2. द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome)
3. अवशिष्ट काय (Residual body)
4. ऑटोफैगोसोम (Autophagosomes)
1. प्राथमिक लाइसोसोम (Primary lysosome)
- जब लाइसोसोम का निर्माण होता है तो इसमें अम्लीय हाइड्रॉलेज निष्क्रिय रूप में जमा होता है। यह अम्लीय हाइड्रोलेज अम्लीय माध्यम में ही कार्य करता है। इसे भंडारण कणिकाएँ (Storage Granules) भी कहते है।
2. द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome)
- यह प्राथमिकलाइसोसोम और फैगोसोम या रिक्तिका के संलयन द्वारा बनता है। इन्हें पाचक रिक्तिकाएँ (Digestive Vacuoles) और हेटरोफेगोसोम (Heterophagosome) भी कहा जाता है।
3. अवशिष्ट काय (Residual body)
- लाइसो सोम में अपचनीय सामग्री या अपशिष्ट सामग्री होती है, जिसे एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से बाहर निकला है।
लिपोफ्यूसिन कण (Lipofuscin granule)-
- अवशिष्ट काय को एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से निकाला जाता है या लिपोफ्यूसिन कण के रूप में जीवद्रव्य के भीतर रखा जाता है।
4. ऑटोफैगोसोम (Autophagosomes)
वह Lysosome
जिसके द्वारा
स्वयं की कोशिका के कोशिकांगों को अघटित किया जाता है। ऑटोफैगोसोम या
साइटोलाइसोसोम कहलाता है।
लाइसोसोम से सम्बंधित रोग (Disease Related to Lysosome)
1. गुचर रोग (Gaucher’s disease)
2. पोम्पेस रोग (Pompe’s disease)
3. टे-सेक रोग (Tay-Sachs disease)
लाइसोसोम के कार्य (Functions of Lysosome)
1. फागोसाइटोसिस या
पिनोसाइटोसिस के माध्यम से कोशिका में प्रवेश करने वाले कणों का पाचन करना। इसे
हेटरोफैगी (Heterophagy) कहते है।
2. कोशिका के आंतरिक पदार्थो
का पाचन करना। इसे ऑटोफैगी कहते है।
3. ऑटोलाइसिस प्रक्रिया से
पुरानी कोशिकाओं और संक्रमित कोशिकाओं नष्ट किया जाता हैं। कोशिका के सभी लाइसो
सोम फट जाते है जिससे इसके सभी पाचक एंजाइम कोशिकांगों को पचाने लगते हैं। इसलिए
इसे कोशिका की आत्मघाती थैली (Suicidal bag of the cell) भी कहते है।
रिक्तिका या रसधानी
- कोशिका के कोशिकाद्रव्य में मौजूद गोलाकार या अनियमित आकर की इकाई झिल्ली से घिरी हुई रिक्तिकाऐं मौजूद होती हैं। ये प्राणी कोशिका में उपस्थित नहीं मानी जाती हैं। लेकिन प्रोटोजोअन्स में अल्पविकसित अवस्था में उपस्थित होकर अनेक प्रकार के कार्य करती हैं। इसकी खोज फेलिक्स डुजार्डिन (Dujardin) ने 1941 में की थी।
पादप कोशिकाओं
में रिक्तिकाऐं सुविकसित मिलती हैं। नई बनी हुई पादप कोशिका में ये रिक्तिकाऐं
छोटी तथा बिखरी हुई अवस्थाओं में प्राप्त होती हैं, लेकिन वयस्क पादप कोशिका में छोटी-छोटी
रिक्तिकाऐं आपस में मिलकर बड़ी एवं सुविकसित रिक्तिका में परिवर्तित हो जाती हैं।
रिक्तिका को कोशिकाद्रव्य से पृथक करने वाली झिल्ली को टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं।
टोनोप्लास्ट की खोज डिव्रीज (de vries) द्वारा 1885 में की गई। इसकी पारगम्यता कोशिका झिल्ली की तुलना में कम
होती हैं।
- रिक्तिका में कई प्रकार के कोशिकीय उत्सर्जी पदार्थ निर्जीव अवस्था में संग्रहित होते रहते हैं। इन पदार्थों को कोशिका रस या रिक्तिका रस (Cell sap / Vacuole sap) कहते हैं। कोशिका रस में उपस्थित विभिन्न निर्जीव पदार्थों को अर्गोस्टिक पदार्थ भी कहा जाता हैं। इनमें शर्कराऐं, अमीनों अम्ल, खनिज लवण, कार्बनिक अम्ल, वर्णक पदार्थ आदि घुलित अवस्था में मिलते हैं। अल्प मात्रा में ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सूक्रोज, इन्युलिन कण, ऑक्जेलिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल, साइट्रिक अम्ल कुछ एल्केलॉइड्स एवं ग्लाइकोसाइड्स आदि भी मौजूद होते हैं।
रिक्तिका के
कार्य (Functions of
vacuole) –
- कोशिकाओं की आशूनता (Turgidity) को बनाए रखती हैं, जो कोशिकाओं को कार्यकीय रूप से सक्रिय रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- कोशिका में वर्ज्य पदार्थों / अपशिष्ट पदार्थों के अस्थायी रूप से संग्रह तथा निष्कासन में उपयोगी होती हैं।
- यह कोशिका विवर्धन (Cell elongation) द्वारा कोशिका वृद्धि में सहायक करती हैं।
- कई पौधों में रिक्तिकाओं में ऐल्केलॉइडों का संग्रह होता हैं, इस कारण शाकभक्षी (Herbivores) इन पौधों को नहीं खाते हैं।
- कई पौधों में एन्थोसायेनिन वर्णक धावीरस में धुले होते हैं। यह वर्णक परागण के लिए कीटों को आकर्षित करता हैं।
- पौधें की पत्तियों, शाखाओं व अन्य कोमल अंगों को तने हुए (Stretched) रखने में भी आशूनता आवश्यक होती हैं।
रिक्तिकाओं के
प्रकार (Types of
vacuole) –
कार्यों के आधार
पर रिक्तिकाओ को निम्न भागो में बांटा गया है –
1. रस रिक्तिका या
रसधानी (Sap vacuole) –
रिक्तिका रस में
यदि खनिज लवण एवं कुछ पोषणीय पदार्थों का संचय होता हैं तो ऐसी रिक्तिका को रस
रिक्तिका कहा जाता हैं।
2. संकुचनशील
रिक्तिका (Contractile
vacuole) –
ये रसधानियाँ
फैलने एवं सिकुड़ने वाली प्रकृति की होती हैं, जिनमें उत्सर्जी पदार्थ एवं जल भरता रहता हैं तथा अंत में
इन्हें बाहर निकाल देती हैं। अतः ये परासरणी नियमन एवं उत्सर्जन का कार्य करती
हैं।
3. खाद्य रिक्तिकाऐं
(Food vacuole) –
वे रिक्तिकाऐं जो
अर्न्तग्रहित भोजन का पाचन तथा पचित भोजन का वितरण करने का काम करती हैं, खाद्य रिक्तिकाऐं
कहा जाता हैं। सामान्यतः ये रिक्तिकाऐं पैरामिशियम, अमीबा आदि प्रोटोजोअन्स में मिलती हैं।
4. वायु रिक्तिकाऐं
या गैस रिक्तिकाऐं (Air
vacuole / Gas vacuole) –
ये रिक्तिकाऐं प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में पायी जाती हैं, जिनमें वायु भरी रहती हैं। अतः ये उत्प्लावकता प्रदान करने का काम करती हैं।
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